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मददगार स्वजनों से छल मत कीजिए India Maharashtra 

मददगार स्वजनों से छल मत कीजिए

आइये हम सब मिलकर आत्ममंथन करें
Written by Deorath Kumar, *मेरे मन की बात- दूसरी और अंतिम क़िस्त*
 
आशा है, आप सबों ने मेरे लेख की पहली किस्त पढ़ ली होगी।मेरे मन मे ये विचार काफी दिनों से चल रहा था। मेरे लेख का मकसद बहुत स्पष्ट है, यदि हम 10 परिवार भी इस पोस्ट की वजह से अपने भीतर कुछ परिवर्तन ला सकें तो समाज में बदलाव जरूर आएगा। पहली किस्त से अब आगे
 
Deorath4. किसी से बहुत ज्यादा उम्मीद करना और उसके सर पर बैठ जाना: कुछ लोग अपने समाज के लिए सचमुच कुछ करना चाहते हैं , अपने लोगों की मदद करना चाहते हैं। पर हमारे लोग उनसे इतना ज्यादा उम्मीद पाल लेते हैं की मदद करने वाले का मन छोटा हो जाता है। उनकी सुविधा या असुविधा का ख्याल न करते हुए उन्हें परेशान और suffocate कर देते हैं। अगर आप किसी से मदद की उम्मीद रखते हैं तो उनसे पारदर्शी रहिये, उनसे छल मत कीजिए, उन्हें इतना मत परेशान कीजिए कि वो मदद करना बंद कर दें। किसी से भी Unrealistic Expectations मत रखिये। हालत यह है कि जो व्यक्ति किसी को अपने घर मे पनाह देता है लाभार्थी उसकी ही जड़ खोदने में लग जाते हैं। अपनी सीमा समझिए और कृतज्ञ बनिए। कुछ तो ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे मदद लेकर उसने मदद करने वाले पर ही एहसान कर दिया है।
5. एक दूसरे को नीचा दिखाने और निन्दा करने की प्रवृति: अगर कोई इंसान अपनी मेहनत से तरक्की कर रहा है तो हम उसका हौसला बढ़ाने की जगह उसकी खिल्ली उड़ाना, उसकी कमजोर नब्ज ढूंढ कर उसे नीचा दिखाने की कवायद शुरू कर देते हैं, जो बहुत ही दुखदाई है। उसके तीन पीढ़ी पहले अगर कोई घटना घटी होगी तो उसका हवाला देकर उसका मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं। खुद चाहे बेरोजगार हों पर जो आदमी मेहनत कर कमा खा रहा है, उसका उपहास उड़ाने से नहीं चूकते। तोहमत लगाएंगे ‘बड़ा आदमी’ बन गया है पर गाँव में आएगा तो कोई बैठने को कुर्सी भी नहीं देगा। अरे भाई कोई तरक्की कर रहा है तो उससे सीखो और आगे बढ़ो। वर्तमान को देखो। पर नहीं, झूठी शान में चूर हैं। हाथी तो रहा नहीं, पर हाथी का सिकड़ पकड़े हुए हैं। अरे भाई रखे रहिये आप अपनी कुर्सी अपने पास। नतीजा यह होता है कि जो शख्स औरों को रास्ता दिखा सकता था वो खुद को समाज से दूर कर लेता है, जिससे सबों का नुकसान होता है। अपने चार लोग इकट्ठे होंगे तो पाँचवें की निन्दा करने लगते हैं। निन्दा वाली जगह पर नकारात्मकता फैलती है, जिससे नुकसान ही नुकसान है। न किसी की निन्दा कीजिये न किसी की निन्दा सुनिए, इससे हमारे मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
 
6. किसी की तारीफ़ न करना न किसी की तारीफ़ सुनना: माफ़ कीजिएगा अपने लोगों का यह व्यवहार देख कर दुःख होता है। अगर कोई किसी भी क्षेत्र में अच्छा काम कर रहा है तो हम खुले दिल से उसकी तारीफ़ नहीं करते बल्कि उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं।और तो और हम किसी और की तारीफ़ सुनने में भी खुद को असहज महसूस करते हैं। अगर किसी की तारीफ किसी ने कर दी तो हमलोग तुरंत उसकी बखिया उधेड़ने लग जाते हैं। तारीफ़ के लायक बात है तो तारीफ़ करनी चाहिए, कर के देखिये आपको अच्छा लगेगा और आपके आसपास Positivity आएगी।
 
Thinkइस संदर्भ में मेरी आप सबों से एक बार फिर से गुजारिश है कि हम सब आत्म अवलोकन करें ताकि हमारा समाज वास्तव में तरक्की कर पाए। सिर्फ आर्थिक तरक्की से समाज नहीं विकसित होगा। हमें सोचना पड़ेगा कि जब हम जाति के नाम पर गाली सुनते हैं तो जाति के ही नाम पर एक क्यों नहीं होते। याद रखिये आने वाली पीढ़ी अपने समाज पर गर्व कर सके, इसकी जिम्मेवारी हम सबों पर है।
दोनों किस्तों में रखी मेरी बात पर आप सब अपनी राय खुलकर रखिये। यदि मेरी बात गलत लगे तो खुले मन से मेरे पोस्ट की जीभर के आलोचना भी कीजिए। पर एक निवेदन है कि एक बार दिल पर हाथ रख कर सोचियेगा कि हमें करना क्या चाहिए? (समाप्त)
Comments by BBW Members: 
Ram Sundar Dasaundhi: सबों को चाहिए कि जिन्हें जरूरत हो उन्हें आगे बढ़ने में यथासंभव सहयोग किया जाय।इसके लिए नेकी कर दरिया में डाल को ध्यान में रखना चाहिए।
 
Sarita Sharma: अपने समाज के लोगों की यही तो परेशानी है किसी के लिए करेंगे कम ढिंढोरा ज्यादा पीटेंगे। जब आप नेकी के बदले में अपने नाम का माला जपवा ही लिया तो फिर ये कैसी नेकी?
 
हरिओम प्रासाद राय भट्ट: ढिंढोरा नहीं पिटे तो नकारात्मक आकलन भी नही करना चाहिए। सच बोलने से करने वालों को एक सकारात्मक बल मिलता है, और अधिक करने की इच्छा जागृत होती है। ऐसे में लोग करते भी नही है, और करने वालों को करने से रोकते भी है जो कि किसी भी विकासशील समाज के लिए ठीक नहीं है।
 
Rewti Choudhary: आपका लेख पढा अच्छे विचार प्रस्तुत किए हैं ,यथार्थ हैं।अमल करें, हम सब।
 
Nalini Sharma: जितना निन्दा करने वाला पाप का भागी दार होता है निन्दा सुनने वाला भी भागीदार होता है। हमारे ब्राह्मण तो बानिया हो जा रहे हैं यानी कंजूस। ना खुल कर तारीफ करते हैं, ना खुल कर आशीर्वाद देते हैं। और जो करना चाहते हैं उनको जगहासायी का डर रहता है।
 
Ranjan Kumar: मेरे मन के हिसाब से आपकी दूसरी क़िस्त आलोचना का शिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि इसमें अच्छी सलाह है और मैं ये कह सकता हूँ की बहुत ऐसे लोग हैं अपने समाज में जो अच्छा कर रहें हैं या अच्छा करने की कोशिश कर रहें हैं उनमें से आप भी हैं और मैं पर्सनली आप से यही अपेक्षा रखता हूँ , क्योंकि आप मेरे लिए आदरनिये हैं।
 
Avanish Bhatt: अति उत्तम आलेख। देवरथ जी, आपके लेख का बिंदु संख्या (4) काफी हद तक सही है और इसके अनेकानेक उदाहरण देखने को मिलेंगे। बिंदु संख्या (6) भी काफी हद तक सही है। हां, कहीं कहीं लोग स्वतः अपनी इतनी तारीफ करने लगते हैं कि वह सामने वाले को खटकने लगते है और यही नहीं बार बार अपनी तारीफ करने से अच्छी से अच्छी शख्सियत अपना मोल (value) समाज की नज़रों में गिरा लेती है। और ऐसा करने से उसके द्वारा किये गए तमाम अच्छे कृत्य पीछे छुप जाते हैं।
 
डा. अजय शर्मा: भाई जी बहुत ही अच्छे विचार हैं आपके….विचारणीय व आत्ममंथन योग्य हैं…ऐसा ही बातें हम भी आजीज आकर कटु शब्दों में पोस्ट किए थे…पेशेंस हमारे पास कम है..आपकी प्रस्तुति पेशेंस.के साथ है,जितेन्द्र भाई की वजह से धैर्य को बना रहा हूँ,अब आपके धैर्य से भी सीख मिल रही है…अच्छा कदम..सबसे सबको सीखना चाहिये..धन्यबाद !
 
Ranjana Roy: मैं पुनः अपनी बात दोहराना चाहूंगी ! देवरथ जी, आपकी प्रस्तुति और आकलन अच्छा है और काफी सदस्य आपके विचारों से सहमत भी हैं ! मेरा मानना है कि ऐसी कमियां समाज में शिक्षा और एक्स्पोज़र के कमी के कारण होती है !.बहरहाल, हमारा समाज भी बदल रहा है, इसमें कोई शक नहीं है। मैं इस मंच के सभी सदस्यों से आग्रह करूंगी कि आइए, हम सब मिलकर एक नए समाज की रूपरेखा तैयार करने में अपना योगदान करें ना कि एक दूसरे को नीचा दिखाने और अपने को बड़ा दिखाने में अपना वक्त जाया करें!!
 
Satyendra Sharma: I am thankful to you for your kind views .. very rightly you mentioned that ..” ‘मेरा मानना है कि ऐसी कमियां समाज में शिक्षा और एक्स्पोज़र के कमी के कारण होती है !”
 
Suman Rai: बहुत ही अच्छा लेख है आपका मकसद भी अच्छा है अगर कुछ भी लोग अपनेआप को बदल पाए तो समाज मे बदलाव जरूर आएगा ।हम आप की इस बात से बहुत सहमत है कि कृतज्ञ बनिये जो लोग अच्छा काम कर रहे है उन्हें परेशान मत करिए। अच्छा लेख …
 
Sanjeet Kumar: आपकी पहली और दूसरी क़िस्त दोनों पर अगर थोड़ा भी अमल किया जाय तो अपना समाज बहुत आगे बढ़ सकता है। आपका दोनों लेख समाज के लिए प्रेरणास्रोत है। आपका पुनः अभिनंदन…. धन्यवाद!
 
Diwakar Sharma Bhatt: देवरथ जी , आपकी दोनोँ किश्तें पढ़ी .जिन बिंदुओं पर आपने प्रकाश डाला बड़े महत्त्व पूर्ण है मैं आपसे इत्तेफाक रखता हूँ .यदि ईमानदारी से आत्मवलोकन कर नकारात्मक चीजों से छुटकारा पाने के लिए दृढसंकल्पित हुआ जाए तो निश्चित ही हम प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होंगे .ऐसा मेरा मानना है .हम खुद को बदल सकते है हमें बदलना होगा .विषय को सरल ,सौम्य ,स्वीकार्य भाषा में हम सब तक पहुंचाने के लिए आपका हृदय से आभार .
 
Srikant Ray: कुल मिला कर इतना ही कहना चाहूंगा कि अहंकार,उच्च – नीच की भावना और कृतघ्नता को भूल कर यदि आपसी सहयोग की भावना हमारे अंदर जागृत हो तो हमारा समाज बहुत आगे बढ़ सकता है।
 
Anju Sharma: बहुत अच्छा लेख है ।जो सहयोग करता है उसको प्रोत्साहित और सम्मान करना चाहिए ।
 
Brijbhushan Prasad: आप ने महत्वपूर्ण बिंदुओं के तरफ इसरा किया है सचमुच ये बुराई हम दस में आठ लोगों के पास है ही अगर ओ आठ भी अपने में सुधार लाने का प्रयास करे तो बदलाव जरूर आएगा।
 
Ssangeeta Tiwari: बात तो सोलह आने सच है,सारी दुनिया बदल गयी लेकिन हमारा समाज नही बदला, शायद बदलना भी नही चाहता,कोशिश करनी चाहिए कि बदलाव हो।
 
Anjana Sharma; देवरथ जी, बहुत सही और सटीक वर्णन किया है आपने,,,,,ये समाज है यहाँ सभी तरह के लोग है,…यदि समाज में कोई आगे बढ़ना चाहता है तो ,,..उन्हें प्रोत्साहित जरूर करना चाइए,,,,,आपकी बातो से ये स्पष्ट है कभी खुद को सही साबित करने के लिए एक दूसरे पे उँगली नही उठानी चाइए,,,,,एक सौहार्दपूर्ण रिश्ते की तहत,,…हम सब मिलजुल कर रहे,,,,,
 
Sanjeev Ray: सुंदर विचार का प्रस्तुति, बहुत खूब भैया।
 
Amita Sharma: देवरथ जी आपके लेख की दोनों किस्तें बहुत ही उम्दा लिखी हुई है,और हमारे आज के समाज की सच्चाई । बड़े सहज ढंग से आपने हमारे अंदर के हम को हमसे रूबरू कराया है।आपकी प्रस्तुति अनुकरणीय है।ऐसे ही विचार अगर सबके अंदर उतपन्न हो जाये ,तो अपने समाज का शायद एक अलग ही रंग दिखेगा, अगर आपसी सहयोग बना रहे।ऐसे लेख के लिए फिर से धन्यवाद।दुआ करती हूँ कि सभी लोग प्रेरित हो।
 
Navin Kr Roy: आपकी दूसरी किश्त भी पहली की तरह ही यथार्थ का चित्रण है। मुझे चौथे और पांचवे का निजी रूप से अनुभव है।मुझे अनुभव हुआ है कि जो लोग समाज के लिए कुछ करने को तत्पर रहे हैं,लोग उन पर समाज का काम,चाहे वो सामान्य परिस्थितियों में काफी कठिन ही क्यों न हो,करने का अत्यधिक दबाब देते रहे हैं।यही नही उक्त काम को करना या करवाना उनका कर्तव्य समझा गया है और यदि उस काम को करने में असफलता प्राप्त हुई तो उस व्यक्ति की आलोचना भी की गयी है।एक दूसरे को नीचा दिखाना तो सामान्य सी बात है।कोई श्रेष्ठ गाँव के हैं,तो कोई दुघरवा-चारघरवा गाँव का और इस आधार पर भी पूर्व में काफी भेदभाव देखा गया है।परंतु हाल के वर्षों में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में सभी जगहों का प्रतिनिधित्व होने से इस तरह के भेदभाव में काफी कमी आई है।संक्षेप में मैं यह कह सकता हूँ कि इस पोस्ट पर विवेचना या आलोचना के बजाए आत्ममंथन करना ज्यादा जरुरी है कि आखिर हम खुद किस श्रेणी में आते हैं।यदि ये सारी कमियां हमारे अंदर विद्यमान नही है,तो अति उत्तम और यदि है तो हमें उन कमियों को दूर करने का प्रयास करना है।
 
Satyendra Sharma: ओह्ह आपने दिल बात को यूँ लिखा कि मेरा दिल ही ले लिया। बहुत सधी हुयी बात आपने कही। कई वर्ष पहले समाज के एक सफल, मेहनती और बहुत ही बड़ी शख्शियत के मालिक एक महान व्यक्ति ने मुझे एक बात बोली थी। वो ये कि जब हम पैदा होते हैं तो पैदाइश के साथ ही हम पर तीन प्रकार के ऋण लेकर पैदा होते हैं।
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प्रथम ऋण : माता-पिता का ,
दूजा ऋण : इस धरती माँ ,,
तीजा ऋण : इस समाज का।
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बात अलग है कि हम इन ऋणों को कितना चुका पाएं , कैसे चुका पाएं या शायद ना चुका पाएं , पर हम इनको इग्नोर नहीं कर सकते। ये बात सच है कि अगर हम सब अपने अहंकार , अहम् का त्याग कर एक साथ एक दूसरे की हेल्प करने लगें तो निश्चय ही हमारा समाज बुलंदियों की नयी उचाइयां छुयेगा। हम सबको ये बात समझनी होगी कि हमारा वजूद हम सबसे ही है। अगर हम सब एक दूसरे की कमियां निकालने के बजाय एक दूसरे की अच्छाइयों को मात्र अमल में लाने लगें और खुले दिल से मदद लेने लगें और मदद करने वाले का वक़्त रहते एहतराम करने लगें तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो हमे आगे बढ़ने से रोक सके। बहुत ही प्रेरक है आपकी ये पोस्ट , और काफी संभावनाएं रखती हैं ऐसी पोस्ट। समाज की मनोवृति को बदलना भी एक सामाजिक कार्य है।
 
Sarita Sharma: आपकी दोनों किश्तों को पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि इतनी बारीकी से सामाजिक आकलन वहीं कर सकता है जो अपने गाँव समाज के लोगों के संपर्क में बचपन से रहा है और उनकी बहुत इज्जत करता है।आप अपने समाज के प्रति समर्पित है। इसकी झलक मेरे साथ कई लोग पटना मंथन में देख चुके है। बहुत दुख होता है अपनी सामाजिक एकता को देखकर। अपना देश जाति के नाम पर बंट रहा है जबकि अपना समाज (ब्रह्मभट्ट) तरह – तरह-तरह के ग्रुप और सरनेम के नाम पर बंटता जा रहा है। सभी लोगों को इंद्रासन ही चाहिए। ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। बदलाव प्रकृति का नियम है अपना समाज भी एक दिन जरूर बदलेगा। बदलाव की बयार तो बहने भी लगी है।
 
Sangita Roy: वरथ जी मैंने आपके मन की बात की दोनों किश्तें पढी। अपने आलेख द्वारा आपने समाज के लोगों के विवेक को जागृत करने का अच्छा प्रयास किया है।अगर हमारा विवेक जागृत हो जाय तभी यह पोस्ट सार्थक हो पायेगा ।
आपके आलेख के क्रम संख्या (1) क्रम संख्या (4) और क्रम संख्या (5) से मैं पूर्णरूपेण सहमत हूँ। पर साथ ही मैं यह भी कहना चाहूँगी कि समाज-सेवा एक  भावना है जो हर व्यक्ति में नहीं होता ।समाज के सर्वांगीण विकास के लिये अपने-अपने स्तर से सहयोग किया जा सकता है। चाहे वो सामाजिक सहयोग हो,भावनात्मक सहयोग हो या आर्थिक ।यह व्यक्ति -विशेष की क्षमता और रूचि पर निर्भर करता है। हमारे समाज में बहुत से ऐसे व्यक्ति मिलेंगे जिनकी आप निस्वार्थ भाव से किसी भी प्रकार की मदद करते है तो वो “ऊॅगली पकड़ते पकड़ते पहुंचा पकड़ना” वाले कहावत को चरितार्थ करते नजर आयेंगे। कुछ व्यक्ति तो ऐसे भी मिलते है जिनकी आप कोई भी मदद करते है तो वह आपका शुक्रगुजार होने की बजाय यह सोचते है कि मैने तो इसे बेवकूफ बना दिया ।यह मेरा अपना अनुभव है। हर व्यक्ति का अपना अलग अनुभव होता है और उसी से उसे सीख भी मिलती है।फिर “दूध का जला मट्ठा भी फूंक कर पीने लगता है। आपका पोस्ट अच्छा है। मेरी नजर में आलोचनात्मक नहीं है।
Geeta Bhatt: देवरथजी, ये न कोई बात । मै किसी के हा मे हां कम मिलाते है ।जिसे जी जान से चाहते है उसकी ही हां मे हां करते है ये मेरी बहुत बड़ी कमजोरी कह ले या जो भी। यहाँ ऐसा कोई भी व्यक्ति ये नही कह सकता है कि उसको कुछ नहीं मिला ।सभी को कुछ न कुछ मिला ।क्या लोग इस ग्रुप से मालामाल लाटरी निकलवाना चाहते है ।हमे तो एक अनुभवी जगह मिली जहां नित नयी पोस्ट पढने को मिलती है ।हमेशा अपने को सुधारने का मौका मिलता है ।मुझे तो ये किसी सत्संग (सत्य का साथ ) से कम नही लगता।
सब के प्रश्न का समाधान होता है ।साथ ही मनोरंजक पोस्ट पढ़कर मन मुग्ध होता है ।परेशानिया किसी के जीवन मे कम नही होती है ।उसके बावजूद खाली समय का उपयोग करना भी हो जाता है ।और क्या चाहिए ।सबके परिवार का विवरण भी दर्ज है इस ग्रुप मे ।सभी एक दूसरे को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते रहते है ।हम और हमारे पतिदेव हमेशा सक्रिय रहते है ।रोज सुधार परिवार मे भी लाने की कोशिश करते है । प्रेरणा देने के लिए धन्यवाद ।उम्मीद है इसी तरह के पोस्ट एक दिन जरूर रंग लायेगी। लगे रहो मुन्ना भाई जी, और, हां मै बुटीक का काम भी करती थी पिछले कई वर्षो से। जब से इस ग्रुप से जुड़ी हूं ।आप लोगो की प्रेरणा से ही मेरा काम काफी अच्छा चल रहा ह । सभी लोगो को बहुत-बहुत धन्यवाद।
हरिओम प्रासाद राय भट्ट: सारे बाते बहुत ही वैलिड है, सत्य के करीब, हमेशा इन सब बातों से हम सब रूबरू हो रहे हैं, वास्तव में हम सब को आत्ममंथन करने की जरूरत है ताकि वास्तविक स्थिति में लौट सके।
Ashish Raj: आपकी #मेरे_मन_की_बात की दोनो किस्तें अपने समाज के समाजार्थिक विश्लेषण का यथार्थ चित्रण है | अपनी भावी पीढियों में सामाजिक चेतना व सकरात्मक सोंच विकसित करने के यदि हम वास्तव में गंभीर अभिलाषी हैं तो हमे निश्चित तौर पर अपने अंदर की नकरात्मक मनोवृतियों यथा- झूठी शान-घमंड, अहंकार, दिखावा, पर-निंदा आदि से मुक्त होना ही होगा तभी हम अपने पूर्वजों के गौरव-गाथा एवं आने वाली पीढ़ी पर गर्व कर सकते हैं |
इतने ओजपूर्ण बातों को लिखने के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं |
Priyanka Roy: पहली कड़ी और दूसरी कड़ी दोनों ही समानार्थक व् सार्थक भाव में जुडी हैं, और जिनका मकसद सिर्फ एक है आत्म अवलोकन। यहाँ बहुत सारे अनुभवी स्वजनों की राय पढ़ी और कई प्रतिक्रियां आनी बाकि भी हैं क्यूंकि ये मेरी, आपकी, हर किसी के मन की व्यथा है। सभी ऐसे अनुभव से होकर गुजरे हैं। चूँकि, मेरा अनुभव कई अनुभवी स्वजनों जैसा नही है। पर, बचपन से ही सामाजिक वातावरण में पली बढ़ी हूँ तो कुछ तथ्यों से जरूर अवगत हूँ। और आज भिन्न-भिन्न विचार के स्वजनों से रूबरू हूँ। जिसमें कुछ निराशा भी हाँथ लगी तो कई आशाएं भी बनी। अधिकांशतः सकरात्मक बातों को तवज्जों देती आई हूँ तो मेरी नज़र में भी कई ऐसे स्वजन हैं जो ब्रह्मभट्ट समाज के लिये मिशाल हैं जिन्होंने समय समय पर अपने विचारो और सहयोगों से सभी के बीच एक खास जगह बनाई है। और अब बारी हमारे स्वयं की है। आपको पुनः सभी के आत्मावलोकन को जागृत करने के आपके प्रयास को धन्यवाद। इसकी परिपक्वता अपरिपक्वता के आधार पर ही आचरण व व्यवहार का सुगढ़ या अनगढ़ होना बन पड़ता है। निज के सुन्दर व्यक्तित्व में ही प्रत्येक की अनन्यता निहित होती है।
Rakesh Sharma: सच में आपकी पहली और दुसरी, दोनों पोस्ट वास्तविकता से भरे पड़े हैं. मैं तो यही कहुंगा कबीर जी ने कहा है “पोथी पढी पढी जग मुआ, पंडीत भया ना कोई, ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडीत होय.” कहने का तात्पर्य यह है की हम कितना समझदार और कितना मददगार हैं यह अलग बात…See more
Amod Kumar Sharma: बहुत ही अच्छा सोच है। लोग इस पर आत्ममंथन करें । इससे समाज में बदलाव होगा ।
Mahendra Pratap Bhatt यह लेख लोगों के बारे में गहन अध्ययन की आपकी योग्यता दर्शाता है। जो लोग उपरोक्त बीमारी से ग्रसित हैं वे झुंझला कर फिर करवट बदल लेंगे। लेकिन और लोगों को इस तरह के लोगों की पहचान करने में आपका विचार फायदा पहुंचाएगा। आपको साधुवाद। लिखते रहें।
Amit Sharma: Deorath Kumar सर आपकी मन की बात का दूसरा खंड भी शानदार है… ये सच कि जरा सा कोयी अपनत्व दिखा दिया तो हम आशा उम्मीद कर बैठते है और जब टुटती तो वह तकलीफ देती है भई जरुरत क्या है आशा करना और अपनी वजह से दुसरे को परेशानी मे डालना. अगर हम यह सोचे कि इस हालात मे हमने कय्या सलूक किया दुसरे के साथ तो मुझे लगता है कि कई सवालात के जबाबो को तलाशना मुश्किल न होगा.
निदांरस बहुत आनन्द प्रदान करता है जो तरह तरह के बातो के साथ कही जाती है जनाब निदां के बजाय अगर हम थोडा सा सामने वाले की अच्छाई पे गौर फरमा ले तो अपने जीवन से कुछ बाधा का निवारण होना तय है. हमारा समाज Give and take के नियम पर ही चलता है तो अगर आप किसी के लिए दो शब्दों का उपयोग नहीं कर सकते तो आप कैसे आशा करेगे कि आपके भले के लिए कोई कुछ कहेगा.. थोडा सोच का तरिका बदले बहुत कुछ आसान हो जाएगा…
Jyoti Kumari: भाईयाजी, मैंने #आपके मन की बात# की दोनों किश्तें पढी।
अपने लेख द्वारा आपने समाज के लोगों के विवेक को जागृत करने का अच्छा प्रयास किया है।अगर हमारा विवेक जागृत हो जाय तभी यह पोस्ट सार्थक हो जlयागा, बहुत ही सुन्दर लेख के लिये आपका बहुत बहुत धन्याबाद ,अभार 👌👌💐
Alok Sharma: “आइये हम मिलकर आत्म मंथन करे” आपकी शीर्षक ही एक कठिन कार्य है।उनलोगों के लिए जिनके संदर्भ में आपने मनुष्य जीवन की सार ही लिख दिए है जिस पर अमल किया जाय तो ये मृतलोक ही स्वर्ग बन जायेगा।हम वादा करते है कि आपके मन की बात की दोनों भाग को अपने जीवन पालन करने की कोशिश करूंगा।चुकी आपने शीर्षक में कह दिया है आत्ममंथन जो कोई नही करना चाहता।क्योकि हमे तो लगता है हम तो अच्छे है,सारी बुराइया दुसरो में ही है।जबतक ये बात हमारे दिल से नही खत्म हो जाती हम आगे नही बढ़ सकते,क्योकि आत्ममंथन ही हमारे जीवन का मूल्यांकन है।आपकी लेख हमारे समाज की दशा और दिशा बदलने में मिल का पथर साबित होगा,अगर हम अपने जीवन मे आत्ममंथन की आदत डाल लें।
Abhishek Kumar: अच्छी सोच जागृत होती है ऐसे पोस्ट पढ़ने के बाद। धन्यबाद।

Rekha Rai: क्या बात है। ये आपके ही मन की बात नही है बल्कि लगभग सभी के मन की बात है।एक एक शब्द जैसे आस पास ही गुजरती हुई परिस्थितियां है।

4:उम्मीद पर खरा न उतरने पर लोग नजर से ही उतार देते है।हम सबको ये सीखना है कि यदि कोई जरूरत पर मेरी मदद कर रहा है तो हम उनका उपकार मानें न कि अगली बार मदद न मिलने पर आलोचना करें।
5: सही बात है हमे किसी के मेहनत करके तरक्की करने वाले को प्रोत्साहित करना है।न कि मजाक उड़ाना है। ढूढ़ ढूढ़ कर कमी न निकालें।न ही निंदा करें।क्योंकि इसका दुष्प्रभाव जल्द फैलता है।
6:जब कोई तारीफ के योग्य है और काबिल है तो अवश्य बेहिचक तारीफ करिये।कुछ ओछी प्रवृति के लोग होते है कि मानने को तैयार ही नही होते की सामने वाला इस योग्य है।क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति खुद को ही बादशाह समझे बैठा है।
सिर्फ थोड़ा सा दिमाग घुमाने की जरूरत है।दृष्टि बदलें तो सृष्टि सुंदर नजर आएगी।और हमें कोई wrong दिखेगा ही नही।
आपके लेख से हम सबको आत्मवलोकन करना चाहिए कि क्या हमने अपनी सोच में कुछ परिवर्तन लाया।या कल जहाँ थे आज भी वहीं है। वास्तव में positivity की बेहद आवश्यकता है हमारे जीवन मे।
Rakesh Nandan: देवरथ जी, बहुत अच्छा लिखा आपने। हमें हमारी कमियों का आइना दिखाया। पहली किश्त पर कॉमेंट कर चुका हूँ। हम सब इंसान है, कमियाँ तो कुछ होंगी ही। पर मसला यह है की हम उन कमज़ोरियों को अपने ऊपर कितना हावी होने देते है। आज के किश्त पर कॉमेंट लिखने से पहले सभी सदस्यों के कामेंट्स पढ़ा। एक भी ऐसा कॉमेंट नहीं मिला जिसमें आपके विचारों से पूर्णतया असहमत हो। याने हम सब सदस्य इन कमज़ोरियों से वाक़िफ़ हैं और पॉज़िटिव सोचते हैं। फिर तो आपके मन की बात की ज़रूरत ही नहीं होनी चाहिए थी!!!
ऊपर ग़लती से पोस्ट का icon दब गया! क़िस्सा अभी बाक़ी है😀😀 कहीं तो हम कमियाँ जानते हुए उसे नज़रंदाज कर रहे हैं। हमारे समाज की एक कमी है- ” मैं आपसे ज़्यादा होशियार हूँ”। 
दूसरे अगर मैं कोई असम्भव ना करूँ तो मैंने कुछ नहीं किया। वर्षों पहले की बात है अपने समाज के एक बालक को फ़ौज में भर्ती कराने की कोशिश की। वो ऊँचाई में २ cm कम निकला। कोई भर्ती नहीं करेगा। पर उसका कहना था की” कौना बात के साहेब बाड़”! उसके बाद मैंने उसे ऑफ़र किया की मैं तुम्हें पैसा देता हूँ, गाँव में कोई दुकान खोल लो, रोज़ी रोटी चल जाएगी। जवाब था पंडित के बेटा बनियागिरी करी। मन छोटा हो गया। कहने का तात्पर्य यह है की हमारे लोग एमपोवेरमेंट नहीं spoon feeding चाहते हैं। ख़ैर, बहुत कुछ लिखा जा सकता है, पर यही कह कर समाप्त करूँगा की आप लोग यंग हैं और समाज का दारोमदार आप लोगों के कंधे पर है। एक सीन्यर नागरिक के नाते यही कहूँगा- मछली पकड़ना सिखाइए कमज़ोर को ना की मछली मुफ़्त में दीजिए। एक बार फिर सभी को दर्पण दिखाने के लिए शुक्रिया।
Poonam Pandit: भईया, आपके दोनों ही पोस्ट प्रेरणादायक रहे। मैं इतनी अनुभवी नही हूं लेकिन जबसे इस Brahmbhatt group से जुडी हूं ।हमेशा कुछ नया सीख पा रही हूं।इसके लिये आप सब को सादर आभार..
Awadhesh Roy: देवरथ जी , किसी में बदलाव के लिए उस पर िवचारों की परिभाषा द्वारा थोपा नहीं जा सकता ा
हर आदमी अपनी अच्छाईयों या बुराईयों से अवगत रहता है ,परन्तु वह अपनी बुराईयों को मानने को कतई तैैयार होता | वह हमेशा यही सोचता है कि मैं ही सही हूँ , बाकी सब गलत|  अगर वह अपनी कमी को मान कर उसे दूर कर लेता हा तो यह उसके जीवन की सबसे उत्तम उपलब्धि होगी | इससे उसे अपने जीवन में पूर्ण संतु्षटि के साथ-साथ समाज में सम्मान भी मिलेगा|
Alok Sharma: बहुत उम्दा जीवन में अहम् के सच का सटीक वर्णन श्री देवरथ जी!यही व्यक्ति के वो लक्षण है जो उन्हें सामाजिक प्राणी होने के बाद भी व्यक्तिवादी और अकेला बना देता है!इंसानी जीवन में सबसे बड़ा सुख सामाजिक प्यार होता है जिसे पाने हेतु किसी धन की नहीं इन विचारो के त्याग की जरूरत होती है!यह सही है कि पूर्णतः इनसे दूर रहना सम्भव नहीं है किन्तु इनकी अधिकता को रोकना आसान हो सकता है!आपके दोनों पार्ट काबिले तारीफ़ है आपको दिल से आभार सर!
Ramesh Sharma:  “धन्यवाद” कहकर में इस यथार्त और पूर्ण सत्य स्वरूप लेख के महत्व को कम करना नही चाहता हूं। यह एक सिर्फ लेख नही अपितु हम सभी के जीवन के अभिन्न अंश हैं । हम सभी इसे हृदय की गहराइयों से पढ़े, और कुछ मात्र भी जीवन मे उतारे तो भाई देवरथ का यह लेख ब्रह्मभट्ट समुदाय के लिए सार्थक, भविष्य की धरोहर और आनेवाली पीढ़ी के लिये एक आदर्श साबित होगा, यह हमारा विश्वास है। अंत में एक अनुरोध, दोनो लेखों को preserve किया जाय, और आनेवाले सभी सम्मेलनों में कथारूप वर्णन किया जाय ।
Sharma Nirmala: बहुत सुंदर विश्लेषण हर छेत्र में आपने प्रकाश डाला है। आने वाले समय मे हम क्या दे कर जाएंगे अपने समाज घर परिवार बच्चे को ये हमे तय करना। लेकिन यह हमारा समाज कुछ अच्छा करने चलो तो आगे के बदले पीछे खिंचने में लगा रहता है । लेकिन जो अच्छाई की ठान लेते है सफल अवश्य होते है। आपको बहुत बहुत धन्यवाद ।आपकी दोनों किश्ते आईना है जो स्पस्ट दिखा रहा है ।बहुत सुंदर।लिखते रहे ।
J Shankar Sharma: सामाजिक व्यवहार का सरल, सूक्ष्म एवं सारगर्भित विश्लेषण सराहनीय है.
परन्तु यह भी सच है कि ये सारे कार्य अपने करीबी ही करते हैं. इसी से क्षुब्ध होकर लिखा गया था कि,
तुलसी वहाँ न जाइए जहां जनम कि ठांव, गुण अवगुण जाने नहीं,
धरै तुलसिया नाव.
Arundhati Sharma: आपके नेक विचार व् सही सुझाव सराहनीय हैं। मुख्य बात यह कि, जो व्यक्ति समय समय पर आत्म मंथन करेगा वही अपनी स्थिति तथा शक्ति को समझ पायेगा। अगर मनुष्य आत्ममंथन नहीं करेगा तो वह हमेशा ही अपनी स्थिति के पतन के भय से ग्रसित रहेगा।
Gunjan S. Tripathi: पूर्णतः सत्य है…..कई ऐसे कृतघ्न व्यक्ति है जो यह एहसास कराना चाहते है कि मदद ले कर मै ही आप पर एहसान कर रहा हूँ ,और सहायता करने वाले को ऐसा लगने लगता है कि नाहक मैने मदद की |व्यक्ति को कृतज्ञ बनना चाहिए, कोई भी व्यक्ति चाहे वो छोटी से छोटी मदद करे याद रखना चाहिए ,उसकी उदारता को उस व्यक्ति की कमजोरी नहीं मानना चाहिए, यही मानव गुण होना चाहिए |
निंदा की प्रवृत्ति व्यक्ति को आगे बढ़ने नही देती, हम अपनी ऊर्जा इसी मे खर्च करके स्वयं की ही हानि करते है |
दूसरे की तारीफ़ करके देखें सामनेवाले के चेहरे पर जो उस कारण प्रसन्नता दिखेगी ,अपने को उससे ज्यादा खुशी की अनुभूति होगी…

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