क्या समाज में दहेज कोई नयी प्रथा है?
दहेज की कुरीति हमारे समाज में बहुत पहले से ही विद्यमान है। यह बात अलग है कि पहले यह इतना विकराल नहीं था। पहले के समय मे लोग घर परिवार और संस्कारों को महत्व देते थे।
संगीता राय/पूर्णिया
माननीय ग्रुप के सदस्यगण। हमसब जानते है कि विवाह एक पवित्र संस्कार है। यह दो व्यक्ति का ही नहीं दो परिवारों का मिलन होता है जिसमें आपस में प्रेम- भाव का होना नितांत आवश्यक है। तभी वह विवाह सफल हो पाता है। हमसब जबभी कोई पोस्ट दहेज से संबंधित देखते है तो तुरंत भावावेश में आकर कमेंट लिख देते है।हमें शान्त चित्त हो कर सोचने की जरूरत है। क्या समाज में दहेज कोई नयी प्रथा है? क्या हमें सिर्फ लड़के वाले को ही जिम्मेवार समझनी चाहिये ? क्या लड़की वाले पूर्णतः निर्दोष होते है? यहाँ मै पहले ही स्पष्ट कर दूॅ कि अपवाद हर जगह है। और हर सिक्के का दो पहलू होता है।
दहेज की कुरीति हमारे समाज में बहुत पहले से ही विद्यमान है। यह बात अलग है कि पहले यह इतना विकराल नहीं था।पहले के समय मे लोग घर परिवार और संस्कारों को महत्व देते थे। जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता था “भोजन ,वस्त्र और आवास।” कन्या पक्ष ज्यादातर इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर विवाह तय करते थे। सोचते थे हमारी बेटी सुखी रहेगी।लड़कियों को भी मानसिक रूप से हर परिस्थिति के अनुरूप ढलने की शिक्षा दी जाती थी।ज्यादातर लड़कियाँ उसका पालन भी करती थी। कुम्हार के चिकनी मिट्टी की तरह होती थी जो हर परिवेश में सामंजस्य स्थापित कर लेती थी। शायद लड़कियों का कम उम्र मे विवाह होना भी इसका कारण रहा होगा।
अब समय के साथ सुख की परिभाषा भी बदल गयी।”भोजन ,वस्त्र और आवास” तक सीमित नहीं रही। लड़कियाँ भी अब उच्च महत्वकाक्षी हो गयी। पहले “हम साथ साथ है” का पारिवारिक माहौल था। फिर “हम दो हमारे दो” का माहौल बना। अब तो “हम दो” की ही अवधारणा बनती जा रही है। मेरे लिखने का तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि हम सिर्फ लड़की वाले की बातों को सुनकर निर्णय ले ले या फिर लड़के वालों को भी सफाई में कुछ कहने का मौका दे।
कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी अन्य कारणों से विवाह तय नहीं हो पाता है तो लड़की वाले आक्रोश में आकर अधिक दहेज माॅगने का इल्जाम लगा देते है। हर परिवार का अलग अलग Criteria होता है।किसी को हाउसवाइफ चाहिए ,कोई संयुक्त परिवार मे रहने वाली लड़की चाहता है कोई उच्च शिक्षित कार्यरत लड़की चाहता है। लड़कियाँ भी अपने मन लायक लड़का चाहती है । किसी को किसी विशेष क्षेत्र मे कार्यरत लड़के की चाहत होती है तो कोई बड़े शहरों मे विवाहोपरान्त रहने की इच्छा रखती है। कोई माता पिता के साथ रहने मे असुविधा महसूस करती है। अनेकों कारण हो सकते है जिनसे विचारों और परिवारों मे अंतर हो जाता होगा और शादी तय नहीं हो पाती हो। हमें दोनों पहलुओं पर विचार करना होगा। दहेज रूपी दानव हमारे समाज में है यह तो हमे मानना ही है। दहेज की मै भी बहुत विरोधी हूँ ।पर दहेज विरोधी कानून बनने के बाद भी इसका उन्मूलन नहीं हो पाया फिर हम और आप मिल कर इसे कैसे खत्म करे यह विचारणीय है।कृपया मेरी बातों का कोई गलत अर्थ न निकाले।
कृपया जल्दबाजी में कोई कमेंट न करे। ठंडे मन से विचार कर कमेंट करे। धन्यवाद ।