राजा की शादी राजा से ही होती है
0 जाति का सबसे बड़ा आधार आर्थिक स्थिति
कोई शुद्ध गरीब ब्राह्मण की लड़की कोई आईएएस अधिकारी अपने बेटे के लिए लेगा? आईएएस अधिकारी अपना संबंध आईएएस अधिकारी या उद्योगपति के यहां ही करेगा। अगर आप ध्यान से देखें तो राजवंशों ने भी अपनी शादियां राजवंशों में की हैं फिर चाहे आदिवासी राजाओं में क्यों न हो या मराठी और नेपाली राजाओं में ही क्यों न हों।
प्रमोद ब्रह्मभट्ट, वरिष्ठ पत्रकार/रायपुर
जाति का अर्थ समान व्यवसाय से जुड़े लोगोें का समूह होता है- जो पीढ़ियों से उस कार्य में संलग्न होते हैं। इसके सदस्य जन्मना होते हैं याने उस कुल में उत्पन्न होने पर ही आप उस जाति के माने जाएंगे। लेकिन इन्हीं जाति की इकाई में कार्य की विशेषता और विभाजन तथा थोड़े-थोड़े अंतर के कारण उपजातियां व अंतर्विवाही समूह विकसित होते हैं। हर जाति की मर्यादा उसके जातीय-पेशा, आर्थिक स्थिति, धार्मिक संस्कार, सांस्कृतिक परिष्कार और राजनीतिक सत्ता से निर्धारित होती है। जाति निर्धारकों में परिवर्तन आने से इसमें परिवर्तन भी संभव है।
दूसरी तरफ समाज भी परिवर्तन शील है। भारत की आजाद के समय संख्या ठीक से याद नहीं है फिर भी शायद 21 प्रांतों में से 18 प्रदेश के प्रधानमंत्री (तब मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री कहा जाता था) ब्राह्मण थे। लेकिन उसमें से एक भी ब्रह्मभट्ट ब्राह्मण नहीं था। आजादी के समय वेदपाठी ब्राह्मणों की इसी राजनीतिक श्रेष्ठता का परिणाम भी देश ने कालांतर में देखा। हर शासकीय नौकरियों में चपरासी से लेकर पुलिस और पुलिस से लेकर मंत्री तक में ब्राह्मणों का वर्चस्व हो गया। वैसे ब्राह्मणों का पेशा पठन-पाठन, ज्ञान-विज्ञान उससे जुड़े प्रशासनिक कार्य और कर्मकांड रहा है।
ब्राह्मणों का वर्चस्व: आज भी सभी तरह के प्रशासनिक कार्यों से लेकर पठन-पाठन के कार्यों में ब्राह्मणों का वर्चस्व देखा जा सकता है। इसी परिदृश्य में हम भी कहीं हैं लेकिन बहुत थोड़े से। ज्यादतर वे लोग हैं जिन्होंने वेदपाठी ब्राह्मणों का सरनेम स्वीकार कर लिया है। शायद उन्हें उन्हीं नामों का फायदा हुआ है जबकि भट्ट और ब्रह्मभट्ट अभी भी जातीय स्तर पर भीषण संघर्ष करते दिखते हैं।
आजादी के इतने दिनों बाद वर्तमान में पिछड़े वर्ग की सत्ता स्थापित हो गई है। याने ब्राह्मण सत्ता पदच्युत हुई है। पिछड़ा वर्ग जब से सत्ता पर हावी हो गया है उस वर्ग के लोग भी मलाईदार पदों में पहुंच चुके हैं। हालांकि अभी तक ब्राह्मण सत्ता कमजोर नहीं हुई है फिर भी अभी से सत्ता की डोर ढीली होती देख सर्व ब्राह्मणों को एक करने का अभियान चलाया जा रहा है। आरक्षण के विरोध की मांग शुरू हो गई है। उनकी मांग है या तो ब्राह्मणों को भी आरक्षण दो नहीं तो आरक्षण खत्म कर दो। आर्थिक आरक्षण की मांग इसी छुपी हुई मांग का प्रगटीकरण है।
खुशफहमी: हम अपने मूल विषय पर आते हैं जातियों में ऐसा नहीं होता कि कोई शुद्ध गरीब ब्राह्मण की लड़की कोई आईएएस अधिकारी अपने बेटे के लिए लेगा। आईएएस अधिकारी अपना संबंध आईएएस अधिकारी या उद्योगपति के यहां ही करेगा। अगर आप ध्यान से देखें तो राजवंशों ने भी अपनी शादियां राजवंशों में की हैं फिर चाहे आदिवासी राजाओं में क्यों न हो या मराठी और नेपाली राजाओं में ही क्यों न हों। इसी तरह मेरा इतना कहना है कि सभी स्वजातीय अगर सम्मान और प्रतिष्ठा चाहते हैं तो चाहे जिस तरह हो समृद्धिवान बनें, सत्ता में पद प्राप्त करें। तभी समाज में प्रतिष्ठित हो सकते हैं और स्वयं को ब्राह्मण प्रतिष्ठित कर सकते हैं अन्यथा पवित्रता की झूठी शान लेकर तो अब तक खुशफहमी पाले हुए हैं ही।
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Roy Tapan Bharati: आप हमेशा सच लिखते हैं…लेकिन दुनिया इसके उलट बोलती है…जबकि आप वही लिखते जो हो रहा है
Girish Bhatt: बात रखने का ये तरीका बहुत प्रशंसनीय है। न केवल समझाया गया है बल्कि साधा भी गया है और झूंठी शान से दूर रहने को चेताने के साथ साथ आगे बढ़ने को प्रेरित भी किया गया है। एक निवेदन मेरा भी है सर कि सक्षम बंधू सरकारी या प्राइवेट नौकरियों में स्वजातीय बच्चों को पर्दे के पीछे से आगे बढ़ाने में थोड़े सहायक बनें।
Ku Bhatt Sharad: भूखे नंगे को कौन पूछता है । वेल्यू तो असल मै power, paisaa और position की ही होती रही है। हां, ब्राहम्णो की ऊँचाई मापने वाली सीढ़ी मे भट्ट ,गौसाइन (गोस्वामी )-/ गिरी , से क्या निचले पायदान पर है की नहीँ ? और गोसाई OBC है और गिरी भी O B C मे हैं की नहीँ ? ऊ प्र मे जिन कुछ मुठ्ठी भर भट्ट जनों के कार्य कलापों से भट्ट समाज को OBC से वंचित होना पड़ा और अन्य उच्च ब्रह्मण ,OBC लें कर भी ईनसें ऊंचे पायदान पर पहुँच गये ।