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मेरा राजा बेटा आएगा इक दिन… Bihar India 

मेरा राजा बेटा आएगा इक दिन…

माँ, जो दुनियां में लाई, खुद जगकर बच्चों को सुलाया, उनके गंदे साफ किए, वो बोझ बन जाती है…

भारती रंजन/ दरभंगा, बिहार 
यही उम्मीद और इसी को दुहराते दुहराते एक माँ मर जाती है, मगर बेटा नही आया। जिस माँ शब्द में पूरा ब्रम्हांड छुपा है, उस माँ को अस्पताल में रोते-बिलखते छोड़ बच्चे अपने आप को बोझ से स्वतंत्र समझते हैं। माँ, जो दुनियां में लाई, खुद जगकर बच्चों को सुलाया, उनके गन्दे साफ किए, वो बोझ बन जाती है, और बीमार माँ का हाल पूछना तो दूर उसके शव को लाने या अंतिम संस्कार तक करना उचित नही समझते।
मैं बात कर रही हूं उस गीता कपूर की जो अपने अभिनय के लिए जानी जाती थी। जिसकी मुस्कान इतनी प्यारी थी जो उसके चेहरे पर चार चांद लगाता था।मग़र वही चेहरा रोते रोते मायूस होकर ,उम्मीद का दामन थामे हुए मौत के आगोश में चला गया। मगर राजा बेटा मरने के बाद भी नही आया।
शर्म आती है ऐसी 
सन्तान पर जिसके लिए माता-पिता बोझ हैं और पत्नी स्वर्ग। मगर उन्हें ये नही मालूम कि उससे भी दर्दनाक मौत उनकी हो सकती है और उनका भी राजा बेटा किसी रानी के आँचल में मुँह छुपाकर उन्हें बोझ समझकर फेंक सकता है। हम जो करते हैं, वही पाते हैं।
जिस बुढापे में एक पुत्र को बीमार माँ को सीने से लगाकर रखना चाहिए था, वो वक़्त उस बूढ़ी माँ का आँसू बहाते बहाते ,मौत के दरवाजे पर आकर ठहर गया। इतनी बदकिस्मत एक माँ कैसे हो सकती है???इतना गैर जिम्मेदार एक बेटा हो तो, बच्चों को जन्म देना ही सजा है एक माँ के जीवन के लिए।

कहावत है कि –बोए पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए ???

(लेखिका दरभंगा, बिहार में टीचर हैं)

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