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बदलाव के बावजूद बेड़ियों ने जकड़ रखा  है India 

बदलाव के बावजूद बेड़ियों ने जकड़ रखा है

-महिला दिवस की पूर्व संध्या पर-

आज ‘विश्व महिला दिवस ‘है। सभी ओर महिलाओं को बधाईयाॅ देने की होड़ लगी है। पर हमारे देश में प्राचीन काल से ही कोई व्यक्ति विशेष के लिये दिवस मनाने की परम्परा नहीं रही है-यथा मातृ दिवस, पितृ दिवस भ्राता दिवस, मित्रता दिवस प्रेम दिवस महिला दिवस और न जाने कितने दिवस।

प्रियंका राय/Patna

Priyanka Roy
प्रियंका राय/Patna

एक बार महिला सशक्तिकरण के किसी उदाहरण को परिचित कराने के दौरान एक सज्जन के द्वारा समाज में व्याप्त उन लड़कियों व् महिलाओं के प्रति चिंतन को दर्शाते पाया, जिन्हें शायद समय में बदलाव के बावजूद बेड़ियों ने जकड़ रखा है। मतलब उनके लिये परिवर्तन ने भी एक स्थाई डेरा बनाये रखा है और वास्तव में यह विषय सोचनीय है।

हमारे ग्रुप में नारीशक्ति के सम्मान को सदैव प्रधानता मिली है। इस पर परिचर्चाएं भी अक्सर होती रहती हैं। पर, हर समस्या का समाधान व् उनका उन्मूलन एक बेहतर स्तर पर हो यह भी निःसंदेह आवश्यक है। अतः इसके लिये प्रयासरत भी मुझे और आपको ही होना है। परिवार से समाज और समाज से देश तक की भूमिका हमारी ही होती है। अतः महिलाओं की स्थित को सुधारने के लिये दृढ संकल्पित होंने की आवश्यकता है।

जो समाज जितना अधिक गत्यात्मक एवं परिवर्तनशील होगा उसमें उतनी ही अधिक ऊर्जा विद्यमान होंगी। समाज का ताना-बाना इतना जटिल है कि इसकी एक इकाई मे होने वाला परिवर्तन अन्य इकाईयों को भी प्रभावित करता है। विभिन्न युगों में सामाजिक परिवर्तन की गति अलग-अलग रही है। वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन अति तीव्र गति से हो रहा है। समाज इन सामाजिक समस्याओं का उन्मूलन करने के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिये क्योंकि, सामाजिक समस्याएं सामाजिक व्यवस्था में विघटन पैदा करती हैं।

मेरा ये लेखन मन की कोरी उड़ान नही बल्कि हकीकत की गाथा है, जिसका आधार जीवन का वास्तविक अनुभव है। जैसे ही हम किसी कार्य को करने का निर्णय लेते हैं हमारा पहला चरण उस कार्य को करने के लिए इच्छाशक्ति को जागृत करना होता है।अगर किसी कार्य की शुरुआत अच्छे से हो जाए तो आधा कार्य तो उसी वक्त हो जाता है ऐसा माना जाता है। हमारी इच्छाशक्ति एक घोड़े की तरह होती है, इसे ज्यादा-से-ज्यादा दौड़ने दीजिए इसकी शक्ति और बढ़ेगी और इसकी दौड़ और भी ज्यादा तेज हो जाएगी। यह ज्यादा दूरी तय कर पाएगी और अपनी मंजिल तक भी जल्दी पहुंच जाएगी। अतः जिनके लिये प्रयासरत हैं और जो प्रयासरत हैं दोनों की दृढ इच्छाशक्ति का होना परम आवश्यक है। इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करें यह सभी लिए बेहद मददगार साबित होगा।

कहने का तात्पर्य यह है कि, जीते तो सभी हैं लेकिन जब आपके कर्मों से आपके जीवन की सार्थकता झलकने लगे तो समझिए आप सही जा रहे। महिला दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं आप सभी को कुछ अच्छे उद्धेश्यों के साथ।

नारी तुम हो सबकी आशा…!!!

Bindu Kumari/New Mumbai
Bindu N Mumbai
Bindu Kumari/New Mumbai

किन शब्दों में दूँ परिभाषा ?

नारी तुम हो सबकी आशा…
सरस्वती का रूप हो तुम
लक्ष्मी का स्वरुप हो तुम
बढ़ जाये जब अत्याचारी
दुर्गा-काली का रूप हो तुम।
खुशियों का संसार हो तुम
प्रेम का आगार हो तुम
घर आँगन को रोशन करती
सूरज की दमकार हो तुम।
ममता का सम्मान हो तुम
संस्कारों की जान हो तुम
स्नेह, प्यार और त्याग की
इकलौती पहचान हो तुम।
कभी कोमल फूल गुलाब सी
कभी शक्ति के अवतार सी
नारी तेरे रूप अनेक
तू ईश्वर के चमत्कार सी।
किन शब्दों में दूँ परिभाषा ?
नारी तुम हो सबकी आशा…!!!

…तो फिर अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस भी क्यों नहीं मनाया जाता

Madhu Roy/Saharsa
Madhu Roy
Madhu Roy/Saharsa

मैने सुबह से समाज की बहनो को महिला के गुण, उपलब्धि,पुरुषो की पूरक,सहयोगी होने पर कविता या लेख के द्वारा प्रकाश डालते हुऐ पढ़ा और उसपर समाज के भाइयो ने भी प्रतिक्रिया लिखकर समर्थन किया।

सुबह से मेरे मन में यह सवाल आ रहा है कि 1) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस होता है तो फिर अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस भी क्यों नहीं मनाया जाता है? उस दिन महिला दिवस की तरह ही समाज के भाइयो को भी महत्वपूर्ण बना कर जगह दिया जा सकता है।
2) अंतराष्ट्रीय बेटी दिवस होता है तो फिरअंतराष्ट्रीय पुत्र दिवस भी क्यों नहीं मनाया जाता है?उस दिन समाज की पुत्रियो की तरह समाज के पुत्रों को भी महत्वपूर्ण बना कर जगह दिया जा सकता है। यह अंतराष्ट्रीय मंच क्या हमें 365 दिन में सिर्फ एक दिन 8 मार्च को ही हमें महत्वपूर्ण मानता है ?
मै समाज की बहनो एवं पुत्रियो से इस मंच के माध्यम से सलाह लेना चाहती हूँ कि जिससे हमारा “डे” मनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़े बल्कि समाज के भाइयो एवं पुत्रों की तरह ही हम बहने और समाज की पुत्रियां भी परिवार का ख्याल रखने के साथ-साथ अपने समाज के उत्थान में भी 365 दिन अपने बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करते हुए दिल से योगदान करें।
क्यों की सच है कि हर पुरुष की सफलता के पीछे नारी का बड़ा योगदान होता है!
जब हम समाज की बहनें और बेटीया दिल से भाइयो और पुत्रों के साथ चलते हुए समाज के पुनर्निर्माण में सहयोग 365 दिन सजग प्रहरी की तरह करेंगे तो “पुरुष प्रधान समाज” को हम सहयोग देकर”नवसमाज”निर्माण में नारी की उपयोगिता सिद्ध कर सकेंगे।

गुरूर है मुझे कि मैं नारी हूँ

Poonam Jyoti/Patna
Poonam Jyoti
Poonam Jyoti/Patna

गुरूर है मुझे मैं नारी हूँ
भगवान की संरचना में शामिल ।
एक ख़ूबसूरत फूल हूँ
सभी के आँगन में , शामिल ।😊😊
रख़ती हूँ सबका खयाल ,
न आए किसी पर आँच
सबको खुशियाँ बाँटना चाहती हूँ
जो कमल के समान ,
सबके आँगन में खिलती हूँ । 🙂🙂
मैं कोई काँटा नहीं ,
जो किसी को चोट लगा दूँ ।
मैं कोई विष नहीं ,
जो नफ़रत फैला दूँ ।😀😀
मैं तो बस इस संसार का ,
ख़ूबसूरत फूल हूँ ,
जो इस संसार को ,
आनंदित करना चाहती हूँ ।
गुरूर है मुझे कि मैं नारी हूँ ।😃

अगर बेटों को यह बताया जायें कि बेटा-बेटी में कोई भेद नहीं, उसे अपने घर से हीं महिलाओं का सम्मान करना सीखाया जाएं तो इस समस्या पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है

सरिता शर्मा/ Muzaffarpur
Sarita Muz
सरिता शर्मा/ Muzaffarpur

महिलाएं ईश्वर की सबसे खूबसूरत और सशक्त रचना है। महिलाओं के प्रति प्रेम, प्रशंसा और सम्मान प्रदर्शित करने के लिए हर साल की भांति इस साल भी 8 मार्च को हम सभी “महिला दिवस”मना रहें हैं। मेरी नजर में नारी तो अपने आप में संपूर्ण है। फिर भी महिलाओं के लिए खास दिन की आवश्यकता यह दर्शाता है कि समाज में असमानता मौजूद है, क्योंकि हम सब “पुरुष दिवस” नहीं मनाते हैं। हमारे बीच लिंगभेद न हो और सभी को समानता का अहसास हो, तो “महिला दिवस”मनाने की आवश्यकता हीं नहीं पड़ेगी।

मेरा मानना है कि किसी भी बदलाव की शुरुआत अपने घर से होती है, क्योंकि यह सामाजिक से ज्यादा घरेलू परेशानी है। महिलाएं आदर, प्यार और सम्मान की भूखी होती हैं, ओहदे की नहीं। बच्चों की परवरिश में मां की भूमिका अहम होती है।प्राय: देखा जाता है कि भाई बहन को कुछ कह देता है तो कोई बात नहीं, लेकिन वहीं बात अगर बहन भाई को कह दें तो तुरंत उसे “दुसरे के घर” जाना है कहकर चुप करा दिया जाता हैं। जबकि लड़के को भी दूसरी लड़की को अपने घर में लाना होता है।घर में ही दोयम दर्जे का व्यवहार, आखिर क्यों? लड़के-लड़कियों से जुड़े मूलभूत विभेद यहीं से शुरू होते है। बेटियां तभी सशक्त होंगी जब परिवार विशेष कर माता-पिता का मजबूत समर्थन और सहयोग मिलेगा। घर में बच्चों के बीच भेदभाव करने से उनकी सोच और विचार दोनों प्रभावित होती हैं। अगर बेटों को यह बताया जायें कि बेटा-बेटी में कोई भेद नहीं, उसे अपने घर से हीं महिलाओं का सम्मान करना सीखाया जाएं तो इस समस्या पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है।
हालांकि अब महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। बदलाव की बयार बहने लगी है।आज की महिला तो पुरुषों के लिए आरक्षित कहें जाने वाले क्षेत्रों में भी पहुंच गईं हैं।कहीं ये सेना में पुरुष सहकर्मी के साथ “फाइटर विमान”उड़ा रहीं हैं तो कहीं राजनीति में अपना परचम लहरा रहीं हैं।शिक्षण क्षेत्र तो जैसे महिलाओं के लिए ही बना है।इनकी प्रतिशत उपलब्धियां पुरुषों को पछाड़ रही है।कहा भी जाता है कि पुरुष से केवल एक परिवार शिक्षित होता है जबकि नारी की शिक्षा दो परिवारों को शिक्षित बनाती है।
आइयें, इस महिला दिवस के मौके पर हम सब बेटों की तरह बेटियों को भी उच्च शिक्षित करने पर बल दें, क्योंकि जब पुरुष और महिला दोनों अपनी पूर्ण क्षमता से योगदान देंगे, तभी एक सशक्त समाज के साथ-साथ एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण संभव है। सभी बड़ों को चरणस्पर्श करते हुए”होली”की भी अग्रीम बधाई एवं शुभकामनाएं।धन्यवाद।।।

हर मोड पर चुनौती है और हमे डटकर लड़ना है

Bharti Ranjan/Darbhanga
 
Bharti Ranjan Darbhanga
Bharti Ranjan/Darbhanga

बहुत खुशी होती है ये कहते हुए की आज महिला दिवस है. मगर क्या साल का एक दिन हमारे 363 दिनो के सच्चाई को छुपा सकता है??? जिस दिन हम स्वाभिमान और सम्मान से जीना शुरू कर देंगे उस दिन से हमारा दिवस शुरु हो जाएगा. हम आज भी शोषण की जिन्दगी जी रहे है. हर मोड पर चुनौती है और हमे डटकर लड़ना है.

दहेज की आग मे जलाइ जा रही हू,
बचपन मे ब्याही जा रही हु.
त्याग की मूर्ति हू फिर भी
जन्म लेने से पहले मारी जा रही हू.
अपराधी बनकर जी रही हू.
बाबुल का घर ,भाइ का प्यार खोई
नए रिस्ते मे,सपनो की मोती पिरोई
औरत होने का श्राप झेल रही हु.
बिन साँसो के जीए जा रही हु
मुझे भी जीना है आज़ादी के साथ
मेरे सपनो के रंगीले पंख है मेरे पास
मुझे उड़ना है आकाश की उंचाइओ मे
मत काट मेरे पंखो को मै उड़ना चाह रही हू.
मै भी इंसान हू यही कहना चाह रही हू.
Amita Sharma/Ranchi
सभी को International Women’s🚺Day !!!!की शुभकामनाएं।
नारी,,,शब्द’ अपने -आप में अनेकों अर्थ समेटे हुए।
माँ के रूप में, पत्नी के रूप में, बहन के रूप में, दादी,नानी,भाभी,मामी,चाची, बुआ,आंटी, हर रूप अलग छवि लिए हुए,।या यूँ कहिये हर एक किरदार को बखूबी निभाते हुए,चाहे गृहिणी रही हो या नौकरीपेशा।
कितनी भी बहुमंजिली इमारत हो,उसे टीके रहने के लिए मजबूत नींव की जरूरत होती है,वैसे ही हम औरतें एक पारिवार को बनाएं रखने के लिए नींव जितनी शक्ति रखती हैं।तभी तो सशक्तिकरण की पहचान कही जाती हैं।
निश्छल,शालीन,मृदुभाषी के साथ -साथ,कदम से कदम मिलकर चलने वाली सभी महिलाओं के साथ HAPPY WOMEN’S DAY!
-अमिता शर्मा

नारी में इतनी शक्ति है कि वो बना सकती है तो मिटा भी सकती है

राय अर्चना/गाजियाबाद
Roy Archana
राय अर्चना/गाजियाबाद

सर्वप्रथम तो महिला दिवस की सभी सुंदर सुगढ महिलाओं को बधाई, परंतु मेरे विचार से कोई एक दिन महिलाओं के लिये नहीं हो सकता !!
ज्यादा विस्तार में अपनी बात ना रखते हुए मैं यही कहना चाहुंगी कि नारी अपने आप में अनूठी, आज़ाद और शक्तिमयी रचना है, ये ईश्वर के बाद हम इंसान की रचना कार है पालनहार है अलग वजूद है हम नारी !!
नारी में इतनी शक्ति है कि वो बना सकती है तो मिटा भी सकती है मेरी मां कहा करती है “एक औरत कूअन(खराब) दाने को सुअन(साफ़ और सुंदर ) दाने में बदल सकती है मतलब यही कि एक औरत अपने घर समाज को अपने प्यार दुलार से सजा सकती है बसा सकती है वहीं दूसरी ओर बिगाड़ भी सकती है !! इसिलिये हम नारी को सुंदरता शालीनता का पर्याय बन अपने घरको समाज को सुंदर बनाने में अपनी उर्जा को लगाना चाहिये !
घर की,समाज की सभ्यता और संस्कृति को सुचारू और सही रुप में चलाने की जिम्मेदारी हम नारी पर ज्यादा है इसलिये हमारा फर्ज बनता है कि हम अपनी गरिमा बनाए रखें ताकि कोई भी हम पर किसी भी प्रकार से बुरी या टेढी नज़र डालने की सोच भी ना सके!!

ऊंचे ऊंचे पद पर बैठी, सम्मान की वो अधिकारी

Urmila Bhatt/Farurkhabad, UP
Urmila Bhatt
Urmila Bhatt/Farurkhabad

सजग, सचेत, सबल, समर्थ

आधुनिक युग की नारी है

मत मानो अब अबला उसको , सक्षम है बलधारी है

बीत गई वो कल की बेला

जीती थी वो घुट घुट कर

कुछ न कहती , सब कुछ सहती

पीती आंसू छुप छुप कर

आज बनी युग की निर्माता, हर बाधा उस से हारी है

चारदीवारी का हर बन्धन

तोड़ के बाहर आई है

घर, समाज और देश में उसने

अपनी जगह बनाई है

ऊंचे ऊंचे पद पर बैठी, सम्मान की वो अधिकारी है

मत समझो निर्बल बेबस,

लाचार आज की नारी है ,

नर की प्रबल प्रेरणा का

आधार आज की नारी है ,

स्नेह, प्रेम व ममता का

भन्डार आज की नारी है ,

हर जंग जीते शान से यह, अभियान अभी भी जारी है

Gunjan S. Tripathi/Allahabad

Gunjan S. Tripathi
Gunjan S. Tripathi/Allahabad

बेटी के रूप में जन्म लेकर जीवन आरंभ करने वाली नारी किसी की बहन, किसी की पत्नी, और किसी की माँ होती है |

इतिहास गवाह है कि भारतीय नारी पुरुष को प्रतिष्ठा और उपलब्धि के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ करने के लिए स्वयं को भी दाव पर लगा दिया करती है | नारी के इसी अभिनव व्यक्तित्व और कृतित्व को लक्ष्य कर कही गयी यह उक्ति एक सर्वमान्य सत्य बनकर स्थापित हो गई है कि प्रत्येक पुरुष के सफलता में एक स्त्री का हाथ होता है |भारतीय समाज में जहाँ पुरूषों को पौरुष, श्रम, कठोरता, बर्बरता और अधीरता का प्रतिमूर्ति माना गया है वही नारी को त्याग, दया, करुणा, ममता और धैर्य की प्रतिमूर्ति कहा जाता है।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने भी अपने प्रसिद्ध उपन्यास गोदान में यह उक्ति कही है कि “ पुरुष में नारी के गुण आ जाते है तो वह महात्मा बन जाता है लेकिन नारी में पुरुष के गुण आ जाते है तो वह कुलटा हो जाती है।
वर्तमान समय को अगर हम नारी उत्कर्ष की सदी कहे तो गलत नहीं होगा | आज की भारतीय नारी लगातार हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है | लेकिन अभी भी भारतीय नारी को अपना खोया हुआ आत्मसम्मान पाने में कुछ समय अवश्य लगेगा, परन्तु संभावनाएँ स्पष्ट है |
आज भारतीय नारी अनेक क्षेत्रों में आपने – अपने प्रयोजनों में कार्यरत हैं जिनमें शिक्षा, संस्कृति, कला, संपदा, प्रतिभा, कॉरपोरेट, media आदि है | अब यह इन सभी क्षेत्रों में अपना वर्चस्व सिद्ध करती जा रही है | आधुनिक नारी कुरीतियों की बेड़ियों से निकलकर अपने भाग्य की निर्माता स्वयं बन रही है और विधाता ने भी उसे मुक्तिदूत बनने का गरिमापूर्ण दायित्व सौप दिया है |
यथार्थ नारी की स्वीकृति को ही दर्शाते हुए जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी कामायनी में लिखा है –
नारी तुम केवल श्रध्दा हो, विश्वास रजत नग पद तल में/पीयूष स्रोत – सी बहा करों, जीवन के सुंदर समतल में ||
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हार्दिक बधाई…
पुरुषके सहचर्य के लिए स्त्री बहुत अनिवार्य, अकेला पुरुष अधूरा
निर्मला शर्मा/भदोही, यूपी
Nirmala Sharma
निर्मला शर्मा/भदोही

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष मनाने को आतुर है। लेकिन समस्याए ज्यो की त्यों सब फिर पहले ही जैसा आता जाता रहेगा ।सीमित दायरा से निकल कर अपने आप धरती से गगन तक अपना अधिकार सुरक्छित करने को आतुर। महत्वाकांछीनी पुरुषों के कंधे से कंधामिला कर चलने में समर्थ ।बेटी के रूपमे आज्ञाकी प्रतिमा बहन के रूप मे स्नेह की मूर्ति ,माँ के रूप ममता का आँचल ,पत्नी के रूप में सहानभूति और असीम प्यार की प्रेरणा और प्रेमिका के रूप में प्यार का सागर होती है। इनकी कोई सीमा नहीं होती, ये जब जब दया पे आती है तो अपना तन मन दे डालती हैऔर जब प्रतिशोध का ठान लेती है तो ज्वालामुखी बन कर नाश कर डालती है।

नारी पुरुष की आवश्यकता होती है पुरुषके सहचर्य के लिए स्त्री बहुत अनिवार्य है। अकेला पुरुष अधूरा है।फिर सशक्त पुरुष छोटी छोटी बातों की पहेली समझ कर उपेक्छित कर देता है।लेकिन जो सृजन करती हैIजो जनिनी है जो सदियों से शक्तिशाली रही है उसकी कोई अवहेलना कर भी कैसे सकता कोई।
हजारो रंग की चुनर ओढ़ी है उसके हर रंगों को अलग अलग पहचानना बड़ा कठिन है।फिर इतना हमारा समाज गलत क्यों सोचता है? रोज कुछ न कुछ गन्दी हरकते होतो है ।अकेली औरत अबला नहीं अपनी सुरक्छा खुद कर सकती है। चूरियापहनने वाले हाथो में तलवार भी थाजिसका गवाह इतिहास है ।कुछ सोच बदले कुछ खुद बदले कुछ खुद चले कुछ हमें भी चलने दे क्योकि हम सभी एक ही र राह के मुसाफिर है । उन महिलाओं को समर्पित जिन्होंने देश ,परिवर ,समाज का नाम रोशन किया है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई सभी को।
Bhavna Bhatt Sharma/Haryana
Bhavna Bhatt'
Bhavna Bhatt Sharma/Haryana

स्वरचित लाईने मन में आयी तो लिख दी ✒✒

कुछ खुशियाँ हैं कुछ हैं गम ,उमर बड़ी कि ज़िंदगी कम
ये बात समझ ना पाये हम !
महिला दिवस की शाम हैं ,पर अब तक खामोश हैं हम!
कारण बुझने बैठी तो दिमाग भी हो गया बेदम !!!
कहने को समान दर्जा हैं पत्नी का ,
लेकिन ये भी बदल जाता हैं जैसे कोई मौसम !!!!
बेटियां पसंद हैं पर बेटो से थोड़ी कम ????
दहेज़ ना लेंगे ना देंगे $$$$
पर ध्यान रहे शान ना हो जाये कम!!!!!!
मां प्यारी हैं पर …….. क्या करे हर बात तो बीवी की मान लेते हैं हम!
ये कुछ पंक्तिया हैं जो ब्यान करती हैं हर औरत का मन .

प्राचीन काल में महिलाओं को हर क्षेत्र में आजादी थी

संगीता राय/पूर्णिया
Sangita Purnia
संगीता राय/पूर्णिया

आज ‘विश्व महिला दिवस ‘है। सभी ओर महिलाओं को बधाईयाॅ देने की होड़ लगी है। पर हमारे देश में प्राचीन काल से ही कोई व्यक्ति विशेष के लिये दिवस मनाने की परम्परा नहीं रही है-यथा मातृ दिवस, पितृ दिवस भ्राता दिवस, मित्रता दिवस प्रेम दिवस महिला दिवस और न जाने कितने दिवस। पुरातन काल से ही हमारे देश की सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना और नैतिक मूल्य ऐसे रहे है कि हर दिन समानता का भाव रखता है।”सर्वजन हिताये और सर्वजन सुखाय” की भावना रही है।हमारे आर्यावर्त में महिला दिवस की आवश्यकता क्यों ? आदिकल से हम देखे तो हर युग और हर काल में महिलाएँ हर क्षेत्र में सक्षम रहीं है चाहे वो ज्ञान हो,साहित्य हो, युद्ध कौशल हो, बुद्धिमत्ता हो, दृढ़ इच्छा शक्ति हो। किसी भी मायने में वो पुरुषों से कम नहीं थी।

प्राचीन काल का स्वयंवर प्रथा इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। महिलाओं को हर क्षेत्र में आजादी थी। गुरूकुल में शिक्षा ग्रहण करती थी। रण कौशल में परांगत होती थी।हमारे देश में ऐसी महिलाओं के उदाहरणों की कमी नहीं है। सबों का जिक्र करना यहाँ संभव भी नहीं है। पर कुछ नाम ऐसे है जिन्हें हम आज भी भूल नहीं सकते है।वैदिक काल की लोपमुद्रा, घोषा, मैत्रेयी, गार्गी,भारती और न जाने कितनी ही।त्रेता की सीता को हम केवल एक आज्ञाकारिणी पत्नी के रूप की ही प्रशंसा करते है पर सीता एक दृढ़ इच्छाशक्ति से परिपूर्ण एवं कर्तव्यनिष्ठ नारी का उदाहरण थी। द्वापर युग की द्रौपदी भी अपने अधिकार से कभी समझौता नहीं किया और अपने अपमान का बदला ले कर रहीं।
हमलोगों को सावित्री के बुद्धि कौशल्य और चतुराई को भी नहीं भूलना चाहिये । मीराबाई, लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, अहिल्या बाई होल्कर, सरोजनी नायडू, शकुंतला देवी और न जाने कितनी अनगिनत महिलाओं से हमारा देश भरा पड़ा है। हमारे देश पर विदेशी आक्रमण कई बार हुए है जिनकी वजह से हमारे देश में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन हुआ । वैसे समय में अपने देश की महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टिकोण से कुछ पाबंदियाॅ लगानी शुरू की गयी। तभी सें समाज में महिलाओं की स्थिति का ह्रास होना शुरू हुआ जो एक परंपरा बन गयी। परम्पराएॅ ज्यादा दिनों तक रहती है तो रूढि बन जाती है। पर अब स्थिति बदली, सोच बदली।बीच का समय गुजर गया। अब स्वयं को कमजोर न समझे। हम पहले भी सशक्त थे, आज भी है और कल भी रहेंगे ।
ईश्वर ने महिला एवं पुरुष की शारीरिक एवं मानसिक रचना इस प्रकार बनायी कि दोनों एक दूसरे के पूरक हो ना कि प्रतिस्पर्धी। ताकि समाज का विधटन ना हो और समाज सूचारू रूप से चलता रहे। 
कुदरती तौर पर जो गुण धर्म हमें मिला है हमें उससे गौरवान्वित होना चाहिए। हमें स्वयं को कमतर नहीं समझना है। हर दिन हमारी संस्कृति को समर्पित हो। आज की महिलाएॅ भी कितनी सक्षम है यह बतलाने की आवश्यकता नहीं है। स्वयं में  आत्मविश्वास हो तो कोई कमजोर नहीं हो सकता ।अतः आत्मशक्ति को जाग्रत करने की आवश्यकता मात्र है। हरदिन मानवीय मूल्यों का है।

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