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आखिरकार सभी अपना उपनाम भट्ट क्यों रखें? Delhi India 

आखिरकार सभी अपना उपनाम भट्ट क्यों रखें?

कुछ लोग सरनेम बदल रहे हैं, कुछ नहीं कर रहे हैं…यह उनका अधिकार है कि वह कौन सा उपनाम रखें? हमें सामाजिक कुरीतियां ख्तम करने पर अधिक जोर देना चाहिए उसी से हम तरक्की भी कर सकेंगे न कि सरनेम से…

राय तपन भारती/ New Delhi
Tapan & Sandhyaयह व्यवहारिक तौर पर संभव ही नहीं कि सभी लोग भट्ट सरनेम अपना लें, मौजूदा उपनामों से पहचानने में कोई परेशानी नहीं। कुछ अपना उपनाम यथावत रखे हुए हैं, उन्हें सरनेम बदलने की आवश्यकता नहीं लगती।
मेरा ही नाम सबसे अलग है। राय तपन भारती नाम से मैं ब्रह्मभट्ट कतई नहीं लगता पर समाज के अधिकतर स्वजन मुझे पहचानते हैं। मेरे पिता लेखक थे और उन्होने दादाजी (जीपी राय) से अलग अपना राय प्रभाकर प्रसाद कर लिया पर पूरा समाज उनकों उनके कर्मों से पहचानता था।
कुछ स्वजन भट्ट सरनेम होने के कारण अहंकार में जी रहे हैं। वो सबका उपनाम भट्ट करवाने पर तुले हुए हैं जबकि हम सबको शर्मा, राय, बारोट, राणा, कुमार, सिंह,चौधरी, तिवारी, दसौंधी आदि सरनेम होने से कोई परेशानी नहीं है। हमें इस बात की भी दिक्कत नहीं है कि हम अपनों को कैसे पहचानें। हमने हमेशा अपनों को खोज लिया भले ही उनका कोई भी सरनेम रहा हो। अपनी जाति का एकमात्र सरनेम दसौंधी है जिसे दूसरी जाति वाले इस्तेमाल नहीं करते। भट्ट सरनेम भी दूसरे समाज वाले दशकों से करते आ रहे हैं।
कुछ लोग सरनेम बदल रहे हैं, कुछ नहीं कर रहे हैं…यह उनका अधिकार है कि वह कौन सा उपनाम रखें? हमें सामाजिक कुरीतियां ख्तम करने पर अधिक जोर देना चाहिए उसी से हम तरक्की भी कर सकेंगे न कि सरनेम से…
गनगनिया गांव (भागलपुर) के ब्रह्मभट्ट शान से सिंह लिखते हैं वे तरक्की में भी आगे हैं…सरनेम से उन्हे समाज में सादी करने में कोई परेशानी नहीं होती। भटवलिया (मुजफ्फरपुर) वाले राणा लिखते, उनकी शादियां भी हर ब्रह्मभट्ट गांव में है।
हमारा ग्रुप तुगलकी फरमान न जारी करना चाहता और न ही किसी पर कोई नियम थोपना चाहता। अत आप अगर इस ग्रुप को तुगलकी आदेश दे रहे है कि सभी लोग भट्ट उपनाम रखें तो आपकी ये बातें हमें कतई मंजूर नहीं है।
Comments by members of BBW Group :
Avinash BhattAvanish Bhatt: “भट्ट” लिखने का अहंकार नहीं अपित्तु हमें गर्व है भट्ट होने पर और अपने समाज और जाति पर गर्व करने के लिए मैं किसी भी कुर्बानी के लिए तैयार हूं, तपन सर। मैं व्यक्तिगत रूप से सभी को भट्ट सरनेम अडॉप्ट करवाने का पक्षधर नहीं हूँ, हाँ इतना जरूर चाहता हूँ कि यदि हम भट्ट हैं तो सरनेम चाहे कुछ भी हो हमें स्वयं की जाति बताने पर झिझकने की बजाय गर्व करना चाहिये। दिक्कत सिर्फ झिझकने वालों की वजह से है।
Pradeep Bhatt: अब ये राणा कुमार सिंह चौधरी, बात समझ से परे है , जिनके पास जमीन आ गई वो अपने को चौधरी लिखेगा या सिंह लिखेगा क्यों कि ऐसा लिखने में धमक का अहसास होता है ,भट्ट लिखेंगे तो एक गरीब और निरीह ब्राह्मण। ना पूरे ब्राह्मण, ना पूरे चौधरी। ये सब बीच के बन के रह गए लगते हैं।
rakesh-advocateRakesh Sharma, Advocate: सरनेम में कुछ नहीं रखा है रखा है तो अपनी शख्सियत बनाने में. हम अनेकता में एकता लाने वाले हैं हमारी पहचान अपनों में नहीं छुप सकती। गांधी सर नेम बड़ा मसहुर हुआ क्योंकि गांधी जी ने सत्य और अहिंसा से भारत को गुलामी से मुक्त कराया और इनकी इसी शख्सियत से प्रभावित होकर ब्राह्मण की लडकी इंदिरा ने अपने नाम के बाद गांधी लगा लिया। ब्रह्मभट्ट ब्राह्मण के बारे में सभी जानते हैं की ये लोग भिन्न भिन्न सरनेम रखते हैं। हमें जबरदस्ती टायटल बदलने पर जोड़ न देकर समाज में ऐसा कृतिमान स्थापित करना चाहिए जिससे की हमारी टायटिल गांधी टायटिल के तरह लोगों को प्रभावित कर सके और हमारे बच्चे अपने नाम के बाद सुप्रसिद्ध टायटिल लगा सके।
मैं दिनभर आदमी पढने का कार्य करता हूं, किस्म किस्म के लोगों से रोज रूबरू होता हूं। भला आपके बात को बुरा क्यों मानुंगा। आपने अपने तरह से मेरे कमेंट का जवाब दिया और मैनें अपने तरह से। यह स्वजातीय डिवेट है यहाँ सभी अपने हैं इस बिच अपनों से हार जाना मुझे अच्छा लगता है वहीं आप मेरे बारे में थोड़ा पता किजीएगा। मैं भी आपके समाज का ऐसा वकील हूं जो अपने कोर्ट में अपने मवक्कील का कोई केश हारा नहीं है. परन्तु यह घर जैसा है जहां हार जाना ही सम्मानजनक होता है। धन्यवाद।
Satyendra Sharma: Rakesh Sharma jee, मैं भी आपके समाज का ऐसा वकील हूं जो अपने कोर्ट में अपने मवक्कील का कोई केश हारा नहीं है. ” Making sense ..
Urmila BhattUrmila Bhatt पिछले चार दिनों से सरनेम पर चर्चा हो रही है बहुत ही तीखे तेवर में लोगों के कमेंट्स भी पढ़ने को मिल रहे हैं। और कुछ भी नतीजा निकलने वाला नहीं हैं जिनकी जिस सरनेम से पहचान समाज में बन चुकी है इस बहस के बाद क्या सभी लोग भट्ट लिखने लगेंगे,,,????????
इसलिए इस तरह के पोस्ट डालकर बेवजह समय बर्बादी से बचने का प्रयास करते हुए समाज की उन्नति कैसे हो इस पर विचार हो तो इतने बड़े संगठन का निर्माण जो सोशल मीडिया के जरिए हुआ है वो सार्थक होगा।
हम सभी अखबार पढ़ते हैं। जब किसी पेज पर यह पढ़ने को मिलता है कि आज अमुक समाज द्वारा 50 कन्याओं का सामूहिक विवाह करवाया गया। कभी पढ़ने में आता अमुक समाज द्वारा वृद्धाआश्रम में कपड़े बाँटे बाँटें गए ऐसे ना जाने कितनी खबरें पढ़ने को मिलती है। इस तरह के मुद्दों पर विचार कीजिए और अपना योगदान दीजिए।
फेसबुक पर बहस से कोई हल नहीं निकलने वाला है।
Rakesh Sharma, Advt: जितेन्द्र भाई, मैं आपके बातों से सहमत हूं। मेरा ये मानना है की हमें एक टायटिल में होना चाहिए। परन्तु अब मैं तो अपने शर्मा टायटिल से नेम फेम हूं। अब हमारे बच्चे ब्रह्मभट्ट टायटिल को प्रयोग में ला रहे हैं। हमारी मजबुरी यह है कि मेरा सारा प्रमाणपत्र शर्मा। 
Pradeep Bhatt राकेशजी, पटना मंथन से पूर्व मैने सभी से ये आग्रह किया था कि जो भी मंथन में भाग लें वे कृपया अपने उन बंधुओं से आग्रह करें कि आप या आपके बड़े जो भी टाइटल लगाते रहें हैं उन्हें वैसा ही रहने दें सिर्फ अपने बच्चों के स्कूल में नाम लिखवाते समय भट्ट लिखवाने का कष्ट करें। मुझे ज्ञात नहीँ कि ऐसा कोई प्रस्ताव उस मंथन में रखा गया या नहीँ
Suman RaiSuman Rai सरनेम को लेकर जो विवाद हो रहे हैं वो बिल्कुल सही नही है सभी को एक आदत सी हो जाती है अपने नाम को लेकर उसे बदलना संभव नही है । अब तो समय भी बदल गया है हम सब कही भी अपने आप को ब्रहभट्ट बताने में संकोच नही करते है और लोग भी हमे सहज ही ले रहे है । सरनेम बदलने की बात सही नही है ।सरनेम के बजाए हम अपनी सोच बदल पाए तो वो ज्यादा अच्छा रहेगा ।
Bhatt Jitendra Sharma: राकेश सर, आज पहली बार मैं आप से कह रहा हूं, इस विषय पर आप द्वारा रखे गए तर्क, दरअसल विषय से अलग है, गांधी का उदाहरण एक अलग मसश्ला है ,सरनेम व्यक्ति के समाज को प्रतिबिंबित करता है और इसी रूप में आज भी इसका महत्व बना है, यदा-कदा अपवादों को छोड़ दे तो गांधी के दौर के भी सभी महान लोग अपनी जाति सूचक पहचान को छुपाये नही ,बल्लभ भाई,राम मनोहर, जे बी कृपलानी, ज्योतिबाराव, सुभाष चन्द्र, भगत सिंह, बाटुकेश्वर जैसे हजारो नाम है।
Rakesh Sharma: पटना मंथन में ऐसे किसी बात पर बहस न होकर समग्र विकास पर बहस केन्दित रही. परन्तु यह पोस्ट इस बात के लिए था की किसी को जबरदस्ती अपना टायटिल बदल देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है परन्तु भविष्य में इस बात पर विचार किया जाय।
Bhatt Jitendra Sharma शर्मा मेरा भी सर नेम है ,भट्ट कोई इलाहाबाद का ये कहे कि हम दूसरे है तो वोह खुद को छिपाने के लिए झूठ बोल रहा है क्यों कि इलाहाबाद में एक भी भट्ट सरनेम वाला आदमी नही है जो इस समाज का ना हो ,कई बार हमारे लोग हमसे कन्नी काट लेते है !
Rakesh Sharma जितेन्द्र भाई जी, आप जिस बात पर जोड़ दे रहे हैं वह केवल फेसबुक पर कुश्ती करने से सम्भव नहीं है. युपी से लेकर बिहार तक कई एक गांव हैं जहा कि टायटिल मिश्रा तिवारी पाण्डेय दुबे राय सिंह चौधरी और दसौंधी राणा है जो अपने गांव के नाम से पहचाने जाते हैं और वे अपने टायटिल से गर्वान्वित होते हैं. गम्भीर विषय है यह. सोच समझकर तर्कों के साथ वृहद मिंटिंग कौल कर के इसपर विचार करना होगा।
Mukund Bhatt हमारे ज़ाति का जितने तरह का sir name है भीन्न भिन्न जगह पर उसका एक.मात्र कारण उस sir name बाले ज़ाति का वहाँ पर बरचस का होना, वैसे पहाडी ब्राह्मण को भट्ट ब्राह्मण बोला जाता है, ज़िस दिन जीनको ये जानकरी हो जयेगा कि हमारे पूर्वज पहाड से आये हुये है स्वतः “भट्ट ” sir name रख लेगा
Pradeep Bhatt मुकुट जी हमारे पूर्वज पहाड़ से नहीँ आये, अपितु मुस्लिम आक्रांताओं से तंग आकर जब महाराजा काशी ने पहाडो का रुख किया तो अपने साथ भट्ट ब्राह्मणों को, त्रिपाठी, तिवारी एवम पंत ब्राह्मण उनके साथ गये। इसके अतरिक्त कुछ राजपूत एवम अन्य जातियों ने भी महाराजा काशी के साथ जाने का निश्चय किया। प्रचीन समय मे काशी और नालंदा ही एजुकेशनल हब थे। यहीं विद्याध्यन हेतु लोग देश एवम विदेशों से आते थे। पुन: सनातन धर्म की स्थापना का एक मात्र क्षेर्य कूमारिल भट्ट को ही जाता है ।अगर वे अपनी प्रतिज्ञा से न बँधे होते तो आज़ आदि शंकराचार्य के स्थान पर उन्हीं का गुणगान हो रहा होता ।
डा. अजय शर्मा: कुमारिल भट्ट से ही शुरुआत है , यही से इतिहासो में भट्ट के आगमन का सही प्रमान मिलता है , अब यह कहा से आए थे यह नहीं जानंता ! कल हम जानं भी लेगे ?
Pradeep Bhatt कूमारिल भट्ट सातवीं शताब्दी मे पैदा हुए थे
Anand Singh: कुमारिल भट्ट क्या ब्रम्हभट्ट थे? उनकी पुत्री भारती तो मिथिला के प्रकांड विद्वान मंडन मिश्र की पत्नी थी जो मैथिल ब्राह्मण थे।
Maharaj Kumar Sushil: इनके इतिहास की जानकारी तो श्रीमान जी मुझे उतना पता नही है किंतु भट्ट जाती की जब बात आती है तो इनकी चर्चा आवस्य होती चाहें ये कोई भी ब्राह्मण हो आप देखे होंगे बड़भट्ट के बाद इनका नाम इतिहास में प्रचलित है। भट्ट जाती का चमकदार इतिहास है जिसकी बेयाख्या ऐसे किया जा रहा जो अनुचित हैं। श्रीमान जी मैने आपको बताया इसके लिए छमाप्रार्थी।
Anand Singh: मेरा बचपन और मेरी तरुणायी बिहार के सहरसा में बीता है ।मंडन मिश्रा का ग्राम वहां से 10 -12 किलोमीटर है । इसलिए मुझे इसकी जानकारी है।
Bhatt Jitendra Sharma: ये भी हो सकता है उस दौर में हमारा विवाह ब्राह्मणों के बीच होता रहा हो ,वैसे आज भी याद कदा उदाहरण मिलते रहते है!
Pramod Bramhbhatt
Pramod Bramhbhatt

Pramod Bramhbhatt Bhatt: Jitendra Sharma jee, मंडन मिश्र कुमारिल भट्ट जी के बहनोई थे दामाद नहीं दूसरी बात मंडन मिश्र का स्थान मध्यप्रदेश का मंडला शहर माना जाता है नर्मदा किनारे बसा शहर। यह दावा इस क्षेत्र के मिश्रा ब्राह्मण करते हैं। चूंकि दोनों मिश्रा और भट्ट वेद मीमांसक ब्राह्मण रहे हैं तो विवाह होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

Bhatt Jitendra Sharma: बिल्कुल,पर आपने सही बताया सर,कुछ लोग ममिथ्या जानकारी परोस रहे है ! इस महत्वपूर्ण बात को हमसब को बताने के लिए धन्यवाद स्र जी !
Anand Singh: मंडन मिश्र सहरसा जिले के महिषि ग्राम के निवासी थे। ऐसी जानकारी है।कहा जाता है कि उनकी पनिहारिन देवभाषा (संस्कृत) में बात करतीं थी और उनका तोता वेद पाठ करता था। जानकारी अभाव में हास्यास्पद बयान करना और कटाक्ष करना संस्कार दर्शाता है। अहंकार का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है । मेरी सलाह है कि अहंकार से बचें और यथार्थवादी बनें।
Tripurari Roy Brahmbhatta: भट्ट टाइटल लगाकर गर्व महसूस करें और लोगों को प्रोत्साहित करें। लेकिन कुछ परिस्थितियां हैं जैसे कि भौगोलिक, सांस्कृतिक आदि जिसके कारण ये संभव न हो। इस विषय को ज्यादा हवा देने की आवश्यकता नहीं है ।
Diwakar Sharma Bhatt राय तपन भारती जी आप ऐसे पोस्ट स्वीकार ही क्यों करते है पोस्ट आएगा तो कुछ समर्थन में, कुछ विरोध में कुछ तठस्थ और कुछ उपदेश सब कुछ आएगा. अब सारे लोग आपकी सिर्फ हाँ में हाँ मिलाने केलिए तो जुड़े नहीं है अबकिसको ग्रुप में रखना है किसे बाहर का रास्ता दिखाना है यह आपका अधिकार क्षेत्र है इसके लिए आप पूर्णतः स्वतंत्र है .
Geeta AllaGeeta Bhatt सरनेम पुरखो बुजुर्गो द्वारा रक्खा गया होता है ये उनका अपमान करने के बराबर है ये सर्व पर लागू नही किया जा सकता है ।हालांकि जिसका मन हो अपनी स्वेच्छा से बदल सकता है ।अगर बदल भी दिया जाय । उदाहरण स्वरूप -अगर कोई शर्मा जी है – तो भट्ट रख लिया सरनेम तो आदत नही होगी भट्ट जी सुनने की ।बडी़ असमंजस की स्थिति होगी
Anand Singh: आज कोई कह रहा है कि सरनेम भट्ट रखो। कल कहेगा गेरुआ पहनो क्योंकि ब्राह्मण हो।फिर भी मान्यता नहीं मिली तो कहेगा जनेऊ कपड़े के उपर से पहनो ताकि सबको दिखाई दे ।
Bhatt Jitendra Sharma आनन्द सर जी ऐसे और भी तर्क है ,लोग आज सिंह लिख रहे है कल को खान और पठान भी लिख सकते है और कभी क्रिसचयन प्रतीक भी अपना बना सकते है ! जो एक बार अपनी रेखा को फांद चुका है वो कहा रुकेगा उसका क्या भरोसा है ! तर्कों को आप किसी भी पक्ष में प्रयोग कर सकते है ,पर इस दिमागी कसरत से अच्छा होगा मुद्दों पर ईमानदारी से विश्लेषण करना !
Anand Singh सरनेम बदलने का शौक नहीं । इसलिए सरनेम बदलने का फरमान ठुकरा दिया ।
Bhatt Jitendra Sharma हमलोगों का निवेदन युवाओं से है ,जो समाज को नई दिशा और दशा देगे , वही समझे बस ,औरो को समझाने या निवेदन की बड़ी जरूरत भी नही ,वो हमसब के किसी विशेष महत्व के भी नही है @
 Anand Singh जो आज युवा हैं वो कल युवा नहीं रहेंगे । जो आज बुजुर्ग हैं वो कल युवा थे।
Pradeep Bhatt आप कुतर्क दे रहे हैं तर्क नहीं महाशय
Anand Singh आपके सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है ।
Bhatt Jitendra Sharma प्रदीप सर जाने दे,साहब शुरू से ही किसी की सुनने में यकीन नही रखते ,उम्र भी तो कोई चीज है आखिर , जो भी हो बडे होने के नाते साहब से चुप्पी साध लेना ही हितकर है !
Diwakar Sharma Bhatt जीतेन्द्र जी ,आप सही कह रहे है साहब बहादर सिर्फ रायता फैलाने में यकीन रखते है .
Anand Singh जाकि रही भावना जैसी ……..ईश्वर सबको सद्बुध्दी दें। ये बाजार में तो मिलता नही।
Jitendra Sharma HitaisheeJitendra Sharma Hitaishee: सबको अपनी बात अपने तरीके से रखने का अधिकार है,कुछ व्यक्तियों के लिखने का तरीका सरल या कटु हो सकता है,उसके भावो पर ज्यादा धयान दे,न की भाषा पर है सभी से अनुरोध है कि कोई बात सरल व् कम शब्दों में लिखे,लेकिन सभी अपनी बात लिख सकते है, बाकी सभी सदस्यों की समझदारी पर छोड़ देना चाहिये, किसी को उसके विचारों के लिये ग्रुप से निकाल देगे यह उचित नहीं है ग्रुप सभी को मिला कर ही बनता है। हितैषी मेरी संस्था का नाम है कुछ लोग मुझे संस्था की वजह से हितैषी जी भी कहने लगे है जबकि मेरा नाम जितेंद्र शर्मा है, तो मै जो व्यक्ति हितैषी कहने लगे है उन्हें मना तो नहीं कर सकता।
Dharmendra Kumar Bhatt केलाश सत्यार्थी ज़िनको पिछले साल नोवल पुरूषकार मिला था जो में m p के विदिशा ज़िले के निवासी है . बो भी भट्ट समाज के है .पर बो सत्यार्थी लिखते है .और राजस्थान के पुलिस महानिदेशक (D.G.P.)इस समय मनोज भट्ट है .जिनका नाम पड़कर मुझे बहुत खुशी हुई .
Maharaj Kumar Sushil: इस ग्रुप में सभी सज्जन बेयक्ति है और एजुकेशन रग रग मे समाया है कोई किसी से कम नही है यहां ये बात प्रत्यक्छ् और प्रमाण आप सभी के सामने प्रस्तुत है हमारे अपने मन्तब्य ये है कि सभी डिबेट कॉम्पीटिवशन कर रहे और ये प्रतिस्पर्धा को जीत मे हासिल करना चाहते है उसका एक मोटो होना चाहिए वो है अपनी जाति को सम्मान करना चाहे वो कोई भी कुलनाम से जाना जाता हो है तो भट्ट ही रॉय तपन सर की एक बात मुझे अच्छी लगी थी आप कुछ भी कुलनाम लिखो हम आपको पहचान लेंगे जय हिंद जय भारत
Rupesh Bhatt: कहा पहचान लेंगे। तपनजी ही बता रहै है की जहा भी वो जाते है वो बताते है कि वो भट्ट है।
 
Anand SinghAnand Singh जिसकी DNA संदिग्ध होती है उसे ही सफाई देनी होती है। वैसे ही जैसे सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी।
 
Anand Singh मैं ने सरनेम बदला नहीं है । बाप दादे की जमींदारी थी तो ये उपाधि दी गयी थी। मेरे खानदान का DNA पूरे बिहार को पता है । हर ऐरे गैरे को सफाई नहीं देनी मुझे। जिसके बाप दादे की पहचान ना हो वो अपना सरनेम बदल कर नया DNA ले। मेरा DNA टेस्ट करने की आवश्यकता नहीं है।
 
Avanish Bhatt सर आप सिंह क्यों लिख रहे हैं इसको अनावश्यक जस्टिफाई करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हो सकता है कि आपका justification सही हो फिर भी मुझे शक है सर की जमींदारी की वजह से यह उपाधि मिली वर्ना हमारे नाम के साथ भी सिंह लगा होता, परंतु शायद भट्ट के साथ सिंह होते क्योंकि जमींदारी हमारे घर में भी थी।
 
Anand Singh आप शक कर सकते हैं । करते रहें । खोज करें, शायद हमारा और आपका कोई common रिश्तेदार मिल जाए। वैसे आप अपना परिचय दे और रिश्तेदारी कहाँ कहाँ है बताएँ तो मैं खोज करूँ। वैसे कोई दूसरा बिरादरी इस बिरादरी को क्यों अपनाएगा?
 
Avanish Bhatt सर आपके भट्ट होने पर मैंने शंका नहीं जाहिर की, यदि शंका है तो आपके सरनेम की उत्पत्ति के जस्टिफिकेशन पर। यह भी हो सकता है कि मेरी शंका निर्मूल हो। जहां तक परिचय का सवाल है. मैं जनपद सिद्धार्थनगर (उत्तर प्रदेश) के ग्राम डोड़वार भट्ट का निवासी हूँ।
Anand Singh: अविनाश जी जिन्होंने दोनों व्यक्तियों का नाम लिया आपने वो ही मेरे परिचय के लिए काफी हैं । पुष्प जी की सगी बहन मेरी पत्नी हैं । और मंगला नंद जी के स्वर्गीय अग्रज तीर्थानन्द जी मेरे सगे फूफा थे। और भी कुछ बताएँ फिर कोई रिश्ता निकल आएगा ।
 
Avanish Bhatt: सर, मेरे हिसाब से यही दो रिश्ते पर्याप्त हैं। मैने जान बूझकर इन्ही दो रिश्तों का नाम लिया था क्योंकि टुनटुन भैया आपकी प्रोफाइल में नज़र आये और स्व0 पंडित मंगलानंद राय जी का परिवार बिहार के सर्व प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। मेरे पिता जी ( डॉ राम सुधि भट्ट जी) से भी आप भलीभांति परिचित होंगे।  नीरज जी आनंद सर से मेरी बात आप द्वारा व्यक्त किये गए मुद्दे से अलग हटकर हो रही थी। उनके भट्ट होने की कन्फर्मेशन के लिए मुझे किसी भी गवाह की आवश्यकता नहीं है और ना ही सरनेम कोई मुद्दा है। मुद्दा थोड़ा भिन्न था।
आनंद सर का परिचय ही उन्हें मेरे लिए आदरणीय बनाने के लिए पर्याप्त है। जिस परिवार के वह दामाद हैं वह परिवार ही मेरे लिए बहुत आदरणीय है।
Maharaj Kumar Sushil: सर एजुकेशन के मामले मे अगर देखा जाए तो आप लोग काफी बरिस्ट है और इसमें आप सभी को महारत हासिल है इस दरम्यान मुझे बोलना अच्छी बात नही है मैंने सबकी वाक्य को पढ़ा है जिसका अच्छा लगा उसमे आप भी शामिल है जितनी भी बात कुलनाम को लेकर हो रही है ये मेरे विचार से अनुचित है जिसकी जो प्रथा पूर्वजो ने बनाया है उसमें निरंतर अग्रसर रहे हमारी यही प्राथना है भगवान से जय हिंद जय भारत
 
Indradeo SharmaIndradeo Sharma: मेरे गाँव परसिया में एक बरगद का पेड़ है। जहां गांव के सभी लोग बैठे किसी ना किसी बात पर बहस करते रहते है। कभी कभी गरमा गरमी भी हो जाती है। आवाज ऊँची कर अपनी बात को वजनी बनाने का प्रयास किया जाता है।
आज वही अहसास हो रहा है। मैंने पहले भी लिखा है कि ये केवल फेसबुक पर चर्चा से समाज सुधार नही होता। खुद को, फिर अपने विचारों व संबाद की शैली को भी परिमार्जित करने की कोशिश करे। कभी कभी मुझे लगता है कि मेरे गाँव के शनिचरा बाबा का समूह यहाँ चर्चा कर रहा है। मगर यहाँ एक कमी है कि कभी ठहाके नही लगते । जो वहाँ अनायास ही सुनाई देते है।
 
Bhatt Jitendra Sharma: कॉमन सरनेम का मुद्दा समाज के बड़े तबके के लिए महत्वपूर्ण विषय है,भट्ट,ब्रह्मभट,दसौंधी दो एक सरनेम और भी सोच ले जो आपसब को ठीक लगे वो चलेगा पर हजार सरनेम नही चलेगा ,वो भी ऐसे जो और जातियो की पहचानरूप मे प्रचलित है ना ही युवा वर्ग हजार सरनेम का समर्थक है ! कॉमन सरनेम को समर्थन देने वाले मेरे आदरणीय बन्धुओं आप सब बेफिक्र होकर अपनी बात रखे , कोई ग्रुप अगर आपको इस विषय पर निकाल भी दे तो ;16700 की संख्या वाला “”भट्ट ब्राह्मण समुदाय आरक्षण समर्थक “आपके साथ हमेशा है ,आपसब वहां हमेशा इस विषय पर संम्मानित संमझे जायेगे और हर वक्त आपकी आवाज को महत्व दिया जाएगा!
यही नही देश के अधिकतर बड़े ग्रुप में कामनसरनेम को तवज्जो देने वाले आपके पोस्ट निर्बाध रूप से संचरित होते रहेंगे ! धन्यवाद
 
Diwakar Sharma Bhatt: जो भट्ट समाज के मूलरूप से सरनेम है भले ही वह अन्य भी अपनाये हो स्वीकार है पर जो सर नेम भट्ट समाज में पुरातन काल से कभी प्रयोग ही न हुए हों या जिनसे समाज की प्रतिठा धूमिल होती हो जिनके लिखने का एक मात्र सन्देश जा रहा हो कि जाति छुपाई हो रही है वह सर नेम प्रयोग करने से किसी को रोक तो नहीं सकते पर स्वीकार भी नहीं कर सकते इसके लिए कोई कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो .हमारेलिए समाज के सभी लोग महत्वपूर्ण है पर अकारण बात बात पर हर वक्त सिर्फ अपनी पीठ थपथपाने वालों को कतई पसंद नहीं करता और उनसे सम्बन्ध बनाने में कोई रूचि नहीं .पर हाँ कॉमन सर नेम का मैंपूर्ण रूप से समर्थन करता हूँ किसी को इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए .
 
Pradeep Bhatt: प्रश्न इस ग्रुप या उस ग्रुप में जाने का नहीं है जीतेन्द्र भाई ,मेरा तो सभी से विनम्र अनुरोध है कि जरा वे इस बात की कल्पना करे कि कहें किसी विषय पर चर्चा चल रही हो और एक व्यक्ति से उसका उप नाम या सरनेम पूछा जाये,निश्चित ही अगर उस स्थान पर मैं रहूँगा तो मैं भट्ट ही बोलूँगा , वो पूछेंगे भट्ट कौन तो मैं अपने ज्ञान के हिसाब से उन्हें संतुष्ट करने का प्रयत्न करूँगा किन्तु धीरे धीरे जब ये चर्चा अपने पुरे शबाब पर होगी तो और लोग पूछेंगे आप कौन हैं ,दूसरा व्यक्ति कहेगा मैं दशोंधि,सामने वाले ने पूछा ये दसोंधी कौन? वो कहेगा हम भी भट्ट हैं जी /इस प्रकार तीसरा चौथा सब अपने परिचय में अलग अलग सरनेम प्रोयोग करेंगे लेकिन कहेगें कि वैसे तो बारोट हूँ /ब्रह्म भट्ट हूँ/सिंह हूँ /शर्मा हूँ महाराज हूँ आदि आदि लेकिन हूँ मैं भट्ट ही ,ज़रा अंदाजा लगाइए आपकी स्थिति कैसी होगी । जब भट्ट सरनेम में ही इतना ज्ञानकोष खाली करना पड़ेगा तो बाकी का तो ईश्वर ही मालिक है । स्थिति चाहे जो भी हो जो पहले हुआ क्या आवशयक है कि हम आगे भी वही सब दोहराएँ?
 
Rupesh Bhatt: गलत सुरुआत , गलत आगाज , गलत अंदाज़। डीएनए तक पहुच गए। अब जबकि पता है की एक ही डीएनए हैं हम सभी का। हमें अपनो की भावनाओं का कद्र करना सीखना होगा। हार करके जीतना सीखना होगा। हो सकता हैं बाते सही कह रहे हों इंतेज़ार करना होगा। वैचारिक मतभेद हो सकता है मनभेद नही हो यह सीखना होगा।
 
Tadak Nath Bhatt: पहले भी कई बार भट्ट सरनेम लगाने का अनुरोध किया गया था और अनुरोध तो करना कोई बुरी बात नहीं है।हाँ इसका पालन करना बाध्यकारी बताना सर्वथा अनुचित है।आशा करता हूँ कि अब हमलोग व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करेंगे । अशोभनीय लगता है 🙏
Sanjay Bhatt मै किसी पर उंगली नही उठा रहा, ना ही मै तपन सर के आगे कोई हिमाकत कर सकता हूॅ. हाॅ,  इतना कह सकता हूॅ किअपनी जात जमात जाती वरन् को छिपाना नही चाहीऐ. जब हरिजन अपने को हरिजन कहलाने मे हिचकिचाहट महसुस नही करता तो हम क्यो हिचके? मै किसी के भावना को ठेस पहुंचाने का जुर्रत नही कर सकता? खासकर तपन सर को कतई नही. सभी को अपने अपने ढंग से
जिने का समान अधिकार है.
 
डा. अजय शर्मा: D.n.a. की बात अनुराग जी ने शुरू की और आनन्द जी के आगे सब ऐरा गैरा है ,ये दोनो लोग भट्ट नहीं लिखते और हम भी नहीं लिखते ,विषय़ांतर यहीं से हुआ ,हमने ऊपर जो लिखा है उसे सभी आत्मियजन पढ़ स्कते है ! व्यकतिगत रूप से नहीं ….इतिहास में बहुत सी बाते ,तथ्य अस्पस्ट है , कुछ तथाकथित विद्वत जन हर जगह पेच किये हुये है ,हम एक सज्जन से ….जानंकारी के लिये धन्यबाद बोला ….जबकी हम यह भी जानंते है कि –तुलसीदास के पूर्व में …भट्ट लोगो का शर्वोपरी स्थान रहा है , स्वय तुलसीदास जी भट्ट जी का प्रवचन सुनने के लिये बेताब थे !अलग अलग प्रसंग मिलते रहते है !
 
Pramod Bramhbhatt: तुलसीदास जी द्वारा सूरदास जी का पद गाकर भिक्षाटन किए जाने की भी सूचनाएं हैं। क्योंकि सूरदास जी से तुलसीदास जी से
DrPrem Narayan Bhatt: आप सभी में से कुछ लोग आज एक गम्भीर मुद्दे को अपने अपने स्वरचित आभामण्डल के अहंकार के कारण विवाद का विषय बना दिए कोई ग्रुप से निकालने की धमकी तो कोई DNA तक पहुंच गया। ऐसे विचारों की यहाँ परिवार में क्या अवश्यकता थी ?भट्ट जितेंद्र जी या डा अजय जी जैसे युवा अपने क्षेत्र के विद्वान हैं अपनी बात ठीक ढंग से रखते हैं और एक सिंह साहब तो गजब ही उदाहरण देते हैं भगवान ही बचाए भट्ट समाज को इनके जैसे विद्वान से।। फिर भी मर्यादा और रिश्तों का ध्यान रहे ।यह परिवार का ग्रुप है मान्यवर !!
 
Hariom Pd Roy Bhatt]हरिओम प्रासाद राय भट्ट: हमे बिलकुल यह हस्यासपद लगता है कि लोग वक्त वेवक्त सर नेम पर उलझने वाला बात करने लगते हैं, मेरा मानना है कि सरनेम जिन्दगी उतना महत्वपूर्ण भूमिका अदा नहीं करता जितना मनुष्य का कर्म, नाम और सरनेम सिर्फ संबोधन करने तक ही अपनी भूमिका अदा करता है।
 
विभिन्न सरनेम को रखना ऐक इतिहास है, इसे सधारन तौर पर छेड़छाड़ नहीं कर सकते और किन किन को कहेंगे, बहुत खूब को बदलना पडेगा,। अगर कोई कहता है कि हम ब्रहमभट्ट है, चाहे सरनेम कोई भी हो, आप हम उन्हें स्वीकार करे, नकि दबाब डाले कि सरनेम यही ठीक है। मेरे नजर में बहुत ही पेचीदा Discussion है, अपने कर्म से समाज को देने की बात सोचे, परिक्षा में पहले उन प्रश्न को हल करते हैं, जो जल्द हल होता है, जटिल प्रश्न पर बाद में Attack करते हैं, ऐसे पहले अच्छे कार्य करने फिर जटिल विषयों पर बात करेंगे, ऐसे में समय बर्बाद होने के आलावा कुछ नही, Convince करते रहे जो स्वीकार करता है तो ठीक है,ज्यादा उर्जा लगाना ठीक नहीं है, आप के जैसा कितना आदमी है पता लगाएंगे तो इनकी संख्या गिनती में है, आप, तपन सर और भी कई लोग हैं जो सही मायने में समाजिक है समाज के लिए कुछ करना चाहता है, ऐसे कर्मवीर को हम गलत बात न पडकर, सकारात्मक उर्जा बचाने की सलाह देते हैं, ताकि यह उर्जा सही दिशा में लगे, और समाज लाभान्वित हो।
Bhatt Jitendra Sharma: सरनेम से अच्छे कर्म का सम्बंध क्यों जोड़ा जाए,कॉमना सरनेम को महत्व देने वाले ये कभी नही कहते कि अच्छे संस्कार,उच्च गुणों,समाज सेवा या सबके विकास को समर्थन देना गलत है ,इस सभी का अपना अपना महत्व है !
सरनेम मे कुछ नही रखा है इसे जिस तर्क से सिद्ध किया जाता है उसी तर्क मे नाम में भी कुछ नही है,जाति और धर्म मे भी कुछ नही रखा है, इन सभी बातों को अच्छे कर्मों के नेपथ्य से ढका जा सकता है ! सीधा सा सवाल है सरनेम अधिकतर आपके समाज या क़ौम का सम्बोधन है उसका प्रतिनिधित्व करता है ,और जब समाज/जाति एक ही है तो उसको प्रतिबिम्बित करने वाले प्रतीक भी कमोवेश एक जैसे होने च्चाहिये , प्रतीकों के महत्व को हर समाज अपनी पहचान के रूप में हमेशा अपनाता है,ॐ,786,क्रॉस,संस्कृति, आदि के महत्व से हम अछूते नही है ,इन्हें भी तो इन शब्दों से खंडित किया जा सकता था पर ये आज भी आस्था एवम श्रद्धा के साथ विद्यमान है ! एक चीज मैं और भी महसूस कर रहा हु सर आरक्षण पर उत्तर प्रदेश में मतभेद जरूर रहा है पर इस बड़े प्रदेश में कॉमना सरनेम का विरोध नही हुवा है या नगण्य है,! आरक्षण पर हमलोग के कुछ विरोधी रहे लोग भी इस विषय पर हमसे बड़े समर्थक ,है ,हमसभी अपने उन वैचारिक विरोधी बन्धुओ का इस विषय पर खुला सहयोग देने के लिए दिल से धन्यवाद ज्ञापित करते हैं!
 
 
Anand Singh: विष्णुजी, मैं ने भी यही कहा था। लेकिन सहिष्णु और पढ़े लिखे लोग अपने संस्कार दिखा गए।
 
DeorathDeorath Kumar: सीधी बात यह है की जिनके भट्ट सरनेम हैं वो खुद को और सरनेम वालों से बेहतर समझते हैं। जो ठीक नहीं। आप अगली पीढ़ी के बच्चों के नाम के आगे भट्ट सरनेम लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करें, उनमे जागरूकता लाएँ। पर अहम् भाव नहीं होना चाहिए। जिनके सरनेम भट्ट नहीं है उन्हें नीचा समझना भयंकर भूल है। हमारा समाज इन्हीं अहम् भावना के कारण पिछड़ा हुआ है। हम एक दूसरे को नीचा दिखाकर खुश होते हैं। वाद विवाद की जगह लोगों में जागरूकता लाने की जरूरत है। और हाँ जिनके सरनेम भट्ट नहीं है वो किसी से कमतर ब्रह्मभट्ट नहीं हैं। बाकी भाषा और व्यव्हार जैसा आप प्रयोग करेंगे उससे आपके व्यक्तित्व का ही पता लगेगा
 
Avanish Bhatt: देवरथ जी आपकी बात से मैं थोड़ा differ करूँगा। अहंकार और गर्व में जमीन आसमान का अंतर है और मैं समझता हूँ कि आप जैसे सुशिक्षित व्यक्ति को मुझे यह समझाने की आवश्यकता भी नहीं है। भट्ट लिखने पर हम गर्व महसूस करते हैं परंतु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि जो लो.
 
Avanish Bhatt: मेरी अपनी बहन का विवाह भी उस परिवार में हुआ है जिसमें राय/रॉय/रे सरनेम प्रयोग में लाया जाता है। यदि भट्ट लिखने की श्रेष्ठता का अहंकार होता तो हम ऐसा क्यों करते। तपन सर की इस मेन पोस्ट से भी भट्ट सरनेम वालों को कुछ ऐसा ही प्रतीत हुआ कि ग्रुप से निकाले जाने की धमकी भट्ट सरनेम की वकालत करने वालों के लिए है, संभवतः इसी कारण से ग्रुप में इस पोस्ट पर कुछ haarsh कमेंट्स आये। यहां तक कि शुरुवात में मुझे भी ऐसा ही लगा था क्योंकि पिछली पोस्ट मेरी थी परंतु उसका उद्देश्य कोई suprimacy show करना नहीं था और उद्देश्य उक्त पोस्ट में ही क्लियर था। Anand sir, आपकी बात स्पष्ट नही हुई कि आप complex word किसके लिए प्रयोग कर रहे हैं।
 Anand Singh उनकी सभी केलिए जो अपने को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास करते हैं ।
 
Avanish Bhatt आनान्द सर आपकी बात के संदर्भ में यदि हर कमेंट को पढ़ा जाएगा तो मैं समझता हूँ यह काम्प्लेक्स वाली बात हर किसी पर लागू हो जाएगी। अपनी जाति/धर्म/राष्ट्रीयता पर हम गर्व करते हैं यदि इसमें inferiority complex नज़र आये तो हज़ार बार हम अपने अंदर इस काम्प्लेक्स को पनपाएँगे।
 DNA जैसी बातों को मैं सपोर्ट नहीं करता हूँ। जब हम सरनेम जैसी साधारण चीज पर इतने कन्फ्यूज्ड हैं तो DNA जैसी highly complex चीज पर क्या खाकर discussion करेंगे। कोई कहे कि पूरे भट्ट समाज का DNA identical होगा तो ऐसा कभी नहीं हो सकता।
Avanish Bhatt सर डर किस बात का ? जिसको मैं इग्नोर करता हूँ इसका मतलब है कि उसे मैं सपोर्ट नहीं कर रहा हूँ। और condemnd करने का जहां तक सवाल है फिर तो सर सारी एनर्जी condemn करने में ही व्यतीत हो जाएगी क्योंकि बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जहां अगर हम उलझते हैं तो फिर उसी में उलझे रह जाएंगे।
Anand Singh एनर्जी बचा के रखिए फिर । आपकी इच्छा ।
मैं तो इस बहस तक ही हूॅ यहाॅ। इसके बाद इस ग्रुप को शुभकामना के साथ विदा। विद्वान, प्रतिष्ठित, योग्य और समर्थ लोगों के बीच में हमारे जैसे की जरुरत ही नहीं है । मैं तो कम समझदार, कम पढ़ा लिखा और अति साधारण व्यक्ति हूँ ।
Deorath Kumar अपने समाज की यही विशेषता है। 10 लोग एक जगह बैठेंगे तो कोई न कोई रिश्ता निकल जाएगा। हम गाँव से पहचाने जाते हैं।
Roy Tapan Bharati क्या आपने घर की शादी में किसी अंजान को आमंत्रित किया है? गनगनिया गांव के ब्रह्मभट्ट सिंह और इंग्लिशपुर गांव के ब्र्हमभट्ट चौधरी उपनाम लिखते हैं इसके बावजूद उनके सभी संबंधी उनके घर की शादियों में जुटते हैं। भट्ट लिखो या कोई और सरनेम, अपने रिश्तेदार तो समारोह में जुटेंगे ही। फिर सम्सया कहां है?
डा. अजय शर्मा: Deorath jee को अभी पढा ,हम शर्मा लिखते है ,अच्छो अच्छो से बहुत अच्छा हूँ मैं …किसी की हैसियत नहीं होती है की कुछ बुरा कहकर निकल जाये ,हम सबसे भट्ट ही बताते है मुल जाती …छीपाने वालो की बेईज्जती भी हमने देखी है ,,ये अलग बात है की अब आने वाले पीढ़ी के साथ प्रयोग करें ,,जो वर्षो से चला आ रहा है उसे एकाएक समाप्त किस प्रकार से किया जाये ? कुछ लोग पचा नहीं पाते है अच्छा विचार वही अनर्गल प्रलाप करते नजर आ रहे है ,,ऐसे लोग अपनी ,कुल की ,या अपने समाज की क्या सेवा करेगे ?नमस्कार !
Deorath Kumar: मेरे नाम के आगे भट्ट नहीं लगा है क्योंकि मेरे पिताजी ने लोकनायक JP के आह्वान पर सरनेम हटा दिया था। तो क्या मैं किसी भट्ट से कम ब्रह्मभट्ट हूँ। मेरे परदादा स्व. मूरत राय भट्ट, मेरे दादा स्व. दशरथ राय भट्ट, मेरे पिताजी स्व. वीर भरत लाल भट्ट, मेरे दोनों बच्चे शरत भट्ट और सम्भव् भट्ट। मेरे दादा की शादी चंडी स्थान मुंगेर जहाँ सिंह सरनेम है, मेरे पिताजी की शादी मधुरापुर जहाँ महाराज और शर्मा सरनेम, मेरी शादी रानिगोधना जहाँ महाराज सरनेम है। तो क्या देवरथ कुमार भट्ट लिखने वालों से कमतर ब्रह्मभट्ट है? बात रखनी चाहिए पर क्या जितने भट्ट सरनेम वाले हैं उन्होंने सिर्फ भट्ट लिखने वालों के यहाँ सम्बन्ध किये है? हम लोगों को प्रोत्साहित करें पर खुद को श्रेष्ट साबित करने के चक्कर में भवानाओं से मत खेलिए
Deorath Kumar: बात जब dna तक पहुँच जाए तो बोलना तो पड़ेगा। मैं व्यस्त होने की वजह से पोस्ट देख नहीं पाया था। ये क्या बात हो गई की जिनके सरनेम भट्ट नहीं उन्हें साबित करना चाहिए की वो ब्रह्मभट्ट हैं। ये शास्वत सत्य है की अपने समाज में हर तरह के सरनेम हैं, इसे नहीं झुठला सकते
Avanish Bhatt: DNA जैसी बात उठाना गलत है। परंतु बात तो शायद उसके काफी पहले बिगाड़ दी गयी थी और भटका दी गयी थी।
Deorath Kumar: बात जब DNA तक पहुँच जाए तो बोलना तो पड़ेगा। मैं व्यस्त होने की वजह से पोस्ट देख नहीं पाया था। ये क्या बात हो गई की जिनके सरनेम भट्ट नहीं उन्हें साबित करना चाहिए की वो ब्रह्मभट्ट हैं। ये शास्वत सत्य है की अपने समाज में हर तरह के सरनेम हैं, इसे नहीं झुठला सकते
Avanish Bhatt यथार्थ यह है कि तपन सर की यह पोस्ट जिसे हम सब फॉलो कर रहे हैं में प्रयुक्त कुछ शब्द इस पोस्ट को विवादित बनाने में ज्यादा सहायक रहे।
Bhatt Jitendra Sharma: DNA की बात करना गलत है। पर इस गलती को पकड़ने वाले मूल पोस्ट की इस लाइन को भी कैसे नही पढ़ पाते “”-सरनेम बदलने की बात करने वालो को ग्रुप से बाहर कर दिया जाएगा”” अतिवाद हमेशा अतिवाद को ही जन्म देता है ,इस पोस्ट का जन्म ही गलत शब्दो के साथ हुवा है !
Indradeo Sharma: मैं समझ रहा हूँ कि यहाँ भी कुछ लोग अनावश्यक बातों पर विवाद कर रहे हैं। मुझे लगता है कि अपनी पहचान को योग्यता से न जोड़कर केवल जाती से जोड़कर ही देखते है।अपने को जाती का नेता या प्रवक्ता सिद्ध करने के लिए किसी भी तरह अपनी बात ऊपर रखना चाहतेहै।
Bhatt Jitendra Sharma: आपकी बात से सहमत हूं इंद्रदेव सर ,अगर भारत मे जाति पहचान का हिस्सा ना हो , और अगर अनावश्यक तूल देने वाले योग्यता को महत्व बिल्कुल भी ना देते हो तो @
डा. अजय शर्मा : धन्यबाद, सर। ये लोग समझने को तेयार हो तभी कुछ किया जा सकता है , अनर्गल प्रलाप बेवजह की बहस के लिये ज़ितना समय नुकसान कर रहे है ,उससे तो कौम आगे बढ़ जाता ,,कर्म,कर्मयोगी ,आदि ,जैसे शब्द है ही नहीं ,बस अहंकार ,घमंड,यही पुरानी निती हमारी ,ज़िससे कौम बरबाद होते चला आया है ,!सब बढ़े,तारक्की करें ,कर्वाये ,यही सोच होनी चाहिए की फला भाई है उसकी मदद कर दूँ तो आगे आ जायेगा,इसी सोच को हम महत्व देते है ,न्मस्कार !
Bhatt Jitendra Sharma: फिलहाल बात को यही खत्म करता हु डाक्टर साहब,मुझे स्वयम अन्य जगह लिखने का वक्त। नही मिलता पर चर्चा ऐसी चली और लोग नाहक ही एक गलत बात को प्रोटेक्ट करते है तो मन नही मानता ! अन्य जगह इसके लिए उपयुक्त होगी धन्यवाद
Indradeo SharmaIndradeo Sharma: जाती में केवल फ़ेसबुक के लोग ही नही है । इसके अलावा जो बाकी है , उनके सामने ग्रुप की संख्या ना मात्र है। अगर राजनीतिक महत्वाकांछा है तो बात और है। हम मानव जाति के है और मानवता में विश्वास रखते है। आरक्षण पर हम मानते है कि नियमो के तहत मिलता है ले। हमने या मेरे बच्चो ने नही लिया । मैं इसका समथर्क नही हूँ। फिर भी जो चाहते हैं वो ले। मगर यह तो आपलोग डंडा लेकर ही निकले है कि भट्ट ही होना है। श्रीमान लोगो को मेरा सीधा कहना है कि मैं जो हूं वही रहूँगा। ना तो मेरी पहचान ग्रुप से है ना जाती से। मैं अपने नाम जो माँ बाप ने दिया उससे , फिर अपनी मेहनत और कर्मो से है।
Diwakar Sharma Bhatt राजनैतिक महात्वाकांक्षा रखना कोई बुरी बात है क्या? .आपकेपहले पैरा में क्या नई बात है .ग्रुप का शाब्दिक अर्थ स्वयं प्रकट करता है अपनी सीमा को .डंडा लेकर कितने लोग पहुचें है हम भी जान लें . कोरे किताबी ज्ञान और कोरे सिद्धांतो से भला नहीं होने वाला . बाकी आप स्वयं में स्वतंत्र है हम आपके रास्ते में नहीं आने वाले .पर कॉमन सर नेम के विषय पर हम लोगों को काम करना है और वह कर रहे है .बाकी विरोध आप करे करते रहिये आपका अधिकार है .भारत वर्ष में उन्ही लोगो को मौक़ा मिलता है जो जातीय रूप से एकजुट है . उत्तर प्रदेश में अखिलेश राज में यादव सरनेम ही काफी था मायावती राज में भी वही हाल था .देश में 125 करोड़ में से 20करोड़ 100 करोड़ पर भारी पड़ते है जानते है क्यों ? क्योकि हमें अपने की टांग खींचने में मजा आता है . इस देश में आजभी जातियों के अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता .आज आपकी पहिचान जाति से नहीं आप सही कह रहे है कल आप बेटी के रिश्ते केलिए किसी दरवाजे पर जायेगे जाति की ही तख्ती लटकाकर और परसों आपके बेटे के रिश्ते के लिए लोग आप के दरवाजे आएंगे आपकी जातीय पहिचान के आधार पर उसके बाद आपके अन्य गुण .बाकी कर्म प्रधान है शास्त्रों में लिखा है वास्तव में भी है इसमें कोई दो राय नहीं .इसे नकारा नहीं जा सकता .

Bhatt Jitendra Sharma: राजनैतिक महत्वाकांक्षा का आरोप मढ़ने वाले अपने भोले भाले स्वजनों से एक बात जरूर बताना चाहूंगा !

इस समाज मे सक्रिय लोग इतना तो जानते ही है कि बिखरे और थोड़ी आबादी वाली ये जाती राजनीति के लिए “”बाझ की कोख जैसी है” जिसमे अपनी ऊर्जा लगा कर आज तक ना कोई राजनैतिक लाभ पाया है ना ही पा सकेगा !
राजनैतिक महत्वकांक्षा के लिए और ट्रैक पकड़े जाते है ये नही !
हा आरोप तो कोई भी लगा सकता है उसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत तो है नही !
Nikhil Kasyap The acme of sycophantry good going keep it on gajab
Deorath Kumar: Mr Nikhil Kasyap, by levelling and naming the debate as sycophantry, you have insulted one and all, who have participated in this debate. Please enlighten all of us about your contemporary thoughts
Indradeo Sharma: Devrathji let it go. It shows how we behave in Debate.

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