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बिना ब्रह्मभट्टवर्ल्ड देखे, खाना खाने का मन नहीं करता Bihar India 

बिना ब्रह्मभट्टवर्ल्ड देखे, खाना खाने का मन नहीं करता

फेसबुक मित्र : एक अनुभव-1

कल तक तो ये फेसबुक चलाने वालों को निकम्मा कहते थे पर आज स्वयं राकेश चाचा क्या कह रहे?। झट मेरा मोबाइल लेकर भतीजे ने फट से फेसबुक बना डाला और बातों-बातों में मुझे फेसबुक चलाना भी सीखा डाला। जैसे ही मेरा प्रोफाइल बना, तडाक-तडाक फ्रेण्ड रिक्वेस्ट आने लगे। तबतक राजीव भाई भी भेंटा गया और मुझे फोन किया कि मैं आपको फेसबुक पर brahmbhattworld group ग्रुप से जोड रहा हूँ।

लेखक-एडवोकेट राकेश शर्मा /गोपालगंज

rakesh-advocate2कैसे होते हैं, फेसबुक के अनजान मित्र। शायद सबको यह एहसास गुदगुदी दिलाते रहती है। हर एक बात के दो पहलू होते हैं। अच्छा और खराब। मैं भी शायद सोशल मीडिया के खराब पहलू से ही परिचित था। वो यह कि क्यों लोग हमेशा मोबाइल से चिपके रहते हैं? क्या मिलता है उनको ? यदा-कदा उनकी शिकायत भी करता था दोस्तों से। मोबाइल फोन के फोबिया बीमारी के नाम पर हंसी-मजाक भी होते होता रहता था।

परन्तु आज से करीब तीन साल पहले मेरी भेंट हुई राजीव रंजन उर्फ मनुजी से जो हमारे पडोसी गांव चौचक्का निवासी हैं और नजदीकी रिश्तेदार भी हैं। उनसे हाल चाल के बाद देश-दुनिया समाज की बातें होने लगी। वे हमारे ग्रुप के सम्मानित एडमिन भी हैं और उन्होंने मुझसे पूछा- भैया, आप फेसबुक चलाते हैं कि नहीं? मैने कहा- नहीं भाई, मैं इससब से कोसों दूर ही रहता हूँ। काम से फुर्सत कहां है कि दिन भर मोबाइल में लगा रहूं? राजीव भाई ने मुझे बताया, “नहीं भैया, यह आज के जमाने में बहुत कारगर हैं आप भी फेसबुक चलाना सीख लीजिए क्योंकि आने वाला समय सोशल मीडिया का ही है। जिंदगी में लगभग काम इंटरनेट से ही होना शुरु हो जायेगा और हम सब ने फेसबुक पर अपनी बिरादरी के नाम से एक ग्रुप-brahmbhattworld बनाया है जिसके संस्थापक राय तपन भारती जी हैं जो दिल्ली एनसीआर में सीनियर पत्रकार हैं और भरथुआ निवासी हैं आप भी इस ग्रुप से जुडिये।”

rakesh-manthanअपने राजीव भाई के तर्कों से प्रभावित होकर मैं अपने घर जब गया तो अपने भतीजा विवेक से कहा कि सुनों, मेरे नाम से एक फेसबुक बना दो और मुझे भी चलाना सिखा दो। बस क्या था वो तो बहुत खुश हो गया कि अरे अंकल को क्या हो गया ? कल तक तो ये फेसबुक चलाने वालों को निकम्मा कहते थे पर आज स्वयं ये क्या कह दिये। झट मेरा मोबाइल लेकर फट से फेसबुक बना डाला और बातों-बातों में मुझे फेसबुक चलाना भी सीखा डाला। जैसे ही मेरा प्रोफाइल बना, तडाक-तडाक फ्रेण्ड रिक्युवेस्ट आने लगे। तबतक राजीव भाई भी भेंटा गया। और मुझे फोन किये कि मैं आपको brahmbhattworld ग्रुप से जोड रहा हूँ। पहले, शायद इसका कुछ दूसरा नाम था। मेरा बायोडाटा डालकर मुझे जोड दिया गया। अब शुरु हो गया  जानपहचान का सिलसिला। वैसे तो फेसबुक पर बहुत सारे मित्र मिले, पर जो लगाव इस मंच से जुडे मित्रों से मिलने लगा वह अकल्पनीय लगा।

अब स्थिति यह हो गई कि बिना फेसबुक देखे, खाना खाने का मन नहीं करता। अपने लोगों यानी सजातीय लोगों को देखना उनसे बातें करना। विभिन्न समाजिक मुद्दे तथा शिक्षा एवं विकास से संबंधित बाते एक दूसरे का लेखन, भावना, वेश-भूषा. संस्कार आदि को देखकर तथा उनके प्रतिभाओं को जानकर एवम् उनके संबंधों को छानकर लगा कि अरे, ये तो जैसे जन्मों जन्मों के मित्र हैं । अब भूख हो गई उनसे मिलने और देखने की। योजना दर योजना बनती गई, कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ तो कभी मुंबई पर वृहत बात नहीं बनी। छोटे छोटे भेंट होते रही। पर सबका साथ नहीं।

समय बीतने लगा और एक दिन देखा कि कारवां बहुत लंबा हो गया। सोशल मीडिया पर कमाल। पर यह आसान नहीं था। तपन भैया और उनकी एडमिन टीम की कड़ी निगाह। इसके साथ ही एक जगह मिलने का मुद्दा जोड पकडता गया और अंततः पटना में मंथन करने की योजना हमारे प्रबुद्ध सज्जनों तथा उनकी टीम के द्वारा बना ली गई और समय निर्धारित कर दिया गया 18दिसम्बर2016 .स्थान पटना वाटिका प्रीमियर।

क्रमशः…………..

(और कल लिखेंगे आज इतना ही)

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