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अंतरजातीय शादी पर एक सामाजिक व्यक्ति की व्यथा Bihar Delhi India 

अंतरजातीय शादी पर एक सामाजिक व्यक्ति की व्यथा

भारी पछतावा होता था कि क्यों नहीं उच्च शिक्षा के दौरान ही इन बच्चों को समझा दिया कि परिवार को धोखा मत देना, शादी समाज में ही करना, समाज में एक से बढ़कर एक लड़कियाँ हैं। पर व्यस्त जीवन में यह कहने का कभी मौका ही नहीं मिला या कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं गया। उधर कॉलेज में इन बच्चों की दोस्ती प्रेम में तब्दील हो गई।

Deoarth
Written by देवरथ कुमार
ईश्वर की कृपा मुझ पर है कि अनेक लोग अपने दिल की बात मुझसे खुलकर करते हैं और सलाह भी माँगते हैं। मैं उनकी बातें पूरी तन्मयता से सुनता हूँ और उनकी निजी बातें अपने मन में ही रखता हूँ, कभी बाहर जाहिर नहीं करता हूँ। इसी क्रम में कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जो हमारे और आपके जीवन से जुड़े होते हैं जिसपर आप सबों का ध्यान लाने की कोशीश करता हूँ।
अभी हाल फिलहाल बिहार-झारखण्ड के एक प्रबुद्ध और वरिष्ठ व्यक्ति अपने इस खूबसूरत ग्रुप से जुड़े हैं। उन्हें अपना ग्रुप और इसमे होने वाली सामाजिक चर्चा बहुत पसंद आ रही है। उन्होंने अपने मन की व्यथा मुझे बताई है। चूँकि उनकी व्यथा निजी न होकर सामाजिक है और कल हममें से किसी के साथ भी वो हालात पैदा हो सकता है, अतः उनकी अनुमति से, बिना उनका नाम लिए, उनका मुझे भेजा गया सन्देश आप सबों के सामने रख रहा हूँ। कृपया आप सब इस पर मन्थन कीजिये और खुलकर अपने विचार लिखिए। ये भी देखिये कि कहीं हम भी तो उनकी व्यथा से जुड़े हुए तो महसूस नहीं कर रहे हैं। निवेदन है की कोई भी व्यक्ति कृपा कर उन सज्जन का नाम मुझसे जानने की कोशीश न करें।
👇पत्र जो मुझे मिला👇
“बंधुवर देवरथ जी,
आपलोगों का ब्रह्मभट्टवर्ल्ड ग्रुप मुझे बहुंत पसंद आ रहा है। मैं भी बचपन से समाज के लिए जीता रहा। हमलोग मेहनत और पढ़ाई के बल पर गाँव से शहर पहुँच गए। चूंकि धनवान खानदान में जन्मे नहीं थे तो मैं दिन-रात एक कर अपने आप को स्थापित करने में लगा रहा और बहुत व्यस्त भी रहा। अपने गाँव और समाज से बहुत लगाव रहने के कारण जब भी कोई मिलने आया हमने उनका स्वागत किया, साथ भोजन किया और उनके सुख-दुःख में शामिल भी रहा। पर एक गलती होती चली गई। अपने बच्चों को हमने समाज के लोगों और रिश्तेदारों से मिलवाते रहने पर ध्यान नहीं दिया। बहुत विचार करने के बाद सोचा कि इस विषय पर आपसे चर्चा करूँ।
हमने दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। पर उनसे खुलकर बातचीत नहीं करता था। जब समाज के लोग उनकी शादी के लिए संपर्क करने लगे तो पता चला कि हमारे दोनों बच्चों ने उच्च शिक्षा के दौरान दूसरे समाज की लड़कियों से शादी करने का फैसला कर लिया है। हालाँकि दोनों बच्चों ने अच्छी लड़कियों को शादी के लिए चुना था। पर हम जाति और समाज में जीने वाले इंसान थे। हमारे लिए यह वज्रपात था। दोनों बच्चों को हमने मना कर दिया। पर घर में तनाव शुरू हो गया। घर परिवार की महिलाओं ने दखल देना शुरू कर दिया। फिर बुजुर्गों ने भी हस्तक्षेप किया। मैं रात दिन यह सोचता था कि हे भगवान, यह मेरे साथ क्या और क्यों हो गया। भारी पछतावा होता था कि क्यों नहीं उच्च शिक्षा के दौरान ही इन बच्चों को समझा दिया कि परिवार को धोखा मत देना, शादी समाज में ही करना, समाज में एक से बढ़कर एक लड़कियाँ हैं। पर व्यस्त जीवन में यह कहने का कभी मौका ही नहीं मिला या कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं गया। और उधर कॉलेज में इन बच्चों की दोस्ती प्रेम में तब्दील होती चली गई।
ये भी डर था की शादी से मना करने पर ये लड़के कहीं कोई गलत कदम न उठा लें? इस डर की एक वजह भी थी। उसी दौरान समाज के एक बिहारी लड़के ने प्रेम विवाह की इजाजत न मिलने पर आत्महत्या कर लिया था। घर की महिलाएं डर गई थीं और मुझपर भारी दवाब था। पर मैं तो सदमे में था। सोचा, लोग क्या कहेंगे? कारण यह था कि मैं हमेशा समाज में ही जीता आया था और समाज से बाहर की लड़कियों को अपनी बहू बनाने की सोच भी नहीं सकता था। मैं हमेशा अपने समाज की लड़कियों की तारीफ करता रहता था। और ईश्वर की लीला देखिये की हमारा ही दोनों बेटा समाज से अलग जाकर शादी कर रहा था। मैं हार गया और हमारे दोनों बच्चों ने अपनी-अपनी पसंद की लड़कियों से शादी कर ली। वे अपनी-अपनी जिन्दगी जीने लगे। किसी को इस बात का अहसास नहीं हुआ कि उन बेटों के बाप पर क्या बीती और उसे कितना दर्द हुआ?
इसके बाद शुरू हुआ खेल मुझे नीचा दिखाने का। रिश्तेदारों और पट्टीदार लोग मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते। घूम-घूमकर आरोप लगाने लगे कि इनके बच्चों ने तो कुजात में शादी कर ली। इनको भी समाज से निकालो। जो बाप समाज के सम्मेलनों और सभाओं में दरी-कुर्सी उठाता था, जिसके दरवाजे समाज के लोगों का बेरोकटोक आना जाना था, उसे लोग समाज से निकालने की बात कर रहे थे।
देवरथजी, बेटों की शादी के कारण बहुत अपमान सहना पड़ता है। बहुत पीड़ा होती है। स्वजातीय लोगों से बात करने की इच्छा नहीं होती। बच्चों के फैसले की सजा मुझे क्यों? मेरा मन तो अब भी समाज के लिए जीता-मरता है। मैं Brahmbhattwold पर आने वाले हर पोस्ट को पढ़ता हूँ, अच्छा भी लगता है, पर कोई comment नहीं करता हूँ। क्या मुझे समाज को अब छोड़ देना चाहिए और एकाकी जीवन जीना चाहिए? मेरी व्यथा समझिए। क्या करुं? आपकी सलाह चाहिए।
-एक अभागा सामाजिक पिता के दर्द भरे पत्र ने मुझे झकझोर कर रख दिया है। आप सब इस पर बेबाकी से अपनी राय रखें। नकारात्मक कमेंट करने से परहेज कीजिएगा।

Comments by Society ob Facebook :

हरिओम प्रासाद राय भट्ट: बहुत ही कम शब्दों में पैरेंट्स को बच्चे के किए की सजा भुगतना नही चाहिए, आजकल परिवार में बच्चों के उपर कम ही CONTROL रह पाते रहा है, लेकिन बच्चे अपने मौलिक अधिकार के अंतर्गत अगर अपने खुशी के लिए कोई निर्णय लेते हैं, तो बच्चे के साथ पैरेंट्स भी खुश रहे, और प्रयास से ये संभव भी नही है, पुरानी बात को भूलकर पैरेंट्स को चाहिए वो समाज में पहले के तरह सक्रिय रहे, अपने ग्रुप में काफी ऐसे लोग है जिनके रिश्तेदार या स्वयं भी अन्तर्जातीय शादी कर के ग्रुप या समाज में सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी को साझा कर रहे हैं, कौन उन्हें रोक रहा है, हिन भावना से बचने चाहिए.यह दौर ही खतरनाक मोड पर है, इस आधार पर कि कौन शादी कहा कर रहा है… “किसी को स्वीकार करना या नही, समाज के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, समाज में जुडे रहनी की पहल खुद करनी होती है, आप सक्रिय है तो आप को कोई सामाज आप को अपनाने से मना नहीं कर सकता है। सब आप पर ही निर्भर करता है
Pushp Kumar Maharaj: मुझे तो ऐसा कुछ गलत कहीं से नही लग रहा है…पराजित होना या हार जाना गलत नही है पर पराजय की मानसिकता में जीना गलत है जो हताशा को जन्म देती है आपने अपने बच्चों को ऐसा करने के लिये कभी प्रेरित तो नही किया…..बच्चों को पूरा हक है अपनी जिन्दगीं का फैसला स्वमं करने का.जिसकी. जबाब देही भी अब आप पर नही रहेगी……लोगों का क्या है लोगो का काम है कहना…अगर आप सामर्थवान है तो कोई कुछ नही कहेगा …..आज अगर सूरज डूब रहा है तो कल फिर उगेगा…..बच्चो बहू से उम्मीद करें ये समाज आपको कुछ नही देगा..सिवाय विरोधाभास बोलने के….
Bharti Ranjan: बच्चों ने शादी कऱके जितनी बड़ी गलती नही की उससे कही ज्यादा बड़ी गलती की अपने पिता को अकेले छोड़ दिया, और समाज मे इतना लचीलापन तो होना ही चाहिए की गलती किसी की और सजा किसी और को न मिले, अपनी सभ्यता और संस्कृति के साथ साथ थोड़ी आधुनिकता को भी स्वीकार करना ही चाहिए।मेरे विचार से अंतर्जातीय विवाह कोई पाप नही है मगर कोशीश माता पिता और बच्चों को करना चाहिए की विवाह अपने ही जाती में हो।
Pawan Ray: वेसै तो जाती व्यवस्था होना ही नहीं चाहीए । लेकिन हम ब्रह्मभट्ट गुरूप में अगर है तो यह जाती व्यवस्था ही है । आज समाज में हमे दोहरा शिक्षण मिलता है सिनेमा में हम जीस प्रेम प्रसंग को देख ताली बजाते है वही वास्तवीक जिवन में बुरा लगता है , रही बात बच्चों के सफलता पर जब हम ख़ुश होते है तो उनके दुारा किसी भी तरह का अपयस का तो भागी हमें ही बनना होगा । पर यह अब आम घटना हो गया है किसी के भी साथ हो सकता है , अभी चंद दिन पहले एक अपने जाती की लड़की बनीया जाती में शादी कर ली है ,पती का रेलवे में अच्छा जोब में है मेरी मुलाक़ात हुई तो में ज्यादा खुस नहीं हो पाया । सबसे बढ़ी बात मेरे ससुर जी ने मेरी एक साली का मैथील बर्ाहमन फोजी लड़के से शादी किया तो मैने कहा की आपने तो एक बेटी को अलग समाज में शादी कर दीया पर आपके बेटे के लिए भी तो कोइ दुसरे समाज का लड़की आनी चाहीए ? पर लड़के के टाइम फिर भट्ट समाज में ही बेटे की शादी हुई ।
सबसे बढ़ा सवाल की इस मुद्दे पर आप जो व्यवहार ऐसी घटना पर समाज में करते हो वही सुझाव और कोमेन्ट करें क्युकी यह भट्ट समाज को आने वाले वक़्त में आइना दिखाने का काम करेगा क्या हमे अलग – अलग हिन्दु समाज में शादी करने वाले जोड़ों के बच्चे से बिना भेद भाव का उनके यहाँ शादी करनी चाहीए ? हाँ या ना में ज़रूर जबाब दे
Anjana Sharma: आपकी बातो से लगा आप एक जिम्मेवार पिता होने का पूरा फर्ज निभाना चाए रही बच्चों की बात सवजाति में विवाह करते तो आपको खुसी होती पर बच्चे गलत नहीं आज कई पढ़े लिखे लोग अनतर्जातीये विवाह का समर्थन करते,,,,,.. इसमें समाज से अलग होने की बात नहीं आपका स्वागत है…
Guriya Sharma: आप अपनी जिंदगी जीये और बच्चों को अपनी जिने दे
Rupesh Kumar: अब जोड़िया तो ऊपर से ही बन के आती हैं। दुनिया जाती पाती से आगे बढ़ रही है समजतीय विवाह भी असफल होते है, कभी लड़के-लड़की में सामंजस्य की कमी तो कभी ससुराल वालों का दहेज प्रेम इसका कारण होता है। अपनी छोटी सी जिंदगी में हमने दोनो ही प्रकार के विवाहों को सफल औऱ असफल होते देखा हैं। कभी कभी तो मुंझे विवाह एक जुआ की तरह प्रतीत होता हैं, आपकी जीत ओर हार दोनो की बराबर की संभावना बनी होती हैं, जहाँ Neetu दी जाती बंधन को तोड़ कर भी सम्मानित ओर खुशहाल जिंदगी जी रही हैं वही इसी ब्राह्मभट्टवर्ल्ड पर कुछ स्वजातीय रिश्तों को भी हमने उलझते देखा हैं। हाँ इन सब से परे हमे सामाजिक होना चाहिए और लोगो से मिलने मिलाने का सिलसिला चलते रहना चाहिए। इस पुनीत कार्ये में ब्रह्मभट्टवर्ल्ड सराहनीय योगदान दे रहा हैं।
Rupesh Kumar: Pawanजी , मैंने ना अंतरजातीय विवाह का समर्थन किया हैं ना विरोध। मेरी खुद की शादी स्वजातीय हैं और ज्यादातर रिश्तेदारों के भी। फिर भी जीवनसाथी चुनने का अधिकार हर किसी को हैं और मैं इसमें किसी प्रकार के दखल के पक्ष में नही हूं
 
Abhishek Kumar: अब समय आ गया है कि जाति के बंधनों से मुक्त हो। हाँ हमे कोशिश करनी चाहिए कि समाज से जुड़े रहे ,लेकिन यदि कोई समाज से बाहर जाता है तो इसमें कोई बुराई की बात भी नही है।
 
Shanker Muni Rai: अंतर्जातीय विवाह एक सरकारी व्यवस्था है। हम इसकी आलोचना नहीं कर सकते। पर सामाजिक विवाह स्थाई मान्यता है । इसमें स्थायित्व ज्यादा है। हमें इसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए। सामान्य तौर पर अंतर्जातीय विवाह के नाम पर प्रेम विवाह ही हो रहे हैं। सामाजिक विवाह में भी प्रेम विवाह का प्रचलन होना चाहिए। जात कुजात की बातें सीमित दायरे में चल रही हैं।
 
Suman Rai: आज कल बड़े और छोटे शहरो में अंतर्जातीय विवाह का चलन तेजी से बढ़ रहा है ये सही है या गलत इसका आंकलन करना मुश्किल है । लेकिन इस तरह के विवाह में माता पिता को गलत ठहरना सही नही है । parents अपने बच्चों की खुशी के लिए उनकी बात मान जाते है । जिनके भी बच्चें इस तरह का विवाह कर रहे है वो माता पिता अपने को कम करके न आके । हमे कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे अपने समाज से ज़ुड़े रहे …..
 
Chandra Bhushan Mishra अगर अंतर जातिय विवाह के कारण आपने बच्चो से बात करना व मिलना जुलना छोड़ रखा हैं तो इसे ऊचित अवसर देख कर पुनह विना संकोच शुरू करें गलत सही का नि र्णय उपर वाले पर छोड़ देना चाहिये
 
Pramod Bramhbhatt: वैसे जीवन मरण हानि लाभ यश अपयश विधि हाथ माना जाता है। ब्राह्मण में जाति बहिष्कार नहीं होता अगर कोई कर रहा है तो करने वालों को ही जाति बहिष्कृत कर दीजिए। हमारे यहां आदिवासियों की तरह भात देने की प्रथा नहीं है।उन सज्जन से कहिए खुश रहें और आगे की जिंदगी खूब सामाजिक होकर बिताएं। गलती रामलाल की सजा श्यामलाल को नहीं दे सकता कोई।
 Ranjan Kumar आपको अपने समाज में सर उठाकर जीना चाहिए . मैं आपको बता दूँ की मैं भी आपकी तरह ही समाज के लिए सोंच रखता हूँ और कोशिश भी करता हूँ . अपने बच्चे को भी अच्छा पारबरीश देने का कोशिश भी कर रहा हूँ , रही बात शादी की तो ये बच्चों का मौलिक अधिकार है और सारे बच्चे इस अधिकार को बहुत अच्छे तरह से जानते हैं , रही बात समाज की तो आपका मेरे तरफ से स्वागत है . ये बात जग जाहिर है के अपने समाज में कुछ लोग हैं जो तिल को ताड़ बनाने में लगे रहतें हैं और ये उनका दिनचर्या बन गयी है , हमें इन सबसे बचना चाहिए और समाज को मजबूत बनाने में सहयोग करना चाहिए .
Ssangeeta Tiwari: कोई भी माता पिता बच्चो को गलत नही सिखाता,वर्तमान समाज काफी आगे जा चुका है,,,इसलिए जो लोग किसी बात को दिल से लगा लेते है दुखी रहते है,,,बच्चे के अन्य जाति से विवाह करने के लिए पिता दोषी नही है,,,,उन्हें भी समाज मे बराबर का हकदार बनने का हक है,,,,किसी से कम न समझे,,,,और सम्मान से रहे,,,व्यथित न हो,,,
कोई भी व्यक्ति अपने बच्चो की शादी स्वेच्छा से दूसरी जाति में नही करना चाहता,लेकिन परिस्थितियों के कारण मजबूर हो जाता है ,होगा वही जो बच्चे चाहेंगे,,,माता पिता को उपेक्षित करके जब बच्चा शादी अन्य विरादरी मे शादी करने पर आमादा हो जाये तो माता पिता की मजबूरी बन जाती है कि अपनी सहमति और आशीर्वाद दे,,,,ज्यादातर अंतरजातीय विवाह प्रेम विवाह ही है।
Amit Sharma ये जाती की बंदिश टूट रही है समय के साथ चले पर इस रेस मे ध्यान रहे माता पिता न छुटे हर मॉ पिता की खुशी औलाद है… आखिर सब कुछ हम उन्ही के लिए करते है सही सलाह और सही संस्कार है तो मुझे लगता है कि कोई औलाद ऐसा कोयी काम नही करेगा जिससे मॉ बाप शर्मिंदां हो….
Suman Rai ये सही है ज्यादातर अंतरजातीय विवाह प्रेम विवाह ही है
Kiran Singh विवाह ईश्वर के द्वारा रचित विधान है यह मानकर अपने बच्चों का साथ दे हताशा और खुद को अपमानित. महसूस करके आप परिवार से भी कट जायेंगे जब परिवार सुखी होगा तो समाज भी अच्छा लगेगा
 
Sarita Sharma वैसे तो लगभग सभी इंसान स्वयं को सामाजिक और व्यवहारिक समझता है। पर,मेरी नजर में सही मायने में वही इंसान बड़ाई का सच्चा हकदार जब आपकी तारीफ दुश्मन भी करने पर मजबूर हो जाएं। मैं भी इस बात को मानती हूं कि जीवन साथी चुनने का हक हर लड़का-लड़की को मिलना चाहिए।लेकिन किसी को रुलाकर नहीं, विशेष कर माता-पिता को।दुनिया के किसी भी संतान को अपनी खुशी के लिए अपने माता-पिता को जीवन भर का कष्ट देने का कोई हक नहीं है।
Priyanka Roy दूसरे समाज के साथ-साथ हमारे समाज में भी अंतर्जातीय विवाह का प्रचलन बढ़ा हैं। और यहाँ भी इस विवाह के सकारात्मक व् नकारात्मक दो पहलु हैं। उपर्युक्त पोस्ट में जिन सज्जन का अनुभव है। शायद, अधिकांशत सभी अंतर्जातीय विवाह करने वाले घरों की व्यथा हैं।
Amita Sharma पिता के साथ व्यवहार कैसा करना चाहिए,ये तो सवाल ही नहीं उठाना चाहिए। पिता ने क्या किया किया है?उन्होंने भी अपनी तरफ से अच्छे संस्कारो के साथ अपने बेटे का पालन-पोषण किया होगा।ये तो संयोग की बात है।जोड़ियाँ तो ऊपर वाला ही बनाकर भेजता है,इसमे हम मनुष्य क्या कर सकते है।हर एक समाज में अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं,कुछ काम आने लायक और कुछ ऊँगली उठाने वाले। खुश रहकर आने वाले हर पल का स्वागत करना चाहिए।
Urmila Bhatt पहले तो मैं इन सज्जन की सच्चाई की तारीफ करूँगी।इन्होंने अपनी गलती भी स्वीकारी है कि गाँव से शहर तक के सफर में और बच्चों की परवरिश में बच्चों को समाज और रिश्तेदारों से दूर रखा।
अपने समाज से जुड़े रहें उनके हर दुख सुख में शामिल रहें। मैं पूछना चाहती हूँ कौन सा समाज ,,,,,,,,,जो लोग समाज की फिक्र करते हैं। समाज ऐसे लोगों को ही नीचा दिखाने और ताना मारने में लगे रहते हैं,,,,,, जिन्होंने समाज की परवाह करनी छोड़ दी वो बहुत ही सकून और चैन की जिंदगी जी रहे हैं।
Tripurari Roy Brahmbhatta आज के दिन बड़ा ही समीचीन मुद्दा को उठाया गया है । सबसे पहले तो देवव्रत जी से अनुरोध है कि जो भी शख्स आपसे इस आपबीती को साझा किया है उन्हें सांत्वना देने की जरूरत है । बच्चों के द्वारा किये गए अंर्तजातीय विवाह के लिए पिता को दोष देना या समाज से बहिष्कृत करना तुगलकी फरमान से कम नहीं है । मैं क्या हूँ और मेरे बच्चे भविष्य में क्या चुनेंगे इसकी कोई गारंटी-वारंटी नहीं है । हर माँ – बाप अपने बच्चों के लिए सही रास्ता ही चुनते हैं । बच्चे इस बात को काफी देर से समझ पाते हैं । जो माता-पिता समाज से दूर रहते हैं वे अपने बच्चों को समाज से दूर कर देते हैं । चाहे जो भी परिस्थिति रही हो अगर माँ-बाप अपनी जिंदगी पैसे कमाने के पीछे लगा देते हैं तो बच्चे भी छोटी-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बातों को पैसे से ही तोलते हैं । तभी वे अपने समाज से अलग हो जाते हैं ।
Geeta Bhatt: वाह वाह क्या बात है ये पोस्ट तो बहुत ही उम्दा विषय है ।इसमे मां पिता जी की गलती बिलकुल नही है ।होनी बहुत बलवान है हो कर ही रहती है ।कोई पिता मां नही चाहते कि उनकी संतान गलत रास्ते पर जाये परंतु आज के युग मे ज्यादातर मां पिता के रश्मो रिवाज से बच्चे बेखबर रहते है। रही बात समाज के उल्टा-सीधा बोलने की तो यह सदा से होता आ रहा है ।कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना ।आप ने इतनी सच्चाई से अपनी बात रक्खी है हमारा संघ धन बडे दिल वाला है संतान की गलती की सजा एक माँ पिता को क्यो? ये हरगिज नही होना चाहिए ।आपका संघ धन मे भव्य स्वागत है ।
 
Jyoti Kumari अंतर्जातीय विवाह करने वाले बच्चों के पिता के साथ समाज का रुख नरम होना चाहिए l ओर सामाज को साथ देंनl चाहिय
 
Rakesh Sharma: आदरणिय भाई जी, जिस किसी ने भी आप से अपनी यह बात शेयर की है उनके पाक भावना और बातों का मैं सलाम करता हूं कि जिस वेवाकी से आपने अपने मन की बात कही है वह केवल अकेले आपकी समस्या नहीं है ऐसे समस्याओं से लगभग हर समाज ग्रसित है. यह २१वीं सदी है जिसमें सबकी सोच एक जैसी नहीं है समय के साथ जिसने भी अपना सोच विकसित किया है वैसे लोग कभी भी आपसे और आपके विचार से व्यथित नहीं होगें परन्तु जो न कभी समाजिक रहे हैं और न ही उन्हें किसी समाज से लेना देना रहा है उनका सारा समय बुराई करने और ईष्या रखने में बिता है और बितता भी रहेगा। बच्चों की गलती कहें या उनकी खुशी उसके लिए केवल वे जवावदेह हैं न कि अभिभावक. प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चे को अवकात से बढकर अच्छी शिक्षा देता है तथा चाहता है की वह आगे बढे परन्तु जिस प्रकार पहले के लोग विवाह को संस्कार मानते थे जिसको करने की जिम्मेदारी अभिभावकों की होती थी आज २१वीं सदी में जिने वाले कुछ युवक अपनी विवाह को अपनी निजी जिंदगी समझते हैं जिसमें वे अभिभावकों से आशिर्वाद कि अपेक्षा तो जरूर रखते हैं परन्तु उनके दखलदांजी को वे पसंद नहीं करते हैं और इस स्थिति में समझदार अभिभावक अपने वसुलों से समझौता करने में ही अपनी भलाई समझता है.
आपकी यह बात भी सही है कि पढाई और बाल्यकाल से लेकर किशोर अवस्था तक अपने लोगों के बिच अपने बच्चों को न ले जाना तथा अपने संबंधियों से दुर रखना भी इस समस्या का बहुत बड़ा कारण है। बात यहाँ जो मुख्य है वह यह है कि आपने जो गलत फहमी पाल रखी है कि लोग हमारा पिठ पिछे शिकायत करते हैं या मैं समाज से कटा हुआ महसूस करता हूं यह आपका सोच बिल्कुल ही गलत है आप ऐसा कभी ना सोंचें. जो समाजिक है वह हर एक समाज के लिए समाजिक है और जो नहीं है वह अपने सगों का भी नहीं होता है. उसके बातों मे आकर अपना बहुमुल्य समय और उर्जा नष्ट नहीं करें.
मैं ब्राह्मण हूं और विवाह को संस्कार मानता हूं जो नियमानुसार होना चाहिए। लेकिन मैं अपना विचार किसी पर थोप नहीं सकता.
 
Anjana Sharma एक महत्व पूर्ण बात ये है की लोग हैसियत देख बोलते है जैसे किसी संपन्न ,,..परिवार के बच्चे अगर ये काम करते तो सोच,…वो आगे बढे है,,..वही कम माधयम वर्गिये या गरीब परिवार,,,,तो सोच जाती से छाँट दिया जाए ,,,.आप इन बातोँ से मतलब न रखे,….ये मेरा आँखों देखा अनुभव है,…
 
Gunjan S. Tripathi: बच्चों को प्रारंभ में ही बता देना चाहिए था कि विवाह अपने समाज मे ही करे परंतु अब जब बच्चों ने अपना जीवन साथी चुन लिया है तो इसे पहले उन्हें स्वयं प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करना होगा |समाज में इस समय अंतर्जातीय विवाह का प्रचलन बढ़ने से अब बहिष्कृत जैसी समस्या देखने को नहीं मिलती है बच्चों की खुशी से बढकर मातापिता के लिए कुछ नहीं है और समाज भी इस बात को स्वीकार कर रहा है, क्योंकि अंतर्जातीय विवाह किसी के भी परिवार मे हो सकता है,किस किस का बहिष्कार किया जायेगा |और इसके लिए स्वयं को समाज से दूर रखना गलत है|
 
Mukund Bhatt जो भी अविभावक जवानी में आपना ज़िवन ज़िते है बुडापा में उनके बच्चे आपना ज़िवन जीते है,
 
Pramod Bhatt : देवरथजी आपने एक बहुत ही रोचक विषय पर राय मांगी है और समाज के सभी सदस्य बड़ी बेवाकी से अपनी राय दे रहे हैं। सभी राय को पढ़कर मुझे ख़ुशी हो रही है की समाज के लोग कितनी अच्छी समझ रखते है।
देवरतजी ब्यक्ति से समाज बनता है न की समाज से ब्यक्ति। आपको अपने अंगो पर अपनी इन्द्रियों पर कंट्रोल नहीं है तो अपने क्वालिफाइड एडुकेटेड बच्चों की इच्छा एवम् मनसा पर कैसे कण्ट्रोल हो सकता है? फिर बच्चों के अपने सोची समझी निर्णय के लिए पेरेंट्स कैसे दोसी हो सकते हैं? और पेरेंट्स को सबडुएड रहने ही आवश्यकता क्यों है?
caste & intercaste marriage अब बहस का मुदा नहीं है। और ना किसी को पूछना चाहिए की आपने caste मे शादी किया या…। ब्रह्मभटवर्ल्ड मे हुका- पानी बंद करने की बात कहाँ से आई?
We should think globally please. My brother In-law got liver plant 4 years ago in Delhi and none from our caste nor our family members donated liver but the husband of my Bhanji donated liver to my brother In-law who doesn’t belong to my SAMAJ, my hero my angel Ramesh Singh. अंग दान कर रमेश ने हमलोगों को जीवन भर का ऋणि बना दिया।
Moral–Prove yourself, become a trend setter, nver care for others view, think of urs feeling,family n wellbeings.
“खुदी को कर बुलंद ईतना की हर तक़रीर के पीछे खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है?”
सो भाई साहब xyz प्लीज बाहर आएं और समाज के लोगों से मिलें, समाज मे मिलने का अपना मज़ा है। यदि कोई न मिले तो मुझे +91 9334343439 पर फ़ोन करें ज़िन्दगी बहुत छोटी है और काम बहुत है करना। देवरतजी बहुत बहुत धन्यवाद।
Vijay Kumar: आज के परिवेस में अगर कोई भाई कहे की हमारा लड़का या लड़की अपने जाती में ही शादी करेगा यह जरुरी नही है। पुत्र /पुत्री मोह के आगे माता पिता मजबूर है इसलिय अब हिन् भावना से ग्रसित होने की जरुरत नही है। सहर्ष स्वीकार करे एवं खुशहाल रहे। कम से कम अब बेटा या बेटी  मां या बाप से कुछ कहने लायक तो नही रहा। शादी विवाह किससे होगा यह तो पहले से निश्चित है।
Tadak Nath Bhatt: हम आज भी देख रहे हैं कि एक ब्राह्मण दूसरे जाति के ब्राह्मणों के साथ बैठकर भोजन भी नहीं करता वैवाहिक सम्बन्ध की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती और हमलोग अन्य जातियों के साथ संबंध करने की सामाजिक अनुमति की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं।दुर्घटनायें हर समाज में सम्भव है परन्तु उसे स्वीकारने का अर्थ उसे प्रोत्साहन देना जो कि एक समाज के लिये कभी भला नहीं करेगा।
Vijay Kumar: आज के परिवेस में अगर कोई भाई कहे की हमारा लड़का या लड़की अपने जाती में ही शादी करेगा यह जरुरी नही है। पुत्र /पुत्री मोह के आगे माता पिता मजबूर है इसलिय अब हिन् भावना से ग्रसित होने की जरुरत नही है। सहर्ष स्वीकार करे एवं खुशहाल रहे। कम से कम अब बेटा या बेटी, मां या बाप से कुछ कहने लायक तो नही रहा। शादी विवाह किससे होगा यह तो पहले से निश्चित है।
Amit Sharma सबसे पहले तो धन्यवाद के पात्र देवरथ सर है जो इतने कठिन विषय को समाज मे प्रस्तुत किया और बधाई के पात्र है राकेश नंदन सर जो अपने दिल की बात को कहा… सच कहने के ज्जबे को सलाम… समाज मे बेटी हो या बेटा अंतरजातिय विवाह करने पर खामियाजा पिता को ही भुगतना पडता है यह सत्य है अगर यह मिथ्या होती तो OWNER KILLING नाम के शब्द का आविष्कार न होता है…. सवाल ये है कि समाज पिता को क्यू बहिष्कृत करे कोयी मतलब नही है बहिष्कृत करने का अगर लडका लडकी योग्य है और दोनो का भविष्य सुखमय दिख रहा है तो दुसरी जाती मे विवाह करने मे कोयी गलत नही है पर सिर्फ प्रेम लैला मजनू की बात न हो… दोनो योग्य हो और अपने दाम्पत्य जीवन को सही चला सके तो इस तरह का विवाह का विरोध गलत है… पर लडके का पूर्ण दायित्व हो कि जो पिता आपके लिए समाज से लड रहा है उसे तनहा न करे साथ बना रहे…. समाज को भी पुरे दिल से एसे परिवार को अपनाना चाहिए….. और एक बात दुसरी जाती मे विवाह करने के बाद परिवार की बात समाज मे कहना….हिम्मत की दाद देनी चाहिए नही तो समाज मे बहुत महानुभाव मिलेगे जो दुसरे के परिवार पे उँगलियाँ उठाने मे समय नही लगाते चाहे उनका परिवार कोयी भी कर्म किया हो….
Anil Sharma दुर्घटनायें कभी भी किसी के साथ भी घट शक्तीं हैं । इसका मतलब ये नहीं कि हम समाज से कट जाँय , यह एक पहलू है । दूसरा यदि हम स्वतंत्र ही हैं तो बिरादरी की आवश्यकता ही क्यों । यह भी सवाल बुरा नहीं है । ग्रुप में सभी आरणीय हैं । समय हर ज़ख़्म का मरमह है।
Mahendra Pratap Bhatt पिता को समाज के मंच सहभागी होना चाहिए। वे उस गलती, जो उन्होंने नहीं की, के लिए स्वयं को दोषी न समझें। इस घटना को लेकर यदि कोई उंगली उठाए तो उसका डटकर मुकाबला करें। यह हो सकता है कि शुरु में कोई साथ न दे। अपने मन से हीनभावना को निकाल फेंकें। मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
Rekha Rai मेरे ख्याल से तो समाज के इस बदलते हुए परिवेश में ऐसी शादियां अब आम बात हो गयीं हैं। ऐसी अंतरजातीय शादियां माता-पिता को स्वीकार करना ही पड़ रहा है क्योंकि कोई भी अपने बच्चे को समाज या जाति की वजह से छोड़ तो देगा नहीं।
रही अभिभावकों की बात तो इसमें माँ-बाप की कोई गलती नही है। पिता जी बिंदास होकर पहले की ही भाँति समाज के साथ रहिए। उंगली उठाने वालों को नजरअंदाज करिये और खुश रहिये। बुरे वक्त में आपका बेटा ही काम आएगा।
Amod Kumar Sharma आपने समाज में अपनी हिस्सेदारी निभाई , लोग क्या कहते है इसकी परवाह ना करे , समय तेजी से बदल रहा है . समाजिक कार्यो में योगदान देते रहें.
Rakesh Nandan बड़ी दुविधा में comment कर रहा हूँ। एक मन हुआ की पोस्ट को नज़रंदाज करे, फिर सोचा नहीं! अपने परिवार की भी कहानी बाटनी ज़रूरी है। कृपया judgemental हुए बिना पढ़ें!
मैं एक बहूत साधारण या यूँ कहिये ग़रीब परिवार का हूँ। अब स्थिति बदल गयी है, और मेरा ख़ानदान middle class कहा जा सकता है।
मेरे पिता पाँच भाई थे और वो सबसे छोटे! ४०-५० के दसक में पढ़ाई लिखायी का उतना प्रचलन नहीं था! पाँचो भाई में तीसरे नम्बर पर मेरे ताऊ जी पढ़ने में बहुत तेज़ थे और matric फ़र्स्ट डिविज़न से पास करने के बाद सेंट Xavier’s college स्कालर्शिप पर पढ़ने गए। मेरे पिता जब मिडल स्कूल पास हुए तो और पढ़ना चाहते थे। पर घर वालों ने कहा- सारे कुत्ते काशी जाएँगे तो हांडी कौन चाटेगा!!! याने खेती कौन देखेगा। पिता के मन में पढ़ने की लालसा थी, पर परिवार वालों का आदेश उन दिनो disobey करना आसान नहीं था। फिर क्या, मेरे मेधावी ताऊ जी ने छोटे भाई को पढ़ाने के लिए अपनी पढ़ायी छोड़ दी और रेल्वे में goods क्लर्क की नौकरी join करली। एक bright career का अंत भाई के लिए!
मेरे पिता Veterinary doctor बने, और अपने देहांत के समय Joint Director Animal Husbandry के पद पर थे। उन्हों ने हम दोनों भाई और भतीजों को अपने पास रहकर पढ़ाया। मैं Prince of Wales Royal Indian Military College, Dehradun, और मेरे छोटे भाई Neterhat में । मेरे पिता इतने सामाजिक आदमी थे की मेरे घर अपने समाज के लोगों का जमघट लगा रहता था! ग़ौर हो की उन दिनों आधुनिक सुख सुविधा जैसे गैस, फ़्रिज आदि नहीं होता था। माताजी और बहन संगीता का वक़्त chai pani और अतिथि के भोजन में गुज़रता था! मेरी शादी तो समाज में हुई, पर मेरे छोटे भाई ने प्रेम विवाह किया। बात ८० के दसक की है जब ऐसा अपने जात में common नहीं था। पिता काफ़ी क्षुब्ध हुए, एक कुँवारी बेटी ब्याहने को बची थी! पर परिवार ने उन्हें सम्भाला और समाज ने भी बहिष्कार नहीं किया, शायद स्वार्थ का भी रिश्ता था। इस घटना के पाँच साल बाद cancer के वजह से मेरे पिता चल बसे। छोटी बहन Vinita Sharma के शादी के लिए मैं Binay ji (मेरे बहनोई) के पिता जी के पास रिश्ता ले कर गया और सर्वप्रथम अपने भाई के अंतर्जातिए विवाह बताया। मेरे पिता को वो भली भाँति जानते थे। पिता के पुण्य प्रताप से मुझे कोई परेशानी नहीं हुई और उस ज़माने में दहेज रहित विवाह हुआ। ना मेरे पिता का हूक्का पानी बंद हुआ ना हमारा। पीठ पीछे चाहे कोई जो बोले!
अब next generation पे आता हूँ। मेरे पुत्र और पुत्री दोनों का antarjatiya विवाह हुआ मेरे माँ, पत्नी और मेरे रज़ामन्दी से। मेरे ससुर जी जो समाज में प्रतिष्ठित ही नहीं बल्कि famous भी थे उन्होंने मुझे कहा भी की जाती में एक से एक लड़कियाँ वा लड़के मिलेंगे। मैंने उन्हें इतना ही कहा की मैं बच्चों की ख़ुशी को समाज के बलि नहीं चढ़ाऊँगा। उन्होंने भी इस issue पर कोई और pressure नहीं डाला। शादी से पहले मैं अपने गाँव गया और लोगों को दो टूक शब्दों में ईमानदारी से सब बताया! आपको आश्चर्य होगा की निकटतम रिश्तेदारों को छोड़कर क़रीब ३५ पारिवारिक नेओतहरि भी आए मेरे दोनों बच्चों की शादी में। मुझे इस बात की कोयी ग्लानि या पछतावा नहीं है। समाज support के लिए होता है ना की boycott के लिए! अगर समाज bycott करता है तो वो मेरा समाज हो ही नहीं सकता।
कहानी थोड़ी लम्बी है- क्षमा। ईमानदारी से लिखा अक्षरश सत्य।
विधुर हूँ, मेरी दोनो बेटियाँ, और दोनों बेटे मेरा इतना ख़याल रखते हैं की वर्णन नहि कर सकता।
पात्र:
तीसरे ताऊ: Late श्री K Tewari
मेरे पिता: Late डॉक्टर जगदीश्वर Narain शर्मा
मेरी माता: श्रीमती सरस्वती देवी
ससुर जी: Late डाक्टर सच्चिदानन्द राणा
मेरे अनुज: पुलिन बिहारी
पुत्र: प्रियांक नन्दन
बेटी: स्निग्धा नंदन
 Vinita Sharma मेरे विचार से हर लड़का लड़की को अपना जीवनसाथी चुनने का हक है।अगर समाज वहिष्कार करता है तो ऐसे समाज की क्या जरूरत ? मेरे बड़े भैया जेनरल राकेश नंदन जी ने पूरे परिवार की दास्तां बयान की है। यह सही है कि मेरे पिता कैंसर की बीमारी से ग्रसित होकर मेरे विवाह की चिंता लेकर इस दुनिया से चले गये ।उन्हें डर था कि जिसका भाई intercaste marriage किया हो उसे कौन अपनायेगा ।किंतु मैं नमन करती हूं अपने ससुर जी श्री हीरालाल शर्मा जी एवं अपनी सासू माता स्व रेशमा शर्मा जी का जिन्होनें खुले दिल से मुझे अपनाया। मेरी शादी एक प्रतिष्ठत एवं पढ़े लिखे परिवार में हुई। मेरे पति विनय शर्मा जी एनटीपीसी में उच्च पद आसीन है।आज 28साल विवाह के बीतने के बाद भी मुझे अपने पति ,ससुराल वाले ,सबंधियों से कभी भी मेरे भाई को लेकर ताना सुनने को नहीं मिला ।

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