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धन्य, मैं ऐसा पिता पाकर…सदैव हमारे आदर्श रहेंगे आप India Uttar Pradesh 

धन्य, मैं ऐसा पिता पाकर…सदैव हमारे आदर्श रहेंगे आप

पिताजी (स्व०बी०एल०शर्मा) की पुण्यतिथि पर

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RAVI p sHARMAहमारे पूज्य पिता जी स्व०बी०एल०शर्मा, जिन्होंने जीवन में सभी आन्तरिक आध्यात्मिक, भौतिक, व सामाजिक ज्ञान को हमेशा आत्मसार करने में सम्पूर्ण विवेक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सहारा लिया।

लेखक : रवि पी शर्मा/ लखनऊ
आज 27 फरवरी 2017 को मध्यरात्रि पर 23:55 बजे जाने क्यों मन स्वतः उदास होता जा रहा है। यह काली रात जीवन में शायद हमेशा विचलित करती रहेगी। सन 2011 में हमारे पूज्य पिताजी के अलविदा होने  का य ही समय 00:15 नहीं भूलता। शायद उनका ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते उनके अत्यधिक क़रीब आने का मौक़ा मिला। उनके क़रीब रहते हुए व्यक्तित्व के भौतिक , सामाजिक व अध्यात्मिक ज्ञान को समझने के प्रयास में नजदीकियां निरंतर एक अच्छे मित्र की भांति बनी रही।

पिताजी के कुछ संस्मरण आज भी अच्छी तरह से याद हैं :

बात उन दिनों की है जब वे 1978 में जिला पीलीभीत से शाजहाँपुर स्थानान्तरण के बाद हम भाई-बहनों को शिक्षा के कारण छोड़कर अकेले रहने चले गए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले तथा कर्मकांड की शिक्षा बचपन में ही पूर्ण कर चुके और सदैव अध्यनरत व्यक्ति को जीवन में आध्यात्मिक गुरु चुनने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। संयोगवश आपके अधिकारी डॉ. ललितजी से विचारों का मेल नजदीकियां बढ़ाता गया। आध्यात्मिक चिंतन पर परिचर्चा ने उनके गुरु से मिलने का सौभाग्य प्राप्त करा ही दिया। शीघ्र ही डॉ. ललित जी अपनी पत्नी, जो कि मायेके आई हुई थी, से मिलने पिता जी के साथ अपनी ससुराल आये।

आध्यात्मिक गुरु के प्रथम दर्शन :

गेट से अन्दर घुसते ही बड़े से हाते में आराम चेयर पर बैठे हुक्का गुडगुडाते सफ़ेद धोती व बंडी पहने बुजूर्ग शख्स को प्रणाम कर डॉ०साहब पिता जी को बैठने का इशारा करते हुए अन्दर चले गए। अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि सामने चुपचाप शांति से हुक्का गुडगुडाता वृद्ध व्यक्ति ही गुरु जी हैं। उन दिनों पिता जी को कोलिक पेन की शिकायत अक्सर रहा करती थी। शांत बैठना मुश्किल था। नज़र दूर हाते के कोने में सफ़ेद कुर्ते पायजामे में बैठे कोयला तोड़ते व्यक्ति पर भी थी। दर्द तेज़ होता जा रहा था। अचानक मन में एक विचार आया कि इतने बड़े संत के समीप रहते हुए तो दर्द नहीं होना चाहिए।

कुछ देर बाद उक्त बुजुर्ग ने अपना हुक्का एक तरफ़ रखते हुए सामने की ओर झुककर बहुत ही शालीनता से अपने पेट पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा। कुछ पेट में तकलीफ़ है डॉ. ललित से सलाह लेना चाहिए। और अन्दर घर में चले गए। हंसी मानो आते-आते अन्दर घुटकर रह गई कि इनके तो खुद ही तकलीफ़ है यह दूसरों का क्या….? आश्चर्य मेरी तकलीफ़ ख़त्म …

दूर बैठा व्यक्ति यह सब देखकर पिताजी के समीप आया और धीरे से पूछा क्या…कह रहे थे बाबूजी महाराज….? कुछ नहीं ….उनके पेट में तकलीफ़ थी…सलाह करने गए हैं….डॉ. ललित से….। आपने कुछ कहा ….?..नहीं तो….फिर आप क्यों कुर्सी पर इधर-उधर हो रहे थे….? मुझे खुद तकलीफ़ थी …एक विचार आया कि इतने बड़े संत के समीप मुझे तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। बाबूजी महाराज कह रहे थे मैं सिर्फ आत्मा का डाक्टर हूँ…तुम्हें डॉ. ललित से कंसर्न करना चाहिय। डॉ. ललित बाहर आये और हम दोनों चल दिए। पैदल चलते हुए पूरी घटना उनको सुनाई और उस व्यक्ति के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही। वे थे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस नाम नहीं ध्यान आ रहा है जिन्होंने सेवानिवृति के उपरांत गुरु जी के हुक्के की आजीवन सेवा का प्रण लिया था। जिससे उनके समीप रहने का सौभाग्य प्राप्त होता रहे। अत्यंत प्रभावशाली प्रसेप्टर। प्रत्येक मनुष्य को संस्कार अवश्य भोगने होते हैं। एक अच्छा प्रशिक्षक, गुरु संस्कारों को भोगने की क्षमता प्रदान करता है। अथवा दूसरों के संस्कार ख़ुद भोगकर आपके कष्ट कम कर देता है।

ऐसे थे उनके अध्यात्मिक गुरु श्रीबाबु जी महाराज : हमारे पूज्य पिता जी स्व०बी०एल०शर्मा, जिन्होंने जीवन में सभी आन्तरिक आध्यात्मिक, भौतिक, व सामाजिक ज्ञान को हमेशा आत्मसार करने में सम्पूर्ण विवेक और वैज्ञानिक द्रष्टि कोण का सहारा लिया। धन्य हूँ मैं ऐसा पिता पाकर…आप सदैव हमारे आदर्श रहेंगे। आपकी इस पुण्यतिथि पर शत-शत नमन। दोस्तों अपने एक मित्र बड़े भाई राय तपन जी के आग्रह पर कि आप पिताजी के कुछ संस्मरण पर हमेशा लिखा करिए। यदि आप सभी को उनके संस्मरण व मेरा लेख भाषा शेली पसंद आती है तो आगे भी लिखता रहूँगा।

Renu Sharma:  पापा जी का आशीर्वाद हम सब पर बना रहे । उन्हे शत् _शत् नमन ।

Rekha Rai :  पिताजी को मेरा शत शत नमन🙏🏻रवि बाबू सच है कि अध्यात्म में उनकी अपार रूचि थी।इस बार जब हम इंदिरा नगर आपके घर गए तो आपकी माँ ने हमे उनके द्वारा की गयी किताबों का संग्रह दिखाने के लिए बाबू जी के रूम में ले गयी। मैंने उनकी अध्ययन रूचि को प्रणाम किया और दो किताबे भी लीं।ज्यादातर किताबें इंग्लिश में थी।
अपने पिता जी के जाने के बाद मैंने भी महसूस किया कि इन लोगो में (अपने बुजुर्गो में) वो अपार शक्तियां छिपी होती है जिनकी हम सबको पग पग पे जरूरत पड़ती है। पर हम समय रहते इन बातो की तरफ ध्यान नही दे पाते। और समय पंख लगा कर उड़ता हुवा अपना समय चक्र पूरा करता हुआ निकल कर चला जाता है। ये पढ़कर मुझे मेरे पापा की भी बहुत याद आयी। ईश्वर इन पुण्य आत्माओं को शांति प्रदान करें।

Mahendra Pratap Bhatt : अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। लेकिन वे हम सबकी यादों में जीवित हैं। आधुनिकता और अध्यात्म के अनूठे संगम थे वे!

Devendra Kumar: भाई साब भाभी जी के साथ सभी बच्चो की याद हमेसा मनमे बानी रहती है भाई साब हमेशा हम सभी के साथ रहते है

Roy Tapan Bharati : लेखन के जरिए पिता को याद करना सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। दूसरी ओर पिता के इस संसार से जाने के बाद भी आपकी माताजी का बच्चों के साथ धैर्यपूर्वक रहकर अध्यात्म के लिए समय निकालना मुझे बहुत ही अच्छा लगता है ऐसी समझदार मां को भी हमारा प्रणाम।

Aniruddh Agnihotri: वह काली रात मैं भी कभी नहीं भूल सकता भइया वह हमेशा हे हम लोगों के साथ है, उनका व्यक्तित्व हमेशा प्रेरणा के रूप में हमारे साथ है|

Shobhit Verma: भैया, ताऊजी के संस्मरण हमेशा हमें प्रेरणा देते रहेंगे। उनका व्यक्तित्व ऐसा ही था। आप लोगों के लखनऊ शिफ्ट होने के बाद उनसे अधिक मिलना नहीं हो सका लेकिन हमेशा यही लगता था कि उनका स्नेह और आशीर्वाद मेरे ऊपर सदैव ही रहा। शाहजहाँपुर और बरेली में उनके साथ summer vacations में बिताया समय भूले नहीं भूलता।

 

 

 

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