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अतिथि को देवता मानते हैं दुधमठिया गांव के लोग Bihar India 

अतिथि को देवता मानते हैं दुधमठिया गांव के लोग

Dudha Mathia1बनारस केमेरे पूर्वज कहते हैं कि हम बनारस के मूल निवासी हैं जहाँ से रघुनाथ बाबा जो बहुत बड़े कवि थे बेतिया राजा के दरबार में आये। उनकी कविता पर खुश होकर राजा ने उन्हें लगभग 651 बीघा जमीन दान में दे दिया। बाबा ने मठिया उर्फ़ भटवालिया गाँव को चुना और यहाँ रहने लगे। बाद में आवश्यकतानुसार हजाम धोबी अहीर सभी जाति के लोगों को कही-कहीं से लाकर बसाये।

धर्मेंद्र शर्मा भट्ट/दुधामठिया, पश्चिमी चंपारण, बिहार

Dharmendra Sharma Bhatt‘प्रबुद्ध स्वजातीय गाँवों में से एक गाँव है मेरा गाँव-दुधामठिया, जो नेपाल से लगभग 25 km दक्षिण तथा बेतिया से 15 km की दुरी पर स्थित है।मझौलिया स्टेशन से 6 km उत्तर में बसा है।

ऐसा मेरे पूर्वज कहते हैं कि हम बनारस के मूल निवासी हैं जहाँ से रघुनाथ बाबा जो बहुत बड़े कवि थे बेतिया राजा के दरबार में आये।उनकी कविता पर खुश होकर राजा ने उन्हें लगभग 651 बीघा जमीन दान में दे दिया। बाबा ने मठिया उर्फ़ भटवालिया गाँव को चुना और यहाँ रहने लगे। बाद में आवश्यकतानुसार हजाम धोबी अहीर सभी जाति के लोगों को कही -कहीं से लाकर बसाये। धीरे-धीरे 100 घरों का हमारा परिवार बढ़ गया।
इस गाँव के लोग अतिथि को देवता मानते हैं और आज भी किसी के घर कोई मेहमान आता है तो लोग पलकों पर बिठाते हैं।
शिक्षा, नौकरी, business सब क्षेत्र में लोग आगे हैं। मिलिट्री, पुलिस तो लगभग हर घर में है। मेरे गाँव में जज, इंजीनियर, उद्योगपति भी हैं जो गाँव के धरोहर हैं।
Dudha Mathia2बिजली ,सड़क,स्कूल ,यातायात के साधन भी धीरे-धीरे बिकसित हो रहे हैं। वैसे तो गाँव में कम ही लोग रहते है पर पर्व -त्योहारों में जब आते है तो नजारा कुछ और होता है। शादी विवाह या दुःख-सुख में सब साथ निभाते हैं।
पडोसी स्वजातीय गाँव शिकारपुर, चैताभटवालिया, नौतन, बेख़बरा, पिपरा, धोकराहां से हमारा सम्बन्ध अच्छा रहता है।अगर आपमेंसे कोई आना चाहे तो मेरे no 9162290393 पर जरूर call करें हम सेवा में हाजिर रहेंगे।
Comments of BBW group : 
Rakesh NandanRakesh Nandan: सोचा था की चुप रहूँगा। पर अब जब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। किसी भी गाँव की धड़कन उसके बासिंदे होते हैं। मेरी पैदाइश दूधामठिया की है। जैसा विनीता मेरी बहन ने ऊपर बताया है की ये हमारा ननिहाल है। ननिहाल और मेरे पैतृक गाँव को एक रोड अलग करता है। मेरी पहली पढ़ाई बिरती प्राइमरी स्कूल से शुरू हुई। जहाँ मैं एक बोरी, बैठने के लिए; गाँव के बढ़ई द्वारा बनाया गया लकड़ी का स्लेट और भट्टा मिट्टी का chalk लेकर गया हूँ। इस स्कूल का इस रूप में मैं चंद दिन का विद्यार्थी था। बचपन से हर साल गरमी के छुट्टी में हम गाँव जाते थे! सब से मिलना जुलना होता था। दिन भर चाचा, ताऊ, भाई, बाबा लोगों का जमघट लगा रहता था। प्रेम भाव टपकता था। सुख दुःख बँटता था। किसी के बग़ीचे से आम तोड़कर आप खा सकते थे। जिसके दरवाज़े के सामने से गुज़रते वो बिना कुछ खिलाए पिलाए आगे बढ़ने नहीं देता था।
घर कच्चे थे पर प्यार और अपनापन पक्के थे। मेरे पिता जो एक वेटरिनेरी डाक्टर थे सभी पशुओं का मुफ़्त इलाज करते, मुफ़्त दवा देते।
धीरे धीरे सम्पन्नता बढ़ी कच्चे मकान पक्के हुए। साइकल के जगह motorcycle और कार आए, घर बँटे , लोग व्यस्त होते गए समय की कमी होती गयी लोगों के पास और दूरियाँ बढ़ती गयी। आज ये आलम है की गाँव में एक दो दिन के लिए कौन आया कौन गया यह पता भी नहीं चल पाता है। शायद इसे सुख का रोग कहते हैं। आप सबने महसूस किया होगा की मुश्किल या अभाव में मिल्लत ज़्यादा होता है। समृद्धि में हम आप अपनी के हो जाते हैं। तो मेरा गाँव भी बदल रहा है!!
मुझे याद है की जब मैं दस एक वर्ष का था तब उस वक़्त मेरे हम उम्र १०-१५ बालक गाँव में थे( जैसे Ranjeeta के पापा, ओंकार जी, दीनानाथ जी इत्यादि) । जब कोई शादी में नाच आता था तो हमारे बुज़ुर्ग लोग तो जाते ही थे हम बच्चे भी छुप कर पहुँच जाते थे नाच का लुत्फ़ उठाने। पर ध्यान इसपर रहता था की कोई बूढ़उ हमें देख न ले।
सरीसवाँ बाज़ार का चूड़ा meat, पकौड़ी, तेलहि जलेबी के स्वाद क्या कहने। नहर तो मेरे होश में आया। हम शहरी बच्चों को भैंस पर बैठकर उसको चराने का मज़ा कभी नहीं भूलेगा। अब तो हम बुज़ुर्ग हो गए। पर उस सोनधि मिट्टी की ख़ुशबू, बरसात में धान के खेत में से गमछा में छोटका pothiya मछली पकड़कर लाना, घूँसार का भूँजा, और मेरे हम उम्र भाई, दोस्तों का प्यार चिता तक जाएगी। सचमुच, मेरा गाँव बदल रहा है।

Sandeep Roy: बहुत सुंदर। काफी नामी गांव है ।मेरे पिता के मुँह से कई बार सुना है।कभी मौका मिला तो जरूर आएंगे।
तपन सर। एक सुझाव है क्यों न ग्रुप के वे स्वजन जो अभी भी गांवों में रहते हैं या गांव से काफी जुड़े हुए हैं अपने गांव के बारे में इसी तरह के फोटो फीचर ग्रुप में डालें जिससे हम नई पीढ़ी के लोगो को अपने स्वजातीय गाँव के बारे में निकट से जानने का मौका मिलेगा और एक संग्रह भी हमारे पास होगा जिसे हम प्रकाशित कर सकते हैं जो अगली पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज होगा।
Rewti Choudhary: गांव की मिट्टी से आपका लगाव पसंद आया।
Ashutosh Kumar: बहुत सुंदर लेख । मैं भी दुधामठिया से जुड़ा हूँ ।मेरी धर्मपत्नी रंजीता शर्मा जी का यह गाँव है।
Dharmendra Sharma Bhatt: रंजीता मेरी बहन लगती है।उससे मेरे बारे में पूछियेगा।
Deorath Kumar: बहुत सुन्दर चित्रण किया आपने
Ranjeeta Sharma: मेरा प्यारा गांव मुझे बहुत याद आता है।
हरिओम प्रासाद राय भट्ट: बहुत ही अच्छा, विवरण
Rakesh Sharma: बहुत अच्छा और मिलनसार गांव है दुधामठिया जहां एक से एक बौद्धिकता के धनी व्यक्तित्व विराजते हैं. मैनें बहुत पहले इस गांव में गया था जहां मुझे बहुत अच्छा लगा.
Dharmendra Sharma Bhatt किनके घर गए थे सर?
Rakesh Sharma: आपके गांव में सरपंच साहब के घर और अशोक मामा के घर तथा पिंकु जी जो स्व ध्रुव शर्मा के लडका हैं हमारे साथ मुजप्फरपुर में रहे हैं उनके घर और भी कई लोग हैं जिनको मैं जानता हूं और उनसे मेरा अच्छा संबंध भी है.
Ram Vinay Sharma दूधा मठिया बकिये बहुत अच्छा गांव है।बहा के लोग बहुत मिलनसार है।पूर्व सरपंच साहब आदरनिये श्री हरेंद्र राय जी मेरे जीजा जी है
Amod Kumar Sharma प्रतिष्ठीत गांव है।जानकारी के लिए धन्यवाद।
Mantu Kr Brahmbhatt बहुत बढ़िया लगा आपने अपने गॉव का परिचय जो इस प्रकार कराये।बहुत सुन्दर आपका गॉव है हमें भी गर्व है।
Satyendra Sharma मिलिट्री , पुलिस तो लगभग हर घर में है। ”
Abhishek Bhatt Hn sharma ke हाता वाला दूधा मठिया गाँव
Sanjay Kumar गाँव का चित्रण बहुत अच्छा लगा मैं तो बिगत माह मे आप के गाँव और शिकारपुर गया था चुकी मेरा मामा घर शिकारपुर ही है ! वहाँ लोगो अतिथी को भगवान समझते है l
Sonam Sharma Bhatt बहुत ही उत्तम और सराहनीय चित्रण प्रस्तुत किया आपने। मैं भी उस गाँव की बेटी हूँ।
Sarita Sharma: मैं भी दुधामठिया (मेरा पैतृक गांव) के बारे में लिखना चाहती थी पर तस्वीर के अभाव में नहीं लिख पाई।वैसे धर्मेंद्र जी आपने बहुत बढ़िया लिखा है।मेरी इच्छा थी कि आप हमारे गांव की सिंचाई व्यवस्था के बारे में भी उल्लेख करते।साथ हीं नहर और खलिहान की तस्वीर भी डालते तो मजा आ जाता।
Dharmendra Sharma Bhatt आप लिखें या मैं लिखूं एक ही बात है ।नहर का तस्वीर डालना सही में भूल गया।
Sarita Sharma घर के पीछे नहर होने के कारण उसके साथ बहुत ही खट्टी-मीठी खुबसूरत यादें जुड़ी हैं।
Deepak Sharma अति सुन्दर विवरण व वर्णन
Vinita Sharma इस गांव से हमारी बहुत सारी यादें जुड़ी हुई हैं। मेरा ननिहाल है यह गाँव । अनायास ही मानसपटल पर बचपन की यादें अंकित हो गयीं । मझौलिया स्टेश्न से उतर कर बैलगाड़ी में बैठ कर गांव जाने में जो आनंद आता था और गाड़ीवान जिस तरह से बैलों को निर्देश देता था ‘”घूम …
Sanjay Kumar विनिता जी बेतिया से तागा की सवारी भी यादगार है l
Mantu Kr Brahmbhatt: हर किसी इंसान का अपना गॉव अति प्यारा लगता है। मुझे अपने गॉव से सुन्दरऔर अच्छा कोई गॉव लगता ही नहीं है।मैं बालबाँध का बात कर रहा हूँ, जो कि भोजपुर(आरा) में पड़ता हैं।इस गॉव का भी एक अलग इतिहास रहा है।विशेष वर्णन मैं क्या करू।शायद आपसब इस गॉव से अवगत होंगे।
Sonu Kumar Rai बहुत उत्तम यह गांव लग रहा है कभी मौका मिले तो जाना चाहिए ।गांव की तस्वीर वि बहोत आच्छी लगी।
Pandit Vikas Sharma शानदार ! आप के द्वारा किए गये चित्रण से भूली बिसरी सभी यादें फिर से ताजा हो मानो जीवंत हो उठी हो !
Sonu Kumar बहुत बढ़िया लगा आपने अपने गॉव का परिचय जो इस प्रकार कराये।बहुत सुन्दर आपका गॉव है !
Nirmal Kumar जहॉं बसे वह सुन्दर देशु जो परतीपाले वही नरेशु ।बस कम लिखना और जादा समझना ।
 
Rishiraj Kumar Shiv Bhakt जिस गांव का नाम ही दुधा मठिया हो, वह गांव क्यों ना सुहावना हो !
Ravindra Sharma: वही दुधामठीया जो सरिसवा बजार से दो किलो मिटर दक्षिण मे है। जहा आज भी अच्छी सी कची सडक है। जो बारिश होने पर चलने नही देती है। जो शिकार पुर के पास है।बहुत अच्छा गाॅव है।मै गया हुॅ आपके गाॅव मेग वारिश का सिजन था।मझौलिया से उतर जाने पर एक बन्द पडा चिमनि है। जिसके बगल से होकर एक कच्चा रस्ता है। किसी ने पुछने पर बतया कि ये रोड सरिशवा तक जाता है।उस रोड से जाने पर हमलोग एक गड्ढे मे गिर गए। क्युकि बारिश मे गाडी फिसल गई थी। लेकिन बहुत अच्छा गाव है। एक किलो मिटर जाने के लिए दो घंटा समय चाहिए। लेकिन बहुत अच्छा गाव है।

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