बहनें, सत्कार्य कीजिए ईश्वरीय शक्ति आपकी मदद करेगी
दूसरे को ये जिम्मेदारी क्यों सौंपी जाए कि कोई अन्य मेरे बारे में लिखे। किसी को क्या पता कि मेरे मन मे क्या है? मैं कौन हूँ? आखिर, मेरे अंतर्मन की सोच से कौन परिचित होगा?
अपने व्यक्तित्व, अपने स्वभाव को यदि खुद मैं नहीं जान पाऊंगी तो अन्य कोई कैसे जान पाएगा? चलिए, मैं अपनी कहानी को आगे बढ़ाती हूँ।
मायके के बारे में बताऊँ कि मैं एक शिक्षित परिवार से हूँ। पिता स्वर्गीय विजय बहादुर शर्मा नैनी स्थित सरकारी कंपनी BPCL में एक्जीक्यूटिव अफसर थे। मां श्रीमती सावित्री शर्मा धार्मिक और संस्कारी महिला हैं। मुझे संस्कार भी मेरे माता-पिता और बहनों से ही मिले। यूँ तो मैंने ज्यादा पढ़ाई नहीं की पर जितना विवेक और जो भी प्रतिभा मुझे ईश्वर ने वरदान के रूप में दिया उन्हें मैं अपने परिवार, समाज और देश को समर्पित करती रहती हूँ।
इलाहाबाद में मेरा स्कूली जीवन बीता, बचपन से ही हर क्लास की मैं मॉनिटर रही। 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर जैसे राष्ट्रीय दिवस पर होने वाले समारोहों में हमेशा बढ़-चढ़ कर भाग लेती रही। यही नहीं इलाहाबाद की गोविंदपुर कॉलोनी में होने वाली दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा जैसे धार्मिक कार्यो में भी मैं स्टेज से जुड़ी रहती थी।
एक मजेदार बात बताऊँ कि मेरे ससुर अशोक रॉय जी ने मुझे मेरे जन्म लेते ही अपने बड़े बेटे सुशील जी के लिए मांग लिया। इसकी पूरी चर्चा मैं फिर कभी अलग से करूंगी। शुरू से ही मेरे सास-ससुर का चेन्नई से कानपुर और इलाहाबाद आना होता रहा। रॉय पापा और मम्मी शादी के पहले एक दिन गोविंदपुर आये तब भी मैंने पहले से तय अपना स्टेज प्रोग्राम कैंसिल नहीं किया और घर के सामने ही पार्क में सरस्वती पूजा में मैंने अपना नृत्य पेश किया। उस रात सासु मां बड़े ध्यान से मुझे देख रही थीं।
खैर इस टॉपिक पर फिर कभी चर्चा… प्रतिष्ठित ससुराल परिवार में आने के बाद मैंने पाया कि मेरे ससुर जी उत्तर भारतीयों के बीच सम्मानित और वरिष्ठ शख्सियत के रूप में स्थापित हैं। राय पिता जी का सामाजिक और धार्मिक होना मुझे हमेशा खुशी देता रहा। इस वजह से मैं भी हमेशा उनके हर सामाजिक और धार्मिक कार्यों में रुचि लेते हुए अग्रणी होकर हाथ बंटाने लगी।
मैं उनके ही पद चिन्हों पर चलने लगी और यहाँ तमिल भाषियों के बीच में उत्तर भारतीय समाज के साथ जुड़कर मैंने एक 2005 में एक महिला संगठन खड़ा किया जिसमें 150 महिलाओ के साथ मैं कई सामाजिक धार्मिक कार्य कर रही हूँ। धीरे-धीरे होली, दिवाली, कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्रि आदि त्योहारों के समारोहों में मेरी रुचि बढ़ती चली गई। वृद्धाश्रम, अनाथ आश्रम बेसहारों को सहारा आदि देने के कार्य में भी मैं लगी रही। इन्हीं दिनों मेरे छोटे भाई धर्मेंद्र ने मुझे एक और धर्म भाई से मिलाया कि दीदी इनकी पत्रिका में आप अपने सामाजिक समाचार लिखा कीजिए। उन्होंने जिस शख्स से मिलवाया उनका नाम था वृजकिशोर शर्मा। उनकी ‘सुधा भारती’ नाम की एक पत्रिका छपती थी जिसमें मेरे लेख भी नियमित रूप से प्रकाशित होने लगे। उन्ही दिनों एक बार सुल्तानपुर के श्याम बहादुर शर्मा जी चेन्नई आये। उन्होंने मेरे लिखे कई लेख पढ़े। उन्हें अच्छा लगा। फिर उनके कहने पर मैंने भोपाल की ब्रम्हसत्य पत्रिका, जो अक्षय रॉय जी द्वारा प्रकाशित की जाती है, में छपवाना शुरू किया। यहां मैं बच्चों के लिए ‘फुलवारी’ कॉलम आज भी नियमित रूप से लेखिका हूँ। इस तरह मुझे और भी कई धर्मिक सामाजिक पुस्तकों में लिखने का अवसर मिलता रहा। इसी लेखन के जरिए मैं धीरे-धीरे शिक्षा संस्थानों से जुड़ती चली गयी जहां मुझे प्रोफेसर बहनों के साथ आगे बढ़ने का मौका मिलता चला गया और उनके साथ मैं हिन्दी साहित्य की सेवा में लग गयी। वहाँ भी मुझे सभी के द्वारा प्रेम और सम्मान मिलता रहा। और एक दिन अकादमी के चुनाव में मुझे भी कार्यकारिणी के सदस्यों में चुना गया। तब से मैं तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी के साथ निरंतर जुड़ी हुई हैं।और कई बार बिभिन्न राज्यपालों द्वारा सम्मानित भी किया गया।
यूँ तो मेरे अनगिनत शौक हैं। जैसे सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, घर की सजावट, बागवानी, गीत-संगीत, भजन-कीर्तन, सत्संग सब में मैं लगी बझी रहती हूँ। कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए मैंने अपने दिमाग को कभी खाली रखा ही नहीं। एक कार्य पूरा हुआ नहीं कि अगले एजेंडा पर कार्य आरंभ।
उन्हीं दिनों मैंने कम्प्यूटर, टैली, कार ड्राइविंग भी सीखी। ससुराल वालों ने कभी मुझे किसी कार्य के लिए रोक-टोक नहीं किया। मेरे ससुर पिता जी तो एक संतपुरुष जैसे ही हैं। जब-जब मैंने मांगा उन्होंने मुझे हर काम के लिए पर्याप्त पैसे दिए। उनकी भी इच्छा थी कि रेखा का हर शौक पूरा हो।जानकारी के लिए बता दूं कि जब जब मेरे सामने कोई पारिवारिक या सामाजिक समस्या आयी तब तब ससुर पिता ने हमे अपने सरल शब्दों में समझा देते।रामायण और भागवत की सारगर्भित पंक्तियों द्वारा वे हमारी हर समस्या का समाधान निकाल कर हमें बिचलित होने से बचा लेते हैं। मैं बहुत खुशनसीब हूँ कि मुझे बिना दान दहेज दिए ही अच्छी ससुराल मिली। यहां सभी सुलझे हुए लोग हैं।
अंत मे एक बात कहना चाहूँगी कि एक कहावत है कि पर दुखे उपकार करे तो मन अभिमान न आने रे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जो पीर पराई जाने रे।
कहना तो नही चाहिए पर अब कहना पड़ रहा है कि होम करने चलो तो हाथ को तो जलना ही जलना है। मैंने यह अपने ही रिश्तो में बेघर और बुरे वक्त में जिनका साथ आर्थिक और मानसिक रूप में दिया वे लोग ही वक्त बदलते ही ऐसे गिरगिट जैसे रंग बदलने लगे कि यकीन ही नहीं होता। पर मुझे ये बाते बुरी नहीं लगी क्योंकि हर बुरा व्यक्ति हमें एक सबक देकर जाता है। मैं कैसे बताऊँ कि उनके गुनाहों को मैं कई सालों से सुना अनसुना करती रही। कभी उनके अपनो ने ही बताया, कभी रिकार्डिंग में सुना, कभी स्क्रीन शाॅट में देखा तो कभी फोन कॉन्फ्रेंस में सुना।
पर मजे की बात कि कभी उस व्यक्ति से इसलिए पूछने नहीं गयी कि बेचारे बीच वाले जो बताते हैं वो बताना बन्द कर देंगे और मुफ्त में वो फंसेंगे भी….
खैर मेरा सौभाग्य कि हर बार किसी की आलोचना मेरे लिए वरदान ही साबित हुआ। ईश्वर जानते हैं जब-जब मेरी आलोचना मेरे कानों तक आती है उसी दिन भगवान मुझे एक-दो सीढ़ी और ऊपर चढ़ने का स्वतः मौका दे देते हैं। इसलिए अब मैं आलोचना करने वालों के पीछे नहीं पड़ती।
मैं अपने अनुभवों से ग्रुप की सभी महिलाओं को संदेश देना चाहूँगी कि वे जिंदगी में निरुत्साहित होने के बजाय अपनी प्रतिभा और विवेक को अपने लक्ष्य की ओर मोड़ लें। यूँ समझिए कि जब-जब व्यक्ति कोई भी अच्छा कार्य करने चलता है तब-तब ब्रम्हांड की एक ईश्वरीय दैवीय शक्ति स्वतः हाथ थाम लेती है।
इसलिए बहनों यदि आप किसी भी कार्य में अग्रणी होना चाहती हैं तो बेशक कदम बढ़ाते रहिए। याद रखिए, दुनिया की कोई ताकत हमे सत्कार्यो से रोक नहीं सकती।
इन्हीं दौरान ब्रम्हभट्टवर्ड ग्रुप की अपने समाज में चर्चा होने लगी। संयोगवश एक दिन ग्रुप के संस्थापक पत्रकार रॉय तपन रॉय जी से बातचीत हुई तो उन्होंने भी मुझे इस ग्रुप से जोड़ा। वे समाज में सुधार के लिए कटिबद्ध लगे। भाषा पर उनकी पकड़ थी ही। वे महिलाओं को आगे बढ़ा रहे थे। फिर क्या था यहां तो एक से बढ़कर एक हीरा-मोती मिले। फिर रांची मंथन में मेरी मुलाकात बहुत सारे स्वजाति जनों से हुई। वहां सबसे मिलकर प्रसन्नता हुई।
रांची मंथन में प्रियंका राय और अमिता जी के साथ महिला सत्र में मैंने मंच संचालन किया जिससे मेरे रचनात्मक उत्साह को और बढ़ावा मिला। यह ग्रुप तो अब अपना परिवार सरीखा बन गया है। इसलिए आज इतनी ही बातें यहां साझा कर रही हूँ। फिर कभी कुछ और अनुभव यहाँ लिखूंगी। पर आप भी वायदा कीजिए कि आप भी अंतरराष्ट्रीयमहिला दिवस पर आज ही अपनी जिंदगी का अनुभव लिखेंगी।
Comments on BBW group on facebook:
Roy Tapan Bharati: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मातृशक्ति को कोटि कोटि प्रणाम।
Renuka Sharma: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की अनंत शुभकामनाएं
Rakesh Sharma: अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।आपने जो अपनी जिवनी लिखी है वह वास्तविक रुप से यह महिला दिवस को साकार करता है।व्यक्ति में आगे बढने की ललक होने चाहिए उसके सपने साकार होते हैं।आपका यह पोस्ट पढकर बहुत अच्छा लगा।बहुत बहुत धन्यवाद।
Rakesh Nandan बढ़ते चलिए!
Priyanka Roy: इंसान का सुंदर व्यक्तित्व एक सकारात्मक सोच का दर्पण होता है….जिससे उनका व्यवहार स्पष्ट और पारदर्शी कहलाता है। आपको ‘राँची-मन्थन’ में करीब से जानने का मौका मिला। मुझे वास्तव में बेहद खुशी हुई आपके सानिध्य पाकर। आज आपके विषय में, आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानकर और भी खुशी हुई। औऱ महिला दिवस पर इससे बेहतरीन संदेश क्या होगा….महिला दिवस पर आपके जीवन की खुशियां निर्विघ्न बनी रहे, यही मेरी शुभकामनाएं हैं।
Sangita Roy: आपने अपने विषय में हम सब को जानकारी दी ।बहुत अच्छा लगा।
Nirupma Sharma: रेखा जी राम राम महिला दिवस की आपको भी बहुत बहुत बधाई। आपने जो अपने विषय में जानकारी दी उसे पढ़कर बहुत अच्छा लगा। ब्रह्मभट्ट परिवार को आप पर गर्व है। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप ऐसे ही नेक कार्य करतीं रहे और समाज का नाम रोशन करे।
आप का हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व हमेशा जहन में रहता है।