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राजकुमार शुक्ल के बगैर बापू की चर्चा अधूरी Bihar India 

राजकुमार शुक्ल के बगैर बापू की चर्चा अधूरी

चम्पारण शताब्दी समापन दिवस पर सत्याग्रह के सूत्रधार पं० राजकुमार शुक्ल को समर्पित

चंपारण सत्याग्रह में दर्जनों लोगों ने बापू का साथ दिया. गांधी बिहार आगमन के पूर्व चंपारण में कई नायकों की भूमिका महत्वपूर्ण रही.’ इनमें कौन महत्वपूर्ण नायक था, तय करना मुश्किल. सबका अपना महत्व था. लेकिन 1907-08 के इस आंदोलन के बाद गांधी को चंपारण लाने में और उन्हें सत्याग्रही बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सतबरिया के राजकुमार शुक्ल की थी।

राजेश कुमार भट्ट/पटना

आज (10 Apr) हम समस्त बिहारवासियों के लिए ऐतिहासिक दिवस है, क्यूँकि स्वतंत्रता संग्राम में बतौर नेतृत्व के लिए चम्पारण में किसानों पर

राजेश कुमार भट्ट, पटना

होने वाली बर्बरता पूर्ण दमनकारी नितियों व शोषण के खिलाफ महात्माँ गाँधी का पं० राजकुमार शुक्ल द्वारा किये गये भगीरथी प्रयास से राजधानी पटना (तत्कालीन बाँकीपुर ) में पहली बार पदार्पण हुआ था। आज चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के समापन की अधिकारिक घोषणा भले हीं केन्द्र व राज्य सरकार ने कर दी, लेकिन यह ऐसी यशोगाथा है जिसे इतिहास मे सदियों याद किया जाएगा। गाँधी के बारे में अगर जानना है, तो चम्पारण आंदोलन का भी विस्तृत अध्ययन करना होगा और गाँधी की चर्चा होगी तब पं० राजकुमार शुक्ल के बगैर कोई चर्चा अपूर्ण होगा । ऐसे में इस ऐतिहासिक मौके पर पं० राजकुमार शुक्ल को याद करना प्रासंगिक हो जाता है । जो चंपारण में गांधी के सत्याग्रह को जानते हैं, वे राजकुमार शुक्ल का नाम भी जानते हैं । गांधी के चंपारण सत्याग्रह में दर्जनों नाम ऐसे रहें, जिन्होंने दिन-रात एक कर गांधी का साथ दिया. गांधी बिहार आगमन के पूर्व चंपारण में कई नायकों की भूमिका महत्वपूर्ण रही.’ इनमें कौन महत्वपूर्ण नायक था, तय करना मुश्किल है. सबकी अपनी महती भूमिका थी, सबका अपना महत्व था. लेकिन 1907-08 के इस आंदोलन के बाद गांधी को चंपारण लाने में और उन्हें सत्याग्रही बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका राजकुमार शुक्ल की रही, इनका जन्म चम्पारण ज़िला के सतबरिया ग्राम में हुआ था। इनकी धर्म पत्नी का नाम श्रीमती केवला देवी था जो ग्राम भट्टौलिया , थाना, मीनापुर, मुजफ्फरपुर की थी।

पंडित शुक्ल को कर्मठ बनाने में उनकी धर्मपत्नी केवला देवी की महतवपूर्ण भूमिका रही । देश प्रेम से ओत -प्रोत पंडित शुक्ल को उन्होंने ही आंदोलनकारी बनाया। भट्टौलिया निवासी पंडित ललित राणा की बेटी केबला धर्म परायण होने के साथ साथ बेद ज्ञान में निपुण थीआज भी भट्टौलिया के लोग केवला का नाम लेकर स्वयं को गौरवांवित महसूस करते हैं। चम्पारण सत्याग्रह के प्रणेता पंडित राजकुमार शुक्ल की तीन पुत्रियाँ थी। (1) मीणा देवी। (2) रामपति (3) देवपति । इनकी दो लड़कियों की शादी दूधा मठिया और एक का महाराज पट्टी, असर्फी महाराज जी के घर हुई थी ।

चंपारण सत्याग्रह में दर्जनों नाम ऐसे रहें, जिन्होंने दिन-रात एक कर गांधी का साथ दिया। अपना सर्वस्व त्याग दिया, उन दर्जनों लोगों के तप, त्याग, संघर्ष, मेहनत का ही असर रहा कि अंग्रेजी लिबास में पहुंचे बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी चंपारण से कठियावाडी ‘महात्मा’ बनकर लौटते हैं और फिर भारत की राजनीति में एक नई धारा बहाते हैं. गांधी 1917 में चंपारण आए तो सबने जाना. गांधी चंपारण आने के बाद महात्मा बने, उसकी कहानी भी दुनिया जानती है. गांधी चंपारण न आते तो उनकी राजनीति का रूप-स्वरूप क्या होता और किस मुकाम को हासिल करते, इस पर अंतहीन बातों का सिलसिला जारी है और रहेगा।
इतिहास के पन्ने में दर्ज भले न हो लेकिन चंपारण में यह भी सब जानते हैं कि गांधी के यहां आने के पहले भी एक बड़ी आबादी निलहों से अपने सामर्थ्य के अनुसार बड़ी लड़ाई लड़ रही थी. उस आबादी का नेतृत्व शेख गुलाब, राजकुमार शुक्ल, हरबंश सहाय, पीर मोहम्मद मुनिश, संत राउत, लोमराज सिंह, राधुमल जैसे लोग कर रहे थे। यह गांधी के चंपारण आने के करीब एक दशक पहले की बात है । 1907-08 में निलहों से चंपारण के किसानों की सीधी भिड़ंत हुई थी। यह घटना कम ऐतिहासिक महत्व नहीं रखती.

शेख गुलाब जैसे जांबाज ने तो निलहों का हाल बेहाल कर दिया था। चंपारण सत्याग्रह पर शोध करने वाले भैरवलाल दास कहते हैं, ‘साठी के इलाके में शेख ने तो अंग्रेज बाबुओं और उनके सुरक्षाकर्मियों को पटक-पटककर मारा था । इस आंदोलन में उग्र किसानों पर दर्जनों मुकदमे दर्ज हुए । 250 से अधिक लोग जेल में कैद किए गए । शेख गुलाब सीधे भिड़े तो पीर मोहम्मद मुनिश जैसे कलमकार ‘प्रताप’ जैसे अखबार में इन घटनाओं की रिपोर्टिंग करके तथ्यों को उजागर कर देश-दुनियाँ को वहाँ की हालात से अवगत कराते रहें । राजकुमार शुक्ल जैसे लोग रैयतों को आंदोलित करने के लिए एक जगह से दूसरी जगह की भाग-दौड़ करते रहे।
ये राजकुमार शुक्ल हीं थें जिन्होंने गांधी को चंपारण आने को आपने निरंतर प्रयास से बाध्य किया। गांधी के बारे में किसानों के बीच प्रचार कर सबको बताया ताकि जनमानस गांधी पर भरोसा कर सके ,और गांधी के नेतृत्व में आंदोलन चल सके।
जो तमाम नाम ऊपर वर्णित हैं, उन्होंने अपने तरीके से अपनी भूमिका निभाई और इस आंदोलन का व्यापक असर गोरी सरकार पर हुई, जिसके फलस्वरूप 1909 में गोरले नामक एक अधिकारी को भेजा गया । तब नील की खेती में पंचकठिया प्रथा चल रही थी यानी एक बीघा जमीन के पांच कट्ठे में नील की खेती अनिवार्य थी ।‘इस आंदोलन का ही असर रहा कि पंचकठिया की प्रथा तीनकठिया में बदलने लगी यानी रैयतों को पांच की जगह तीन कट्ठे में नील की खेती करने के लिए निलहों ने कहा। लेकिन 1907-08 के इस आंदोलन के बाद गांधी को चंपारण लाने में और उन्हें सत्याग्रही बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही राजकुमार शुक्ल की। चंपारण के सत्याग्रह के इतिहास पर बात करने वाले सभी राजकुमार शुक्ल की भूमिका को काफी अहम मानते हैं। सब जानते हैं कि राजकुमार शुक्ल ही थे जो गांधी को चंपारण लाने की निरंतर कोशिश करते रहे । गांधी को चंपारण बुलाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह दौड़ लगाते रहे. चिट्ठियां लिखवाते रहे।
चिट्ठियां गांधी को भेजते रहे. पैसे न होने पर चंदा करके, उधार लेकर गांधी के पास जाते रहे । कभी अमृत बाजार पत्रिका के दफ्तर में रात गुजारकर कलकत्ता में गांधी का इंतजार करते रहते। राजकुमार शुक्ल के ऐसे कई प्रसंग हैं. खुद गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रूथ’ में राजकुमार शुक्ल पर एक पूरा अध्याय लिखा है ।
गांधी ने तो राजकुमार शुक्ल पर इतना ही लिखा कि मै जहाँ अधिवेशनो में जाता था मुझसे पहले शुक्ल वहाँ पहुँच जाते थे । भले ही चंपारण आने के बाद गांधी के संग तमाम लोग साथ हो जाते हैं और सत्याग्रह की लड़ाई को आगे बढ़ाते हैं, लेकिन राजकुमार शुक्ल ही थे जिन्होंने गांधी को चंपारण आने को बाध्य किया। राजकुमार शुक्ल से जुड़े हुए ऐसे कई अध्याय हैं कि गांधी के आने के बाद कैसे वे रैयतों को एकजुट कर लाते थे। सबका छोटा-बड़ा केस लड़ते थे। लेकिन शुक्ल की जिंदगी का एक महत्वपूर्ण अध्याय गांधी के चंपारण से चले जाने के बाद का है, जो आज भी अनछुए हैं, जिस पर ज्यादा चर्चा नहीं होती।
भैरवलाल दास द्वारा संपादित” राजकुमार शुक्ल की डायरी ” में एक बेहद मार्मिक प्रसंग है। गांधी के चंपारण से जाने के बाद भितिहरवा से शुक्ल के संगठन का काम जारी रहता है । रोलट ऐक्ट के विरुद्ध वे ग्रामीणों व रैयतों में जन- जागरण फैलाते रहते हैं। ग्रामीणों के बीच उनकी सक्रियता 1920 में हुए असहयोग आंदोलन में भी रहती है. वे चंपारण में किसान सभा का काम करते रहते हैं। 1919 में लहेरियासराय में बिहार प्रोविंशियल एसोसिएशन का 11वां सत्र आयोजित होता है जिसमें वे भाग लेते हैं ।वहां जासूसी करने गया एक अंग्रेज अधिकारी अपनी रिपोर्ट में यह लिखा है कि राजकुमार शुक्ल ही इसके नेता हैं । शुक्ल को गांधी की खबर अखबारों से मिलती रहती है।

वे गांधी को फिर से चंपारण आने के लिए कई पत्र लिखते हैं। गांधी का कोई आश्वासन उन्हे नहीं मिलता है। अपनी जीर्ण-शीर्ण काया लेकर 1929 की शुरुआत में वे साबरमती आश्रम कई पत्र लिखते हैं,पर गांधी का कोई आश्वासन उन्हें नहीं मिलता हैं। 1929 की शुरुआत में वे साबरमती आश्रम पहुंच जाते हैं । कस्तूरबा उन्हें देखते हीं रोने लगती हैं. 15-16 दिनों तक शुक्ल वहां रुकते हैं, तब गांधी से उनकी मुलाकात हो पाती ।उस समय गांधी कहीं बाहर गए हुए थे ।गांधी को देखते ही राजकुमार शुक्ल की आंखें भर आती हैं। गांधी कहते हैं कि- आपकी तपस्या अवश्य रंग लाएगी ।राजकुमार पूछते हैं- क्या मैं वह दिन देख पाऊंगा? गांधी निरुत्तर हो जाते हैं।
साबरमती से लौटकर शुक्ल अपने गांव सतबरिया नहीं जाते हैं। वे केडिया धर्मशाला के उसी कमरे में रात्रि विश्राम करते हैं, जहाँ गांधी स्वयं रहा करते थें। उसी रात 54 वर्ष की उम्र में 1929 में उनकी मृत्यु मोतिहारी में हो जाती है । मृत्यु के समय उनकी बेटी देवपति वहीं रहती हैं । मृत्यु के पूर्व शुक्ल अपनी बेटी से ही मुखाग्नि दिलवाने की इच्छा जाहिर करते हैं ।मोतिहारी के लोग चंदा करते हैं । मोतिहारी में रामबाबू के बागीचे में शुक्ल का अंतिम संस्कार होता है।
ऐमन वही अंग्रेज अधिकारी है जो राजकुमार शुक्ल को हर तरीके से बर्बाद करता था । धन-संपदा से विहीन तो कर ही दिया था । मौके तलाश कर उनको प्रताड़ित भी तरह तरह से करता रहता था ।
उनकी मृत्यु की सूचना ऐमन को मिलती है. ऐमन बेलवा कोठी का अंग्रेज अधिकारी है. ऐमन वही अधिकारी है जो शुक्ल को हर तरीके से बर्बाद करता था।., मौके तलाश-तलाश कर उनको प्रताड़ित करता है।बावजूद इसके
शुक्ल की मृत्यु की सूचना जब ऐमन को मिलती है तो वह स्तब्ध रह जाता है ।उसके मुंह से बस इतना ही निकलता है कि -चंपारण का अकेला मर्द चला गया ।वह तुरंत अपने चपरासी को बुलाता है. उसे 300 रुपये देता है. कहता है, ‘शुक्ल के घर पर जाओ और श्राद्ध के लिए पैसा देकर आओ। इस मर्द ने तो सारा काम छोड़कर देश सेवा और गरीबों की सहायता में ही अपने 25 वर्ष लगा दिए। रही-सही सब मैंने उससे छीन लिया. अभी उनके पास होगा ही क्या?’ चपरासी हाथ में रुपये लेकर हक्का-बक्का ऐमन का मुंह देखता रह जाता है ।कुछ क्षण बाद वह बोलता है कि साहब वह तो आपका दुश्मन था. उसकी बात काटते हुए ऐमन बोलता है,’ तुम उसकी कीमत नहीं समझोगे. चंपारण का वह अकेला मर्द था जो 25 वर्षों तक मुझसे लड़ता रहा।
शुक्ल के श्राद्ध में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा, ब्रजकिशोर प्रसाद आदि दर्जनों नेता सतवरिया में मौजूद रहते हैं. ऐमन भी वहां मौजूद रहता है ।राजेंद्र बाबू कहते हैं- ‘अब तो आप खुश होइए ऐमन, आपका दुश्मन चला गया.’ ऐमन अपनी बात दुहराता है, ‘चंपारण का अकेला मर्द चला गया ।अब मैं भी ज्यादा दिन नहीं बचूंगा.’ चलते-चलते ऐमन शुक्ल के बड़े दामाद को अपनी कोठी पर बुलाता है. वह मोतिहारी के पुलिस कप्तान को एक पत्र देता है जिसके आधार पर शुक्ल के दामाद सरयू राय को पुलिस जमादार की नौकरी मिलती है. ऐमन को राजकुमार शुक्ल की मृत्यु का सदमा लगता है. वह भी कुछ महीने बाद दुनिया से विदा हो जाता है।

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Dilipkumar Pankaj दमदार,विस्तृत व भाउक कर देने वाला पोस्ट। हमें अभिमान है इसका कि हम ऐसे महापुरुष में वंशज हैं, जिनकी कीर्ति पताका सदियों से लहराती चली आ रही है।
 
Ambrish Kant राजेशजी अच्छा आलेख आपने लिखा है बधाई
 
Satyendra Kumar Roy बहुत ही सुंदर विश्लेषण
 
Anil Sharma सुन्दर व्याख्यान
 
Roy Tapan Bharati राजेशजी। सारे तथ्य ऐतिहासिक
है अतः रुचिकर है। इस लंबे आलेख को दो या तीन किश्त में देना चाहिए था। बहरहाल आपके आलेख को Brahmbhattworld.com को ससम्मान जगह मिलेगी आज रात तक।
 
Ram Sundar Dasaundhi विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद।निराशा की बात यह है कि आज मोतिहारी के स्वच्छाग्रह कार्यक्रम में न तो बिहार के माननीय मुख्यमंत्री और न ही माननीय प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में एक बार भी राज कुमार शुक्ल जी के नाम का उल्लेख किया।
 
RK Rai भाई राजेश जी राज कुमार शुक्ल के अतित को जिस तरह आपने कागज के कोरे पन्नो पर उतारा है , काबिले तारीफ़ है । आपने बहुत ही सुंदर तरीके से हमे शुक्ल जी के जीवनि से रूबरू कराया हम दिल से आपका आभार ब्यक्त करते हैं , और अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हम उनके बंशज हैं । बहुत बहुत साधुबाद !
 
Roy Manoranjan Prasad बहुत ही महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ जानकारी 👌👌👌 धन्यवाद ।
 
Awadhesh Roy बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी जानकारी जिनके बारे में इतनी बड़ी जानकारी मिली | अगर सही शब्दों में कहा जाय तो गाँधी जी के हृदय में देश को आजाद करने में इन्होंने ही दीप जलाए | इनको मेरा शत-शत नमन है |
Sandhya Bhatt श्रद्धेय पंडित राजकुमार शुक्ल जी को नमन🙏 मैं अंतर आत्मा से काफी दुखी हुँ । कि इस धरती पर चम्पारण शताब्दी समापन समारोह का आयोजन किया गया वही, श्रद्धेय पं.राजकुमार शुक्ल जी को बिसरा दिया गया, जब हमारे बिहार के C.M को ही यह याद नहीं तो और किसी से कया उम्मीद——विडम्बना भी कैसी है कि आज इस बिहार में,हमारे बिहार के महान विभूति पं शुक्ल जी के बंशज भी है और इस मौके पर ओ भी गौण, ——–अब सवाल ये है कि इस सरकार को कैसे याद दिलाया जाएं–कि जिसे विसराए दिया गया, वही इस आंदोलन के एक मात्र सूत्रधार थे जो पहली बार मोहनदास करमचंद गांधी को बिहार के चम्पारण की धरती पर ला उन्हें महात्मा गाँधी बना दिया और इतिहास के पन्नों में उन्हीं को सरकार ने बिलुप्त कर किया ।
 
Prahlad Kumar Verma बधाई हो राजेश जी….. आज रामविलास पासवान जी ने भी पंडित राजकुमार शुक्ल का जिक्र कर ही दिया…..
 
Gyan Jyoti Bhatt पं. राजकुमार शुक्ल स्मृति संस्थान (रजि०). पंडित राज कुमार शुक्ल को जो सम्मान चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समापन समारोह में मिलना चाहिए था , वो उन जैसे महान क्रन्तिकारी को नहीं मिला।
उनकी जीवनी की विस्तृत आलेख राजेश भट्ट ने बखुबी प्रस्तुत की है।
बहुत ही क्रमवार तरीके से शुक्ल जी जैसे कर्मठ एवं जुझ…See more
 
Ajay Rai दुर्भाग्य है सरकार का ,जिनके नाम पर इतना बड़ा आयोजन उन्ही को भूल गए
 
Tadak Nath Bhatt Bhattji संगठन में ही शक्ति है। मुट्ठी भर विश्नोई ब्राम्हणों ने मोदी के चहेते सम्पन्न सलमान को सजा दिलाकर ही छोड़े।
भट्ट समाज की एकता ही सम्मान दिला सकती है।

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