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दे दुआ! आज 23 ही है, हर-जनम मुझे यह यार मिले! India Uttar Pradesh 

दे दुआ! आज 23 ही है, हर-जनम मुझे यह यार मिले!

-शादी_सालगिरह पर मेरी कलम का एक प्रयास

 आलोक शर्मा/महाराजगंज (यूपी)
बचपन बीता यौवन आया, जीवन ने ली जब तरुणाई;
इक हुकसी मन में होती थी, जब बजती थी कहीं शहनाई!
अठ्ठारह बरस पूर्व जीवन, दो-दर्जन बरस अकेला था;
मै कैसे तुझे बता दूँ प्रिय, क्या-क्या? तन-मन ने झेला था!
मधुमास नहीं था जीवन में, केवल पतझड़ ने वार किया;
दो चार नहीं इस ज़ालिम ने, था चौबीस-बार प्रहार किया!
 
तन्हा दिल सोच के घायल था,कि कब वसन्त आ जायेगा;
हाथ पकड़ जीवन पथ–पर, कोई साथी मुझे बनाएगा!
कुछ अजीब कारण होते, जो नहीं समझ में आता है!
पर माँ हर–दम यह कहती थी,जोड़ा भगवान बनाता है!
निश्चित माँ की ही दुआ लगी,मेरे जीवन को आधार मिला;
पैसठ सौ सत्तर दिन पहले,जब प्राणप्रिये तेरा प्यार मिला!
 
तूँ बनी सुता जिस पापा की उन्हें पुण्यों का उपहार दिया;
है धन्य कोंख उस माता की, जिसने तुझको संसार दिया!
नमन् सभी उन रिश्तों को,आशीष से जिनके फूल खिला;
जिनके समक्ष चाहत मेरा,बिलकुल मेरे अनुकूल मिला!
उस गांव,गली, आँगन समेत,पशु-पक्षी ने एहसान किया;
बचपन से लेकर डोली तक, जिसने तेरा सम्मान किया!
 
पतझड़ से मेरे जीवन को, अद्भुत वसन्त तक लाने में;
छोड़ दिया निज जीवन को, तूने जीवन मेरा सजाने में!
इक चुटकी सिंदूर ने जिस दिन ,अपनी रश्म निभाई यूँ;
सलवार सूट चंचलता तजि, साड़ी में हुयी पराई तूँ!
अंश-कोंख को भूल गयी,भाई संग बहन का ध्यान कहाँ;
तूँ छोड़चली उस माटी को था,खुशियों का अरमान जहां!
 
सबकुछ छोड़ा सब भूल गयी,यदि केवल मुझको पाने में!
है दुआ कभी कुछ कम ना हो, खुशियों के तेरे खजाने में!
तूँ गागर में इक सागर है, मेरे घर की ख़ुशी, संसार भी तूँ;
जीवनसंगिनी मनमीत मेरे,चंचल वनिता मेरा प्यार भी तूँ!
यदि साथ तेरा यूँ बना रहे, मै चाँद गगन से ले आऊं;
बस एक वचन दे दो सविता, मै प्यार तेरा हर–पल पाऊं!
 
हे! गणेश! शिव–उमा सहित, देवी, दुर्गा, हे! मुरलीधर;
हे पूर्वज! अग्रज, अभिभावक, है बड़ी कृपा तेरी मुझपर!
हे मेरे पक्ष के अनुज मित्र,सविता की सब सखियाँ प्यारी;
पंडित, नाऊ, डोली-कहाँर, जिसने सजवा दी फुलवारी!
तारीख 23 अप्रैल ही था जिस दिनों दोनों के प्यार खिले;
दे दुआ! आज 23 ही है, हर-जनम मुझे यह यार मिले!
#स्वरचित_पंक्तियाँ
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पैसठ सौ सत्तर दिन पहले( #18वर्ष पूर्व )आज के ही दिन #23अप्रैल को जब मै दो दर्जन वरस (24वर्ष) का था!आप सभी अभिभावक अग्रज अनुज के आशीष स्नेह से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया था!

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