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वर या वधू की शादी में उपहार स्वरूप नकद राशि ही दें Delhi India 

वर या वधू की शादी में उपहार स्वरूप नकद राशि ही दें

अच्छा हो यदि लोग वर या वधू की शादी में उपहार स्वरूप नकद राशि दें: ब्रह्म्भट्टवर्ल्ड का सुझाव

विवाह में लोग साड़ी, पायल बिछुवा /या अंगूठी देते हैं अंततः इन सबकी भरमार हो जाती है

Sangita Roy, Purnia लिखती हैं: मेरी समझ से तो लड़की या लड़के किसी की भी शादी हो नकद राशि देना सर्वोत्तम होता है। नकद राशि वो अपने अनुसार उपयोग कर सकते है।कभी कभी एक ही तरह का सामान कई व्यक्ति उपहार स्वरूप दे देते है जो उतना उपयोग नहीं हो पाता है।अगर कुछ बड़ा सामान दे रहे हो तो अवश्य बता देना चाहिए जिससे लड़की वाले वही सामान ना खरीदे।
नगद सबसे बेहतर और उपयोगी है। पर हमारे समाज में तो ज्यादातर लोग रिश्तेदारी में कपड़ा वगैरह ही देते है। जो बहुत जमा हो जाता है और उपयोग नहीं हो पाता है।कपड़ा देने की परंपरा समाप्त हो तो बेहतर है।
 
Geeta Bhatt, Allahabad लिखती हैं: मेरे ख्याल से कोई उपहार नही देना चाहिए बल्कि नकद अमाउंट लडकी के माता पिता को दे ।वो जरूरत के अनुसार जो चाहे खरीद करे।
कभी-कभी दिया हुआ सामान डबल हो जाता है या पसंद नही आता है और यू ही पड़ा रह जाता है। सबकी पसंद भी अलगअलग होती है।
 
Mahendra Pratap Bhatt लिखले हैं: कम लोग ही ऐसी सूचना पहले से देते हैं। मैनें देखा है लोग पायल बिछुवा और/या अंगूठी देते हैं। इन सबकी भरमार हो जाती है। क्या ही अच्छा हो यदि लोग उपहार स्वरूप नकद राशि दें।
Rekha Rai: राशि ही देना चाहिए क्योंकि आजकल लोग अपनी पसंद का सामान लेना चाहते है।जरूरी नही की आपका दिया समान सामने वाले को पसंद ही आये।सिल्वर या गोल्ड तो लोगो के उपयोग में आ भी जाता है। पर बाकी का सामान बेकार हो जाता है।
Priyanka Roy: अन्य कई समुदाय (जैन, पंजाबी आदि) में देखें तो वधु पक्ष के रिश्तेदार विवाह से पूर्व वधु को देने वाले उपहारों पर खुलकर चर्चा कर लेते हैं। जिससे उन्हें काफी मदद और सहूलियत होती है। हमारे घर की शादियों में भी ऐसा प्रचलन रहा है। पर, कई बार दूर प्रदेश की शादियों व समयाभाव की वजह से नकद उपहार का भी प्रचलन तेज हुआ है जो देखा जाए तो काफी सामयिक उचित भी प्रतीत होता है।
Shanker Muni Rai: पिछले माह मेरे चचेरे भाई की शादी हुई। तिलक के दिन फुलहा बर्तन से आंगन भर गया था।
बर्तन रखने के लिए चाची ने जब ड्राम बाकस खोला तो उसमें हम चारों भाइयों की शादी के फुलहा बर्तन दिखे, जो काले पड़ गये थे। भाभी लोगों ने अपनी शादी के बर्तन पहचान लिए। बड़ी भाभी बोलीं कि छठ करने के लिए एक परात ले जाऊंगी मैं।
तब चाची बोलीं–‘ ना ए दादा! अपना मरद के कमाई से खरिदल बरतन में छठ होला, चढ़ावल बरतन में ना!’
यह सुनकर हम सभी लोग जोर से हंसने लगे थे।
 
फिर चाचा जी मुस्कुराते हुए बोले–” का होई ई सब धराऊ बरतन?”
तब चाची का जवाब था–“आदित बाबा घर में लक्ष्मी (लड़की) ना दिहें का! ओहनी के तिलक में चढावल जाई!” यह भी अप्रासंगिक नहीं है।

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