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सुबह का साइंस: सूर्य की किरणें जीवन के लिए कितना जरुरी? Bihar Uttar Pradesh 

सुबह का साइंस: सूर्य की किरणें जीवन के लिए कितना जरुरी?

लेखक परशुराम शर्मा

written by परशुराम शर्मा, Patna/Varanasi

(गऊडांड, भोजपुर के मूल वासी परशुरामजी, जो सीनियर पत्रकार हैं, आजकल बात बे बात नामक सीरिज लिख रहे, एक किश्त यहाँ पेश हैं)
0-बनारस हिंदू वि.वि. के आईआईटी के दो वैज्ञानिकों ने खोज की है कि सूर्य की तरंगों से ‘हरित उर्जा’ पैदा हो सकती है। यह मानव जीवन के लिए एक क्रांतिकारी अविष्कार होगा। यह खबर यहां अखबारों में छपी है। मतलब सूर्य की किरणें हमारी पृथ्वी पर जीवन के लिए जितना जरुरी है, उतना ही इससे निकलने वाली तरंगों का उपयोग भी मनुष्य के लिए वरदान साबित हो सकता है।

सूर्य की महिमा पर और भी बातें हैं। हम अभी उसमें नहीं जा रहे हैं। हम हजारों साल पूर्व के अपने पूर्वजों को याद कर रहे हैं कि बिना किसी समुचित संसाधन के केवल अपने तप और चिंतन से सूर्य की किरणों का मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव की खोज की होगी। खास कर इसमें ब्रह्म मुहूर्त की पहचान हुई होगी। तब कैसे उन्होंने ब्रह्माण्ड की तमाम गतिविधियों को बखूबी समझा होगा ? ब्रह्ममुहूर्त को लेकर हमने अपने पिछले आलेख में कुछ जिक्र किया था। इस पर कई लोगों ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की। इनमें कई हमारे प्रिय निकटवर्ती हैं। पढ़े-लिखे और अपने विषय के जानकार भी हैं। कुछ साधारण और ढेरों समझदार भी हैं।

उन्हीं में एक बनारस में हमारी दुलारी एक ममेरी बहन डा.रंजना राय भी है। वह एमबीबीएस डिग्रीधारी डाक्टर है। अपनी व्यस्तता की वजह से हम एक दूसरे से कम मिल पाते हैं। वह अपना घर-परिवार और मरीज दोनों को बखूबी संभालती है। मैं मोटे तौर पर अपने आप में मगन रहने वाला एकांत प्रिय प्राणी हूं। इसलिए भी कम मुलाकात होती है। वह हमारे मामा की लड़की है। बहुत भोली और भावुक है, इसलिए सबकी दुलारी है। सबकी डाली यानी गुड़िया। जबकि वर्षों पहले वह खुद बच्चे की मां बन चुकी है। मामा-मामी दोनों बहुत ही प्यारे थे। सबसे स्नेह रखते थे। वे दोनों सबकी सहायता में हमेशा तत्पर रहते। हमारी शादी के अगुआ थे। उस समय लड़की देखने का बहुत रिवाज नहीं था। बड़े बुजुर्ग अपनी जान पहचान में बच्चों की शादी तय कर देते और तब आपस में मिलजुल कर ठीक-ठाक शादियां हो जाया करती थी।

अब जमाना बदल गया है। नया दौर है। इसमें ढेर सारे नये टंटे भी अपनाये जाने लगे हैं। आपस में अकेले की शादी तो कोर्ट में शादी, आन लाइन भी शादी और न जाने क्या-क्या ? नये दौर के नये तरीके। इसका अपना ही नफा-नुकसान है। खैर, बात मामा की थी। उन्होंने भी बड़े धमूधाम से अपनी दुलारी डाक्टर बिटिया का विवाह एक पुराने परिचित परिवार में सुयोग्य वर, इंजीनियर, से कराया । उनकी इसी डाक्टर बेटी ने फेसबुक पर ब्रह्म मुहूर्त के बारे में मुझसे कुछ विशेष जानना चाहा है। वह जल्दी जगने का मतलब दिन भर काम के लिए ज्यादा समय मिलना भर मानती है। वह ठीक ही समझती है। सबेरे जगने का यह भी एक सीधा लाभ है।

ब्रह्ममुहूर्त का मतलब और भी बहुत कुछ है। इसके वैज्ञानिक तथ्यों और अध्यात्मिक कारणों को भी हमें, जितना हो सके, जानना चाहिए। इसमें मनुष्य के लाभ वाले सर्वोत्तम समय की पहचान की गयी है। सूर्योदय और उससे डेढ़ घंटे पहले को ही ब्रह्म मुहूर्त कहा गया। मानसिक एकाग्रता और स्वास्थ्य वृद्धि में इस समय का बहुत योगदान है।

पर ब्रह्ममुहूर्त का मतलब और भी बहुत कुछ है। इसके वैज्ञानिक तथ्यों और अध्यात्मिक कारणों को भी हमें, जितना हो सके, जानना चाहिए। इसमें मनुष्य के लाभ वाले सर्वोत्तम समय की पहचान की गयी है। सूर्योदय और उससे डेढ़ घंटे पहले को ही ब्रह्म मुहूर्त कहा गया। मानसिक एकाग्रता और स्वास्थ्य वृद्धि में इस समय का बहुत योगदान है। हालांकि अब तो लोगों का लाइफ स्टाइल तेजी से बदलता जा रहा है। फिर भी थोड़ा बहुत सबको जानना चाहिए। यह हमारे तरक्की में सहायक है। आम लोग इसका लाभ उठा सके, इसके लिए ढेर सारे उपाय किये गये। यज्ञ आदि, पूजा-पाठ, पुण्य प्राप्ति और धर्म का चोला भी चढ़ाया गया। जैसे भी हो, हमें सिर्फ जागरूक करना ही पूर्वजों का उद्देश्य रहा होगा। यह आज की भी जरुरत है। इंटरनेट की दुनिया में हम सारा काम छोड़ कर रात-रात भर मगजमारी कर सकते हैं, तो सुबह का कुछ समय क्यों नहीं निकाला जा सकता है। कम से कम ‘अर्ली टु बेड एंड अर्ली टु राइज’ की बात ही मान लें, तो यही बहुत है।

खैर, जैसा कि हमने पहले ही कहा है कि मेरे भतीजे रितेश से बनारस में मुझे एक योग एवं तंत्र साधक की लिखी पुस्तक पढ़ने को मिली। इस पुस्तक में ब्रह्म मुहूर्त या उत्तम बेला के बारे में कुछ रोचक एवं उपयोगी जानकारी दी गयी है। उसी का यहां उल्लेख करता हूं, जो शायद डाक्टर बहन के लिए उपयोगी सिद्ध हो। पुस्तक के लेखक अरुण कुमार शर्मा हैं। इनकी अनेक शोधपरक पुस्तकों में एक पुस्तक “कारण पात्र” मुझे हाथ लगी। इसमें एक जगह जीव विज्ञान/ बायलोजी जैसे विषय का रोचक विश्लेषण है। खास कर, शरीर के भीतर प्रवाहित हो रही विद्युत एवं सूर्य की किरणों के आपसी संबंधों से पड़नेे वाले असर के बारे में चर्चा है। इसमें बताया गया है कि चार हजार वर्ष पूर्व योग विज्ञान ने जिस चीज़ को सिद्ध कर दिया था, उसी चीज़ को अब जाकर आधुनिक विज्ञान ने अपनी मान्यता दी है। पुरातन योग विज्ञान के अनुसार सूर्य से मानव शरीर के लिए पराकासनी किरणें प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है। यदि हम उचित ढंग से पराकासनी किरणों को सूर्य से ग्रहण करें तो इसका पहला लाभ यह होगा कि हम दीर्घायु होंगे। शीघ्र रोगग्रस्त नहीं होंगे। दूसरा लाभ यह कि हमारे शरीर, विशेष कर मुख मंडल, का आकर्षण बढ़ेगा,मुख की कांति बढ़ेगी। तीसरा लाभ यह कि हमारे नेत्रों की ज्योति में वृद्धि होगी और चौथा लाभ कि यह हमारे यौवन के लिए अति लाभकारी सिद्ध होगा। ऐसे व्यक्तियों के संतानों पर भी इसका काफी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।

पुस्तक में सूर्य से पराकासनी किरणें कब और कैसे प्राप्त होगी, इसका उल्लेख है। शायद, इस कालावधि को ब्रह्म मुहूर्त कहने के पीछे का यही रहस्य छुपा हो। क्योंकि इस पुस्तक में सूर्योदय के समय के वर्णन से तो कुछ ऐसा ही ज्ञात होता है। यद्यपि इस पुस्तक में ब्रह्म मुहूर्त पर सीधे कोई चर्चा नहीं है। पर, यह कहा गया है कि सूर्योदय की अवस्था में चार काल होते हैं- उषा काल, अरुणोदय काल, सूर्योदय काल और प्रातः काल। पूरब का आकाश जबतक सफेद रहता है तथा पश्चिम दिशा में जबतक तारे झिलमिलाते रहते हैं, तबतक के समय को उषा काल कहते हैं। उसके बाद पूरब का आकाश पटल सिन्दूरी रंग हो जाता है और जबतक उसका अस्तित्व रहता है तबतक के समय को अरुणोदय काल कहते हैं। इन दोनों कालों में पराकासनी किरणें अत्यधिक मात्रा में विकीर्ण होती है। ठीक उस समय पद्मासन की मुद्रा में पाकृतिक वातावरण वाले स्थान पर बैठ नेत्रों को खोल कर स्थिर भाव से एकाग्र चित्त होकर बिना पलक झपकाये दोनों काल के वर्णों को देखना चाहिए। ऐसी अवस्था में नेत्रों के माध्यम से सूर्य की पराकासनी किरणें प्रविष्ट होकर सम्पूर्ण शरीर में फैल जाती है। इसका लक्षण यह है कि सारे शरीर में कम्पन जैसा कुछ महसूस होने लगता है,और भीतर शांति का अनुभव भी होता।

इसके बाद आता है सूर्योदय काल। सूर्य अपने पूरे स्वरुप में क्षितिज पटल पर उदय हो जाता है। लेकिन कुछ समय तक उस पर अपने नेत्रों को स्थिर रखा जा सकता है। यदि पूर्ववत सूर्य बिम्ब को भी हम स्थिर भाव से बिना पलक झपकायें देंखे तो सूर्य द्वारा हमें ब्रह्माण्डीय उर्जा की उपलब्धि होगी। क्योंकि उस अल्प काल में सूर्य रश्मियों द्वारा ब्रह्माण्डीय उर्जा का विकीरीकरण होता है। ब्रह्माण्डीय उर्जा हमारे शरीर के रक्तप्रवाह में सहयोगी सिद्ध होती है। मस्तिष्क के विकारों को भी नष्ट करती है। हृदय को भी शुद्ध रखती है।

सूर्य से प्राप्त होने वाली पराकासनी किरणें शरीर में ‘डी-खाद्धोज’/ विटामिन-डी उत्पन्न करता है। किरणें रक्तचाप घटाती है। स्नायुमंडल में स्फूर्ति भरती है और रक्त कणों की संख्या में वृद्धि करती हैं।

अंत में आता है प्रातःकाल। इस काल में सूर्य चमकने लगता है और उस पर नेत्र स्थिर नहीं हो पाता। उस अवस्था में सूर्य को जल से अर्ध्य देने का पुराना विधान है। इससे ढेर सारे दैहिक व भौतिक दुःख-दर्द दूर होते हैं। पुस्तक में सूर्य को अर्ध्य देने के विधान का भी वर्णन है। लिखा है कि ताम्रपात् में जल लेकर उसमें लाल पुष्प और लाल चंदन डाल कर सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। आदित्य हृदय स्तोत्र, सूर्य सहस्रनाम अथवा विष्णुसहस्त्र नाम का खड़े होकर पाठ करना चाहिए। इन कार्यों के फलस्वरूप दारिद्रय नाश, रोग नाश, गृह कलह, आपसी द्वेष आदि समाप्त हो जाते हैं और अन्य अनेक लाभ होते हैं।

इस तरह बाहर से यानी सूर्य से प्राप्त होने वाली पराकासनी किरणें शरीर में ‘डी-खाद्धोज’/ विटामिन-डी उत्पन्न करता है। किरणें रक्तचाप घटाती है। स्नायुमंडल में स्फूर्ति भरती है और रक्त कणों की संख्या में वृद्धि करती हैं। उपर के कथनानुसार रक्त विद्रव के आधुनिक प्रकाशात्मक गुण धर्म के संबंध में बड़ी रोचक बात तो यह है कि प्राचीन भारतीय दर्शन, योग व तंत्र ग्रंथों में जीवन, प्राण, तारुण्य को प्रकाश रुप माना गया है।

पुस्तक में दिये गये इस तथ्य से तो हमें यही जान पड़ता है कि पुरातन समय से रचित हमारे गायत्री मंत्र के पीछे का विज्ञान भी यही रहा होगा। इसके जरिये सूर्य से प्रकाश के माध्यम से तीव्र बुद्धि एवं विवेक की प्रार्थना की गयी है। यह मनुष्य के उन्नति की पहली जरुरत समझी गयी। तभी तो गायत्री मंत्र को महामंत्र माना गया। इसकी साधना पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। यानी गायत्री मंत्र के रचयिता को एक खास समय में सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होने वाली शक्तियों के बारे में सब कुछ अच्छी तरह पता होगा। ब्रह्माण्ड की ताकत का पता होगा। यह एक सर्व सिद्ध वैज्ञानिक फार्मूला है। कोई धार्मिक ढकोसला मात्र नहीं है। यह समस्त मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक विकास का अचूक मंत्र है। इसके एक-एक शब्द मानव मन और शरीर के तमाम अंगों पर अनुकूल प्रभाव छोड़ते हैं। बीमार या सुप्त अंग दुरुस्त हो जाते हैं।

इस तरह देखा जाये तो सूर्य केवल एक ताप का गोला नहीं, बल्कि पृथ्वी तक पहुंचने वाली उसकी सकारात्मक किरणें कई मामलों में वरदान है। इस पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों की खोज निरंतर जारी है। भारत के ऋषि-मुनियों को काफी पहले सेे इसका दिव्य ज्ञान हो चुका था । यह हमारे लिए गौरव की बात रही है।

— परशुराम शर्मा ।
१० अक्टूबर २०१८.

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