जब नालंदा में दुनिया का पहला विश्वविद्यालय देखा
प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय की गौरवशाली भूमि पर कदम रखते ही अत्यंत आनंद की अनुभूति हुई। प्रवेश द्वार से ही पर्यावरण की हरियाली चारों ओर इस विश्वविद्यालय के भग्नावशेषों में भी जान डाल रही थी। अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में लाल ईंट पथरों से बना हुआ नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन दुनिया का संभवत: पहला विश्वविद्यालय था, जहां न सिर्फ देश के, बल्कि विदेशों से भी छात्र पढ़ने आते थे।
प्रियंका राय/पटना
गर्मी की छुट्टियाँ होते ही ज्यादातर बेटियों को अपने मायके की याद सताने लगती है। उनसे भी ज्यादा उनके बच्चों को ननिहाल जाने का ललक समाया होता है। तो, हर साल की तरह इस साल भी अपने मायके जाने का कार्यक्रम हमने भी तय किया। इसी बीच मेरे भैया-भाभी का पटना आना हुआ। फिर क्या…5 जून की अहले सुबह ही, हमने भीषण गर्मी से कुछ राहत मिले, इसलिये पटना से हजारीबाग के लिये रवाना हो गए।
प्रातः बेला में गर्मी से थोड़ी राहत थी।
हम सब अक्सर सड़क जाम में ना फंसने के डर से गया रूट से यातायात करना बेहतर समझते हैं। इसलिये, मन में महात्मा गौतम बुद्ध के दर्शन का विचार आया और मैंने अपने भैया को ‘बोध गया’ के भ्रमण की इक्छा जाहिर की। पर, बाईपास आते ही गया वाले मार्ग में पहले से ही लम्बा जाम देखकर हम सबने इरादा बदल दिया और फोर लेन से बख्तियारपुर की तरफ हमारी कार निकल पड़ी।
रास्ते में संगीत का आंनद लेते हुए हमारी यात्रा चल रही थी। कार में “जॉनी मेरा नाम” फ़िल्म का गीत बज रहा था, ‘वादा तो निभाया’…. जो देव आनंद साहब और हेमा मालिनी जी पर फिल्माया एक बहुचर्चित गीत है। और विदित हो की इस गाने की शूटिंग प्राचीन नालन्दा विश्विद्यालय के खंडहरों में ही हुई थी।
अचानक भैया ने कहा: बोध गया तो नहीं जा सके पर हम सब सम्भवतः दुनिया के सबसे प्राचीनतम नालन्दा विश्वविद्यालय को तो जरूर देख सकते हैं। और साथ ही बगल में विराजमान ‘राजगीर’ का सुन्दर नज़ारा। बोध गया और राजगीर तो पहले से हमने देख रखा था। पर, प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक गौरव को कभी प्रत्यक्ष देखने का अवसर नही मिला था। फिर क्या समय- संयोग के सही मिलन से हम रास्ते में सुबह का नाश्ता करते हुए नालन्दा की ओर प्रस्थान कर लिये।
यकीनन, प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय की गौरवशाली भूमि पर कदम रखते ही अत्यंत आनंद की अनुभूति हुई। प्रवेश द्वार से ही पर्यावरण की हरियाली( “Come farward to preserve heritage”) चारों ओर इस विश्वविद्यालय के भग्नावशेषों में भी जान डाल रही थी। अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में लाल ईंट पथरों से बना हुआ नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन दुनिया का संभवत: पहला विश्वविद्यालय था, जहां न सिर्फ देश के, बल्कि विदेशों से भी छात्र पढ़ने आते थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 450 ई. में की थी। जो पटना से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित है।
इस महान विश्वविद्यालय की खोज एलेग्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था। इस विश्वविद्यालय में विभिन्न धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में यहां व्यतीत किया था। प्रसिद्ध ‘बौद्ध सारिपुत्र’ का जन्म यहीं पर हुआ था।
12वीं शताब्दी में तुर्क सनकी शासक बख्तियार ख़िलजी ने इस विश्विद्यालय को जलाकर नष्ट कर दिया। पर, अभी भी इसके भग्नावशेष इसके स्वर्णिम अतीत की गाथा सुनाते इसके वैभव का एहसास कराते हैं।
इस बीच दोपहर का समय होने के बाद भी मौसम अनुकूल था। ज्यादा धूप और गर्मी ने हमें परेशान नहीं किया। झारखण्ड में तेज बारिश का कुछ असर इधर भी देखने को मिला। इसलिये हम सबने इस ऐतिहासिक धरोहर में कुछ अच्छे पल भी बिताये।
यहाँ से निकलने के बाद हम राजगीर पहुंचे। पर, रोपवे से ऊपर जाने का समय 2 बजे का था और बच्चों को रोपवे पर अकेले बैठने की अनुमति ना पर्यटनीय स्थल की ओर से थी न हमारी ओर से, इसलिये हमने कुछ समय निचे ही बिताया और दोपहर का भोजन लेकर फिर हजारीबाग के लिये रवाना हो गए। राश्ते में पापा- माँ और बहन का फ़ोन हमारी प्रतीक्षा का प्रमाण पेश कर रहा था। हम सबके साथ बच्चों ने भी आनंद के खूबसूरत पल बिताये।
और अंतत.. हम अपने मंजिल तक सुरक्षित पहुँच गए जहां हजारीबाग का खूबसूरत और राहत पहुँचाने वाला मौसम मेरे अपनों के साथ खुले बाँहों से स्वागत करने को पहले से तैयार बैठा था।