You are here
आज का आदमी Bihar Delhi 

आज का आदमी

स्वरचित कविता

अवधेश राय/नई दिल्ली

आज का आदमी

Awadhesh Roy

जिंदा तो है

पर, जिंदा नहीं,

सांसें तो है

पर, आत्मा नहीं,

वह जो सोचता है

कहता नहीं,

वह जो कहता है

सोचता नहीं ।
कभी किसी को

है, कोसता रहता,

कभी किसी की

टांगें खींचता रहता,

कभी किसी की

तरक्की से जलता,

तो, कभी किसी का

वैभव उसको खलता,

कभी वह अपने

अंदर नहीं झांकता,

पर, दूसरों की कमी

हमेशा है आंकता ।
वह सिर्फ दौड़ता है

चलता कभी नहीं,

हमेशा गिरता है,

पर, संभलता कभी नहीं,

उसने संभलना कभी

सीखा ही नहीं,

ठोकरें हमेशा है खाता

पर, उठता ही नहीं,

दूसरों के भरोसे ही

वह पड़ा रहता है,

जख्म जब मिल जाए

अड़ा ही रहता है,

उपदेश कभी लेता नहीं

देता ही रहता है,

किसी चीज को

जल्द से जल्द ही

पाने की एषणा

वह बनाए रखता है,

पर, इसमें वह

असफलता का स्वाद

चखता ही रहता है ।
वह धैर्य रखता नहीं

वह संयम रखता नहीं,

वह तृष्णा छोड़ता नहीं

वह कृष्णा जोड़ता नहीं,

वह भाव बनाता नहीं

वह जुड़ाव दिखता नहीं,

तो, ऐसे में वह आदमी

चाह कर भी क्या

कभी कुछ कर पाएगा,

जिंदगी उसकी सारी

रीता ही तो रह जाएगा ।

Related posts

Leave a Comment