You are here
हमारे बुजुर्ग तन्हा हो गए हैं, बच्चे भी अकेले पड़ गए Delhi India 

हमारे बुजुर्ग तन्हा हो गए हैं, बच्चे भी अकेले पड़ गए

आज के बुजुर्गों की स्थिति को देखते हुए मैंने इस लेख को लिखा है | उम्मीद है आप सबों को यह लेख अच्छा लगे। : Awadhesh Roy/New Delhi

घर में अगर कोई बुजुर्ग है तो उसे भार मत समझिए, क्योंकि बूढ़ा पेड़ फल दे या न दे ,पर छाया जरूर देता है। पर आज का वृद्ध उस जुआरी की तरह है जो जीतकर भी सबकुछ हार जाता है | आज का वृद्ध उस माली की तरह है ,जिसने अपना पसीना बहाकर बाग लगाया। आज वही माली उस बाग का फूल स्वेच्छा से तोड़ने का अधिकारी नहीं रह जाता है।

Awadhesh Roy/New Delhi

 
 Awadhesh Roy Pविश्व के सभी धर्मों और सम्प्रदायों में माता -पिता को उच्च स्थान और सम्मान दिया गया है और हमारे भारत में तो माता -पिता की तुलना भगवान से की गयी है । इतना सम्मानजनक स्थान होने के बावजूद भी आज हमारे इन बुजुर्ग माता -पिताओं को दुःख भोगना पड़ता है। बुजुर्गों की सेवा ही सच्ची सेवा है | माता-पिता के समान कोई तीर्थ नहीं– न मंदिर, न मस्जिद। माता-पिता उस नाविक की भाँति हैं, जो अपने बच्चों को दुखों के सागर से पार लगाते हैं|

पेड़, पत्थरों से लेकर जानवरों तक को पूजने वाला भारत आज अपने बुजुर्गों का ही ख्याल नहीं रख रहा है। कभी माता-पिता को भगवान मानने वाले भारत के आज के बच्चे अब उन्हें बोझ समझने लगे हैं और उन पर आत्याचार के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं।

एक समय भारतीय समाज की पहचान और प्राणवायु रहे संयुक्त परिवार अब विघटन की कगार पर हैं। कभी घर और मन इतने विशाल थे कि चाचा, ताऊ ही नहीं, बल्कि दूर के रिश्ते के भाई, बंधु और उनके परिवार भी इसमें समा जाते थे। अब स्थान और सम्बन्ध इतने संकुचित हो चले हैं कि अपने माता-पिता के लिए गुंजाईश निकालना इनको मुश्किल हो रहा है। आज इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो बिखरते हुए समाज में जो खालीपन होता जा रहा है, उसे भर पाना फिर असंभव हो जायेगा।

वृद्धाश्रम जैसी संस्थाएं जो हमारी परिकल्पनाओं से परे थीं, आज शहरों में खुलते जा रहे हैं और ये बुजुर्ग स्वेच्छा या मजबूरियों में वहाँ पहुंचाए जा रहे हैं। आदर, प्यार और कृतज्ञता के धागे से बंधे रिश्ते हमारी विशेषता थीं, क्योंकि हमारे समाज के मूल आधार हमारे मधुर रिश्ते रहे हैं, लेकिन आज की तेज भागती जिंदगी में अपने आप ही ये रिश्ते पीछे छूटते चले गए हैं। आज ” स्व ” का महत्व बढ़ गया है और घर-परिवार का महत्व कम होता चला गया है |

हमारे बुजुर्ग भारतीय संस्कृति के विरासत हैं, परन्तु आधुनिकता के दौर में वे आज अपने घरों में अकेले और तन्हा हैं। नई मानसिकता के युवा सम्मान तो दूर , आज इन बुजुर्गों को शारीरिक और मानसिक यातनाएं देने में भी पीछे नहीं हैं। बुजुर्गों की देख भाल करना हमारी शाश्वत परम्परा है। उदारीकरण और पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण के दौर में आज हमारे देश में परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। घर के वुजुर्ग एक आशीर्वाद की तरह होते हैं। उनके रहने से घर को और अधिक बेहतर बनाने की उम्मीद बनी रहती है | घर में अगर कोई बुजुर्ग है तो उसे भार मत समझिए, क्योंकि बूढ़ा पेड़ फल दे या न दे ,पर छाया जरूर देता है। पर आज का वृद्ध उस जुआरी की तरह है जो जीतकर भी सबकुछ हार जाता है | आज का वृद्ध उस माली की तरह है ,जिसने अपना पसीना बहाकर बाग लगाया। आज वही माली उस बाग का फूल स्वेच्छा से तोड़ने का अधिकारी नहीं रह जाता है | आज वृद्ध होना सुरक्षा की तलाश में भटकना है।

बुढ़ापा मृत्यु का पूर्व संकेत है या बुढ़ापा जीवन यात्रा का अंतिम पड़ाव। बुढ़ापे की सबसे बड़ी मर्मस्पर्शी पीड़ा अपने अंगों के शिथिल होने का नहीं , अपितु अपने संबंधों की वजह से ही अपने परिवार में अनावश्यक उपेक्षित हो जाने से उत्पन्न पीड़ा वृद्धावस्था को संकट में डाल देता है । आज लगता है कि जो बच्चे कर रहे हैं , वे ” अप टू डेट ” हैं और माता-पिता व वरिष्ठ जन जो करते हैं वह ” आऊट आफ डेट ” हैं। परन्तु, सच्चाई यह है कि वृद्ध जन जो कुछ जानते हैं , उनके जीवन के अनुभवों के आधार पर आज के बच्चे भी कल को इन बुजुर्गों की पंक्ति में खुद खड़े होंगें। हमारी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय, जिनकी बदौलत हम आज यहाँ तक हैं , उन्हें ही हम आज भूल बैठे हैं। हमारे बूढ़े होते माता-पिता, जिनकी बरगद की छांव, हमारी दौड़ती- हांफती जिंदगी की सबसे अहम् जरुरत है, उन्हें हम नजरंदाज कर महत्वकांक्षा की जिस अंधी दौड़ में दौड़ रहे हैं , वहाँ सिवाय खालीपन के कुछ भी नहीं है।

Awadhesh Roy familyबड़े बुजुर्ग न केवल हमारे घर की शोभा हैं , बल्कि आज हर घर की जरुरत भी हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज संयुक्त परिवार की जगह एकांकी परिवार ने ले ली है, जहाँ न बच्चों के पास संस्कार की नींव रखने वाली दादी, नानी और न दादा, नाना की झिडकियां हैं, जो हर समय बच्चों के सही-गलत पर नजर रखें, नहीं रह
गयी हैं | कहानियों से मिलने वाली नैतिक शिक्षा अब टीवी, इन्टरनेट से होती हुई इतनी पश्चिमी संस्कृति में रम गयी है कि उनके पारिवारिक मूल्यों की जगह ही नहीं रह गयी हैं ।  अपनी जिंदगी का एक तिहाई बच्चों और परिवार को समर्पित कर जब वट वृक्ष रूपी ये बुजुर्ग अपने बच्चों से जब स्नेह रूपी जल चाहते हैं , तो बदले में उन्हें परायापन और तिरस्कार के सिवा कुछ भी नहीं मिलता । बुजुर्गों की जड़ें इतनी मजबूत होती हैं कि वो हर झंझावत झेल सकते हैं । बुजुर्गों के पास ज्ञान और अनुभव का जो भंडार है, उसका फायदा युवा पीढ़ी उठा सकती हैं । हम हमेशा समय की कमी का रोना रोते हैं , पर जब समय निकल जाता है तो सिवाय पछताने के कुछ भी नहीं रह जाता।

आज जरुरत इस बात की है कि माता -पिता और बुजुर्गों को बोझ न समझ कर उन्हें धरोहर समझा जाए और उनके अनुभवों से लाभ उठाकर अपने जीवन को उन्नत बनाया जाए, क्योंकि वे अनुभव के जीते जागते सागर हैं। यदि हम आने वाले भविष्य को सजाना और संवारना चाहते हैं , तो हमें अपने माता -पिता और बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील बनने की आवशकता है। अपने बुजुर्गों के लम्बे अनुभवों से हम राष्ट्र की सांस्कृतिक दीवारों को भी मजबूत बना सकते हैं । घर के बड़े बुजुर्ग एक आशीर्वाद की तरह होते हैं,  उनके रहने से घर को और अधिक बेहतर बनाने की उम्मीद बनी रहती है। एक बार जिसे बुजुर्गों का आशीर्वाद मिल गया , समझो उसे भगवान मिल गया।
ये बुजुर्ग आज अपने बच्चों से सिर्फ प्यार और सम्मान की उपेक्षा करते हैं। कभी अनुभव की कीमत होती थी, मगर अब लोग बुजुर्गों से किनारा करते हैं । किसी की सोच और मानसिकता बदलना बहुत कठिन है , लेकिन नामुमकिन भी नहीं। आज की नयी युवा पीढ़ी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जो आज बुजुर्गों का वर्तमान है , कल वही उनका भविष्य होगा । जो वो आज अपने बुजुर्गों के साथ करेगें, कल वही उनके बच्चे भी उनके साथ वही करेगें ।

पीढ़ी दर पीढ़ी इज्जत और संस्कार का पुल बनाने से न सिर्फ जिंदगी आसान होगी, बल्कि बुजुर्गों को वो सम्मान भी प्राप्त होगा ,जिनकी उनको सबसे जरूरत है | बुजुर्गों के बताए हुये मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति जीवन में कभी भी असफल नहीं होता| उनकी सलाह कड़वी दवा की तरह होती है ,लेकिन मानने पर हमारे जीवन में
मिठास भर देती है | अतः आप इस बात को अवश्य याद रखें कि वे छाँव हैं हमारे, उन्हें धूप न दो , वे प्रकाश हैं हमारे, उन्हें अंध-कूप न दो | तूने, जब पहला श्वास लिया तब तेरे माता-पिता तेरे साथ थे , और जब माता-पिता आखिरी साँस लें तब तुम उनके पास अवश्य रहना।

Related posts

Leave a Comment