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आखिर हर बार मर्दानगी घायल क्यों होती है? Delhi Testimonials 

आखिर हर बार मर्दानगी घायल क्यों होती है?

मर्दानगी (मैस्क्युलिनिटी) एक कुंठित श्रेष्ठताबोध है, इसका शारीरिक बल से लेना-देना नहीं

राय तपन भारती/ नई दिल्ली

Tapan & Sandhya
राय तपन भारती

वह ससुराल में अधिक बात नहीं करती। उसके मन में क्या है किसी को भी नहीं पता। आखिर किससे अपने मन की बात कहे। दरअसल उसकी परेशानी कुछ करीबी समझते हैं। मुझे भी थोड़ी बहुत जानकारी है। मायके मेंं उसे आजादी थी। पर यहां तो सास-ससुर या पति से पूछकर हर काम करना आवश्यक है। मतलब साफ है उसे आजादी नहीं है। वह अपने मुुुुतबिक दोस्ती भी नहीं कर सकती। उसे धन के निवेेेेश का भी अधिकार नहीं।

दरअसल रीतियों की आड़ में जो लोग अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए नारी की अस्मिता और उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं, वो समाज ही नहीं मानवता के भी अपराधी हैं ! यह केवल कहने को है कि मुसलमानों में महिलाओं का दमन-शोषण है। अगर हिन्दू समाज में खासकर उच्च जाति में झांकें तो यहां महिलाओं की आजादी रसोई घरों तक ही सीमित दिखेगी।

कोलकाता में एक जीवट की महिला हैं। उनका नाम है चंदा जायसवाल। वह लिखती हैं…लड़की उम्र में बड़ी हो तो मर्दानगी को ठेस लगती है- लड़की लंबी हो तो भी मर्दानगी को चोट लगती है- लड़की अधिक कमाती हो तो मर्दानगी हर्ट होती है- लड़की आर्ग्यूमेंटेटिव हो तो मर्दानगी को क्षति पहुँचती है- लड़की दो क़दम आगे चलने लगे तो मर्दानगी छितरा जाती है- लड़की ‘न’ कह दे तब तो मर्दानगी छलनी हो जाती है- बिना पूछे पत्नी किसी पुरुष दोस्त से बात कर ले तो मर्दानगी दांत पीसने और मुक्का भींचने लगती है ….

मतलब ये कि स्त्री पुरुषों से कमतर रहे, उनके नियंत्रण में रहे, उन पर निर्भर रहे और उनका एहसान मानती रहे तभी मर्दानगी साबित होती है …….. मर्दानगी (मैस्क्युलिनिटी) एक कुंठित श्रेष्ठताबोध है, इसका शारीरिक बल से कुछ भी लेना-देना नहीं, बल्कि ये मानसिक दुर्बलता है, रुधिर उग्रता है !!!!

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