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मुंगेर के इस सुरंग का दूसरा छोर कहाँ गया आज भी रहस्य Bihar 

मुंगेर के इस सुरंग का दूसरा छोर कहाँ गया आज भी रहस्य

आज का मुंगेर जिला बिहार के पिछड़े जिलों मे से एक है। आप में से बहुत लोग जानते होंगे कि बंगाल के अंतिम नबाव ‘मीर कासिम ‘ ने मुंगेर को ही अपनी राजधानी बनाया था। मीर कासिम ने गंगा नदी किनारे भव्य किले का निर्माण किया था। यह किला 1934 में बिहार में आये भीषण भूकम्प मे क्षतिग्रस्त हो गया लेकिन इसका अवशेष अब भी शेष है। 
सरिता शर्मा/मुजफ्फरपुर
आज से सालों पहले मैंने एक किताब में पढी थी- बिहार में सिगरेट फैक्ट्री, योग विश्वविद्यालय “योगाश्रम” और मीरकासिम ने अपनी राजधानी कहाँ बनाई? इन सारे सवालों का एक ही जवाब था- मुंगेर। तब मुझे कहाँ पता था, एक दिन मेरी शादी इसी जिले में हो जाएगी। इस बार सर्दी की छुट्टी में मैंने इस जिले का भ्रमण किया। एक तरफ जहाँ मुझे यहाँ के ऐतिहासिक धरोहर से रूबरू होने का मौका मिला वहीं दूसरी ओर यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को भी महसूस किया।
दानवीर कर्ण की नगरी ‘मोदगिरि आज’ मुंगेर के नाम से जाना जाता है। आज का मुंगेर जिला बिहार के पिछड़े जिलों में से एक है। आप में से बहुत लोग जानते होंगे कि बंगाल के अंतिम नबाव ‘मीर कासिम ‘ ने मुंगेर को ही अपनी राजधानी के रूप में चुना था। मीर कासिम ने गंगा नदी के किनारे एक भव्य किले का निर्माण कराया था। यह किला 1934 में बिहार मे आये भीषण भूकम्प मे क्षतिग्रस्त हो गया लेकिन इसका अवशेष अब भी शेष है। मुंगेर का किला ऐतिहासिक धरोहरो में से एक है। इस किले मे चार द्वार है। इस किले में स्थित गुप्त सुरंग पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है।
जिस कर्ण और मीरकासिम के चलते मुंगेर का इतिहास धनी माना जाता है। आज सरकार की उदासीनता के कारण यहाँ की ऐतिहासिक धरोहरो का वजूद खतरे में है। मीरकासिम के सुरंग का राज आज भी लोगों के सामने अबूझ पहेली बनी हुई है। यह सुरंग कष्टहरणी घाट (जो हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए पवित्र माना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार गंगा नदी के इस घाट पर स्नान करने से एक व्यक्ति का सभी कष्ट दूर हो गया था,तभी से इस घाट को कष्टहरणी घाट के नाम से जाना जाता है) के सामने पार्क मे है। यह ऐतिहासिक सुरंग कितना लम्बा है तथा इसका दूसरा छोर कहाँ निकला है इसका पता आज तक नही लग पाया है। इतिहास के पन्ने बताते है कि अंग्रेजों के भय से मीरकासिम ने इसी सुरंग से भाग कर अपनी जान बचाई थी।
मुंगेर मे ही स्थित माता चंडिका का मन्दिर 52 शक्ति पीठ मे से एक है। इसे “श्मशान चंडी” के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके पूर्व और पश्चिम मे श्मशान है।इसी कारण नवरात्र मे कई साधक तंत्र सिद्धि के लिए यहाँ आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती क़ी बाई आँख गिरी थी। इसलिए यहाँ आँखों के असाध्य रोग से पीड़ित लोग बड़ी संख्या मे पूजा करने आते है और यहाँ से काजल लेकर जाते है।यह काजल नेत्र रोगियों के विकार को दूर करता है।
मुंगेर से 6 km  सीता कुण्ड मुंगेर आने वाले पर्यटको के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस कुण्ड का नाम प्रभु श्रीराम की पत्नी सीता के नाम पर रखा गया है। कहा जाता है क़ि अग्नि परीक्षा के बाद सीता माता ने जिस कुण्ड मे स्नान किया था,यह वही कुण्ड है।इसका जल गर्म रहता है।\
मुंगेर से लगभग 60 km की दूरी पर हरे भरे मनोरम पहाड़ियों,प्राकृतिक वादियो और घने जंगलों से घिरे #भीमबांध गर्म जलकुंड के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस घने जंगल को सुरक्षित समझकर अपना कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था।स्थानीय निवासी बताते है कि सुरक्षा का ध्यान रखते हुए पांडवों द्वारा सूर्यास्त के बाद बांध बांधने का निर्णय लिया गया था,जिसे सूर्योदय से पहले हर हाल मे तैयार कर लेना था।
भीम ने इस कार्य का बीड़ा उठाया। बांध निर्माण के दौरान मध्य रात्रि मे ही जंगली मुर्गे ने बांग दे दी। मुर्गे की बांग को सुबह समझ लिया गया जिसकारण भीम द्वारा बनाया जा रहा बांध अधूरा ही रह गया। आज भी वह अधूरा अवशेष वहाँ मौजूद होकर जीवंत कहानी कह रहा है। जाड़े के मौसम मे बड़ा दिन हो या नववर्ष की खुशियों का उमंग भीमबांध से खुबसूरत जगह और नही हो सकता है। जैसे जैसे ठंड बढ़ता है भीमबांध मे पर्यटन के प्रति लोगों का रुझान भी बढ़ने लगता है। गर्म जलकुंड के कारण भीमबांध एक बहुत ही सुंदर पिकनिक स्पॉट माना जाता है।गर्म जलधारायो को समेट कर बनाये गए स्नान कुण्ड यहाँ की खूबसूरती मे चार चाँद लगते है।

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