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आखिर यह दहेज इतना डरावना क्यों है? Bihar India 

आखिर यह दहेज इतना डरावना क्यों है?

उस वक्त बेटों को वारिस एवं बेटियों को “पराया धन” समझा जाता था। इसलिए पिता अपनी बेटियों को उनका हक समझ कर अपनी चल संपत्ति में से उनके विवाह के अवसर पर उपहार देता था।

संगीता राय/पूर्णिया, बिहार

संगीता राय, पूर्णिया

दहेज प्रथा हमारे समाज की एक पुरातन प्रथा है। हमारी पुरातन सामाजिक व्यवस्था ऐसी थी जहाँ एक पिता अपरोक्ष रूप से बेटी को विवाह के अवसर पर अपनी संपत्ति में से उसका हक “उपहार “के रूप में देता था। अपने सामर्थ्यानुसार अपनी स्वेच्छा सें बेटी को उपहार के साथ विदा करता था। उस उपहार को ही दहेज कहते थे। हमारे कई धार्मिक ग्रंथों में भी दहेज का उल्लेख मिलता है। रामायण में भी वर्णन है कि सीता जी का विवाह श्रीराम के साथ होने के पश्चात् राजा जनक ने सीता जी को अनेकों उपहार के साथ विदा किया था। सदियों से यह परम्परा चली आ रही है। अनेकों ऐसे उदाहरण है जहाँ बेटी के पिता ने अपनी बेटी को उपहार रूपी दहेज के साथ विदा किया। यह परम्परा स्नेह ,सामर्थ्य और स्वेच्छा से निभाया जाता था कोई जोर जबरदस्ती नही,वर पक्ष की कोई मांग नही। एक सामाजिक सौहार्द्र के माहौल में खुशी- खुशी बेटी को उपहार दिया जाता था।

 
उस वक्त की सामाजिक व्यवस्था ऐसी थी कि बेटियां अपने पिता की संपत्ति की वारिस नहीं होती थी। बेटों को वारिस एवं बेटियों को “पराया धन” समझा जाता था। इसलिए पिता अपनी बेटियों को उनका हक समझ कर अपनी चल संपत्ति में से उनके विवाह के अवसर पर उपहार देता था। बेटियों को उनका हक देने की यह एक स्नेहिल व्यवस्था थी जहाँ कोई कटुता नहीं थी।
 
पर समय के साथ साथ कुछ परम्पराएं बदलती है,कुछ मान्यताएं बदलती है और कुछ धारणाएँ बदलती है। कभी यह बदलाव उर्ध्वगामी होता है और कभी अधोगामी। हमारे भारतीय समाज के साथ भी ऐसा ही हुआ। स्नेह और स्वेच्छा से दिया जाने वाला यह उपहार धीरे-धीरे इतना विकृत रूप धारण कर लिया कि आज यह वर पक्ष की इच्छा पर निर्भर हो गया। इतना ही नही बल्कि यह नगद राशि में भी परिवर्तित हो गया। वर पक्ष वाले अभिमान एवं बेशर्मी से नगद की मांग करने लगे फलस्वरूप जो उपहार पिता स्वेच्छा से देता था वह मजबूरी बनने लगी और कन्या के पिता का आर्थिक और मानसिक शोषण होने लगा।समाज में हर आर्थिक वर्ग के लोग होते है। मध्यम- वर्गीय और निम्न-वर्गीय परिवार इस आर्थिक दोहन से ज्यादा पीड़ित होने लगे और “कन्या-भ्रूण हत्या “जैसे समस्याएं भी उत्पन्न होने लगी। वर्तमान समय में एक विकृत ” दहेज- प्रथा “ने कई समस्याओं और अपराधों को जन्म दिया।
 
जिस प्रथा की अवधारणा इतनी सुन्दर थी वह आज अपने मूल स्वरूप को खो कर भयानक और विद्रूप समस्या बन चुकी है। अब इसका उन्मूलन आवश्यक हो गया है। समाज में जितनी भी समस्याएं है उनका समाधान भी अवश्य होता है। दहेज- प्रथा का भी समाधान है जरूरत है सिर्फ मानसिकता में बदलाव लाने की। लड़के वाले दहेज मांगे नही बल्कि लड़की के पिता जो भी खुशी खुशी उपहार दे सिर्फ उसे ही स्वीकार करे। यकीन मानिये जिस नये रिश्ते से आप बंधने जा रहे है उसमें मधुरता बनी रहेंगी। जिस रिश्ते की शुरूआत मधुरता से होगी वह कितना आत्मीय रिश्ता होगा। जिस लड़की को हम अपने घर की बहू बना कर ला रहे है वह हमारे परिवार की एक अभिन्न अंग है। वही हमारे परिवार के रीति-रिवाजों और परम्पराओं को आगे बढ़ायेगी। बहू हमारे घर की भावी मालकिन है ना कि कोई अनचाहा मेहमान।
 
कुछ सालों पहले तक लड़कियों की शादी 18 से 20 वर्ष की आयु तक हो जाती थी। लड़कियां ससुराल के हिसाब से ढल जाती थी। आज के समय में ज्यादातर लड़कियों की शादी उनके पढ़ाई पूरी होने और Career Settle होने के बाद ही होती है तब तक उनकी एक स्वतंत्र और परिपक्व मानसिकता बन चुकी होती है। अगर दहेज की मोटी रकम लेने वाले परिवार में उनकी शादी होती है तो उन्हें वैसे परिवार में सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई महसूस होती है और परिवार का विघटन प्रारम्भ हो जाता है। आज के समय में रिश्ते बड़े अनमोल होते है इन्हें सहेज संवार कर रखने की आवश्यकता है। दहेज का जहर इनमें न फैलने दे। दहेज की आग बड़ी भयानक होती है। इसमे ज्वालामुखी से भी ज्यादा आग और तपन है।इस आग में जल कर हमारे सारे मधुर रिश्ते ,अपनापन भस्मीभूत हो जायेंगे।
 
हर घर में बेटा है तो बेटी भी है। कुछ घर अपवाद हो सकते है। जब बेटा और बेटी दोनों ही समान है, दोनों की परवरिश में, शिक्षा में, हम समान रूप से खर्च करते है तो फिर बेटे और बेटी दोनों के विवाह में भी हम अपने सामर्थ्यानुसार खर्च क्यों न करे? क्यों हम बेटे की शादी में पूर्ण रूपेण बेटी के पिता पर निर्भर हो? अगर यह हमारी मानसिकता बन जाय तो बहुत हद तक दहेज की कुप्रथा कम हो सकती है। याद रखे ईश्वर ने हमें विवेक दिया है अगर हमारा विवेक सो रहा है तो हमें अपने विवेक को जागृत करना है। हमारे अच्छे कार्य दूसरों के हृदय को स्पर्श करते है,उन्हें भी प्रेरणा देते है तो क्यों न हम दूसरे के लिये प्रेरणा बने।
Comments on facebook group:
Mukund Bhatt बात तो पत्ते की है पर समझने वाले कितने है।
 
Deorath Kumar: बहुत सुंदर और अनुकरणीय पोस्ट
 
पं. दीपक शर्मा लाख टके की बात है !
 
Adesh Sharma दहेज लेना पाप है
Roy Tapan Bharati: यह सच है कि दहेज की आग भयावह होती है इसकी तपन से बहुत सारे रिश्ते राख हो सकते हैं
 
Sangita Roy दहेज देना और लेना दोनो ही गलत है।
 
Parmanand Choudhary दहेज प्रथा पहले क्या था और आज क्या है आपने बहुत अच्छे ढंग समझाने का प्रयास किया ह।वर और कन्या पक्ष दोनों मिलकर शादी का खर्च वहन करे तो शादी से बड़ा कोई त्योहार नही हो सकता।
 
शिवम भारत: Ap apne baccho ki shadi bina dahej ke karrngi?
 
Sangita Roy शिवम भारत जी मैं आज से चार वर्ष पूर्व अपने लड़के की शादी बिना दहेज और बिना उपहार लिये कर चुकी हूँ। कोई भी सामान हमने नहीं लिया ना ही नगद राशि ली।ग्रुप मे कई सदस्य ऐसे है जो इस बात को जानते है।एक और बात मेरी शादी में भी कोई दहेज का लेन-देन नहीं हुआ था और मेरे ससुर जी ने भी अपनी शादी में कोई दहेज नहीं लिया था।जो पिता अपनी बेटी देता है वह तो अपना सर्वस्व लडके वाले को दे देता है।बिना दहेज शादी होने की वजह से हमारा अपने समधियाने से बहुत स्नेहिल रिश्ता है।और ऐसा ही रिश्ता मेरे मायके वालों के साथ मेरे ससुराल वालो का था
 
शिवम भारत: ये बहुत अच्छी बात हैं पर मैम आप देखे इसी समाज मे तमाम लोभी भरे हुये हैं.. मेरी भी बिना दहेज़ के शादी की इच्छा हैं दहेज क्या शादी में होने वाले खर्चे से ही मुझे परहेज हैं.. मैम शादी ऐसी हो की मन्दिर मे घर्,परिवार और कुछ अन्य लोगो के बीच सादे समारोह में सम्पन्न हो..मेरी ये एक कोशिश भी होगी और चुकि आप एक दहेज़ विरोधी हैं तो आपके सहयोग भी चाहुन्गा. मैं आपके ही समाज का हूँ और उत्तरप्रदेश आज़मगढ़ से हूँ.
 
Lakshmi Narayan बहुत ही बेहतरीन पोस्ट । मगर मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि कई लड़की वाले ऐसे भो होते है जो स्वेछा से कुछ भी खर्च नहीं करते । मेरे एक संबंधी का बेटा MS Doctor था और लड़की के पिता Executive Engineer जिन्होंने बारातियो को अच्छा खाना भी नहीं खिलाया । और शादी में कोई खर्च भी नहीं किया ।मैं भी बारात में था । सिर्फ इसलिए की लड़की भी डॉक्टर थी ।
Sangita Roy सर अपवाद तो हर जगह है।मैं आपकी बातों से सहमत हूँ कुछ लोग बहुत कंजूस होते हैऔर उनका संस्कार की ऐसा होता है।
 
शिवम भारत साहब शादी दो आत्माओ का मिलन हैं कोई भन्डारा नही की वहा आप भोजन करने जाय मैं तो शादी में भोजन कराने तक़ का विरोधी हूँ
 
Lp Rai मेरे राय में यह ब्यक्तिगत और सामाजिक प्रचलन है।बेटी का भी हिस्सा पिता के सम्पति में होता है यदि खुशी से अपने बेटी को देता है तो कदापि अनुचित नही।पर यदि इसके लिये लड़के वाले अनुचित मांग करतें है वह भी की देन होगा वह गलत है।लड़की को उसका पूरा सम्पति का हिस्सा भी लोग नही दे पाते ।और आजकल तो सिक्छित बना दीजिय किसी दहेज की आवश्यकता नही यदि दहेज देना है तो शिक्षा दीजिये ।बेटी और बेटा में फर्क मत समझिये ।
 
शिवम भारत: ये खुशी से देने वाली सोच बदल दीजिये राय साहब.. इसी का फ़ायदा उठाते हैं दहेज लोभी.. खुशी से बस फ़्रीज़ सोफ़ा एसी गाड़ी और रुपया दे दिजिये और बरातियो की भव्य व्यवस्था कर दिजिये..
इतना करने मे एक बाप की क्या हालत होती हैं समझते होंगे आप..
बस वो उपर से खुश रहता हैं
Rakesh Sharma: दहेज श्रद्धा की चिज थी जिसे आज अनुचित एवं अनिवार्य माँग में तब्दील कर दिया गया है।यह बेटी के लिए मैके से मिलने वाला सत्कार और उपहार है जो हमेशा से हमेशा के लिए होता है।लेकिन लोगों की गलत सोंच और घृणित मंशा ने इस प्रथा को कलंकित कर दिया।यह स्वेच्छा का विषय स्वेच्छा तक ही सिमीत रहे तो संबंधो में करुवाहट नहीं आती।
 
Vinita Sharma बहुत सटीक जानकारी एवं लेख न । मनुस्मृति में भी ८ तरह की शादियों का उल्लेख है ।उसमे अर्श विवाह के तहत लड़के वाले ही लड़की को दहेज के रूप में गाय देकर शादी करते थे ।पिता जो अपनी बेटी को विवाह के समय देते थे वो स्त्री धन कहलाता था ।पहले लड़कियों को पैतृक…See more
 
Lakshmi Narayan मै आपसे पूरी तरह से सहमत हूं । कानून के मुताबिक पिता की संपत्ति पर बेटा बेटी दोनों का बराबर हक़ होता है मगर देता कौन है । जैसे तैसे शादी करके लोग बेटी से लिखवा लेते है कि उसको हिस्सा नहीं चाहिए । अगर बेटा बेटी दोनों को सम्पति में हिस्सा मिलाने लगे तो दहेज़ का दानव उसी दिन मर जायेगा । बंगाल , उत्तराखंड और सभी दक्षिण के राज्यो कोई दहेज़ नहीं मांगता क्योकि वहां लड़की के माता पिता की मृत्यु के सम्पति का बंटवारा होता है ।
Priyanka Roy: हमेशा की तरह एक स्पष्टवादी व सारगर्भित सोच- विचारों के साथ उम्दा आलेख.
 
Sharma Nirmala अत्यंत सटीक प्रहार दहेज प्रथा पर लेकिन कितने लोग आते है सामने।देखना। तो हमे ये है।लम्बी लम्बी बाते और कमेंट करने से नही पहला कदम उठाने से मतलब है।

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