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लड़की अपनी जाति में ही ब्याहें Chattisgarh India 

लड़की अपनी जाति में ही ब्याहें

दहेज ब्लेक मेलिंग से बचने के लिए राष्ट्रीय हो जाइए, सभी प्रांतों में दहेज की बुराई नहीं

लड़कियां हमेशा संस्कृति की संरक्षक होती हैं वे अपना घर परिवार और संस्कार सहेजना चाहती हैं ऐसे में दूसरी संस्कृति में क्या उनका दिल नहीं दुखेगा। जीते तो सभी हैं इस जीवन में लेकिन हर अभिभावक की यह प्राथमिकता है कि अपनी संतान को उसके मनोनुकूल संबंध बना कर दे जिसमें उसकी बच्ची आत्मसम्मान से जी सके। अगर दर्शन के स्तर पर देखें तो बेटी और बेटे के रूप में पिता ही आगली पीढ़ी जीता है।

written by Pramod Bramhbhatt

Pramod Bramhbhatt
Pramod Bramhbhatt, Writer, Raipur

अपनी बेटी के लिए वर चुनते समय बड़ी बिकट स्थिति होती है। कुछ राज्यों में खासकर बिहार उत्तर प्रदेश और उनसे प्रभावित मध्यप्रदेश में लड़के वाले दहेज के लिए ऐसे ऐसे चरितर दिखाते हैं कि आदमी परेशान हो जाता है। कभी-कभी तो लगता है कि शायद हमने बेटी पैदा कर अपराध कर दिया है। इसी हताशा में कुछ लोग बेटियों को अंतर्जातीय विवाह के लिए भी प्रोत्साहित कर देते हैं। या फिर बेटियां स्वयं अंतर्जातीय विवाह में चली जाती हैं। समाज की ये दोनों ही स्थितियां दुखद हैं।
सामान्यतया अंतर्जातीय विवाह बहुधा निचले क्रम से होता है। निचली जातियों के युवक ऊंची जातियों की युवतियों से विवाह को उत्सुक रहते हैं। इससे उनके अहम की संतुष्टि मिलती है।… पिता की सामाजिक जिम्मेदारी पूरी न कर पाने की स्थिति को देखते हुए लड़कियों को टूटते देखा है जो निम्न जातियों में विवाह कर लेतीं हैं।
मैं अतर्जातीय विवाह का घोर विरोधी बिल्कुल नहीं हूं। लेकिन जरा सोचिए एक शाकाहारी ब्राह्मण घर की लड़की क्या मांसाहारी के यहां तथा निम्न जाति में आत्मसम्मान से जी पाएगी। लड़कियां हमेशा संस्कृति की संरक्षक होती हैं वे अपना घर परिवार और संस्कार सहेजना चाहती हैं ऐसे में दूसरी संस्कृति में क्या उनका दिल नहीं दुखेगा। जीते तो सभी हैं इस जीवन में लेकिन हर अभिभावक की यह प्राथमिकता है कि अपनी संतान को उसके मनोनुकूल संबंध बना कर दे जिसमें उसकी बच्ची आत्मसम्मान से जी सके।
अगर दर्शन के स्तर पर देखें तो बेटी और बेटे के रूप में पिता ही आगली पीढ़ी जीता है।

MARRIAGE2मैं यह भी नहीं कहता कि अंतर्जातीय विवाह गलत हैं अगर ये समाज में नहीं होते तो जातियों की इतनी श्रेणियां उत्पन्न ही नहीं होतीं। तब देखें की इस स्थिति से निपटने की क्या व्यवहारिक पहलू हो सकता है। मेरे अनुसार हम भट्ट या ब्रह्मभट्ट हैं जो भारत के हर प्रांत में पाए जाते हैं। सभी प्रांतों में दहेज की बुराई नहीं है। नई दिल्ली,हरियाणा, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात के ब्राह्मणों में हमारा समाज इस बुराई से अलग है तो क्यों नहीं हम अपने सामाजिक संबंध इस प्रदेशों में करें। हमारी जातीय साइटों पर बड़ी संख्या में सभी प्रांत के स्वजातीय उपस्थित हैं उनसे आपसी विचार विमर्श करें। हम सब जब एक हैं तो सिर्फ थोड़ा बहुत संस्कृति का अंतर आएगा लेकिन जातीय आधार एक होने के कारण बच्ची को किसी भी तरह की कोई सामाजिक अड़चन नहीं आएगी। इसके अलावा मेरा एक सुझाव यह भी है कि हमें राष्ट्रीय स्तर पर अपने संगठन को मजबूत कर युवक युवती परिचय सम्मेलन वर्चुअल और प्रत्यक्ष आयोजित करना चाहिए ताकि इस समस्या से निजात मिल सके।
हमारे एक व्यापारी मित्र कहते हैं कि सर मात्र दो रुपए प्रतिकिलो में अनाज को देश में कहीं भी घुमाया जा सकता है तो मुझे लगता है मात्र लाख रुपए अधिक खर्च में किसी भी प्रांत में अपनी लड़की ब्याही जा सकती है। ऐसा करने से स्थानीय बेटे वालों को भी नसीहत मिलेगी और सामाजिक बहिष्कार का वातावरण भी बनेगा। ये मेरे निजी और आजमाए विचार हैं। जरूरत समझे तो समाज विचार करे।
पुनःश्च मैं कहना चाहता हूं कि स्थानीय स्तर पर भी सभी ब्राह्मणों के बीच य़दि आपसी रिश्ते हों तो कोई बुराई नहीं है।

Kalawati Kunwar: यह सच है कि बिहार और उत्तर प्रदेश में बेटिया अभी भी अपना हिसदरी नही लेती है जबकि सब जगह लेती है। अगर माँ-बाप अपने सामर्थ्य के अनुसार दहेज रुप मे बेटी को कुछ देते है तो मै समझती हूं कि कोई गलत नही है। मेरे पिताजी का 20 बिघा खेत मैंनैे और मेरी बहन अपने चचेरे भाइयों को खुशी-खुशी दे दी जबकी मेरी बहन काफी परेशानी में रहती है।
Pramod Bramhbhatt: ये केवल दहेज लेने के लिए फैलाया गया कुतर्क है, बहनजी।। सब के पास जमीन नहीं होती लेकिन सभी को बेटी जरूर ब्याहना होता है। रही बात दहेज में बेटी का हिस्सा चाहने की चाहत तो यह ज्यादा अच्छा है कि बेटी को सम्पत्ति का बंटवारा दिया जाए ताकि उसका हिस्सा उसके और उसके परिवार के काम आए न कि फोकट की विलासिता की वस्तु खरीदकर उड़ाने के काम आए। आप इजी मनी और प्रापर्टी का अर्थ समझती होंगी। प्रापर्टी भाग्य से बनती है और दुर्भाग्य से बिकती है। बेचने जाओ तो औने पौने लोग चाहते हैं। दहेज के लिए समाज कुतर्क न गढ़े तो ही बेहतर है।

 

 

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