सुनो,अगर हाथ थामा है ,तो कभी छोड़ना मत
written by भारती रंजन कुमारी, दरभंगा, बिहार
सुनो,अगर हाथ थामा है ,तो कभी छोड़ना मत।
छोड़कर जाना होअगर,तो हाथ थामना मत।
तुम जैसे क्या समझेंगे बेवफाई का दर्द ,
तुम जैसे क्या समझेंगे रिश्तों का फर्ज,
सुनो–दूर जाना है अगर,तो जरूर जाओ ,
मगर दुबारा वापस लौटकर ,कभीआना मत।
मेरे तन मन को जिंदा लाश बनाना मत।
छोड़कर जाना हो अगर,तो हाथ थामना मत।।
शिकायत रहेगी तुमसे और मेरी तकदीर से,
मेरे आंसू कहेंगे हाल मेरा, रोकर तेरी तस्वीर से,
सुनो–सपनो में भी कभी ,तुम आना मत,
आकर मेरे तड़पते दिल को ,रुलाना मत।
मेरे छुपे हुए जज्बातों को जगाना मत।
दूर जाना हो अगर,तो हाथ थामना मत।।
मै इंसान हूँ, हाँ -मै भी इंसान हूँ
मेरे अहसासों को तिल तिल जलाना मत।।