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मेरे भट्टकुर गांव में सदियों पुरानी परंपराएँ आज भी विद्यमान: प्रियंका राय Bihar India 

मेरे भट्टकुर गांव में सदियों पुरानी परंपराएँ आज भी विद्यमान: प्रियंका राय

“मेरा गाँव- मेरा देश”

ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्ध त्रेतायुगीन इस मंदिर परिसर में प्रति वर्ष चैत्र और कार्तिक माह में महापर्व छठ व्रत करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है। पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया।

प्रियंका राय/पटना

परिन्दों की चहचहाहट…. चौपालों की बैठकें.. लहलहाती फसलें….मिट्टी की सौंधी खुश्बू….ये सब दृश्य किसी भी गांव की आम पहचान हैं। अगर ये नजारे आपको आकर्षित करते हैं तो आपने भी मन के किसी हिस्से में ग्रामीण परिवेश के प्रति अपने लगाव को जीवित रखा है।
पहले कुछ लोग जब अपने गांव का ज़िक्र करते तो उसे मेरा गांव की जगह ‘मेरा देश’ के विशेषण से अलंकृत करते थे।
 
देव की ऐतिहासिक व् गौरवशाली भूमि पर बसा मेरा पैतृक गांव ‘भट्टकुर’ बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में है। यह विख्यात देव सूर्य मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर की दुरी पर दक्षिण दिशा की ओर स्थित है। ब्लॉक- देव, थाना-देव, और पोस्ट- एरोरा। यह दो टोलों में विभक्त है। एक टोले में अपने समाज के लोग और दूसरे में पाल (गरेड़ई) समुदाय विद्यमान हैं। इस गाँव में ब्रह्मभट्ट समाज की आबादी लगभग 50 परिवारों की है और सभी लोग मिलजुल कर रहते हैं।यहां के लोगों का गोत्र भारद्वाज गोत्र है।
मेरे गांव की मुख्य भाषा मगही है। मगही भाषा का नाम मगधी प्राकृत से बना जो कि मौर्य साम्राज्य की आधिकारिक भाषा थी और भगवान बुद्ध भी इसे बोलते थे। हमने आम बोलचाल में ग्रामीण भाषा का प्रयोग तो नही किया पर मैं भी अच्छी मगही बोल सकती हूँ।
संयोग से यह मेरे मायके और ससुराल (बोकनारी कलाँ, जहानाबाद) दोनों जगह बोली जाने वाली भाषा है।
 
गाँव का मुख्य आय स्त्रोत कृषि और पशु पालन है। जो नोकरी पेशा हैं वह तन से दूर जरूर हैं पर मन से पूरी तरह यहां से जुड़े हैं।
गांव में कृषि व्यवस्था काफी सम्पन्न है। लगभग सभी फसलें, मसाले व् सब्जियां उगाई जाती हैं। पर, मुख्यतः यहां दलहन की उपज काफी समृद्ध है। यहाँ स्वादिष्ट गुड़ भी बनाया जाता है। मेरे गाँव में सिंचाई प्रबंध के लिये टूबवैल और कुओं की व्यवस्था है पर अब जल्द ही नहर भी जुड़ने वाला है। गांव में सतनदिया नदी जो पश्चिम से बहती हुई दीवान बीघा में जाकर मिलती है। यहां का पेयजल बहुत शीतल, स्वादिष्ट व् शुद्ध है।
गांव में प्राइमरी स्कूल भी है। गांव से लगभग 1 कि.मी. पर केताकि बाजार है जहां जरुरत की लगभग सभी सामग्री लोगों को मुहैया हैं।
गांव में पक्की सड़कें व् अच्छी बिजली की व्यवस्था इसके विकसित होने का प्रमाण हैं। गाड़ियां बिलकुल हमारे घर के दरवाजे तक आती हैं।
 
मेरे गांव में भी सदियों से चली आ रही कई परंपराएँ आज भी विद्‌यमान हैं। यहाँ के लोगों में अपनापन और सामाजिक घनिष्ठता पाई जाती है।
सूर्य मंदिर सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का केंद्र बना हुआ है। ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्ध त्रेतायुगीन इस मंदिर परिसर में प्रति वर्ष चैत्र और कार्तिक माह में महापर्व छठ व्रत करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है। पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया।
 
शादी की पहले और बाद भी मेरा गाँव कई बार जाना हुआ है। और हर बार अपनी मिटटी की खुसबू और इसके संस्कारों को जानने समझने का मौका मिला है। बचपन में हम जब भी गाँव जाते तो सभी भाई बहनो के साथ पूरा गाँव घूमते। नई दुल्हनों को देखने जाना और परम्पराओं से अवगत होना हमारी कोतुहुलता को बढ़ाता था। रात में छत पर हम सभी चारपाई पर लेटे तारों की जगमगाहट में खो जाता।
शादी के पहले साल ही श्रावण मास में होने वाले कुलदेवता(माँ भगवती) व् ग्रामीण देवता(तपहर बाबा) के पूजन संस्कारों को भी करीब से देखा और जाना। हमारे कुल व् ग्रामीण देवता की कृपा इस गाँव पर सदैव बनी रही है।
 
पश्चिम दिशा से कलकल करती हुई सतनादिया, चारों और खेतों की हरियाली गाँव की शोभा बढ़ा रही है। पर्वतमाला और विविध वनस्पतियाँ इसके प्राकर्तिक सौंदर्य में चार चाँद लगा देती है। शायद गुजरते, फिसलते पलों को ज्यादा से ज्यादा समेट लेने, रोक लेने की ख्वाहिश आज भी कई लोगों की होगी। क्यूंकि, मेरा गाँव मेरा देश हर किसी की पहचान है। इस पहचान को बरकरार रख अपने विरासत का सम्मान करना चाहिये।

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