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खुद को वीरान कर, विकास-पथ पर दौड़ा मेरा भटपुरा गांव India Uttar Pradesh 

खुद को वीरान कर, विकास-पथ पर दौड़ा मेरा भटपुरा गांव

इस बार मैं एक वर्ष के उपरांत जब अपने गांव गया तो कुछ भी अच्छा न लगा! लगभग सभी घर अब आलीशान हो गए है पर सबके सामने ताले लटके मिले! कुछ घरो मे बुजुर्ग तो मिले पर नए लड़के एक भी नही रहे, पूरे गांव का चक्कर लगाया पर एक अजीब सा सन्नाटा ही दिखा!

जितेन्द्र शर्मा भट्ट/ ग्राम-भटपुरा/फ़ैज़ाबाद
जितेन्द्र शर्मा भट्ट

मुगल काल के अवध प्रांत की राजधानी एवम वर्तमान में जिला मुख्यालय/ मण्डल फ़ैज़ाबाद से 24 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व एवम अयोध्या से 22 किलोमीटर की दूरी पर ऐतिहासिक राम वन गमन मार्ग पर स्थित मेरे गांव का नाम भटपुरा रामपुरभगन है!

 
भगवान राम की चरणपादुका (खड़ाऊ ) को सिंहासन पर रखकर उनके छोटे भाई भरतजी ने 14 वर्ष तक जिस स्थल पर तपस्या की उस ‘नन्दी ग्राम (भरतकुंड’) की दूरी मेरे गांव से महज 8 किलोमीटर है तथा ग्रन्थों मे वर्णित  “तमसा नदी ” जिसके तट पर अयोध्यावासियों को सोता हुवा छोड़कर प्रभु राम 14 वर्षो के लिए वनवास चले गए थे उस पावन भूमि की दूरी भी मेरे गांव से महज 5 किलोमीटर ही है !
अवधी संस्कृति एवं गंगा-यमुनी तहजीब से रचा भरा मेरा छोटा-सा गांव जहाँ सिर्फ हमारी ही जाति के घर है जिनकी संख्या तकरीबन 30 है ! कभी मुफलिसी एवं गुरुबत से इस गांव का बड़ा करीब का नाता था! मुझे याद है अपनेे बचपन मे जब मैं गांव जाता था तो दिन में  दो-चार लोग जरूर छप्पर उठाने के लिए बुलाने आते थे, हम बच्चे लोग भी जाते थे पर हम ताकत न लगाकर सिर्फ चिल्लाते थे या फिर छप्पर से लटक कर बाधा ही पहुचाते थे!
 
जब होली आती तो ढोलक एवम मंजीरा लेकर गांवों के लोग पूरे गांव में होली गीत (फगुवा) गाते और अबीर लगाते, हुड़दंग करते थे ,लोगो से ठसाठस भरा एवम कौतूहलपूर्ण था मेरा गांव! पर पिछले 6 वर्षों ने गांव की पूरी आबो-हवा ही बदल दी, क्षेत्र में बड़े जोरो से चर्चा है कि उस गांव ने शिक्षा एवम नौकरी में बड़े बड़े गांव को पीछे छोड़ दिया है! बैंक प्रबंधक, सम्पादकीय लेखक, सचिवालय, रेलवे, सेना, प्रेंसपल, थानाध्यक्ष , दो MBBS कर रहे बच्चे, दिल्ली कालेज आफ इंजीनियरिग से बीटेक, एम टेक, कस्टम एंड एक्साइज मे इंस्पेक्टर, केंद्रीय व राज्य इंटरकालेज में शिक्षक, दो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक, वरिष्ठ काउंसिल, सफल व्यवसायी, जैसे विभन्न क्षेत्रो में मेरे गांव की युवा पीढी ने अपना धमाल मचा रखा है !
किंतु इस बार मैं एक वर्ष के उपरांत जब अपने गांव गया तो कुछ भी अच्छा न लगा! लगभग सभी घर अब आलीशान हो गए है पर सबके सामने ताले लटके मिले! कुछ घरो मे बुजुर्ग तो मिले पर नए लड़के एक भी नही रहे, पूरे गांव का चक्कर लगाया पर एक अजीब सा सन्नाटा ही दिखा! मेरा बचपन जिन पेड़ो पर उछलते -कूदते गुजरा था उनकी डालियां जैसे बच्चो के आने का इंतजार कर रही हो !
आम के पेड़ों के नीचे बच्चो की दौड़ एवम आपसी लड़ना-झगड़ना सब बीते दिनों की बात हो चुकी है ! शायद आने वाले समय मे लोग चर्चा करेंगे यहाँ एक गांव हुवा करता था, जहां अब खंडहर दिख रहे है ! मुझे गांव के विकास से बड़ी खुसी है पर जो स्थान मेरी पहचान का हिस्सा है, मेरी बचपन की यादों का खजाना है, जिनकी गलियों में निर्दोष बचपन गुजरा उसे इस तरह उजड़ते हुवे देखकर तकलीफ भी बहुत है! पर क्या किया जा सकता है? समय का बदलाव जो नियति का हिस्सा बन चुका है उसे भला कौन रोक सका है !
(लेखक जितेंद्र कुमार शर्मा दिल्ली के निकट बुलन्दशहर के के.डी इंटर कालेज में लेक्चरर हैं)

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