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मेरा पिंडी गांव: बेशक़ लोग बाहर हैं पर गांव का सौंदर्य और निखरा है India Uttar Pradesh 

मेरा पिंडी गांव: बेशक़ लोग बाहर हैं पर गांव का सौंदर्य और निखरा है

लेखक : पं. अनिल शर्मा, भारतीय थल सेना, अहमदनगर, महाराष्ट्र

“भारतीय गांव की कहानी “: पिंडी, जिला देवरिया (यू पी)

आपने पिंडी गाँव का नाम जरूर सुना होगा जो उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की तहसील सलेमपुर, थाना लार के मातहत आता है, जो कि पावन सलिला सरयू के तट पर बसा हुआ पतिहा ब्राह्मणों का गांव है। इस गांव में 25 से 30 ब्रहमभट्ट परिवार हैं, इसी गांव में अपने समाज के भोजपुरी के भीष्म पितामह कहे जाने वाले हास्य रस के आशु कवि स्वर्गीय पंडित दूधनाथ शर्मा ” श्याम ” जी हुए।
मैं पंडित राजबली शर्मा जी का पौत्र हूं, दादा जी हमारे रंगून में वाटरशिप में कार्यरत थे, वर्ल्ड वार के बाद वह मुंबई पुलिस में पुनः सेवा में थे। मेरे पिताजी तीन भाई थे-
01 – श्री जगन्नाथ शर्मा
02 – श्री भृगुनाथ शर्मा
03 – श्री रामजी शर्मा और उसमें सबसे बड़े स्वर्गीय पंडित जगन्नाथ शर्मा जी के चार पुत्रों में मैं तीसरे नंबर का हूं।
फरवरी 1968 का मेरा जन्म है 4 या 5 वर्ष की आयु में गांव के प्राइमरी स्कूल में शिक्षा का प्रारंभ हुआ बाद में इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई करने के बाद मैं उच्च शिक्षा के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर बाहर निकला।

हमारा गांव पिंडी जो कि एक समृद्ध गांव है जहां कन्या विद्यालय, लड़कों के लिए इंटरमीडिएट कॉलेज जो आज परास्नातक महाविद्यालय की शक्ल ले चुका है, बी०एड० और अन्य तकनीकी शिक्षा भी अब शुरू है। चिकित्सालय की भी उत्तम व्यवस्था है जो मैं बचपन से देखता आ रहा हूं। सरयू तट के दक्षिणी छोर पर बना श्रीहनुमान जी का मंदिर और तट के उत्तरी छोर पर बना प्राचीन श्रीराम जानकी जी का मंदिर विशेष रूप से आकर्षित करता है।

बचपन में जब हम अपने खेत खलिहान की तरफ जाते थे तो बीच में अमुरतानी (अमरूद का बाग ) लगता था बुला रहा है और ना चाहते हुए भी बाल स्वभाव बस कुछ कच्चे अमरूद का स्वाद ले ही लेते थे। वहीं गन्ना पेरने का यंत्र जिसे हम कल्हुआड़ बोलते थे पकते हुए गुड़ से उठते हुए सुगंध के कारण वहीं पास के बंसवारी से बांस का एक सिपुली ( सिपुली कहते हैं बांस के जड़ में लगा हुआ बांस का बड़ा पत्ता ) लेकर महिया खाते थे। महिया निकलता है गुड़ के थोड़ा गाढ़ा होने पर।

समय के साथ मेरे गांव नें भी बदलाव की ऐसी सूरत देखी कि आज गांव जाने पर बहुत से घरों में ताले मिलते हैं, बहुत से युवा या तो किसी रोजगार में बाहर हैं या तो नौकरी पेशे में बाहर हैं।

बेशक़ लोग बाहर हैं फिर भी गांव का आकर्षण कम नहीं हुआ है उसका सौंदर्य और निखरा है। बेशक़ कच्चे मकान, फूस के पलान, लकड़ी के नक्काशीदार खंभे, वृत्तचित्र जो थे, सब विदा हैं आज गांव की धरोहरों से, फिर भी लहलहाते खेत, तालाब, पोखरे और सरयू नदी से प्रतिपल पवित्र होता मेरा गांव जहां पर बसती है मेरी आत्मा वह पूजनीय मेरा गांव पिंडी जिसे शत्-शत् मेरा प्रणाम है।

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