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इंसान जन्म से नहीं, अपने कर्मों से महान बनता है: अवधेश राय Bihar Delhi 

इंसान जन्म से नहीं, अपने कर्मों से महान बनता है: अवधेश राय

अवधेश राय/कटिहार-नई दिल्ली

लेख को अवश्य ही गहराई से पढ़ते हुए मनन करें, क्योंकि यह हर व्यक्ति के जीवन से जुड़ा हुआ है


कर्म ही जीवन है और अकर्मण्यता मृत्यु। जहां कर्म है, वहीं गति है और गति से ही जीवन है। कर्मशील बने रहने में ही कर्मयोगी की सार्थकता है। संसार में जन्म लेकर कोई भी प्राणी बिना कर्म किए नहीं रह सकता। इंसान जन्म से नहीं, अपने कर्मों से महान बनता है।

जीवन में कर्म ही सबसे प्रबल है। मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल भोगता है । अच्छे कर्मों का फल शुभ और बुरे कर्मों का फल अशुभ होता है। महाभारत वनपर्व 32.9 ने कहा है, ” कृतं हि यो$भिजानति सहस्रे सो$स्ति नास्ति च।” अर्थात, “हजारों में कोई एक होगा, जो कर्म को अच्छी प्रकार जानता हो।” इसलिए, कर्म के विषय में जानना अति आवश्यक है।

कर्म के विषय में गीता 3.5 ने कहा है, ” न हि कश्चित्क्ष्ण मपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्य “, अर्थात, कोई भी मनुष्य, किसी भी अवस्था में, क्षण मात्र भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। यानी मनुष्य हर पल कर्म कर रहा है। हम चार तरीके से कर्म करते हैं –

1 . विचारों के माध्यम से – जैसे किसी के बारे में कुछ सोचना।

2 . शब्दों के माध्यम से – जैसे किसी को कुछ कहना।

3 . क्रियाओं के माध्यम से, जो हम कर रहे हैं।

4. क्रियाओं के माध्यम से, जो हमारे निर्देश पर दूसरे करते हैं।

इसका मतलब यह है कि वह सबकुछ को हमने सोचा, कहा, किया या कारण बने – यह कर्म है। यानी, हमारा सोना, उठना, चलना, बोलना, खाना, या कुछ भी करना सभी कर्म के अन्तर्गत आते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य अपने जीवन में जो भी करता है, वह कर्म है। कर्म को हम क्रिया भी कह सकते हैं। गीता के 18.18 ने कहा है, ” करण कर्म कतेंति त्रिविधः कर्मसग्रहः।” अर्थात, कर्ता, करण तथा क्रिया- ये तीन प्रकार के कर्म संग्रह है। देखना, सुनना, समझना, स्मरण करना, खाना, पीना, आदि को क्रिया कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ‘ करने को ‘ क्रिया कहते हैं। उपर्युक्त समस्त क्रियाओं को ‘ करने वाले को ‘ ” कर्ता “कहते हैं और, जिनमें, बुद्धि और इन्द्रियों के द्वारा उपर्युक्त समस्त क्रियाएं की जाती है, उसको ” करण” कहते हैं। इन तीनों के संयोग से ही कर्म का संग्रह होता है।

कर्म के तीन प्रकार होते हैं –

1 . प्रारब्ध कर्म – प्रारब्ध का अर्थ है, “शुरू किया हुआ” – यानी, जो कर्म पहले से ही चल रहा है । प्रारब्ध कर्म वह है, जिसका परिणाम वर्तमान में आपको मिल रहा है। आप इसे बदल नहीं सकते, क्योंकि यह पहले से ही घटित हो रहा है।

2. संचित कर्म – यह वह कर्म है, जिहें आप इकट्ठा करते हैं – जो हम अपने साथ लेकर आए हैं । हम अपने संचित कर्मों को प्रार्थना, सेवा और लोगों में प्रेम व आनंद बांटकर समाप्त कर सकते हैं।

3. आगामी कर्म – यह कर्म वह है, जो अभी आया नहीं है। ये आपके भविष्य में आने वाले हैं। यदि आप कोई अपराध करते हैं, तो हो सकता है कि आप आज न पकड़े जाएं, परन्तु इस बात की पूरी संभावना है कि आप भविष्य में पकड़े जाएंगे।

ये आपके द्वारा किए गए कार्यों के भविष्य के कर्म है। हमारे मस्तिष्क पर हमारे कुछ कार्य इस प्रकार की मजबूत छाप छोड़ जाते हैं, जो भविष्य के कर्म का रूप ले लेते हैं। आप किसी के साथ जो कुछ भी करते हैं, वो आपको वापस मिलता है । यही कर्म का सिद्धांत है। इसलिए, हमारे कर्म हमारे किए जाने वाले कार्यों के आधार पर अच्छे या बुरे हो सकते हैं। अच्छे कर्म – ये वो अच्छे कर्म है, जो आप दूसरे के लिए करते हैं और फिर आप उन कार्यों में बंध जाते हैं। आपको उसके बदले में प्रशंसा या परिणाम मिलने की आशा होती है।

कभी-कभी लोग अच्छे काम करने के बाद भी दुखी हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें इसके बदले में कुछ प्रशंसा मिलने की आशा होती है । यह आशा हमारी कर्म बन जाती है। जब आप अपने कर्मों के परिणाम से नहीं जुड़ते हैं, तो आप कर्म के इस बंधन से मुक्त हो जाते हैं। इसलिए, भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं, ” अपने कर्मों के फल की चिंता मत करो, उसे मुझे अर्पित कर दो ।”जब आप दूसरे की भलाई की कामना करते हैं, तो आपके साथ अच्छी चीजें घटित होती है। यही प्रकृति का नियम है ।बुरे कर्म – जो कुछ भी दूसरों को नुकसान पहुंचाने की नीयत से किया जाता है, चाहे वो विचार हों, या कार्य, वह बुरे कर्म कहलाते हैं।

हमें सदैव बुरे कर्मों से दूर रहना चाहिए । यदि आप कुछ बुरा करते हैं, तो आपकी नींद गायब हो जाती है, आपके मन की शांति भंग हो जाती है और परिणामस्वरूप आपका स्वास्थ्य खराब होने लगता है। कुछ न कुछ आपको अंदर से कचोटता रहता है। और, जब कभी कुछ बात आपके मन को कचोटती है, तो आप कुछ भी सृजनात्मक नहीं कर पाते हैं और आप दुखी रहने लगते हैं ।मनुष्य की उन्नति अवनति की जड़ में उसके कर्म की ही प्रधानता है।

जो जैसा कर्म करता है, उसका आचरण और स्वभाव भी प्रायः वैसा ही हो जाता है । इसलिए, कर्म को सदैव वचन के अनुरूप और वचन को कर्म के अनुरूप बनाने चाहिए। एक सच्चे कर्मवीर केदो दुश्मन होते हैं- निंद्रा और थकान। अतएव, मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल भोगता है।वस्तुतः मनुष्य के द्वारा किया गया कर्म ही प्रारब्ध बनता है। कर्म फल एक ऐसा अमिट तथ्य है कि आज नहीं तो कल उसके फल भोगने ही पड़ेंगे। इसलिए, सबकी भलाई के लिए कर्म करते हुए जीना ही जीने की उत्तम राह बताई गई है।

BBW के सदस्यों ने इस लेख पर क्या लिखा:

Dharmendra Kumar Singh:अति उत्तम । अनुकर्णीय ।यदि इस लेख को समझ कर,अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया जाय तो जीवन धन्य हो जाय। इसमें कोई संदेह नहीं ।
Dharam Jeewan Sharma Well said ..Well defined ..Bhagwatgeeta confirms it..
Nirmala Sharma बहुत ही सुन्दर शब्दो से कर्म के महत्त्व को समझाया है बहुत ही आवश्यक प्रशंसनीय लेख ।धन्यवाद

Parmanand Choudhary कर्मों की सही व्याख्या। कर्मों से हाथ की रेखायें भी बदलती रहती है।
Banshi Lal Sharma जीवन में उतारने वाला लेख कर्म ही प्रधान है, !!सादर

Anamika Raje Sanjay Roy सहज सरल सुन्दर व्याख्या
Dilipkumar Pankaj ज्ञानवर्धक विश्लेषण सर।
Rekha Rai अति सुंदर।
Virendra Kumar Rai Bhatt सहज, सरल ,एवं सुन्दर वर्णन । मेरे मन में एक प्रश्न आया कि अक्सर ऐसा पाया जाता है कि गलत कार्य में संलिप्त व्यक्ति विशेष आराम से जीवन यापन करता है और एक दूसरा व्यक्ति जो कि सच्चे मार्ग पर चल रहा है उसके जीवन में ढेर सारी बाधाएं आ रही हैं।इसका क्या कारण हो सकता है? कृपया हो सके तो बताइए।Om Prakash Sharma Awadhesh Roy परन्तु आपके इस ब्याख्या का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, हिन्दू धर्म के अतिरिक्त लगभग सभी धर्मों में पुनर्जन्म की अवधारणा नहीं है। यह हमारा सनातन धर्म कहता है। दूसरे धर्मों के अपने अपने अलग विचार हैं। अगर हम हिन्दू हैं, तो हम सभी हिन्दू धर्म के पथ और निर्देश को मान कर चलते है। वैज्ञानिक तथ्य और आध्यात्मिक तथ्य में बहुत अंतर है।

Om Prakash Sharma: Awadhesh Roy आज हम किसी भी सोच को वैज्ञानिक कसौटी पर परख कर ही स्वीकार करते हैं, हिन्दू धर्म का चार्वाक दर्शन भी पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता, यहां जो प्रश्न किया गया है वह संपूर्ण मानव जाति से संबंधित है न कि सनातन धर्म से ।मेरा स्वयं का भी विचार है कि पुनर्जन्म जैसी कोई चीज नहीं होती,इस वैज्ञानिक युग में हिन्दू धर्म के प्रत्येक अंधविश्वासों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है , इसीलिए मैं हिन्दू होते हुए भी आर्यसमाज के सिद्धांतों में अधिक विश्वास करता हूं।
Om Prakash Sharma: Dharam Jeewan Sharma महोदय,जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है उन पर कैसे विश्वास किया जा सकता है, विज्ञान में जैसे जैसे तरक्की हो रही है हमारी अनेकानेक भ्रांतियां और अंधविश्वास समाप्त हो रहे हैं , अत्यंत हास्यास्पद है कि जब हम तर्क शक्ति से किसी चीज को सिद्ध नहीं कर पाते हैं तो उसे अध्यात्म, रहस्य वाद और पराशक्ति से जोड़ देते हैं,खैर अपने अपने विचार हैं जिनमें जिसको शान्ति ओर संतोष प्राप्त हो उसी मत का अनुसरण करना चाहिए।

Virendra Kumar Rai Bhatt: Om Prakash Sharma Awadhesh Roy & Shri Om Prakash Sharma ji आदरणीय आज प्रातः काल का आप दोनों को सादर नमन वंदन एवं अभिनंदन। सोशल मीडिया पर अध्यात्मिक रूचि रखने वाले दो महान विभूतियों के विचारों को पढ़कर आज हमें आत्म संतुष्टि और हर्ष महसूस हो रहा है।मिर्जापुर के स्वामी श्री अड़गड़ानंद महाराज जी का प्रवचन 90 के दशक में हमें सुनने को मिला था उस समय हमने उनकी पुस्तकें “यथार्थ गीता” एवं “जीवनादर्श एवं आत्मानुभूति” नामक दो पुस्तक का अध्ययन किया और अध्यात्मिक रुझान बढ़ता गया।सोशल मीडिया पर कमेंट के माध्यम से पूरे मनोभाव प्रकट नहीं हो पाते अगर आप दोनों की सहमति हो तो हम तीनो यथोचित समय निकालकर ऑडियो कॉन्फ्रेंस पर है बात कर सकते हैं मेरा मोबाइल नंबर 9140571099 है अगर आपकी भी सन्मति एवं सहमति हो तो कृपया मोबाइल नंबर उपलब्ध कराइए। कमेंट के माध्यम से लिखने पर ऑफिस में और सुविधा भी होती है और समय की बर्बादी भी महसूस होती है।
Sangita Roy अति उत्तमAnil Sharma जैसा कर्म वैसा फल

Rabi Ranjan Kumar Very useful and educative article . Thanks for your thinking and understanding !
Sanjeev Ray हम मनुष्य की पहचान उसके किये गए कर्मों से होती है। इसलिए कहा गया है जैसा कर्म वैसा धर्म। बहुत ही सुंदर लेखन।

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