प्रेम-जगत में रहकर तुमने कितनों का दिल तोड़ दिया!
कली फूल संवाद
इक दिन”नाज़” हुआ कलियों को, फूल
से इठलाकर बोली
उमर तुम्हारी बीत गई अब , हम सब
खेलेंगे होली!
अद्भुत, कोमल, कांति रूप ले,नेह-पन्थ
को छोड़ दिया;
प्रेम-जगत में रहकर तुमने कितनों का
दिल तोड दिया!
काँटों में छुप-छुपकर बस, सुंदरता का
श्रृंगार किया;
है आज नहीं, कोइ कहने वाला, तुमने
मुझको प्यार किया
पता नहीं, क्या पाने को ? तुम अड़े रहे
मनमानी पर;
तरस आ रही, दुनिया को, तेरी गुमनाम
जवानी पर!
मुस्काकर फूल कहा कलियों से,अच्छी
सोच बनाई हो
नयी उमंगे, नया रूप लिए, नई जगत में
आयी हो!
सारा जीवन शेष अभी है , तुम्हे पता
चल जायेगा!
जब तोड़ेगा कोई प्यार के भ्रम में, कोई
कुचल के जायेगा!
कस्में, वादे, प्यार के “भौंरे”, जीवन भर
मडराएं है!
चूस लिया, जिसने पराग, वो पुनः नजर
नहीं आये हैं!
है लाख दुआ! उन कांटों को, हमे जोड़
के रखा डाली से!
भौरों से पहले तुम बचना, निज गुलशन
के ही माली से!
*#रचनाकार*
*#कवि_आलोक_शर्मा_सिसवा_बाजार*
*#महराजगंज_यूपी*