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मौजूदा राजनीति में ब्राह्मण-भूमिहार कहां हैं ? Bihar India 

मौजूदा राजनीति में ब्राह्मण-भूमिहार कहां हैं ?

पूरे देश में महज 5 से 6 फीसदी ब्राह्मण-भूमिहार की आबादी राजनीति को नाथने का काम करती दिखती थी। लम्बे समय तक ऐसा होता दिखा। यह एक गलत परम्परा थी। किसी का वोट, राज किसी का। आखिर कब तक ऐसा चलता ? समय के चक्र में सब जमींदोज हो गए।

अखिलेश अखिल, वरिष्ठ पत्रकार/नई दिल्ली
Akhileshब्राह्मणवाद पराभव की ओर है। जैसी करनी वैसी भरनी। हर ओर से चुनौती और हर जगह निशाने पर। शायद मनु महाराज ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा। हजारों वर्ष पहले मनु महराज ने ब्राह्मणों की सत्ता को बरकरार रखने के लिए ना जाने कितने उपक्रम किये लेकिन विधि के विधान और प्रकृति के मिजाज को भला मनु महराज की कृति कैसे चुनौती दे सकती है? सबल तप प्रकृति ही है। जब ईश्वरीय विधान बदल सकता है तो फिर मानवीय विधान कैसे ना बदले ? और फिर कलयुग के क्या कहने ! कलयुग की शुरुआत में ही भगवान् कृष्ण ने सबकुछ बता तो दिया था। कर्म की महानता को भगवान् कृष्ण ने स्थापित तो किया था। लेकिन ब्राह्मण माने कहां ? मनु स्मृति में दर्ज बातों की ही जाप करते रहे, समाज को डराते रहे और बिना कर्म किये अपना तन-मन संतुष्ट करते रहे। लेकिन कब तक ? आज के वैज्ञानिक समय की समझ शायद मनु महाराज को नहीं रही होगी। तभी तो आज पूरा का पूरा ब्राह्मणवाद बिखर रहा है। खंडित हो रहा है ,पतन की तरफ गिरता दिख रहा है।
पिछले 25 वर्षों की राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें और कुकुरमुत्ते की तरह उग आये राजनीति दलों और उनके अधिकतर नेताओं का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि आजादी के बाद सबसे ज्यादा राजनीतिक हमले का शिकार ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद हुआ है। ब्राह्मणों की किसी ने नहीं गरिआया। ब्राह्मण विरोध के नाम पर किसने राजनीति नहीं की ? ऐसा होना भी चाहिए। इस ब्राह्मणवाद ने समाज को खंडित तो किया ही है । वर्ण, समुदाय, जाति और व्यवसाय को विभाजित करने में इस वाद का जोड़ नहीं। इस समुदाय ने अपने विवेक बुद्धि से जिस समाज का निर्माण किया उसी समाज ने इसे तिरस्कार भी किया। आखिर क्यों ? कारण बहुत सारे हो सकते हैं। लेकिन मूल तो यही है कि इस समुदाय ने समाज में वैमनस्यता फैलाई। कटुता बधाई। ऊंच-नीच का वातावरण पैदा किया। धर्म ग्रंथों की रचना कर उनमे ऐसे शब्दों का समावेश किया जो वैज्ञानिक दृष्टि से बेकार और द्रोह जैसा है। यह बात और है कि समाज को सुसंस्कृत ,शिक्षित करने और अपनी ज्ञान गंगा से दुनिया को चकित करने में इस वाद का कोई शानी नहीं रहा।
आजादी से पहले भी सबसे ज्यादा हमला ब्राह्मणवाद पर ही हुआ। बाबा साहब अंबेडकर की सामाजिक कृति हो या धार्मिक कृति, निशाने पर ब्राह्मणवाद ही रहा। आजादी के बाद जितनी राजनीतिक धाराएं बनी सबने ब्राह्मणवाद को गालियां दीं और अपनी राजनीति को धार दिया। मंडल के बाद तो मानो जैसे ब्राह्मणवाद के सीने पर मूंग दला जाने लगा जो आज भी जारी है। 
संसदीय राजनीति में कभी ब्राह्मणवाद की पैंतरेबाजी खूब होती थी। पूरे देश में महज 5 से 6 फीसदी ब्राह्मण-भूमिहार की आबादी राजनीति को नाथने का काम करती दिखती थी। लम्बे समय तक ऐसा होता दिखा। यह एक गलत परम्परा थी। किसी का वोट, राज किसी का। आखिर कब तक ऐसा चलता ? समय के चक्र में सब जमींदोज हो गए। ज़रा आँख उठाकर देख लीजिये ब्राह्मण का राज कहा है ? ब्राह्मण सत्ता किधर है। तभी तो कहा जा सकता है कि इस हालत का भान मनु महाराज को नहीं रहा होगा।
वर्तमान राजनीति में ब्राह्मण-भूमिहार कहां हैं ? इस समुदाय की राजनीति क्या है ? और क्या यह समुदाय किसी भी पार्टी की सरकार का नेतृत्व करने के काबिल है ? कदापि नहीं। राजनीतिक रूप से यह समुदाय अत्यंत कमजोर और निःसहाय है। पिछलगू समुदाय। वर्तमान राजनीति दलित -पिछड़ों की उभार की राजनीति है।आवादी उनकी है तो सत्ता भी उनकी ही होगी। जिस ब्राह्मणवाद ने जातीय खेल खेला वही जातीय खेल ब्राह्मणवाद को जमींदोज कर दिया।
भाजपा के अंतिम ब्राह्मण प्रधानमन्त्री अटल जी रहे तो कांग्रेस के अंतिम पीएम नरसिंहा राव रहे। अब ऐसा कभी नहीं हो सकता। यह ब्राह्मण समुदाय का अंतिम अभ्युदय काल था जिसकी संभावना अब कभी नहीं। जिन समुदायों को दबाकर, बाँट कर ब्राह्मणों ने राजनीतिक सत्ता पायी, अब संभव नहीं। अब वहा भी ज्ञान है, भगवान है और कुशल नेतृत्व क्षमता है। साथ ही विशाल आबादी और वोट बैंक भी। फिर ब्राह्मण कहां है ? केवल पिछलग्गू। एक मात्र वोटर। पहले अधिकाँश वोट पर आपका जातीय प्रभाव था अब आप निस्तेज हैं। किसी काबिल नहीं। नजर दौरा लीजिये आप लालू के साथ रहिये या मुलायम के साथ। आप अमित शाह के साथ रहिये या कांग्रेस के साथ। मायावती के साथ रहिये या फिर देश के अन्य पार्टियों के साथ। आप केवल वोट दे सकते हैं ,विधान सभा से लेकर संसद चुनाव जीत हार सकते हैं ,मंत्री संत्री बन सकते हैं ,जुगाड़ लगाकर अपना काम करा सकते हैं लेकिन शीर्ष नेतृत्व पर अब नहीं जा सकते। सच ये है कई दशकों से विरोध का सामना करते करते ब्राह्मण आज समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ा है। अपने पूर्वजों की करनी का फल भुगत रहा है।
ये तमाम बातें इसलिए कही जा रही है कि देश का बदलता मिजाज ब्राह्मणवाद को पूरी तरह से चुनौती दे रहा है। अभी हाल में हुए पटना नगर निगम चुनाव परिणाम आने के बाद ऐसा लगता है कि ब्राह्मणों की कमजोर पकड़ भी अब जाती रही। कुल 55 सीटों के परिणाम देखने से पता चलता है कि ब्राह्मण अब चुनाव नहीं जीत सकते। इस परिणाम में यादव 18 ,अगड़ी जाति 13 [जिनमे ब्राह्मण-भूमिहार एक भी नहीं ], कुर्मी-कोइरी 9, तेली बनिया 8, दलित 8 चंद्रवंशी 7, धानुक 3, नाई 3 और अति पिछड़ी जाति के 6 लोग विजयी हुए हैं। यह एक संकेत भर है। विधानसभा और संसदीय सीटों का आकलन करेंगे तो कुछ और सच्चाई सामने आएगी। इसलिए अपने गिरेवान में झांकने की जरुरत है।

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