मजबूरियां तेरी भी रही होंगी
माँगा था जिसे दुआओं में.
सजाया था जिसे सपनो में,
देखा था जिसे मन की आँखों से,
वो तुमही थे,हर कदम पे जिसका.
इंतजार था वो वक़्त के साथ.
चाहकर भी एक कदम ना चल सका,
वो भी तुम ही थे पर कुछ तो.
मजबूरियां तेरी भी रही होंगी,
वरना यूँ कोई बेवफा नहीं होता,
पर आज भी सजदे में तेरी सलामती की,
दुआ मांग ही लेती…
(कवयित्री अंजना गोरखपुर के एक निजी स्कूल में प्रिंसिपल हैं)