You are here
65 सदस्यों का हमारा विशाल परिवार, पर बंटवारा नहीं Bihar India 

65 सदस्यों का हमारा विशाल परिवार, पर बंटवारा नहीं

एडवोकेट राकेश शर्मा/ गोपालगंज

rakesh-sharma-gopalganjrakesh-and-wife

मैं लेखक नहीं हूँ परन्तु संपादक राय तपन भारती भैया के प्रोत्साहन से अभिभूत होकर यह लेख जीवन वृतांत के रुप में आपको समर्पित कर रहा हूं।मेरा गांव बिहार में गोपालगंज जिले का बंगालखांड नामक गांव है जो अपनी बिरादरी का एक छोटा-सा कस्बा है। इसी गांव में हमारे एक ही  खानदान के लगभग 10-15 घर हैं। मेरे दादा स्व जमादार शर्मा इलाके में अपने जमाने के मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर ग्राम पंचायतों के गठन तक समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने क्षेत्र में अपना वजूद कायम किया।

इलाके के तमाम  लोग उन्हें बहुत ही सम्मान की  नजर से देखते थे और उन्हें प्यार से गोसाई जी कहते थे। इस तरह क्षेत्र में उनका नाम जमादार गोसाई प्रचलित हो गया। उन्होंने काफी सामाजिक कार्य जैेसे अपने गांव में पंचायत का गठन करवाया और अपनी जमीन  दान कर पंचायत भवन तथा वहां एक बहुत बडा पोखरा खुदवाया। गांव के बच्चों को पढने के लिए अपने खलिहान का जमीन दान कर पाठशाला बनवाया जहाँ सरकार ने अभी भव्य विधालय का निर्माण कर दिया है। पंचायत के लडको को खेलने के लिए अपने बगीचे के बीचों-बीच एक बडा-सा खेल मैदान बनवाया जिसमें बच्चे अभी भी खेलते हैं। यह बगीचा और पोखरा से हमारे पूरे पट्टीदारी के लोग और संपूर्ण ग्राम पंचायत लभान्वित होते रही तथा उन्होंने परोपकार में ही अपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया और पंचायत कर घर लौटने के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी। उस वक्त मेरी उम्र तकरीबन 7 वर्ष की रही होगी।

मेरे पिता स्व कन्हैया शर्मा, जिन्होंने रेलवे में नौकरी की,  अपने पिता के सबसे छोटे पुत्र थे। वे चार भाइयों में सबसे छोटे थे। rakesh-and-familyमेरे बडे पिता स्व मुक्ति नाथ शर्मा जी, जिन्हें हम प्यार से बडका बाबूजी कहते थे, घर पर खेती गृहस्थी का काम देखते थे। वैसे चाचा पर मैं गर्व महसूस करता हूं जिन्होंने अपने पूरे जीवन काल में अपने भाइयों और भतीजों पर कभी कोई आंच नहीं आने दी। उन्हें एक ही पुत्र जो मेरे सबसे बड़े भाई (स्व दूधनाथ शर्मा जी) लगते थे जो जेल पुलिस में थे।  दुर्भाग्यवश वह छपरा जेल ब्रेक कांड में शहीद हो गये परन्तु अपने जीवन काल में अपना पूरा वेतन मेरे दूसरे नंबर के चाचा, जिन्हें हम छोटका बाबूजी कहते हैं, को देते रहे जिनका नामश्री मुख्तार शर्मा है।

मेरे तीसरे चाचा का नाम स्व परमानंद शर्मा जी है जो बहुत पहले अपने तीन पुत्रों और दो पुत्रियों को बाल्य अवस्था में छोडकर चल बसे जिनके पुत्र और पुत्रियों को पढा लिखाकर अभिवावक ने शादी-ब्याह कर दिया और इन तीनों भाइयों ने छतीसगढ में अपना घर द्वार बनाकर अच्छे ढंग से बस गए। मेरे एक चाचा रामानन्द शर्मा जी हुए जो जेल विभाग से सेवानिवृत होकर अभी घर पर ही रहते हैं।

मुझे आपसे यह कहने में गर्व महसूस हो रहा है कि इस जमाने में भी मेरे पिता के पांचों भाई बटें नहीं हैं और मेरा बहुत बडा संयुक्त परिवार है जिसमें सदस्यों की संख्या अब 65 तक पहुंच गई है। मेरे पिता दूरगामी व्यक्ति थे तथा अपनी नौकरी के आखिरी क्षणों में काफी बीमार हो गए। मैं उस समय पढ रहा था, हम तीन चचेरे भाई भरथुआ बैरक में रहकर अपने चाचा और भैया, जो जेल पुलिस में थे, के पास रहकर पढ़ाई करते थे। उसी समय मेरे एक चाचा के लडके की नौकरी बीएसएफ यानी सीमा सुरक्षा बल में हो गई।

फिर हम दो भाई बचे उसमें मेरे चचेरे भाई जिन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर प्रथम श्रेणी से पास कर परिवार का गौरव बढ़ाया। उन्हें भी नौकरी मुंबई में केमिस्ट के पद पर हो गई। अब मैं अकेला रहकर पढाई कर ही रहा था कि पिताजी का तबादला मुजफ्फरपुर हो गया और इसके बाद मैं रेलवे कालोनी में रहने लगा। उस समय मेरे पिता जी काफी अस्वस्थ रहा करते थे तथा काफी चिंतित रहने लगे। मैनें उनकी चिंता का कारण पूछा तो उन्होने कहा कि दो महीने हो गए घर पर पैसा भेजे, भैया क्या कह रहे होंगे? मैनें कहा कि आपके भैया जानते हैं कि आप बीमार हैं और पूरे परिवार के साथ आप यहां रह रहे हैं तो पैसा कहाँ से भेजिएगा?  इस पर मेरे पिता का जबाब यह कि हमारे पैसे पर पूरे परिवार का अधिकार है। अब तुम ही सोचो, कैसे यह परिवार चलेगा? मैं आपको बता दू कि मैं अपने माता-पिता की शादी के 14वें वर्ष में सबसे बड़ी संतान के रुप में जन्म लिया तथा माता-पिता परिवार समाज का प्यारा दुलारा था। मुझे अपने 22 साल की उम्र तक अभी वास्तविक जीवन का एहसास नहीं हुआ था और मेरी सोंच काफी ऊंची थी। इस लिहाज से मैनें उस समय उच्च प्रतियोगिताओं की तैयारी के मकसद से एमएससी के साथ साथ एलएलबी में अपना एडमिशन करा चुका था। उस समय अचानक पिता के बीमार रहने के कारण इस अस्पताल से उस अस्पताल भटकने लगा। इसी दौरान पिताजी से हर विषय पर खूब बातें करने का मौका मिला। पिताजी ने बातों ही बात में अपनी इच्छा मुझे बताई कि राकेश मैं चाहता हूं कि अपनी एलएलबी की पढाई पूरी कर घर पर ही रहो। मेरे पांच भाइयों के परिवार में कोई भी घर पर रहने वाला नहीं दिख रहा इसलिए तुम घर पर रहकर वकालत करना। उन्होंने कहा कि मेरे पिता की मृत्यु के बाद गांव और समाज को लेकर चलने वाला कोई नहीं बचा। लगता है कि जमदार गोसाई का नाम डूब जाएगा। मुझे स्मरण कराया, तुम्हें याद है कि जब मेरे पिता मरे थे तो दसों कोश से लोग उनके अंतिम संस्कार में आए थे। पूरा गांव, जवार  की औरतें और मर्द, धनी-गरीब सभी रो रहे थे मैंने कहा- हां, पिताजी थोडा-थोडा याद है उसी समय अस्पताल का डाक्टर राउण्ड पर आ गए तथा रिपोर्ट देखने और इसके बाद कहा कि अगर आपको कुछ दिन जिन्दा रहना है तो आप नौकरी छोड दीजिए, अनफिट ले लीजिए।

rakesh-and-chath

पिताजी की आंखें डबडबा गई, बोले- डाक्टर साहब मुझे चार छोटे छोटे बच्चे हैं जिसमें यही बडा है अभी पढ रहा है। बाकी तीन अभी काफी छोटे हैं मेरे एक छोटी बहन की उसी साल शादी हो गई। डाक्टर बोले, सोच लीजिए। मैं डाक्टर के पीछे दौड़े-दौड़े गया और पूछा- डा साहब मेरे पिता को क्या हुआ है। उन्होंने बडे प्यार से मुझे समझाया- बेटा तुम्हारे पिता को इंटरलेक्सुअस लांग्स डिजीज है इस परिस्थिति में इनका आरपीएफ की नौकरी करना और टाईट फिट वर्दी पहनना काफी खतरनाक है, इसलिए तुम अगर इनको इनके उम्र भर जिंदा रखना चाहते हो तो अनफिट करा दो। मैने तुरन्त इन बातों की सूचना अपने घर पर दी और मेरी मा और परिवार के लोग आ गए। हम सब ने यह निर्णय किया कि पिताजी को अनफिट करा देंगें तथा पिताजी की नाराजगी के वावजूद उन्हें आरजू-बिनती करके सहमति ले ली।पिताजी कहते- कैसे तुम लोगों का गुजारा होगा, अभी कोई कमा नहीं रहा है। तब मां ने कहा- आप सामने रहेंगे तो आपको देखकर हमलोग जी लेंगे। खैर, ये सब कागजी कार्यवाही करने में भी काफी समय लगा तब तक  वकालत की मेरी पढाई भी पूरी हो गई।

मैंने अपने पिता की इच्छा को भांप लिया था तथा सोच लिया था कि  मैं अब घर पर ही रहूंगा। उसके बाद पिताजी नौकरी से अनफिट होकर घर चले आए तथा मैंने भी गोपालगंज में वकालत शुरु कर दी। मुझे गोपालगंज शहर के बारे में बहुत जानकारी नहीं थी और मैं यहां बिल्कुल नया था पर पिताजी के आशीर्वाद  से एक अच्छे गुरु से भेंट हो गई और मैं शुरु से ही अपने अन्य साथियों से ज्यादापैसा कमाने लगा। मेरे पिताजी खाने के बहुत शौकीन थे तो मैं प्रतिदिन एक नई सब्जी एवम् उनके अन्य अभिरूचि का खाद्य लाने लगा। इस समय मैनें संयुक्त परिवार की सारी जिम्मेदारी शादी-विवाह, खेती-बाड़ी और समाज सब सम्भाल लिया। पिताजी को पशुपालन भी पसंद था और इस समय मेरे द्वार से गाय भैंस हटा दी गई थी। तब उनकी इच्छा गाय चराने को होने लगी मैं गाय खरिदने की बातसोच ही रहा था तबतक पिता जी काफी बीमार हो गए और हमलोगों को बीच मंझदार में छोड दिया। पूरा परिवार अंधकार में डूब गया। मेरे छोटे भाई मां के पास जहाँ मैं भी रोने लगा कि अब हमलोंगों को कौन पढाएगा? उससमय मैं काफी विचलित था। मेरे बडे भैया, जो जेल पुलिस में थे, ने आश्वासान दिया- मैं जिन्दा हूँ और मैं तुमसब को पढाउंगा। पूरा घर और मेरे रिश्तेदार हमें आश्वासन देने लगे कि हम सब हैं, ऐसी बात नहीं सोचना चाहिए। और फिर जो सबसे ज्यादा मददगार थे साल भर बाद वे भी शहीद हो गए।
rakesh-sharma-gopalganj-2

अब तक मैं दुखों से लडना सीख गया था तथा परिवार के लिए मैं भी अपने आपको न्योछावर कर दिया तथा दौडधूप करके मैं अपने छोटे भाई को रेलवे में गार्ड में बहाल करवाया। यहाँ  मैं बता दूं कि मैने नियम-कानून को शिथिल करवाकर अपने विशेष आग्रह तथा निवेदन कर रेल महाप्रबंधक से नौकरी की मंजूरी पाई क्योंकि रेलवे में अनफिट होने पर अनुकंपा की नौकरी टेढी खीर के समान था पर मैंने जीएम से मिलकर अपनी कहानी सुनाई तो वे पिघल गये तथा मुझसे पूछा-कितना पढे हो तो मैं तपाक से कहा- नौकरी मैं नहीं करुंगा. मेरा छोटा भाई जो बीए पास किया है, वह करेगा। तब जीएम बोले- अरे, तू तो इस जमाने में अजूबा है जो अपने भाई की नौकरी के लिए रो रहे हो, जाओ मैं तुम्हारी मदद करुंगा और मेरा आवेदन मंजूर करलिया गया। इसके बाद मेरे दो रिश्तेदार या स्वजातीय अफसर मनोज शर्मा एवम डिप्टी एसपी NK Rai  जी ने भरपूर मदद की। मेरा भाई गार्ड में सेलेक्ट हो गया फिर दौड-धूप करके मैनें अपने एक भतीजे को कारा लिपीक में बहाल करा लिया।

अब हमारे घर का समय बदल चुका था। तीसरा भाई मुकुल शर्मा पी एच डी करके विहार विश्वविद्यालय का सीनेटर बन गया। मेरे चौथे भाई को मैनें मैट पास कराकर हैदराबाद से एमबीए करा लिया। मेरे पिता हमेशा कहते कहते रहे कि  मैं पुलिस में रहा हूँ पर तुम लोग इस नौकरी में मत आना। उन पिता की बात और आशीर्वाद आखिरकार सार्थक हुई और मैं अपनी पंचायत में 1,800से भी अधिक मतों से सरपंच चुना गया।
अपने बाबा की विरासत को मैंने सम्भाल लिया और अपनी पंचायत का सरपंच मुखिया पैक्स तथा अन्य पदों पर भी स्वजातीय उम्मीदवार निर्वाचित हुए। मेरी बात शायद खत्म होने वाली नहीं है। फिर भी, एक छोटी बात मैं आपको बताना चाहूंगा कि मैं संयुक्त परिवार का प्रबंधक हूँ। मैंने अपनी पंचायत तथा स्वजातीय लोगों के आपस का केश नहीं लडता हूँ। पर यदि सुलह कराने में मेरी भूमिका रहती है तथा आपके आशीष से अभी मैनें जनवरी में अपने छोटे भाई विवेकानंद के नाम पर दूरस्थ शिक्षा में वीआरए विहार विश्वविधालय, मुजफ्फरपुर से संबद्धता तथा UGC से सहमति प्राप्त कर डिग्री कालेज चलाता हूँ जिसका मैं निदेशक हूं। आपको मेरी औरमेरघ की कहानी कैसी लगी यह बताना मत भूलिएगा। (लेखक बिहार के गोपालगंज में जिला न्यालय में सीनियर वकील हैं)

Related posts

Leave a Comment