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क्या धर्म यही कहता है? : भारती रंजन Bihar India 

क्या धर्म यही कहता है? : भारती रंजन

न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बन्धन।
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन।
नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो।

भारती रंजन कुमारी/Darbhanga

किसी भी धर्मग्रन्थ ने यह नहीं कहा है कि नफरत फैलाओ। मगर धर्म के कारण ही (अंकित की) सरेआम हत्या हो गई । उसने ये जुर्म किया कि हिन्दू होकर एक मुस्लिम लड़की (सलीमा) से प्यार कर बैठा। जिसके एवज में उसकी हत्या कर दी गई, एक हँसमुख लड़का, दूसरो को भी हँसाने वाला, u tube पर चैनल चलानेवाला लड़का, उसके सारे सपनो को मौत के सौदागरों के हाथों खून से लथपथ कर दिया गया। हत्या करनेवाले कसाई थे, मगर वहाँ खड़े लोगो ने भी इंसानियत को कलंकित कर दिया। एक 23 साल के लड़के की देश की राजधानी में गला रेती जा रही थी और लोग उसका तमाशा देख रहे थे। सलीमा के परिवार वाले कसाई थे मगर वहाँ खड़े हजारों लोग तो कसाई नही थे। देखनेवालों ने बीच बचाव किया होता तो शायद आज अंकित जिंदा होता।

किस धर्म मे लिखा है कि दूसरे धर्म मे प्यार करने पर उसे सरेआम सड़क पर मौत दे दो? कितना तड़पा होगा अंकित जब मीट काटनेवाले चाकू से उसपर वार किया गया होगा? कितनी बेबसी होगी उसकी आँखों मे जब उसे प्यार करने की सजा मौत दी गई वो भी हजारों लोगों के सामने।
धर्म के ठेकेदार पता नही कौन-सा धर्मग्रंथ पढ़ते हैं जिसमे मारना-काटना लिखा होता है? अंकित के हत्यारे, उस सारे लोगो को चेतावनी दिए हैं जो दूसरे धर्म के लड़का या लड़की एक दूसरे के साथ जीवन जीना चाहते हैं, एक दूसरे को अपनाना चाहते हैं-उन्हें सजाए मौत दी जाएगी, उनका गला रेत दिया जाएगा और वहां खड़े लोग इंसान नही मुर्दों की तरह देखते रह जाएंगे।
अंकित के परिवार वालों को न्याय मिले न मिले मगर कोई वकील अपने दलीलों से हत्यारो को बचाने की कोशिश करेगा, सबूतों को मिटाने की कोशिश करेगा और गवाहों को धमकाने या खरीदने की कोशिश करेगा।
हमे शर्म आना चाहिए ये कहते हुए के हम एक धर्मनिरपेक्ष देश मे रहते हैं।
किसी मसले को बातचीत से न सुलझाकर बर्बरता की हदें पार कर देते हैं।
ये कैसी इंसानियत है? ये धर्म नहीं धर्म को बदनाम करनेवाले ढोंगी हैं।
धर्म या मजहब दिलों को जोड़ता है, नफरत नहीं फैलाता। दूसरे धर्म की लड़की से किए बलात्कार पर उसे बचाया जाता है, रोजगार उपलब्ध कराया जाता है, मगर प्यार करके एक दूसरे के साथ जिंदगी के सुनहरे सपनो को देखने वाले का बीच सड़क पर गला रेता जाता है, वो भी तब जब वो अकेला हो। किस दुनिया में, किस देश मे, किस समाज मे जी रहे हैं हम और कैसा भविष्य बना रहे हैं? क्यों हम पल-पल ख़ौफ में जी रहे हैं? क्यों हम मुर्दों की तरह जीते हैं?अगर अंकित की जगह हमारा भाई या बेटा होता तो क्या हम यूँही तमाशबीन होते? अपनी आत्मा को झकझोडीए।
दुनियां का कोई कानून, कोई समाज ,कोई धर्म मानवता और इंसानियत से ऊपर नही है ।

अंकित प्यार और धर्म की लड़ाई की बलि चढ़ गया, क्या हम उसे न्याय दिलाने और उसके हत्यारों को उसके किए सजा के लिए आवाज उठा सकते हैं? उनके माता पिता को उनका बेटा तो नही लौटा सकते मगर क्या इस दुख की घड़ी में उनके साथ खड़े हो सकते हैं?
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Comments on facebook:

Santosh Bhatt बहुत ही अच्छी लेखनी, भारती जी
 
Manoj Kumar आपकी लेखनी सराहनीय है मेम काश् आपकी तरह हर कोई समझने की थोड़ा भी कोशिश करे ।
 
Roy Tapan Bharati नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो।…बहुत अच्छा लेख
 
Advt. Rakesh Sharma नफरत की दुनिया को छोड़कर, प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार….. आपके पोस्ट पर बरबस मुझे यह गाना और फिल्म का दृश्य याद आ गया। हमें अपने इंसानियत को जिंदा रखना चाहिए और अपनी जमीर को जिंदा रखना चाहिए।अगर शरीर में इंसानियत नहीं है तो वह एक जिंदा लाश है।
 
Bharti Ranjan अमूल्य शब्द कहे आपने विकास सर। आपको भी सादर प्रणाम।
 
Rk Sharma हम इस स्वतंत्र विचार को नमन करते है।
 
Sarita Sharma शर्मसार करने वाली घटना है ये।कहने को तो हमलोग 21वीं सदी मे जी रहें है लेकिन सोच और विचार से अभी भी सदियों पीछे है।हमारा समाज और देश जब तक मानसिक रूप से आधुनिक नहीं होगा,तब तब ऐसी हृदय विदारक घटनाएं होती ही रहेंगी।
 
Sangita Roy बहुत सटीक लेख, भारती जी। एक एक शब्द चीख चीख कर कह रहे है कि इंसानियत क्यों मर रही है? क्यों शर्मसार हो रही है?कौन शर्मसार कर रहा है? इसका जबाब हमें ही ढूँढना है।
 
 
Mukesh Sharma बिलकुल सही यदि अभी भी हम लोग एक नही हुये तो आने बाला समय और खराब होगा
 
Prabhat Kumar बहुत ही उम्दा लेखनी। कलम रो जाय
 
Rajesh Kumar Bhatta: यह कट्टरतापूर्ण व्यवहार किसी खास समुदाय विशेष की दासी नही। ऐसे घटनाओं को अंजाम वे लोग देते हैं जो अपनी आर्थिक समृद्धि के बल बूते कुछ भी करने को आमादा हो ।ऐसे में सही – गलत की व्याख्या भी करना वे मुनासिब नहीं समझते।ऐसी घटनाओं के चश्मदीद ज्यादातर मूक बने रहने में अपना भला समझते हैं । शायद यह उनकी मजबूरी भी है क्यूँकि प्रशासन भी उन्ही दरिन्दों का साथ देती है । अंततः वह न्यायालय में भी साक्ष्य के आभाव में बरी हो जाता है । वैसे संस्कारों को तोडना भी कहीं से जायज़ नहीं माना जा सकता
 
Geeta Bhatt: उम्दा लेख। ये कौम होती ही ऐसी अत्याचारी ।और हमारी हिंदू बेटियो को फौरन स्वीकार कर लेते है और शान समझते है कमजोरी जाहिर हो जाती है हिन्दू धर्म की। हमारी सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए सरकार चाहे तो निजात मिल सकता है उससे पहले जनता जनार्दन को झकझोरा जाय। तभी देश व घर सुरक्षित रह पायेगा ।

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