ठहरो, ठहरो, ठहरो
गीता भट्ट/इलाहाबाद
थक गया हार गया, एक ही रास्ता बचा रुकना ।
जब ठहरा तो सिर झुकाया तो पता पडा कि मै जिसके पीछे भागते जा रहा था, वो मेरे खुद के पास ही है ।
इस जीवन काल( मृत्युलोक) मे परीक्षा सभी को देनी पडी। कोई भी अछूता नही रहा ।
चाहे वह पुरुष पुरुषोत्तम हो, या नारी हो ।अपने कर्मो या फिर प्रारब्ध बस ।
धर्म के खातिर श्रीराम बन को गये, राज्य छूटने का भी परवाह नही रहा ।
राजा हरिश्चंद्र जी काशी मे जा बिके, डोम भी बनना पडा ।
ध्रुव प्रह्लाद भी नही बच पाये ।
प्रारब्ध के अनुसार ही माता सीता जनक दुलारी ,उर्मिला, ,राधा, और मीराबाई। और तो और मात देवियों ने भी परीक्षा दी ।
नारी तारणहार है तो पुरुषोत्तम पुरुष पालनहार है तो पुरुष सेवक बन कर भला सबका करता है ।
दोनो एक-दूसरे के पूरक है। तभी अर्धांगिनी के रूप मे बराबर का दर्जा प्राप्त है ।वेदों ने भी दोनो की महिमा गायी। आकाश ने भी माई का धरती मा का मीनारा छुआ ।फिर नारी भला अबला कैसे हुई ।
नारी का श्रंगार बिना पुरुषो का अधूरा है, परन्तु पुरुष के कितने रूप है नारी के जीवन मे ।चाहे वह पिता हो पति हो पुत्र हो या भाई हो ।एक अंग प्रारब्ध या खुद के कारण खराब हो जाने से जिन्दगी नही रुकती चलना ही जीवन है ,चलना ही होगा। ये ही परमपिता की मर्ज़ी होती है ।उसकी रजा मे राजी रहना ही सच्चा जीवन है ।
आज की परीक्षा उतनी भी नही जितनी मीरा की हुई ।खाने मे सांप 🐍 भरके डिब्बे मे मिला ।अरे आज कोई सांप क्या खाने के बाक्स मे करेला भी नही देता अपने बच्चो को ।
स्थित परिस्थिति बुरी हो सकती है ।हर जगह पुरुषो पर भारी कर दी जाती है। जबकि किसी न किसी रूप मे पुरुष प्रधानता दिखती है। आज के युग मे 26 जनवरी नारियों के लिए कब की हो गयी है ।देरी है तो सिर्फ और सिर्फ देखने की मार्ग प्रशस्त होने की।
comments on facebook:
Sangita Roy वाह दी कितनी गहरी बात आपने लिखी है।हम सब को मनन करना चाहिए।
Rakesh Sharma: बहुत अच्छा संदेश।
Mahendra Pratap Bhatt नारी और पुरुष दोनों का ही महत्त्व है। किसी एक का महिमामंडन पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है। सुख और दुख की चुनौती दोनों के लिए समान होती है। यही इस लेख का भाव है।
Rekha Rai क्या खूब लिखा है दीदी।
Bacha Tiwari बहुत ही अच्छा संदेश आपका है।