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पटना के कोलाहल से दूर पुरी की आध्यात्मिक यात्रा : प्रियंका राय Events India 

पटना के कोलाहल से दूर पुरी की आध्यात्मिक यात्रा : प्रियंका राय

प्रियंका राय, Admin/ ओडिसा की यात्रा से लौटकर पटना से रिपोर्टिंग

priyanka-in-orisa6यात्राएं शानदार अनुभव लाती हैं। जब हमारी बाहरी यात्रा खत्म होती है उसके बाद हमारी अंदर की यात्रा प्रारम्भ होती है। लंबी यात्रा पर जाने से पहले सुगम यात्रा की प्लानिंग बहुत जरूरी है-जाने के साधन क्या हैं और वहां से आना-जाना पूरी तरह से सुखमय सुनिश्चित है कि नहीं।
हमने भी 3 महीने पहले ही योजना बनाकर अपनी तैयारी की शुरुआत की थी। बाकी तैयारियां तो ऐसी यात्राओं पर निकलने की खुशी में यूं ही पूरी हो जाती हैं।
जगन्नाथ पुरी हिंदुस्तान का वो हिस्सा है जिसकी अहमियत हर हिंदुस्तानी के ज़ेहन में एक शक्ति बनकर रहती है। ओड़िसा की यात्रा मेरी पहली नहीं बल्कि तीसरी यात्रा थी, पहली 2006 और दूसरी 2010 में हुई थी। इसके बावजूद पुरी के भगवान के प्रति मेरा आकर्षण बढ़ता ही गया और मैं जीवन के हर दिन के साथ आध्यात्मिक रूप से भगवान जगन्नाथ से जुड़ने लगी। यह भी महसूस होता कि मानो भारत का सुंदर समुद्र तटीय प्रदेश ओड़िसा भौगोलिक रूप से मेरे सामने आता रहा।

फिर क्या 7 अक्टूबर का दिन तपस्विनी एक्सप्रेस (रांची) और हमारी पुरी यात्रा आरंभ (शाम 4 बजे) हुई। यह एक आध्यात्म और पर्यटन के महत्वपूर्ण शुरुआत थी। सुबह 8 बजे पूरी की पवित्र धरती पर कदम रखते ही एक सुकून की अनुभूति हुई। कहां, पटना की भागती-दौड़ती जिंदगी, फोन काल से दूर यहां हमारे होटल ( जमींदार पैलेस) के कमरे के ठीक सामने समुद्र, जो कि उछल-उछलकर जीवन के हर सत्य से अवगत कराने को व्याकुल हो रहा था। दूसरी तरफ भगवान जगन्नाथजी की नगरी में होने का एहसास मात्र ही जीवन में ठहराव और शांति की दिशा दे रहा था। यहीं से एक चिंतन के साथ हमारी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई।

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प्रियंका राय अपने दोनों बच्चों के साथ।
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समुद्र की लहरों के बीच प्रियंका और विधान चंद्र।

हॉटेल की औपचारिकता पूरी करने के बाद हमने उड़ीसा भ्रमण के अपनी चार दिनों की पर्यटन यात्रा का कार्यक्रम तय किया। ओड़िसा के प्रमुख क्षेत्रों का भौगोलिक अध्ययन हमने किया। धन्य हो, इंटरनेट युग का और उड़ीसा पर्यटन विभाग की उन बहुउपयोगी जानकारियों का जो एक सामान्य व्यक्ति से क्लिक भर की दूरी पर हैं। समन्दर से नहा-धोकर तैयार होने के बाद हमने पहले दिन पूरी शहर के भ्रमण का मन बनाया। होटल में सुबह का नाश्ता लिया नाश्ते में कई तरह की डिशेस उपलब्ध थी। नास्ते और दोपहर के लजीज भोजन के बाद पूरी बिच पर अच्छा समय बिताया।
स्वर्ग द्वार (पुरी का मुख्य बाजार) पहुंची। यह गोल्डेन बीच के पास है। बाजार में यह देखकर मैं भाव-विभोर हो गई कि रोज मर्रा के छोटे-छोटे दुकानदार बोहनी होने पर मुझे प्रणाम करते और कहते, ‘दीदी आपका भाग्य से हमारा अच्छा है। पुरी के लोग सचमुच बहुत ही सरल और अच्छे हैं। ओड़िसा में साडि़यों और हेंडीक्राफ्ट कला का काम तो बहुत ही अच्छा है। एक बेहतरीन समय बिता कर हम वापस अपने होटल ‘जमींदार पैलेस’ में लौट आये। होटल का रेस्तराँ भी होटल की तरह शानदार और लजीज था। पुरे परिवार के साथ रात का बढ़िया डिनर लेकर हमने रात्रि विश्राम किया। क्यूंकि अगले सुबह हमारी यात्रा एशिया के सबसे बड़े झील ‘चिल्का’ की थी।

अगले दिन पुनः सुबह 8 बजे हम एशिया की सबसे बड़ी झील-चिलिका देखने हॉटेल से किराये पर उपलब्ढ इनोवा कार से रवाना हो गये। चिलिका झील की यात्रा स्टीम बोट में चढ़कर 6 घंटे व्यतीत कर हमने पूरी की। वहां डाल्फिन देखने का मजा ही कुछ और था। राजहंस पर हम 10 मिनट रूके। वहां पर जीवन लगभग समाप्त था। वहीं पर कहीं दूर चिलिका झील और बंगाल की खाड़ी का मिलन दिखाई देता है। पर, शाम होने की वजह से हम वहां जा नही सके। द्वीप पर नारियल पानी, सीप से मोती निकालते ,रेड क्रेब,मछली और झींगा भूनते मछुआरे अपना जीवन यापन करते दिखे।

पर, यहाँ हमें एक समस्या का सामना करना पड़ा जब हमारी मोटर बोट बिगड़ गई चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी देखकर मन भयभीत भी हो रहा था। बोटमैन उतनी अच्छी हिंदी भी नही जनता था। उसने मुझसे कहा मुझे बड़ी भूख लगी है दीदी कुछ खाने को दे दो मुझे तो रात भर यही बोट पर बिताना है। मैंने उसे कुछ स्नैक्स निकालकर दिए वह खुश हो गया। हमारे भारत में बोली जाने वाली तीन भाषाएँ बंगाली, उड़िया व् आसामी काफी मिलती जुलती हैं। इसलिये उड़िया भाषा समझने में ज्यादा परेशानी नही होती थी। खैर, फोन कर हमने दूसरी बोट मंगवाई जो एक घंटे के बाद आई फिर जाकर हमने राहत की सांस ली। शाम में हमने चन्दन तालाब का भी दर्शन किया। हमारी बोट की मोटर ख़राब होने के कारण चिलिका झील से वापसी थोड़ी कठिन रही।

प्रियंका राय अपने पति और दोनों बच्चों के साथ।
प्रियंका राय अपने पति और दोनों बच्चों के साथ।

अब तीसरा दिन 10 अक्टूबर मेरे बड़े पुत्र का जन्मदिवस इस दिन ही हमने जगन्नाथ जी के दर्शन का विचार किया। पर, बिना पंडा को साथ लिए मंदिर में प्रवेश का मतलब कि दुखद अनुभव झेलना पड़ सकता था। हमारे हॉटेल ने हमें एक अच्छा पुरोहित उपलब्ध करवाया । मदद के तौर पर बाबुली जी पंडा को हमारे साथ किया तथा आश्वासन दिया कि हमारा मंदिर में प्रवेश यात्राएं शानदार अनुभव लाती हैं। जब हमारी बाहरी यात्रा खत्म होती है उसके बाद हमारी अंदर की यात्रा प्रारम्भ होती है।
लंबी यात्रा पर जाने से पहले सुगम यात्रा की प्लानिंग बहुत जरूरी है-जाने के साधन क्या हैं और वहां से आना-जाना पूरी तरह से सुखमय सुनिश्चित है की नहीं।
हमने भी 3 महीने पहले ही योजना बनाकर अपनी तैयारी की शुरुआत की थी। बाकि तैयारियां तो ऐसी यात्राओं पर निकलने की खुशी में यूं ही पूरी हो जाती हैं।
जगन्नाथ पुरी हिंदुस्तान का वो हिस्सा है जिसकी अहमियत हर हिंदुस्तानी के ज़ेहन में एक शक्ति बनकर रहती है।

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प्रियंका राय

ओड़िसा की यात्रा मेरी पहली नही बल्कि तीसरी यात्रा थी, पहली 2006 और दूसरी 2010 की थी। इसके बावजूद पुरी भगवान के प्रति मेरा आकर्षण बढ़ता ही गया और मैं जीवन के हर दिन के साथ आध्यात्मिक रूप से भगवान जगन्नाथ से जुड़ने लगी।
यह भी महसूस होता कि मानो भारत का सुंदर समुद्र तटीय प्रदेश उड़ीसा भौगोलिक रूप से मेरे सामने आता रहा।

फिर क्या 7 अक्टूबर का दिन तपस्विनी एक्सप्रेस(रांची) और हमारी पुरी यात्रा आरंभ (शाम 4 बजे) हुई। यह एक आध्यात्म और पर्यटन के महत्वपूर्ण शुरुआत थी। सुबह 8 बजे पूरी की पवित्र धरती पर कदम रखते ही एक सुकून की अनुभूति हुई। कहां पटना की भागती-दौड़ती जिंदगी, पचासों फोन काल से दूर यहां हमारे होटल( जमींदार पैलेस) के कमरे के ठीक सामने समुद्र, जो कि उछल-उछलकर जीवन के हर सत्य से अवगत कराने को व्याकुल हो रहा था। दूसरी तरफ भगवान जगन्नाथजी की नगरी में होने का एहसास मात्र ही जीवन में ठहराव और शांति की दिशा दे रहा था। यहीं से एक चिंतन के साथ हमारी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई।

हॉटेल की औपचारिकता पूरी करने के बाद हमने उड़ीसा भ्रमण के अपनी चार दिनों की पर्यटन यात्रा का कार्यक्रम तय किया। उड़ीसा के प्रमुख क्षेत्रों का भौगोलिक अध्ययन हमने किया। धन्य हो इंटरनेट युग का और उड़ीसा पर्यटन विभाग की उन बहुउपयोगी जानकारियों का जो एक सामान्य व्यक्ति से क्लिक भर की दूरी पर हैं।

समन्दर से नहा-धोकर तैयार होने के बाद हमने पहले दिन पूरी शहर के भरमण का मन बनाया। होटल में सुबह का नाश्ता लिया नाश्ते में कई तरह की डिशेस उपलब्ध थी। नास्ते और दोपहर के लजीज भोजन के बाद पूरी बिच पर अच्छा समय बिताया। स्वर्ग द्वार (पुरी का मुख्य बाजार) पहुंची। यह गोल्डेन बीच के पास है। बाजार में यह देखकर मैं भाव-विभोर हो गई कि रोज मर्रा के छोटे-छोटे दुकानदार बोहनी होने पर मुझे प्रणाम करते और कहते, ‘दीदी आपका भाग्य से हमारा अच्छा है।’ पुरी के लोग सचमुच बहुत ही सरल और अच्छे हैं। उड़ीसा में साडि़यों और हेंडीक्राफ्ट कला का काम तो बहुत ही अच्छा है। एक बेहतरीन समय बिता कर हम वापस अपने होटल ‘जमींदार पैलेस’ में लौट आये। होटल का रेस्तराँ भी होटल की तरह शानदार और लजीज था। पुरे परिवार के साथ रात का बढ़िया डिनर लेकर हमने रात्रि विश्राम किया। क्यूंकि अगले सुबह हमारी यात्रा एशिया के सबसे बड़े झील ‘चिल्का’ की थी।

अगले दिन पुनः सुबह 8 बजे हम एशिया की सबसे बड़ी झील-चिलिका देखने हॉटेल से किराये पर उपलब्ढ इनोवा कार से रवाना हो गये।
चिलिका झील की यात्रा स्टीम बोट में चढ़कर 6 घंटे व्यतीत कर हमने पूरी की। वहां डाल्फिन देखने का मजा ही कुछ और था। राजहंस पर हम 10 मिनट रूके। वहां पर जीवन लगभग समाप्त था। वहीं पर कहीं दूर चिलिका झील और बंगाल की खाड़ी का मिलन दिखाई देता है। पर, शाम होने की वजह से हम वहां जा नही सके। द्वीप पर नारियल पानी, सीप से मोती निकालते ,रेड क्रेब,मछली और झींगा भूनते मछुआरे अपना जीवन यापन करते दिखे।

पर, यहाँ हमें एक समस्या का सामना करना पड़ा जब हमारी मोटर बोट बिगड़ गई चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी देखकर मन भयभीत भी हो रहा था। बोटमैन उतनी अच्छी हिंदी भी नही जनता था। उसने मुझसे कहा मुझे बड़ी भूख लगी है दीदी कुछ खाने को दे दो मुझे तो रात भर यही बोट पर बिताना है। मैंने उसे कुछ स्नैक्स निकालकर दिए वह खुश हो गया।। हमारे भारत में बोली जाने वाली तीन भाषाएँ बंगाली, उड़िया व् आसामी काफी मिलती जुलती हैं। इसलिये उड़िया भाषा समझने में ज्यादा परेशानी नही होती थी। खैर, फोन कर हमने दूसरी बोट मंगवाई जो एक घंटे के बाद आई फिर जाकर हमने राहत की सांस ली। शाम में हमने चन्दन तालाब का भी दर्शन किया। हमारे बोट का मोटर ख़राब होने के कारण चिलिका झील से वापसी थोड़ी कठिन रही।
अब तीसरा दिन 10 अक्टूबर मेरे बड़े पुत्र का जन्मदिवस इस दिन ही हमने जगन्नाथ जी के दर्शन का विचार किया। पर, बिना पंडा को साथ लिए मंदिर में प्रवेश का मतलब कि दुखद अनुभव झेलना पड़ सकता था। हमारे हॉटेल ने हमें एक अच्छा पुरोहित उपलब्ध करवाया । मदद के तौर पर बाबुली जी पंडा को हमारे साथ किया तथा सुविधाओं का सुव्यवस्थित ढंग से इंतजाम किया हुआ है। उड़ीसा पर्यटन विभाग को इसके लिए बधाई! यहां की अविस्मरणीय यादें साथ लेकर हम वापसी के लिये रवाना हुए। पुरी से लौटते समय विचार मंथन में अपने आप ही यात्रा का उद्देश्य और उससे जुड़ी सभी बातें एक-एक कर साफ होती चली गईं। आस्था सिर्फ श्रद्धा और विश्वास पर आधारित है। जहां बंगाल की खाड़ी में इतनी आध्यात्मिकता समाये है, उस जगह प्रकृति मनुष्य जानवर एवं सभी वन्यजीव जगन्नाथ भगवान की उस शक्ति का सम्मान, एहसास और उनके अलौकिक रूप का दर्शन करते हैं जिनकी महिमा का बखान मेरे शब्दों में संभव नहीं। जगन्नाथ जी की कृपा सभी को प्राप्त हो। ‘जय जगन्नाथ’। (लेखिका पटना में रहती हैं और वह फेसबुक पर ब्रह्मभट्टवर्ल्ड ग्रुप की एडमिन भी हैं)

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