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चलो आईएएस पैदा करें Chattisgarh India 

चलो आईएएस पैदा करें

वास्तव में आईएएस ब्रिटिश काल के आईसीएस यानी इंडियन सिविल सर्विसेस का भारतीय संस्करण है। इस पद को बहुत ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। यह रंक से राजा बनने का पद है।

Pramod BramhbhattRaipur
भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षाएं आम तौर पर आईएएस (IAS) की परीक्षा कहलाती है। वास्तव में परीक्षार्थी कलेक्टर बनने के लिए ही प्रयासरत रहते हैं। अगर उससे चूकते हैं तो उसके समकक्ष अन्य पदों पर चले जाते हैं। वास्तव में आईएएस ब्रिटिश काल के आईसीएस यानी इंडियन सिविल सर्विसेस का भारतीय संस्करण है। इस पद को बहुत ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। यह रंक से राजा बनने का पद है।

इस पद को इतने अधिकार इसलिए दिए गए थे कि वो भारत को अंग्रेजों की नीति के अनुसार शासित कर सकें। यानी ये वास्तविक शासक थे। सबसे मजेदार बात यह है कि खुद इंग्लैण्ड में इस तरह का कोई शासकीय पद नहीं है। वहां हर शासकीय अधिकारी निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधीन होता है। जबकि भारत में आईएएस निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधीन नहीं बल्कि अपने नियमों के तहत स्वतंत्र होता है। वह निर्वाचित प्रतिनिधियों की अनुशंसाओं को अगर नियमों के तहत फिट नहीं बैठते हैं तो कूड़े की टोकरी में डाल सकता है।

यह पद संविधान के तीन प्रमुख अंग विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से कार्यपालिका के अंतर्गत होता है। संसद और विधानसभा में यह पद सत्ता पक्ष को सहयोग करता है। इसे कई तरह के अधिकार प्राप्त होते हैं यहां तक कि बिना कलेक्टर की अनुमति के कोई प्रधानमंत्री तक उसके जिले में प्रवेश नहीं कर सकता है। यह बात अलग है कि कलेक्टर कभी अपने विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं करता है।

मेरे पिताजी कहते थे कि कलेक्टरों की सोच अलग होती है उनमें प्रत्युन्मति होती है यानी तत्काल सही निर्णय लेने की क्षमता। लेकिन मेरी बूढी होती उम्र ने इस पद को लेकर कई स्थितियां देखीं हैं। हमने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की कलेक्टर बेटी टी.रहमान के किस्से भी सुने हैं जो कहा जाता है कि बीए तृतीय श्रेणी से उत्तीर्ण थीं। कई वर्ष पहले जब आईएएस की परीक्षा पर्चा फूटा था, तो कार्टूनिस्ट का वह कार्टून भी याद है, जिसमें कमेंट था कि जब से आईएएस का पर्चा फूटा है चपरासी मुझे घूर-घूर के देखता है।

सच कहूं तो पत्रकारिता के दौरान लगभग 25 आईएएस अफसरों से मुलाकात हुई है लेकिन किसी में भी मैंने सुर्खाब के पंख लगे नहीं देखे। कई लोगों को तो विद्वानों से कमतर पाया है। कहना के मतलब सब इतना है कि आईएएस कोई आसमान का बंदा नहीं होता। यह भी एक परीक्षा है जिसे सामान्य तरीके से लेना चाहिए। इस परीक्षा की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें विश्व के परिदृष्य को ध्यान में रख कर तैयारी की जाती है जिससे व्यक्ति का दिमाग खुलता है बस।

अब हमारा जमाना नहीं रहा जब अभिभावक सपने तो दे देते थे लेकिन सुविधा नहीं उपलब्ध करा पाते थे। परीक्षा की पुस्तकें नहीं मिलती थीं फिर ग्रामीण से जिला, जिला से राजधानी और राजधानी से ऩई दिल्ली की दूरी बहुत होती थी। आज जमाना बदल गया है। पूरी दुनिया बदल गई है। इंटरनेट के युग में सभी तरह की सुविधा उपलब्ध हो चुकी है।

बच्चे रेलवे के फ्री वाईफाई का सहारा लेकर भी परीक्षाएं पास कर रहे हैं। हमें अपने बच्चों को इस परीक्षा में बैठने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें पर्याप्त समय और सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए ताकि हमारे बच्चे इस परीक्षा में उतीर्ण होकर समाज और परिवार का नाम रोशन कर सकें। अगर बच्चे पास हो गए तो कलेक्टर बनेंगे और नहीं पास हुए तो ज्ञान का मुकुट पहनेंगे और जीवन में सारथी बनने का काम भी करना पड़े तो श्री कृष्ण की समाज में प्रतिष्ठित होंगे।मेरा समाज विचार करे….( 5 जून को यूपीएससी के नोटीफिकेशन आने की सूचना के संदर्भ में)

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