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आपके गांव की मिट्टी भी दे सकती है लाखों, पर कैसे? Uttar Pradesh 

आपके गांव की मिट्टी भी दे सकती है लाखों, पर कैसे?

…और खेती से सिज्जू बाबू की आमदनी लाखों में पहुंच गयी जिसकी कल्पना भी हमें नहीं थी!

गांव में एक कहावत है कि-उत्तम खेती, मध्यम बाननिषिद्ध चाकरी, भीख निदान।इसका अर्थ है सबसे अच्छी खेती उसके बाद व्यापार, दूसरे की नौकरी कभी ना करो भले ही भीख मांगनी पड़े।
#इस_लेख_में जो तस्वीर आप देख रहे हैं।

यह तस्वीर है मेरे ही गांव के प्रगतिशील युवा किसान श्री विजयमोहन उर्फ सिज्जू बाबू की। आज से चार-पाँच साल पहले तक यह भी गांव के पढे लिखे बेरोजगारों की तरह नौकरी की लाइन में थे। उनकी आमदनी शून्य पर आ चुकी थी। कुछ कर नहीं पा रहे थे। बस नौकरी की तलाश में वक्त गुजरता था।

उसी बीच हम लोगों के एक कामन मित्र ने इन्हें प्रेरित किया और हम दोनों में भी गम्भीर विचार विमर्श हुआ। फैसला यह हुआ कि, गांव में रहकर ही हमें खेती-बाड़ी के माध्यम से आर्थिक रुप में सक्षम होना है। फिर शुरू हुआ नयी-नयी जानकारियों को गंभीरता पूर्वक क्रियान्वित करने का दौर। इसका सुखद परिणाम यह है कि, बहुत कम समय में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ ही इलाके के विशेषज्ञ किसान के रूप में प्रतिष्ठा भी प्राप्त हुई।

आज के समय में इनकी वार्षिक आय 8-10 लाख रुपए हो चुकी है। जबकि इन्होंने अपनी कुल क्षमता का 30-40 प्रतिशत ही उपयोग किया है! पूरी उम्मीद यह है कि आगे के दो चार सालों में यह अपनी सालाना आय में और भी इजाफा कर लें। यह सब वास्तव में संभव हैं जैसे कि सिज्जू बाबू अब क्षेत्रीय किसानों के रोल मॉडल हो गये हैं।
यह तथ्य मैंने एक उदाहरण के तौर पर रखने का प्रयास किया है। और कारण यह है की आज के हालातों में जब देश में सबसे बड़ी आर्थिक मंदी आती हुई दिखाई दे रही है। अभी गांवों की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है, वहां बेरोजगारों की इतनी बड़ी फ़ौज को गांव सम्हाले कैसे? आर्थिक रूप से गांवों के लिए यह संक्रमण काल है। यह अवधि एक बड़े सामाजिक परिवर्तन का भी युग कहलाएगा।
तो आइए, हम अपने समाज के ऐसे युवाओं के आर्थिक हित में कुछ बिन्दुवार चर्चा करने का प्रयास करें जिससे कुछ हद तक गांवों को भी हम एक आर्थिक इकाई के रूप में बदलने की ओर अग्रसर हो पायें।
1) कृषि, बागवानी, शाक-सब्जी उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों की पहचान हो और इसे अच्छे वैज्ञानिक/उन्नत तरीके से करने हेतु नव युवकों को प्रेरित करें। उन्हें जानकारी संबंधित सुचनाओं से अपडेट करने में मदद करें।
2) पशुपालन,मत्स्य पालन, तथा इन जैसे अन्य ग्राम आधारित उद्यम के लिए युवाओं को प्रेरित करने के साथ-साथ ही इनकी मदद करना।
3) जो भी स्वजन गांव देहात छोड़ चुके हैं। वो अपनी जमीनों का उपयोग किसी अपने स्वजन को ही करने का अधिकार दें और साथ में कुछ आर्थिक मदद के साथ सामयिक सलाह भी दें।
4) खाली या बेकार पड़ी जमीनों का या जमीन के बहुत छोटे टुकड़े का भी सही उपयोग हो सकता है। जैसे मशरूम उत्पादन या हैचरी आदि के लिए भी प्रयास किया जा सकता है।
5) फूड प्रोसेसिंग, मिल्क प्रोडक्ट से संबंधित छोटी इकाइयां भी लगाई जा सकती हैं, सीड प्रोसेसिंग भी एक अच्छा विकल्प है।
6) जैविक खेती और औषधीय खेती हेतु लोगों को प्रेरित करना और उनकी मदद करना जो कि समसामयिक और शहरों मे भारी डिमांड में है ।
7) अलग-अलग तरह के जंगली पेड़ पौधे जिनकी सुरक्षा बहुत आसान है लगाने के लिए प्रयास करना।
8) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत बड़े स्तर पर कृषि आधारित योजनाओं की शुरुआत की गयी है, और बहुत तरह के अनुदान और सब्सिडी मिल भी रही है। थोड़ी सी बुद्धिमत्ता, प्रयास, जानकारी और सहयोग से हमें इसका अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास करना चाहिए।
एक अन्तिम निवेदन यदि संभव हो तो बीबीडबल्यु में भी अपने कुछ ऐसे सदस्यों की पहचान हो और आगे आएं जो क़ृषि के साथ ही अन्य संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ हों। हम भी एक डेस्क बनाकर लोगों के जिज्ञासा का सही समाधान करने और उनकी मदद करने का प्रयास करें।
आइए, अपने सहयोग और स्तर से देश की आर्थिक स्तिथि सुदृढ़ और मजबूत करें।

BBW के सदस्यों ने इस लेख पर क्या लिखा:


Abhinit Onam, बंगलोर: बहुत ही सुंदर रचना और ज़रूरत के हिसाब से सही समय की रचना। ये वास्तविक धन है।

Ajit Pandit Sharma: बहुत कम लोग किसान लोगों के बारे लिखते है।1

Akhilesh Mishra: अत्यधिक प्रेरित करती हुई बात यह बिल्कुल सही है कि आज के समय मे जिस तरह का पलायन हुआ है उसमें नयी पीढी के लिए खेती एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है। हाँ, यह जरूर है कि हमें जो भी करना है पूरे वैज्ञानिक तरीक़े से करना है।इसमें समाज के सारे लोगों का सहयोग कि जरूरत होगी।

Amita Sharma, रांची: अनुकरणीय पोस्ट। इस जानकारी से हम गाँव की जमीन का सही इस्तेमाल कर सकते हैं तथा गाँव में रह रहे कुछ बेरोजगार को रोजगार से भी जोड़ सकते हैं। सिज्जु बाबा के उज्ज्वल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

Anamika Raje Sanjay Roy, नई दिल्ली: महत्वपूर्ण विषय पर पहल करने के लिए बहुत बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय भाई साहब। ऐग्रिकल्चर की शैक्षणिक पृष्ठभूमि होने के नाते मैं कह सकती हूँ कि दक्षिण भारत में ऐग्रिकल्चर के प्रति जो जागरूकता है वह उत्तर भारत आते आते उदासीनता में बदल जाती है।कृषि करने से महत्वपूर्ण है उन्नत कृषि करना जिससे जमीन के हर इंच का सम्यक् प्रयोग हो और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने की पूरी तैयारी हो। उत्तर भारत में मौसम और परिस्थितियों पर निर्भरता छोड़ने की भी बड़ी जरूरत है और ऐसे अनेकों यक्ष प्रश्नों के उत्तर में आपका प्रयास सराहनीय है।

Anil Sharma, अहमदनगर, महाराष्ट्र: बहुत सही,,,,सकल पदारथ एही जग माही/करम हीन नर पावत नाहीं/धरती अपार धन-संपदा देती है ज़रूरत है तो बस धरती से दोस्ती करने की।।

Arvind Kumar Guddu Babu: शर्माजी, नमस्कार मैं कुछ दिन पहले आपके गांव में गया था केले की खेती को देखा बहुत ही सुंदर लगा

अविनाश कुमार शर्मा:: Great job बस अपने मिट्टी पर भरोसा रखें।

Banshi Lal Sharma: बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर ये परिचर्चा है आशा है आगे भी जारी रहेगी !एक नये आशा का संचार हुआ है

Ganpati Maharaj, नई दिल्ली: इस तरह का पोस्ट समाज के लिए सन्जीवनि का काम कर सकता है।

Krishna K Sharma: Dear Ajay, I wish to thanks you because of your creative nature and bringing the good things of our lovely village Tilauli on this Social Media platform. Our younger brother Shijju getting popularity today because of his creative thought of farming in new style, as our ancesstors and parents were doing stereotypes farming. Our other unemployed brothers and earlier migrated youths from Metro cities like Mumbai, Delhi, Ahmebabad etc., Should learn from Shijju and you too. They must approach local Govt. Authorities to get benefits from various on going schemes. I am hopeful, few more talented youth like Shijju will come forward with new ideas in professional ways and will bring our village on Staste / National platforms. Wish you all the best to you all for doing good job at native village itself.

Madan Mohan Sharma: Good job excellent

Manish Bhatt, यूपी: जी भईया प्रणाम बहुत ही प्रेरणादायी संदेश दिया आपने। BBW परिवार में बहुत से लोग ऐसे हैं जो खेती से नेम फेम और जिनका करोड़ो का टर्न ओवर भी साल का है। हमारे भी गाँव में भी एक दो लड़के है जिन्होने खेती से अपनी तकदीर और तस्वीर बदली है। शायदअपने इसी परिवार में आर्गेनिक खेती के जनक हैं ।जिनसे बहुत से लोग प्रेरणा और मार्गदर्शन ले सकते हैं।

Manoj Kumar Sharma: Great job done by dear Sijju. Really very much appreciable, new initiative in the field of agriculture in our area, which is very much profitable.We can also start in the field of organic grains.Many many congratulations and blessings to Sijju and all supporting persons.

Manish Bhatt: जी भईया प्रणाम। बहुत ही प्रेरणादायी संदेश दिया आपने। बी बी डब्लू परिवार में बहुत से लोग ऐसे हैं जो खेती से नेम फेम और जिनका करोड़ो का टर्न ओवर भी साल का है हमारे भी गाँव में भी एक दो लड़के है जिन्होने खेती से अपनी तकदीर और तस्वीर बदली है। और शायदअपने इसी परिवार में आर्गेनिक खेती के जनक हैं ।जिनसे बहुत से लोग प्रेरणा और मार्गदर्शन ले सकते हैं।
Nilesh Tripathi: बहुत बहुत बधाई आपको और सिज्जू बाबू को भारत को आत्मनिर्भर बनाने मे आपकासहयोग मिल का पत्थर साबित होगा।

Preeti Sushil Sharma, यूपी: अनुकरणीय उदाहरण,बहुत अच्छी जानकारी, सिज्जू जी को हार्दिक अभिनन्दन.

Pradeep Kumar Sharma: अति उत्साह वाला लेख है इससे लोगों को प्रेरणा मिलेगी और लोग आत्मनिर्भर बनने के लिए समर्पित होगें।

Priyanka Roy, पटना: समाज के एक कर्मवीर की प्रगति को देखकर खुशी हुई। हमारी ओर से उज्ज्वल भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं। साथ ही आपने एक महत्वपूर्ण विषय को बहुत ही उम्दा तरीके से प्रस्तुत किया जिसके लिये आभार। तत्कालीन अवस्था जो है उसमें यह विचार बेहद फलदायक है। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाली कृषि पद्धति के सर्वांगीण विकास पर पूर्ण चिंतन अति आवश्यक है। देश को आगे बढ़ाने की इस सोच को नमन।

Pramod Chandra Sharma: आज शहरों का अर्थ पलायन देहात की तरफ हो चुका है देहात अर्थात गांव गांव में भूमिहीनों की संख्या उतनी नहीं है जितना भूमि वानों के कुशल प्रबंधन की आवश्यकता है। कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान लगभग लोग सरकार पर आश्रित हो गए सरकार इसमें नया कौतूहल नहीं पैदा कर पा रही है। नई-नई खोजों की आवश्यकता है। शहरों की खोज गमलों तक है। शहरों में गमलों में सब्जियां फूल पत्तियां बहुत हुआ तो बोनसाई पौधे पर जितना चिंतन हुआ उसका कुछ प्रतिशत गांव के खेतों पर अनुसंधान होता तू सच में लोग नौकरी के पीछे नहीं दौड़ते। बहुत बड़े रोड मॉडल लखनऊ में श्री बजरंगी भट्ट जी जिनके लड़के इंजीनियरिंग करके खेती के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं जिनकी आय करोड़ों वार्षिक है और भट् जी के सुपुत्र गण खेती का कार्य एक कंपनी की तरह चलाते हैं बहुत सुंदर प्रयोग है उसे समझना और अध्ययन करना चाहिए जिस पर वे खुद काफी मदद करने के सहयोग करने के तैयार रहते हैं। आपने सुंदर विषय का चयन किया है संभव है इसे बहुत लोग लाभान्वित होंगे इसके लिए आपको हृदय से साधुवाद।

Promod Kumar Maharaj, गुरुग्राम: आप बधाई के पात्र हैं। गरीब, निम्न और मध्यम वर्गीय किसान के प्रेरणाश्रोत हैं।

Pushp Kumar Maharaj

Pushp Kumar Maharaj, गोरखपुर: बहुत ज्ञानवर्धक व प्रेरणादायक पोस्ट…मैं अजय बाबा द्वारा इस बिषय के चयन को हार्दिक अभिनन्दन करता हूं वैज्ञानिक ढंग से खेती-बाड़ी, बागवानी, मछली पालन, पशुपालन में आमदनी की बहुत संभावनाएं हैं…….सिज्जू जी को हमारी शुभकामनाएं…वे कृषि के रोल माडल है हमारे लिए आजआवश्यकता है कृषि में थोड़े बदलाव की, हम अपनी परंपरागत खेती से थोड़ा अलग करें तो आमदनी के साथ साथ आत्मनिर्भरता बढ़ेगी…अपनी व्यावसायिक लाभ के लिए हमने अपनी हरितवसना प्रकृति का चीर हरण कर डाला. हमने सड़कें मकान हास्पिटल बनाने के लिए जंगल उजाडे खेती युक्त जमीनों को बर्बाद किया…..और अधिक उत्पादन के लिए अकार्बनिक फर्टिलाइजर, कीटनाशकों व जहरीले रसायनों का प्रयोग कर जमीन को बंजर करने का कोई प्रयास नहीं छोड़ा ….इस करोना काल में आयुर्वेद के महत्व को समझा गया कल तक का सस्ता सुलभ आयुर्वेद अब महंगा और दुर्लभ होता जा रहा है..और इसकी मांग भविष्य में और भी बढ़ने वाली है अगर हम जड़ी बूटियों की खेती पर थोड़ा प्रयास करें तो इसके परिणाम अत्यंत सुखद होंगे….महाराष्ट्र के नासिक से लासलगांव मार्ग पर अंगुर प्याज व गन्ने की ज्यादातर खेती की जाती है अगर कभी मौका मिले देखने का तो किसानों की आर्थिक स्थिति देखकर आपको आश्चर्य होगा हर किसानों का रहन सहन कितना ऊंचा है उन्होंने अपने अंगुर की खपत के लिए निर्यात के अलावा वाईनरी लगा रखी है जहां उच्च कोटि का रेड वाइन white वाइन बना कर उसका निर्यात करते हैं… और प्याज के बारे में आप सभी लोग जानते ही हैं बहां सारी व्यवस्था cooperative society करती है खरीदारी से ढूलाई तक का कार्य…..गन्ने की खेती व वहां की रिकवरी देखकर आपको आश्चर्य होगा…. इसलिए वहां के किसानों की आमदनी व शान शौकत देखकर आपको आश्चर्य होगा..Ajay Sharma Baba, देवरिया ::Pushp Kumar Maharajजी जहां तक महाराष्ट्र की बात है तो सहकारिता आंदोलन जितना महाराष्ट्र में सफल हुआ उतना देश के अन्य किसी भाग में नहीं जिसका अच्छा प्रतिफल आगे चलकर वहां के किसानों को मिला। ठीक इसी तरह वर्गिज कुरियन की प्रेरणा से गुजरात में दूग्ध उत्पादन से संबंधित सहकारी समितियों ने कमाल का काम किया। लेकिन देश के बहुत से भाग उपजाऊ जमीन और अच्छे संसाधनों के बावजूद भी पिछड़ गये खासतौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य आर्थिक रूप से कमजोर तो हुए ही अपने नागरिकों को पलायित होने से भी नहीं रोक पाये। हमें यह स्विकार करना ही पड़ेगा की कृषि क्षेत्र की असफलता ने हम सभी के सामाजिक ताने-बाने पर बड़ा ही नकारात्मक प्रभाव डाला। Pushp Kumar Maharaj:: Ajay Sharma Babaजी हमारे यहां तो नेतागिरी व गुंडा गर्दी है बेईमानों व बिचौलियों ने सब गड़बड़ कर दिया है। Pushp Kumar Maharaj: Roy Tapan Bharatiजी मेरा दावा है केवल गिलोय व तुलसी की खेती अभी से भी किया जाय तो मालामाल हुआ जा सकता है इस पर लागत भी बहुत कम है और चाहें तो एक छोटी इकाई लगाकर इसकी मार्केटिंग कर सकते हैं…Ajay Sharma Baba: Pushp Kumar Maharajजी, नहीं सर, मात्र इतनी ही सच्चाई नहीं है। असल में मैंने जहां तक इस विषय में चिंतन किया है तो मुझे लगता है की खेती घाटे का सौदा है,खेती में क्या रखा है और इसी के साथ खेती से पेट भरेगा क्या जैसे तमाम वाक्य हमें रोज ही सुनने को मिल ही जाते हैं। और यदि इससे भी आगे बढ़कर किसी ने अपने बूते हिम्मत कर ही ली तो हमारा सिस्टम उस व्यक्ति के मनोबल को तोड़ने के उपक्रम में लग जाता है। मैं एक उदाहरण देता हूं 1990 के पहले संभवतः मेरा जनपद देवरिया देश के सबसे अधिक चीनी मिलों वाला जिला था लगभग 12 या 13 मिलें थीं बाद में इसी में दो जिले हो गये आज के समय में कुशीनगर में लगभग पांच मिलें और देवरिया में मात्र एक मिल ही चलती है। ऐसा क्यों हुआ यह विचार करने का विषय है। असली बात मुझे यह समझ आती है की बिहार, उत्तर प्रदेश जैसी जगहों की कृषि व्यवस्था को चौपट कर दो और इन्हें दूसरों का मजदूर बनने पर विवश कर दो। जितनी नकारात्मक बातें हैं उन्हें एक एजेंडे के तहत परचारीत करो अपने लोगों को कृषि की अच्छी व्यवस्था दो और दूसरों को मजदूर बनाओ। हमें इस कुचक्र से निजात पानी ही पड़ेगी अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब हम अपने ही देश में गिरमिटिया होने के लिए शापित हो जायेंगे। Pushp Kumar Maharaj: Ajay Sharma Babaजी सिर्फ गोरखपुर देवरिया में जितनी चीनी मिलें थी उतनी पूरे महाराष्ट्र में नहीं है पर आज कितनी मिलें जीवित है आप भी जानते हैं मैं भी जानता हूंगन्नै व मिलों का राजनैतिकरण हो गया… गुंडा गर्दी शुरू हो गई….किसानों के कई कई सालों के भुगतान रोक दिए गए… किसानों ने गन्ना ही बोना बन्द कर दिया…रिकवरी रेट एकदम कम हो गई और मिलें बिमार होती होती बन्द हो गई…..और भी सरकार की कुछ ग़लत नीतियां इसकी कारक रही हैं..Ajay Sharma Baba :हो सकता है बहुत से लोग यह बात न जानते हों एक रोचक बात कहना चाहूंगा जिसमें तथ्य भी है। लगभग बीस साल पहले तक जब हमारे तरफ किसी के लड़के या लड़की का विवाह तय हो जाता था तो लोग बाग चीनी मिलों से मिली हुई गन्ने की तौल पर्ची को ही बड़े दूकान दारो के यहां गारंटी के रूप में रख देते थे ।पर्ची के आधार पर ही सोने चांदी कपड़े के साथ ही हर तरह का सामान मिल जाता था। गन्ने की खेती का हब हुआ करता था यह क्षेत्र। लेकिन किसी षड्यंत्र के तहत अब तो बस मजदूरों के सप्लाई का हब बन कर रह गये हम। पूरे पूरे जिले में एक भी शीतगृह का ना होना क्या दर्शाता है। भंडारण की कोई व्यवस्था नहीं । क्या बताता है यह कृषि हेतु हमारी मिट्टी, जलवायु, पानी की उपलब्धता पुरे देश में सबसे बेहतर होते हुए भी हम उबड़-खाबड़ और बंजर जमीन रखने वालों के मजदूर बनने के लिए अभिशप्त हैं।यह जबरदस्त षड्यंत्र नहीं है तो क्या है।

Rakesh Nandan: कृषि क्षेत्र के विश्वस्तरीय एक्सपर्ट हमारे अपने राजीब कुमार रॉय जी हैं। और उनकी सलाह तो हमेशा मिलेगी।

Rakesh Sharma, गोपालगंज: बहुत सुंदर सुझाव और बहुत अच्छा पोस्ट। अभी कल की बात है जब प्रधानमंत्री जी ने अन्नदाताओं यानी किसानों को नमन किया है। संक्रमण के इस काल में जब शहर से पलायन शुरू हुआ तो फिर गांव में ही राहत मिली। यानी कि अब भी जो पुरानी कहावत है वह सार्थक सिद्ध हुई है यानी उत्तम खेती, मध्यम व्यापार…आज के समय में जरुरत है कि जिसके पास भी गांव में खेती के लायक जमीन हैं उसमें आधुनिक खेती करने की, खेती को उधोग धंधों के तरह अगर ध्यान से दिमाग लगाकर और खेतों को कम्पनी के तरह घेराबंदी करके, खेती किया जाय तो निश्चित ही, अन्नदाता तो बनेंगे ही,आर्थिक रुप से भी कोई पछाड़ नहीं सकता है। हमारे समाज के रोल माडल राजीव राय भैया जी ने बंगलूरू में आधुनिक कृषि तकनीकी के उपर एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया है जिन्हें ज्वेल्स आफ साउथ का राष्ट्रपति जी से पुरस्कार प्राप्त हुआ है और ना जाने कितने भी पुरस्कार प्राप्त किए हैं और उनकी कम्पनी Agri horti आज विश्व की अग्रणी कम्पनियों में एक है। इसलिए आज के समय में खेती को उधोग का दर्जा देकर उसे करने की जरूरत है, जिसमें सरकार के द्वारा विभिन्न तरह के छुट और थोड़ी सी ब्याज दर पर बहुत ज्यादे लोन की भी सुविधा उपलब्ध है। इसलिए जरूरी है कि इसपर ध्यान दिया जाए और अपनी पुरानी विरासत को संभाला जाय।

Rekha Rai, चेन्नई:: बहुत अच्छी उपयोगी रचना। महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराता हुआ।

Roy Tapan Bharati: सिज्जू बाबा के बगल में खेत लेकर खेती करने का मन अकुला रहा है ऐसे भी हम सब कोरोना के कारण बड़े शहर से उब गये हैं। इस आदर्श किसान की कहानी BBW के अलावा khabar website पर भी शीघ्र छपेगी। इस सकारात्मक स्टोरी के लिए अजय बाबा को बधाई। Pramod Chandra Sharma: Roy Tapan Bharatiजी, अजयजी जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति हैं सर शहरों के कोलाहल का विज्ञान उनके अंदर भी मचलता है परंतु अपनी जमीन की लगाव के कारण शहरों में इनकी सांस फूलती है इनके परिश्रम से और मस्तिष्क के अंकुरित ऊर्जा को आप समझ चुके होंगे यह लोकलुभावन के प्रति आकर्षित नहीं होते परंतु लोगों को लाभान्वित करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं, प्रणाम। Ajay Sharma Baba :Roy Tapan Bharati जी, हर पल हर घड़ी आपका स्वागत है। आपका इतना कहना और ध्यान देना ही बहुत काफी है। आशा है हम सभी को आपका दिशानिर्देश और स्नेह मिलता रहेगा। बहुत बहुत धन्यवाद।

Sangita Roy, पूर्णिया: सिज्जू बाबू को बधाई और उज्जवल भविष्य की कामना। सिज्जू बाबू से आज के युवाओं को सीख लेनी चाहिए। सदियों से भारत कृषि प्रधान देश था। भारत की आत्मा गांव में बसती थी। पर औद्योगीकरण और नगरीकरण ने देश की दिशा और दशा बदल कर रख दी। ऊपर से बढ़ती हुई जनसंख्या ने रही सही कसर भी पूरी कर दी।गांव से लोग बाहरी चकाचौंध से प्रभावित हो कर पलायन करने लगे ।खेती के प्रति लोगों का रुझान कम होने लगा ।शिक्षा के विकास होने के कारण युवा वर्ग पढ़ लिख कर नौकरी के आकर्षण में बंधने लगे। स्वाभाविक रूप से खेती का काम कम होने लगा।विगत के कुछ वर्षों से पुनः कुछ लोगों का रुझान उन्नत प्रणाली से खेती करने में बढ़ा।बहुत से लोगों ने इसे अपनी आजीविका बनाया और सफल भी हो रहे है।आज बेरोजगारी से बचने के लिये पुनः एक बार कृषि को प्रधानता दी जाय।और अन्नदाता बनने का प्रयास किया जाय।पर यह भी एक सच है कि कृषि योग्य भूमि की कमी हो गयी है।पर जो है उससे ही पूर्ण लाभ लेने का प्रयास किया जा सकता है साथ ही ग्रामीण कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। भारत एक बार पुनः कृषिप्रधान देश बने। Ajay Sharma Baba:: Sangita Royजी, मेरी बात को अपने मूल्यवान विचारों से और भी प्रभावशाली बनाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आपका। Pushp Kumar Maharaj:: Sangita Royजी आज किसानी का दूसरा नाम मजबूरी है भन्डारण की कमी से किसानों को उनका लागत व उत्पादन मूल्य भी नहीं मिल पाता है ..

Sanjeev Ray, पटना: समयानुकूल पोस्ट। आपने बिल्कुल सही समय पर सही रास्ता दिखाया। सबको ज्ञात है कि आज के दौर में जो गाँव नही रहते थे उनमें से 80% लोग अपने अपने गाँव वापस लौट आये है, अपने रोजी रोजगार को छोड़कर….ऐसे में बिल्कुल न घबराते हुए अपने पारम्परिक परिवेश में ढलते हुए कृषि पर अगर ध्यान दें तो अच्छा कर सकते है, इसमें कोई शक नही। आज विज्ञान के कारण खेती उन्नत तो हुई ही है, इसमें कई विकल्प भी सामने आ चुके हैं।

Santosh Sharma:

Santosh Sharma: “भारत गांवों में बसता है”, पर कोई कहीं भी बसता हो बिना अर्थ सब व्यर्थ है। आज इस महामारी में अधिकतर प्रवासी मजदूर अपने अपने स्थाई डेरों पर लौट चुके हैं। सरकारी आंकड़ा बता रहा है कि मनरेगा में मजदूरी के लिए 86 फीसदी अधिक लोगों ने अपना नाम रजिस्टर करवाया है। यह आंकड़ा सिद्ध करता है कि भारत गांवों में केवल आंकड़ो तक ही बसता है। सिर्फ देह बसता है, अर्थ और रोटी नही।मैंने कई सफल किसानों के बारे में पढा है। कुछ तो ऐसे भी हैं जो करोडों रुपये का व्यापार करते है फल और सब्जियां बेचते हैं। पर वे सब दूर के लगते हैं। दूर का अर्थ उससे है जैसे सिनेमा के लोग हमारे बीच के नही लगते। आपके गांव में ऐसा कारनामा हुआ है तो लगता है कि किसी आम के किया है। आप लोगों ने वास्तव में शानदार काम किया है।आज जिस दौर में हम जी रहे हैं वह अनिश्चितता से भरा हुआ है। न जाने कितने लोगों को नौकरी से निकल दिया गया कितनों का व्यापार चौपट हो गया। अब जब फिर से उठ खड़े होने की जरूरत है ऐसे वक्त में एक शानदार पथ सुझाने के लिए धन्यवाद।

Tripurari Roy, सहरसा: आज के कोरोना काल में जहाँ अधिकतर मजदूर अपने-अपने घर वापस आ चुके हैं, उन्हें खेती के अवसर को समयानुसार भुनाना चाहिए। प्रकृति अपने को संतुलित कर रही है अतः खेती और इसके उत्पाद पर प्लानिंग के तहत कार्य करना होगा। अपने समाज में अभी भी कई स्वजन खेती-बारी कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं। एग्रीकल्चर साइंस के अंदर इसपर दिन-प्रतिदिन अनुसंधान हो रहे हैं तथा युवा-वर्ग आकर्षित भी हो रहे हैं। प्रेरणात्मक आलेख, युवावर्ग इस ओर अपना भविष्य तलाश सकते हैं।

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