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इस पर विजय पा लें तो समाज बहुत आगे जाएगा: देवरथ India Maharashtra 

इस पर विजय पा लें तो समाज बहुत आगे जाएगा: देवरथ

मेरे मन की बात- पहली किश्त

अपने समाज के लोगों ने पिछले कई सालों में आर्थिक रूप से काफी तरक्की की है जो सर्वविदित है। पर कुछ बातें नकारात्मक हैं जो हमें सामाजिक और बौद्धिक रूप से प्रगति करने से रोक रही है। अगर हम इस पर विजय पा लें तो हमारा समाज सचमुच बहुत आगे जाएगा।

देवरथ कुमार/नवी मुंबई

Deorathबचपन से सामाजिक परिवेश में पलने-बढ़ने और अपने लोगों के बीच रहना मुझे पसन्द रहा है और आज भी अपने लोगों के बीच रहकर बहुत अच्छा महसूस करता हूँ। इसी क्रम में काफी अनुभव भी होते हैं। कुछ बातें हैं जो हमेशा कचोटती हैं। यह बात सत्य है कि हम सबों पर ईश्वर की कृपा है, अगर कोई एक भी स्वजन किसी भी क्षेत्र में हों, वहाँ अपनी प्रतिभा और व्यवहार से अपना एक स्थान बना रखे हैं, अपना नाम बना रखे हैं। अपने समाज के लोगों ने पिछले कई सालों में आर्थिक रूप से काफी तरक्की की है जो सर्वविदित है। पर कुछ बातें नकारात्मक हैं जो हमें सामाजिक और बौद्धिक रूप से प्रगति करने से रोक रही है। अगर हम इस पर विजय पा लें तो हमारा समाज सचमुच बहुत आगे जाएगा।
अपने अनुभव के आधार पर इन बातों को आप सबों के सामने किश्तों में रख रहा हूँ।
1.अहम् यानी EGO: हमलोगों में अपने लोगों से ही Ego बहुत ज्यादा है। चाहे लाख कोई स्वजन सही बात बोल रहा हो, उसकी बात सुनना और मानना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। ऐसा मानते हैं कि यदि हम किसी की बात मान लेंगे तो छोटा हो जायेंगे। याद रखिये वही व्यक्ति और समाज ने तरक्की की है जो नए विचारों को स्वीकार करता है। कृपया अपने अहम् यानी Ego को कम करें इससे आप और आपकी आने वाली पीढ़ी फायदे में रहेगी।
2. Inferiority Complex: माफ़ कीजियेगा, हममें से ज्यादातर लोग Inferiority Complex से ग्रसित हैं। आप याद कीजिये, कहीं भी अपने पाँच लोग इकट्ठे होंगे तो उसमे से दो लोग जरूर ऐसे मिलेंगे जो आपको ये बताते रहते हैं कि मैं ये हूँ मैं वो हूँ, मेरे पास इतनी property है, मैंने इधर तीर चलाया, उधर तलवार चलाया। गाँव में बड़ा सा घर बना दिए हैं, शहर में भी फ्लैट है, दो चार गाड़ी भी है, वगैरह वगैरह। ये और कुछ नहीं हीनभावना है। दरअसल हममें से ज्यादातर लोग गरीबी से निकलकर आये हैं, तो वो यही साबित करने में परेशान रहते हैं की अब हम गरीब नहीं रहे। खुद के बारे में बढ़ा चढ़ाकर बताते रहते हैं। अच्छे अच्छे लोगों में यह प्रवृति देखी है मैंने। अरे भाई आप जो हैं उसे बताने की क्या जरूरत है। हीरा कब कहे लाख टका मोरे मोल। कृपया इस मानसिकता से ऊपर उठिए आपको कुछ भी साबित करने की जरूरत नहीं है।
3. Superiority Complex: कुछ लोग Superiority complex के भी शिकार हैं। ज़रा सी सफलता मिली नहीं की खुद को भगवान समझ बैठे। समाज और परिवार के लोग उन्हें अछूत लगने लगते हैं। ऐसे लोग सफलता पचा नहीं पाते हैं और सारा जीवन समाज से दूर रहते हैं। जब बुढ़ापा आता है या रिटायर हो जाते हैं और इनके अपने बच्चे भी जब इन्हें नहीं पूछते हैं तब इन्हें समाज की याद आती है। पर जो सारा जीवन सबों को दुत्कारता आया हो, उसे समाज कैसे स्वीकारे। परिणाम यह होता है की एकाकी जीवन जीने को मजबूर रहते हैं। अभी भी समय है अपने लोगों से जुड़िये, अगर आप सक्षम हैं तो लोगों की मदद कीजिये, उनकी दुआएँ आपको लगेंगी।
(शेष बातें अगली किश्त में)
Comments by members of BBW:
Hari on phoneहरिओम प्रासाद राय भट्ट, Mumbai: आप बिल्कुल सही विश्लेषण किए हैं, हमारे अधिकतम लोगों में ऐसी कोई न कोई विशेषता जरूर होती है, जिससे लोग बिखर रहे हैं, सुधार हम सब अपने से करनी चाहिए, हो सकता है कि हम भी इसके शिकार हो, हम बडे की हम बडे के चक्कर मे सब खराब हो रहा है, लोग े में समाज के लिए संकुचन की स्थिति आ रही है। अंत में आप ने लिखा है कि आलोचना करनी है तो किजिये, यह आप न भी लिखते तो भी लोग आलोचना करते ही क्योंकि आलोचना ही हमारे समाज का Freedom of Speech है, मौलिक अधिकार का उपयोग तो करेंगे ही, समाज में तीन तरह के व्यक्ति हैं, ऐक जो सही में श्रोता है, ऐक न सोता, ऐसे तीसरा सरौता, न श्रोता, न सोता, सिर्फ सरौता की तरह बातों को कुतर्क से अपने स्थिति को Justify करने के लिए, काटना
 
Ray Rahul Kumar: मध्य मार्ग सर्वोत्तम है. सम्मान दीजिये, सम्मान लीजिये. खुशनसीब समझिए जब आप मदद में सक्षम होते है. फार्मसूतिकल्स में मैनेजर की नॉकरी करते हुए मैंने लगभग दो दर्जन स्वजनों को रोजगार देने का पुनीत कार्य किया. विभिन्न कंपनियों में कई लोग ऐसे भी थे जो दूसरे राज्यों में कार्य कर रहे थे. मैंने अपना प्रभाव मंडल का इस्तेमाल करते हुए उन्हें बिहार वापस बुलाया. तब शायद मुझे इस बात का इल्म नही था कि आठ दस सालों के उपरांत ही ढाई हजार किलोमीटर दूर से एक ऐसा शख्स (स्वजन) मेरी जीवन मे आएगा जो न केवल मेरी बल्कि मेरे बाल बच्चों का भी तकदीर बदल देगा।
Sharma Nirmala: गागर में सागर आपने तो हमारे समाज मे हो रहे बातों को सही चित्रण कर दिया ।अगली किश्त का इंतजार रहेगा। सही चित्रण।
 Rekha Rai from ChennaiRekha Rai, Chennai:1:बहुत खूब लिखा आपने।ये सारी बाते हम इंसानो में मिलना आम बात हो गयी है।ईगो की वजह से हम लोग सच को स्वीकारने से कतराते है।और यदि कोई अपनी उम्र से कम वाला या वाली तरक्की करे तो हमे खुश होना चाहिए।इस बात को स्वीकारना चाहिए कि हाँ फला व्यक्ति वास्तव में इस योग्य है।उसे अवश्य ये ख्याति मिलनी ही चाहिए।पर अफसोस कि लोगो का ईगो ये स्वीकारने को तैयार नही।
2: हम भी यही सोचते है,मेरे ख्याल से किसी भी व्यक्ति को ये बताने की जरूरत नही की कितनी प्रापर्टी है ,कितना मकान है कितनी तनख्वाह है।जब है ही इतना तो बिना बताए ही लोगों को स्वतः पता चल ही जायेगा ढिढोरा पीटने की जरूरत नही।हमारे विचार,संस्कार और स्वभाव खुद बयाँ करेंगे कि हम क्या है।
3:थोड़ी भी सफलता पर हमें इतराना नही है बल्कि प्रयासरत रहना है कि हम अपनी इस जिम्मेदारियों को और बखूबी निभाये जिससे मेरे साथ साथ मेरे और भी सहयोगियों के भला होता रहे।न कि औरो को पहचानना ही छोड़ दें।सामाजिक होना मायने रखता है।बुढ़ापे का या अवकाश प्राप्ति का इन्जार न करके आज ही समाज से जुड़ जाए।हम कहते है समाज कुछ नही देगा पर हमे अनुभव तो मिलेगा।कोई भी कार्य,कोई भी पल व्यर्थं नही जाता।हर क्षण का सदुपयोग करना है। बहुत ही अच्छा प्वाइंट रखा है आपने
 
Amit Sharma, Allahabad: देवरथजी, आपने जो बात लिखी है वह जमीन से जुडी बात है और सबसे बडी बात हर इंसान अगर अपने अदंर झांक कर देखे तो आपके लिखे गुण मौजूद है मुझे कहने मे शर्म नही कुछ महान गुण मेरे अदंर भी है पर हम कब मानते है कि हम गलत है कभी नही ये हमारा अहम् है थोडा मिला खुदा बन गये भाई क्या लेकर जाओगे…. कुछ नही तो कोशीश रहे हमसे गलत न हो.. किसी दुसरे से आशा करने से बेहतर है हम खुद को सुधारे… और अपने अहम को थोपना कि मै ही सही हु मुझे अधिक ज्ञान है ये हमे छोडना पडेगा…. याद रखिये अगर हमे कोई हमारा जबाब नही दे रहा है टाल देता है तो वह मूर्ख नही है वह हमारा सम्मान करता है वह हमारी इज्जत की तव्वजो देता है… तो हमे खुद को बदलाना होगा ..खुद के लिए परिवार के लिए समाज के लिए….
 
tripurari roy brahmbhattaTripurari Roy Brahmbhatta, saharsa: बात में तो दम है किन्तु कभी-कभी परिस्थितिवश किसी बात को लेकर हम दुसरे को इगोइस्ट समझ लेते हैं | ईगो की भावना सबों में होती है लेकिन उसका प्रयोग गलत हो जाता है | हर कोई जो हँसते रहते हैं, हो सकता हो वो बहुत गम को समेटे हुए हो | उनसे और भी उम्मीद लेकर लोग बैठ जाते हैं | इस परिस्थिति में जब हँसनेवाला व्यक्ति किसी मजबूरीवश इंटरटेन नहीं कर पाए तो उसे हम इगोइस्ट बोल देते हैं | जून महीने में इस ग्रुप में बहुत आरोप-प्रत्यारोप चला | लोग कई तरह के इल्जाम भी लगाए | एडमिन ख़ास कर संस्थापक एडमिन निशाने पर रहे | चूँकि ग्रुप तनावरहित वातावरण चाहती है जिसका मैं भी समर्थक हूँ, अगर ऐसे व्यक्ति को कुछ बोला जाय तो वे इसे अपमान समझ लेते हैं और संचालक को इगोइस्ट पर्सन की संज्ञा दे देते हैं | अब बताएये ईगो किस में है ? हर कोई इस बात को बोलते नजर आयेंगे कि इस जाति में ईगो बहुत है किन्तु अपने ऊपर इल्जाम लेने को कोई तैयार नहीं | हमें अपने में तो सुधार करना ही होगा जिसके लिए स्वमूल्यांकन अत्यावश्यक है |
 
navin kr royNavin Kr Roy, Tatanagar: समाज की कमजोरियों की ओर ध्यान आकृष्ट कराने के लिए धन्यवाद।काफी हद तक सही आकलन किया है आपने।जहाँ तक बात हीन भावना और श्रेष्ठता की भावना की बात है तो कमोबेश ये मानवीय प्रवृति सभी समाज के लोगों में देखी जाती है।पर हमारे समाज में अन्य की अपेक्षा “अहम” कुछ ज्यादा ही दिखाई देता है और एक और लक्षण जो शायद सबसे ज्यादा दृष्टिगोचर होता है,वह है”स्वार्थ”।स्वार्थ वैसे तो बिल्कुल प्राकृतिक मानवीय प्रवृति है,जो किसी न किसी रूप में हर रिश्ते में पाया जाता है और कहीं-कहीं यह आवश्यक भी होता है।परंतु सिर्फ स्वार्थ का ही रिश्ता हो यह उचित नही होता।एक पिता का अपने पुत्र से,पुत्र का पिता से,भी कुछ न कुछ स्वार्थ होता है,भले ही यह हो कि पुत्र बुढ़ापे में उनकी सेवा करे या पिता घर की देखभाल करे।
हमारे समाज में व्यक्तिगत स्वार्थ की मात्रा कुछ अधिक है,जो मैंने अनुभव किया है।कुछ काम पड़ा तो बस आप ही सब कुछ हो और काम निकलते ही रिश्ता लगभग खत्म।ऐसा नही होना चाहिए और इस प्रवृति को भी बदलने की आवश्यकता है।
 
Priyanka Roy, Patna: मंथन और ब्रह्मभट्ट समाज दोनों का गहरा नाता है। और आज समय आत्ममंथन का है। सभी के आत्मावलोकन को जागृत करने के आपके प्रयास को धन्यवाद। उपरोक्त गुण और दिव्यता की जो व्याख्या है यह हमारे व्यवहार व चिन्तन में दिखनी चाहिए। कई सामाजिक विचारधाराओं की अवहेलना कर समाज व् व्यक्तित्व का विकास सम्भव नहीं।
Amod Kumar Sharma, Bokaro: अपने समाज पर सही लेख लिखा है। कुछ लोगों का पद, प्रतिष्ठा, धन पाने के साथ विचार भी बदल जाता है। वे समाज से कट कर रहना पसंद करते हैं।
 
Sarita Sharma, Muzaffarpur: सामाजिक अवलोकन कर आपने जो व्याख्या की है वह काबिले तारीफ है।एकदम सटीक। अगली किस्त का इंतजार है।
 
Roy Tapan Bharati in udaipurRoy Tapan Bharati: समाज को दरकने से रोको: आपके सवालों के घेरे में लगभग सब हैं…पर सब अपने-अपने नजरिए से जवाब देंगे…दरअसल आत्ममंथन करने की जरुरत है कि हम सब कहां कमजोर और गलत हैं, कब गांव के नाम पर अहंकार हो गया? कब हमे पद का गुमान हो गया, कब हम धन पर ऐंठने लगे, कब हम अपनी संतान पर गरुर करने लगे…
 
मंथन करो कि हमने किसके लिए क्या किया….सोचो कि समाज या व्यक्ति के लिए कुछ करने पर अपने भीतर घमंड क्यों आया? दूसरों के बजाय अपनी गलती देखो…दोहरा व्यवहार बंद करो।….
 
अगर कोई मजबूरी के कारण मदद या मुलाकात का समय नहीं दे रहा तो उसकी बखिया मत उधेड़ो…अगर सक्षम हो तो कुछ की ही मदद करो पर समाज को चाहिए कि उस पर सबकी मदद का दबाव न बनाए, आखिर मुनष्य की कार्यक्षमता की एक सीमा भी होती है…जितना कटाक्ष कम करोगे उतना ही समाज दरकने से बचेगा…
 
Ssangeeta Tiwari, Ghaziabad: शत प्रतिशत सत्य वचन,,,,,,अपनो से मिलते जुलते रहा चाहिए,,,,, बेबाक ,बिंदास लेख
 
Srikant Ray, Patna: अहंकार हमारे जीवन की सब से बड़ी कमजोरी है। यह हमें पतन की ओर अग्रसर करता है।
 
Prarthana Sharma, Pathankot: बहुत ही अच्छी बात !!!!! अच्छी बातों की पुनरावृत्ति होते रहना चाहिए ।अभ्यास से और आत्मंथन से ही हम सब अपने आपको और समाज को एक अच्छी दिशा की ओर ले जा सकते है
 
Geeta AllaGeeta Bhatt, Allahabad: मान्य देवरथ जी आपके लेखनी को नतमस्तक ।जीवन की सच्चाई सामने लाकर रख दिया है ।सच है हमारा अहम ही हम सबको तोड़कर रख देता है ।हम बडे कि तुम? बस यही बात सारी जिंदगी इंसान के पैरों मे बेड़ियाँ डाल उसे तरक्की के टेरेस पर नही जाने देता ।इंसान कुँए के का मेढ़क बन रह जाता है । उम्र तमाम व्यर्था चली जाती है ।
हीरा कब कहे; लाख टका मोरे मोल ।जो छोटे दिल के लोग – थोड़े मे ही उतरा चलते है ।
जरा सी सफलता मिली नही कि खुद को भगवान समझने लगता है । कड़वा लेकिन बहुत बड़ा सच ।ऐसे लोग जो सफलता के शिखर जाकर बैठ जाते है पीछे पलटकर देखना भी जैसे पाप समझते है। ( महज अहंकार का बड़ा रूप)।
Jyoti Kumari: देवरथ भईया आपके इस पोस्ट से मैं पूरी तरह सहमत हूं।अहंम एक ऐसा जहर हैं जो हमारे अन्दर की हर अच्छाई को नष्ट करता हैं।भाईया हम आपका अगाला अंक का बेशवरी से इंतेजार l बहुत ही अच्छा लगाl
 
Anjan Kumar: एक बेहतरीन लेख अपने समाज पर . सभी को अपना अहम् , हीन भावना और मैं ही सबसे अच्छा हूँ इससे ऊपर उठकर समाज हित में कुछ कर सकें तो बहुत अच्छा है .
मैं क्रम संख्या तीन से ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखता , क्योंकि इस विषय के अंदर भी हमारे जैसे लोग को ही रखना चाहिए , क्योंकि अभी या २-४ वर्ष पहले अवकाश प्राप्त होने के पश्चात जो स्वजन समाज से जुड़े हैं या जुड़ेंगे १० वर्ष पहले सोशल मीडिया का इतना प्रभाव नहीं था जिससे की वो अपनी अपनी उपस्थिति कहीं से भी दर्ज करा सके .
 
Gunjan S. Tripathi: मनुष्य के मनोवृति का बहुत ही अच्छा आंकलन किया है आपने बहुत से व्यक्ति अहं को स्वाभिमान ,आत्मसम्मान से जोड़ने लगते है परंतु अंतर समझकर आत्मअवलोकन कर अपने व्यक्तित्व को निखार सकते हैं |
 
Diwakar Sharma Bhatt: 100% अकाट्य सत्य .सही कहा नकारात्मक बातें ही हमारी प्रगति में बाधक है .आपकीसलाह अनुकरणीय
 
Alok Sharma: आदरणीय देवरथ जी!आपके एक एक बात से इत्तेफाक रखता हूँ! इन सारे बिंदुओं में ego हमारे समाज में कुछ ज्यादा प्रभाव दिखा रहा है! हम भूल जाते हैं कि समाज या परिवार के बिना राजा या रंक किसी की व्यस्था ego नहीं चलाती है!आभार…सर!
 
rakesh-advocate2Rakesh Sharma, Gopalganj: आपका यह पोस्ट मुझे आत्ममंथन करने पर विवश कर दिया है. सोच रहा हूं की आपने सभी बातें सही लिखी है पर मैं उपदेश किसको दूं. हमें अपने अंदर की खामियों को देखना होगा तथा आत्म सुधार करना होगा. यह लेख समाज के सच्चाई को उजागर करता है.हमसब सरस्वतीपुत्र हैं और शायद हमसे विद्वान बुद्धिमान चालाक होशियार और बौद्धिकता में हमको नहीं लगता की इस ब्राहमाण्ड पर हमसे कोई ज्यादे ना रहा है और न है फिर भी हम पिछड़े हैं इसका क्या कारण है क्या कभी हमने सोचा. मुझे लगता है की हम जितना दिखाते हैं उतना रहते नहीं, जितना बोलते हैं उतना करते नहीं ,आलस्य हमारी रग रग में भरा रहता है. हम केवल अपनी प्रशंषा सुनना चाहते हैं आलोचना नहीं. क्या ये सारी चिजे विकाश में बाधक नहीं है. इसी धरती पर अगर दुसरा कोई दाढी बढा ले तो उसे लोग स्टाईलिस्ट या रंगदार कहते हैं और हम बढा ले तो ज्यादे जो पहचानते हैं बाबा समझ लेंगें वो भी ठगी करने वाला परन्तु हम हैं की अपने बुद्धी के आगे दुसरे के बुद्धी को कुछ समझते ही नहीं. हमें हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हमारा पट्टीदार यानी गोतिया होता है. ईर्ष्या हममें कुट कुट कर भरी रहती है. दुसरे जाती के लोग घर में बैठते हैं भाईयों से दुरी बनी है. यह सारी बातों के बारे में हमें सोचना होगा. माफी के साथ अगले लेख का इंतजार.
 
Rakesh Nandan, Lko: तजुरबे से एक बात ज़रूर कहूँगा कीकोई समाज ऐसा नहीं है जहाँ लोगों में ये गुण/अवगुण नहीं मिलेंगे। हाँ इन गुण के प्रतिशत में ज़रूर फ़र्क़ हो सकता है। complexes और ego हर इंसान में होता है! क्या आप या मैं कह सकते हैं की ego नहीं है हममें। कष्ट तब है जब ये complexes हावी होकर हमें negativity कीं तरफ़ ले जायें। समाज बड़ा है, इसमें हर प्रकार के लोग मिलेंगे, समझदारी से सब को साथ लेकर चलना ही उद्देश्य होना चाहिए। कटाक्ष या अपने को ज़्यादा क़ाबिल दिखाने से लोग प्रतिक्रियाएँ देंगे ही। ये इंसानी फ़ितूर है!
 
Gyan Jyoti, Patna: मैं बिगत 20 दिनो से दिल्ली मे बच्चो के साथ हूँ . कल मेरे फोन मे net नही होने के करण मैं रात मे ही पढ़ पया . आप सभी लोगो का comments भी पढ़ा बहुत अच्छा लगा .
देवरथ जी का पोस्ट पढने के बाद मुझे लगा की मुझे भी comment करनी चाहिये . आपने और जो मन की बाते की उस पर मैं कोई comment नही करूँगा . लेकिन उनकी comment जो suporiarity complex के अंतर्गत लिखा हैं उसे मैं quote कर रहा हूँ
 
जब बुढ़ापा आता हैं या रिटायरहो जाते हैं और उनके अपने बच्चो भी जब इन्हे नही पुछते है तब इन्हे समाज की याद आती हैं . मैं भी बुढ़ा हो गया हूँ और मेरी उम्र 64 वर्षो का होने वालाी हैं और मैं भी रिटायर हो गया हूँ .समय आने पर सभी रिटायर होंगे
 
तो देवरथ जी के अनुसार मैं समाज से इसिलिये जुढ़ा हूँ क्योकी मेरे बच्चो एवं परिवार मुझे नही पुछते . पर देवरथ जी मेरे बच्चो एवं परिवार मुझे बहुत पूछते हैं और सम्मान देते हैं और मुझे तृष्कार एवं प्रताढ़ित नही करते क्योकी मैं समाज से जूढ़ा हूँ या समाज सेवा करता हूँ .
 
देवरथ जी मैं आज से ही नही समाज सेवा कर रहा हूँ . मैं जब युवा था 20 वर्षो का तभी से समाज सेवा कर रहा हूँ . मैं मानता हूँ की नौकरी मे आने के बाद peofessional commitments के कारण मैं समाज से अलग रहा.
ऐसा नही था की सेवा की भावना नही थी .
 
Brijbhushan Prasad, Samastipur: देवरथ भाई अपने मेरे मन की बात छीन ली निश्चित मैं भी ये कहना चाहता था दूसरे को क्या कहु हमारे घर में भी ऐसी स्थिति है पर मई चाह कर् भी सूधार नही कर् पा rhahu आज लोग बरो की बात मानना।अपमान समझते है मई आप की बातें समझने का।प्रयास करता हूँ तो सायद मुझे मुर्ख समझा जाता है कोइ किसी के एहसान तक को याद रखना नही चाहता ऐसे में हम सिर्फ प्रयास ही क्र सकते है और आपने इस दिसा में बहुत सुन्दर प्रयास सुरु किया है सायद कुछ लोग इससे सुधर जाएं। अपने अहम में हम अपने बुजुर्गो का अपमान करने से नही हिचकते हम अपने बराबरी का दरजा गरीब या कम सिच्छित लोगो को नही देना चाहते फिर कैसे।सुधार हो सकता है।
 
 Ranjana tourRanjana Roy; देवव्रत जी, आपकी प्रस्तुति और आकलन अच्छा है और काफी सदस्य आपके विचारों से सहमत भी हैं ! मेरा मानना है कि ऐसी कमियां समाज में शिक्षा और एक्स्पोज़र के कमी के कारण होती है !.बहरहाल, हमारा समाज भी बदल रहा है, इसमें कोई शक नहीं है। मैं इस मंच के सभी सदस्यों से आग्रह करूंगी कि आइए, हम सब मिलकर एक नए समाज की रूपरेखा तैयार करने में अपना योगदान करें ना कि एक दूसरे को नीचा दिखाने और अपने को बड़ा दिखाने में अपना वक्त जाया करें!!

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